हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result

पाकिस्तानी साजिश का शिकार

by गंगाधर ढोबले
in मई २०१७, राजनीति, सामाजिक
0

कुलभूषण जाधव पाकिस्तान के कुचक्र का शिकार बन गया है। यह भी उसके भारत के खिलाफ छद्मयुद्ध का एक हिस्सा है। उसे कश्मीर को जलते रखना है, बांग्लादेश के टूटने के घाव को सहलाना है। आतंकवादी राष्ट्र होने की बात से अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान हटाना है। जाधव की रिहाई के हर संभव प्रयास तो होंगे ही, लेकिन पाकिस्तान के छद्मयुद्ध का भी शिद्दत से मुकाबला करना होगा।

यह आलेख जब आप पढ़ रहे होंगे तब आपके मन में यह प्रश्न अवश्य उठेगा कि अब कुलभूषण जाधव का क्या होगा? क्या उसे पाकिस्तान फांसी चढ़ा देगा? या कि क्या पाकिस्तान उसकी कथित सजा को कुछ साल की कैद में तब्दील करके अपने को अंतरराष्ट्रीय समुदाय और भारत के रोष से बचा लेगा? अथवा क्या पाकिस्तान के कब्जे से उसे मुक्त करना संभव होगा? जब दो राष्ट्रों का निरंतर संघर्ष का इतिहास रहा हो तो ऐसे सवालों के जवाब पाना आसान नहीं होता। राजनैतिक, कूटनीतिक, गुप्तचरी और मौका पड़ने पर फौजी स्तर पर भी यह संघर्ष निरंतर चलता रहता है। कुलभूषण इसी का शिकार हुआ है और संघर्ष का मोहरा बन गया है।

यह कुलभूषण कौन है? महाराष्ट्र के सातारा जिले के आणेवाडी गांव का वह रहने वाला है। पिता-चाचा सभी फौजी रहे हैं। कुलभूषण भी नौसेना में अधिकारी था और सन २००० के पूर्व ही निवृत्त हो चुका है। गांव में उसकी एक एकड़ खेती है। उसमें रहने के लिए मकान बनाया है। परंतु महज एक एकड़ में खर्च चलना मुश्किल है। इसलिए वह जमीन दूसरे को जोतने के लिए दे देता है। स्वयं अन्य व्यवसाय करता है। इसी सिलसिले में उसे ईरान के छाबहार बंदरगाह में काम मिला था। इसलिए वह ईरान गया था। यहीं से उसका दुर्भाग्य शुरू होता है।

चूंकि वह नौसेना में अधिकारी था और ईरान आया हुआ था, इसलिए पाकिस्तानी गुप्तचर एजेंसी आईएसआई उसका पीछा कर रही थी। उसने सीधे हस्तक्षेप करने के बजाय तालिबानियों के जरिए उसका अपहरण करवाया। पाकिस्तान स्थित जर्मन राजदूत गुंटर मुलक ने यह बात साफ तौर पर कही है। उनका कहना है कि तालिबानियों ने जाधव को सौंपने के बदले में आईएसआई से मोटी फिरौती वसूल की है। जाधव का अपहरण तो बहुत पहले हुआ था। उसे तालिबानियों ने हाल में पाकिस्तान को सौंपा। कई दिनों तक तो पाकिस्तान ने उसकी कोई अधिकृत घोषणा नहीं की। बाद में अचानक बताया गया कि जाधव बलूचिस्तान के मस्केल में पकड़ा गया। वास्तव में फिरौती मिलने के बाद तालिबानियों ने जाधव को बलूचिस्तान की सीमा के पास लाकर आईएसआई के हवाले कर दिया। ईरान ने भी जर्मन राजनयिक की बातों की पुष्टि की है। उसका अधिकृत बयान है कि जाधव को ईरान से ही उठा लिया गया। असल में वह किसी भी अवैध गतिविधियों में शामिल नहीं था।

किसी देश के नागरिक के पकड़े जाने पर सम्बंधित देश को इसकी सूचना देने का अंतरराष्ट्रीय कानून है। इसे विएन्ना कन्वेंशन कहते हैं। पाकिस्तान ने इसका पालन नहीं किया। भारत को इसकी कोई अधिकृत सूचना नहीं दी गई। यह सूचना देने के लिए जो डोजियर (सरकारी पत्र) बना था, उस पर सरताज अजीज ने स्वयं आपत्ति उठाई थी। सरताज अजीज आजकल पाकिस्तान के विदेशी मामलों के सलाहकार हैं। उनका कहना था कि डोजियर में महज बयान हैं, कोई ठोस सबूत नहीं। अदालतों में ठोस सबूत चलते हैं, बयानबाजी नहीं। शायद इसी कारण यह सरकारी पत्र रोक दिया ्रगया होगा।

