संघ का गुरु भगवाध्वज

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ध्वज हिंदुओं को त्याग, बलिदान, शौर्य, देशभक्ति आदि की प्रेरणा देने में सदैव सक्षम रहा है। यह ध्वज हिंदू समाज के सतत् संघर्षों और विजयश्री का साक्षी रहा है। ‘भगवा ध्वज’ के बिना हम हिंदू संस्कृति, हिंदू राष्ट्र और हिंदू धर्म की कल्पना नहीं कर सकते।

सावरकर के कालजयी विचार

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कभी ‘धर्मनिरपेक्षता’के नाम पर हिंदुत्व को सांप्रदायिक करार देने वाले, आज मंदिरों में जाकर माथा नवा रहे हैं। राजनीतिक दलों में स्वयं को अधिक से अधिक हिंदुत्वनिष्ठ सिद्ध करने की होड़ है। ऐसे में स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर का स्मरण आवश्यक है।

देशी व विदेशी मीडिया की भारत विरोधी जुगलबंदी

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देश में कई पत्रकार ऐसे हैं जिन्हें मोदी सरकार, भाजपा व राष्ट्रीय विचार रखने वाले व्यक्तियों व संगठनों के खिलाफ अभियान चलाना ही है। दुर्भाग्य की बात यह है कि इस राजनीतिक खेल को पत्रकारिता का आड़ में अंजाम दिया जा रहा है।

चीन की प्रवृत्ति को समझें – श्रीगुरुजी

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चीन की ओर से विश्वासघात के रूप में कुछ हुआ नहीं, क्योंकि उसने तो कभी विश्वास दिलाया ही नहीं था। यह कहना ठीक नहीं कि चीन ने विश्वासघात किया। कहना यह चाहिए कि हम लोगों ने ही चीन की प्रकृति को समझा नहीं।

किसान आंदोलन या कोई बड़ा खेल

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किसान आंदोलन का आरंभ तो संभवत: पंजाब में मोदी विरोध के कारण कांग्रेस ने किया, पर लगता है कि अब यह हाइजैक होकर उन्हीं शक्तियों के हाथों में चला गया जिन्हें हम टुकड़े-टुकड़े गैंग के नाम से जानते हैं।

मदरसे: आतंकवाद की नर्सरी

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कट्टरपंथ और मदरसे के सम्बन्धों पर लंबे समय से बहस चल रही है, लेकिन इनके प्रति राजनीतिक नेतृत्व की नरम स्थिति के कारण, कानून प्रवर्तन एजेंसियां हमेशा कोई कड़ी जांच करने और किसी भी गंभीर कार्रवाई करने में संकोच करती रही हैं।

विश्व बाजार में उभरता भारतीय वस्त्र उद्योग

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सकारात्मक संकेत यह है कि मौजूदा सरकार वस्त्रोद्योग क्षेत्र में ढांचागत सुधार कर इसे फिर से पटरी पर लाकर तेज गति देने की दिशा में प्रयास कर रही है। ’मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के माध्यम से भारत को निर्माण तथा निर्यात का हब बनाने का अभियान चल ही रहा है।

आत्मनिर्भर भारत का वैचारिक अधिष्ठान

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हमें पश्चिमी प्रतिमानों या उदाहरणों का गहराई से अध्ययन विश्लेषण करना चाहिए और यदि संभव हो तो उनसे लाभ भी उठाना चाहिए। लेकिन उन्हें अपने भावी विकास का आदर्श प्रतिमान मानने की गलती नहीं करनी चाहिए। आत्मनिर्भरता का वैचारिक अधिष्ठान यही है।

मीडिया के उन ‘लिबरलों’ से रहें सतर्क

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कोरोना महामारी के दौरान मीडिया में तथ्यात्मक, सकारात्मक व नकारात्मक तीन स्वरूप उभरे हैं। इसमें से नकारात्मक खबरें बोने वाले वे वामपंथी हैं, जो अपने को ‘लिबरल’ कहलवाते हैं, लेकिन हैं प्रतिक्रियावादी। उनके चेहरों को समझना जरूरी है।

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