हिंदी भाषा का उपयोग-कुछ निजी अनुभव
हिंदी को काम में लाने के लिए जज्बा चाहिए, अपनत्व चाहिए। देश में विभिन्न सरकारी कार्यालयों में तैनात हिंदी अधिकारियों से इस तरह की कोई अपेक्षा नहीं है। वे महज खानापूरी के लिए जाने जाते हैं।
हिंदी को काम में लाने के लिए जज्बा चाहिए, अपनत्व चाहिए। देश में विभिन्न सरकारी कार्यालयों में तैनात हिंदी अधिकारियों से इस तरह की कोई अपेक्षा नहीं है। वे महज खानापूरी के लिए जाने जाते हैं।
मेरे स्वर्गीय पिता श्री शिवनाथ मिश्र न्यायाधीश तो थे ही, जिन्होंने १९३६ से १९५६ तक मध्य प्रांत और विदर्भ को, और १९५६ से १९६७ तक नवगठित मध्य प्रदेश राज्य को अपनी सेवाएं दी। वे कानून के अलावा संस्कृत, हिंदी, अवधी, मराठी तथा उर्दू पर अच्छी पकड़ रखते थे।
राहुल गांधी का बचपना उनकी उम्र के अनुपात से बढ़ता ही जा रहा है। असावधानी वश या नातजुर्बा बीमारी से या जोश में जैसे ही वे कहीं मुंह खोलते हैं, किसी न किसी की नाराज कर देते हैं।
कोई माने या न माने, पर मुझे संजय की तरह दिव्य दृष्टि प्राप्त हो गयी है और मैं भली भांति देख पा रहा हूं कि निकट भविष्य में क्या होने वाला है।
हिंदी फिल्मों की सफलता में गीतों की महती भूमिका रही है। गीत अब भी होते हैं लेकिन उनमें वह माधुर्य, वह कशिश नहीं होती। गत शताब्दी के तीसरे दशक में, जब सवाक फिल्मों का युग आरम्भ हुआ, तब से लेकर साठ-सत्तर के दशक तक फिल्मों के प्राय: सभी गाने सदाबहार होते थे, क्योंकि उनकी धुनें मधुर और कर्णप्रिय होती थीं। गीतकार शब्दों से जो शानदार ढांचा तैयार करते थे, संगीतकार उसमें जान डाल देते थे।
मूंछ को पौरुष का प्रतीक सदा से माना गया है। किंतु मेडिकल साइंस के अनुसार पुरुषों और महिलाओं में अंत:स्रावी ग्रंथियाँ भिन्न प्रकार के हार्मोन छोड़ती हैं। एस्ट्रोजेन के हार्मोनों के कारण उनमें स्त्रियोचित चिन्ह बनते हैं। कभी-कभी पुरुषों में एस्ट्रोजेन की कमी से उनके दाढ़ी- मूछें नहीं ऊगतीं, आवाज महिलाओं जैसी सुरीली हो जाती है;
हमारे समाज, परंपरा, साहित्य और लोकोक्तियों में पशु-पक्षियों को बहुत महत्व दिया गया है, जो प्रकृति से हमारे पूर्वजों के जुड़ाव का द्योतक है।
लक्ष्मण का व्यंग्य चित्रकार बनना और अखबारों से जुड़ना ऐसी घटना थी जिसे विधाता ने पूर्व निर्धारित कर रखा था। आज कार्टून की दुनिया में लक्ष्मण का जवाब लक्ष्मण ही हैं। संप्रति 85 वर्ष की आयु में, आधा शरीर पक्षाघात के कारण निष्चेष्ट जैसा हो जाने के बावजूद, उनके व्यंग्य चित्रों की धार अक्षुण्ण है।