कुछ दिन चुप्पी के बाद पाकिस्तान से अचानक खबर आई कि किसी फौजी अदालत ने जाधव को जासूसी के आरोप में फांसी की सजा सुनाई है। उस पर बलूचिस्तान में तोड़फोड़ करने की साजिश रचने तथा भारतीय गुप्तचर एजेंसी रॉ के लिए काम करने का आरोप है। यह भी आरोप है कि उसका पासपोर्ट किसी हुसैन मुबारक पटेल के नाम से है। वह भी भारतीय पासपोर्ट! किसी को जासूसी करनी हो तो वह अपने देश का ही पासपोर्ट और वह भी किसी दूसरे नाम से क्यों रखेगा? इस प्रश्न का कोई जवाब नहीं है। यह भी दावा किया गया है कि उसने जासूसी के आरोप को कबूल किया है। पुलिस या फौज में पकड़े जाने पर किस तरह कबूलनामे लिखवाए जाते हैं यह किसी से छिपा नहीं है। उसे सजा देने के ये दो ही प्रमुख आरोप है। इसके अलावा अन्य कोई सबूत नहीं हैं। इसे अदालती भाषा में महज आरोपबाजी करार दिया जाता है और इसके आधार पर कोई सजा नहीं दी जा सकती। ये दावे महज साजिश का संकेत करते हैं। पाकिस्तान से इसके अलावा और उम्मीद भी क्या की जा सकती है? मुंबई हमले के आरोपी अजहर मसूद के बारे में इतने सारे सबूतों एवं अंतरराष्ट्रीय दबावों के बावजूद पाकिस्तान ने महज दिखावटी कार्रवाई की है। चीन ने पाकिस्तान के पक्ष में सुरक्षा परिषद में वीटो तक कर दिया। जिस मामले में वीटो करने की नौबत आए वह कितना संगीन होगा इसे और स्पष्ट करने की जरूरत नहीं है।

पाकिस्तानी मीडिया में जाधव और कसाब की तुलना की जा रही है, जो हास्यास्पद है। जाधव के खिलाफ आतंकवादी कार्रवाई के कोई सबूत नहीं हैं, जबकि कसाब आतंकवादी कार्रवाइयों के दौरान ही मुंबई में पकड़ा गया। जाधव को बचाव का कोई मौका नहीं दिया गया, जबकि कसाब को पूरे अवसर दिए गए। जाधव को भारतीय उच्चायुक्त से मिलने या पैरवी करने का मौका नहीं दिया गया। कोई १३ बार भारतीय उच्चायुक्त ने जाधव से मिलने की अनुमति मांगी, परंतु ठुकरा दी गई। पहले तो कसाब के पाकिस्तानी होने से ही पाकिस्तान इनकार करता रहा, बाद में उसने इसे स्वीकार कर लिया, जबकि भारत ने कोई लुकावछिपाव नहीं किया और जाधव के भारतीय नागरिक होना आरंभ में ही स्वीकार किया।

पाकिस्तान के इस कुचक्र का सामना करने की भारतीय एजेंसियों ने पहले ही तैयारी की थी, ऐसा लगता है। जो खबरें छन कर सामने आ रही हैं उससे पता चलता है कि जाधव को ईरान से उठाए जाने की खबर मिलते ही भारतीय एजेंसियां काम पर लग गई थीं। बताया जाता है कि तालिबानियों ने आईएसआई के एजेंट लेफ्टि. कर्नल मोहम्मद हबीब जहीर को जाधव को सौंपा था। यह जहीर पाकिस्तानी सेना से सतही तौर पर निवृत्त हो चुका है, लेकिन अब आईएसआई के लिए काम करता है। भारतीय एजेंसियों ने नेपाल की सीमा पर उसे धर दबोचा है। इससे बहुत सारे रहस्य उजागर हो जाएंगे। इसी आशंका से पाकिस्तान ने आननफानन में जाधव को सजा सुना दी, ताकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन दोनों मामलों को जोड़ने से बचा जा सके। भारत ने जहीर के पकड़े जाने की अधिकृत घोषणा नहीं की है, लेकिन पाकिस्तान ने इसे जरूर स्वीकार किया है कि जहीर नेपाल से अचानक लापता हो गया है। बताया जाता है कि जहीर ने ही जाधव पर नजर रखी थी। अतः जाधव विरुद्ध जहीर मामला बनते देर नहीं लगेगी।

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संसद में साफ कर दिया है कि जाधव की रिहाई के लिए कोई कसर बाकी नहीं रखेंगे। यह कार्रवाई तीन दिशाओं में होगी- राजनैतिक, कूटनीतिक एवं फौज के स्तर पर। फिलहाल दोनों देशों की गुप्तचर एजेंसियां आमने-सामने आ गई हैं। आईएसआई ने जाधव को हथियाया तो भारतीय एजेंसियों ने जहीर को धर दबोचा। अब बारी राजनैतिक और कूटनीतिक है।

राजनैतिक स्तर पर दोनों देशों के बीच वरिष्ठ स्तर पर बातचीत हो सकती है और लेनदेन से मामला सुलझ सकता है तथा दोनों देशों के बीच इस मामले में बढ़ी तनाव की गर्मी कुछ हद तक कम हो सकती है। आपसी वार्ता में पाकिस्तान के भारत में पकड़े गए गुप्तचरों या जिनकी सजा पूरी हो चुकी है ऐसे कैदियों की अदलाबदली हो सकती है। जाधव को अपील में पैरवी के लिए बेहतर वकील मुहैया किए जा सकते हैं, बशर्तें कि पाकिस्तान उन वकीलों को स्वीकार करें। यह पेचीदा मामला है। अंत में पाकिस्तानी राष्ट्रपति पर दयायाचना स्वीकार करने के लिए अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाया जा सकता है।

कूटनीतिक स्तर पर हर प्रमुख देश की सरकार तक वास्तविक जानकारी पहुंचाई जा सकती है; ताकि वे पाकिस्तान पर रिहाई के लिए दबाव बनाए। वैसे भी पश्चिमी देश ऐसे मामलों में मौत की सजा दिए जाने के विरुद्ध हैं। उन्हें अपने ही सिद्धांतों का हवाला दिया जा सकता है। अंतरराष्ट्रीय दबाव आए तो पाकिस्तान को भी झुकना पड़ेगा; क्योंकि वह भी जानता है कि तनाव और बढ़ाना या युद्ध छेड़ना बेवकूफी होगी।
कूटनीतिक स्तर पर सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी का एक और सुझाव आया है। उनका कहना है कि भारत को अब बलूचिस्तान को राष्ट्र का दर्जा दे देना चाहिए। उनकी निर्वासित सरकार बनाने में मदद करनी चाहिए। ऐसी सरकार को मान्यता देनी चाहिए। उनका यह सुझाव बांग्लादेश की लड़ाई जैसा ही है। लेकिन बांग्लादेश और बलूचिस्तान दोनों की स्थितियां अलग-अलग हैं। जब तक बलूचिस्तान के लोग स्वयं उठ खड़े नहीं होते तब तक ऐसा कोई दांव बहुत सफल नहीं होगा। दूसरे बलूचिस्तान के पड़ोसी अफगानिस्तान और ईरान को इसके लिए तैयार करना होगा। फिलहाल ईरान और अफगानिस्तान पाकिस्तान के मामले में भारत का साथ देते दिखाई देते हैं; लेकिन उनके पलटने में कितनी देर लगेगी? अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हमेशा कोई आपका दोस्त नहीं होता, समय पलटा कि लोग पलट जाते हैं। बलूचिस्तान का मामला प्रदीर्घ चलने वाला मामला है। हां, हम उसे अपने नैतिक समर्थन की अवश्य घोषणा कर सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बलूचिस्तान की बात को लगातार उठा सकते हैं।

जाधव पाकिस्तान के कुचक्र का प्यादा बन गया है। वास्तव में यह भी उसके छद्मयुद्ध का एक हिस्सा है। उसे कश्मीर को जलते रखना है, बांग्लादेश के टूटने के घाव को सहलाना है। भुट्टो की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ने भी जाधव को फांसी सुनाए जाने का विरोध किया है। पार्टी के अध्यक्ष और बेनजीर के बेटे बिलावल के विरोध का कारण समझा जा सकता है; क्योंकि उनके नाना जुल्फिकार को किस तरह फांसी चढ़ाया गया और उनकी मां बेनजीर को किस मरवा दिया गया वे अभी भूले नहीं हैं। पाकिस्तान के हुक्मरान और वहां की फौज अपनी सत्ता बचाने के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं, यह इससे साबित होता है। भारत विरोध सत्ता पर काबिज रहने का उनका हथियार है। इस मानसिकता ने ही पूरे महाद्वीप में कभी अमनचैन आने नहीं दी। मुंबई से लेकर पठानकोट और उरी तक जो हमले हुए हैं उससे पाकिस्तान आतंकवाद को पनाह देने वाला राष्ट्र बन गया है। जाधव जैसे बेबुनियाद काण्ड खड़े कर पाकिस्तान यह भी जताना चाहता है कि हम ही नहीं भारत भी ऐसा करता है। इसका उतनी ही शिद्दत के साथ मुकाबला करने की आवश्यकता है।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: hindi vivekhindi vivek magazinepolitics as usualpolitics dailypolitics lifepolitics nationpolitics newspolitics nowpolitics today

गंगाधर ढोबले

Next Post

हम मंदिर वहीं बनाएंगे...

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0