हिमालयी सीमांत सुरक्षा
ऐसा नहीं कि चीन भारत की विदेश नीति में हो रहे इन परिवर्तनों की भाषा को समझ नहीं पा रहा। चीन इतना तो समझ चुका है कि भारत में जो नया निज़ाम आया है वह किसी भी देश से आंख झुका कर बात करने के लिए तैयार नह
ऐसा नहीं कि चीन भारत की विदेश नीति में हो रहे इन परिवर्तनों की भाषा को समझ नहीं पा रहा। चीन इतना तो समझ चुका है कि भारत में जो नया निज़ाम आया है वह किसी भी देश से आंख झुका कर बात करने के लिए तैयार नह
कश्मीर घाटी में परिवर्तन की लहर चल रही है। पिछले ६७ साल से रंग बदल-बदल कर राज्य कर रहे दो तीन परिवारों की लूटखसोट और उनके कुशासन से लोग तंग आ चुके हैं इसलिए परिवर्तन को वोट दे रहे हैं।... इसमें कोई शक नहीं कि यह म
भाजपा का जम्मू-कश्मीर में 44+ मिशन तभी सफल हो सकता है जब वह स्वयं अपने लिए घाटी में स्थान बनाए और उसके साथ साथ दूसरे छोटे राजनैतिक दलों के लिए घाटी में स्पेस बनाने में प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष सहायता क रे। जम्मू व लद्दाख में वैसे भी उसकी स्थिति ठीक लग रही है। देखना होगा कि इतिहास किस तरह करवट लेता है।
भाजपा के मिशन +44 के मूल में जम्मू-लद्दाख पर ज़ोर और घाटी में सेंध का फ़ार्मूला है, जिसमें वर्तमान हालात में उसे सफलता भी मिल सकती है। इतना तो निश्चित है कि इस बार राज्य के राजनैतिक नक़्शे में बदलाव लाज़िमी आएगा।
नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री का पद संभालने के बाद अपनी विदेश यात्रा के लिए सबसे पहले भूटान को चुना। अपने देश की पुरानी परंपरा सबसे पहले या तो अमेरिका या फिर पश्चिमी देशों की ओर भागने की रही है। मोदी ने ‘पश्चिम की ओर देखो’ के स्थान पर ‘पूर्व की ओर देखो’ को विदेश नीति का आधार बनाया है ।
महाराजा हरि सिंह जम्मू-कश्मीर में डोगरा राजवंश के अंतिम राजा थे। भारत से अंग्रेजों के चले जाने के बाद भारत डोमिनियन के क्षेत्रफल में स्थित पांच सौ पचास से भी ज्यादा इंडियन स्टेट्स ने पन्द्रह अगस्त 1947 से पहले-पहले शासन की राजतांत्रिक व्यवस्था को त्याग कर देश की नई लोकतांत्रिक शासन पद्धति को स्वीकार करने का निर्णय कर लिया था।
किसी एक देश से दूसरे देश में आकर शरण मांगने वाले व्यक्ति को शरणार्थी कहा जाता है। लेकिन अपने ही देश में किन्हीं कारणों से किसी को अपनी जन्म भूमि छोड़नी पड़े तो वह विस्थापित कहलाता है।
जम्मू-कश्मीर के पिछले छह दशकों के इतिहास में दो आन्दोलन सर्वाधिक महत्वपूर्ण आन्दोलन कहे जा सकते हैं। मुस्लिम कान्फ्रेंस/नैशनल कान्फ्रेंस का 1931 से लेकर किसी न किसी रूप में 1946 तक चला, महाराजा हरि सिंह के शासन के खिलाफ आन्दोलन, जिसका अन्तिम स्वरूप ‘डोगरो कश्मीर छोडो’ में प्रकट हुआ।
जम्मूकश्मीर की जब भी चर्चा होती है तो उसके साथ ही संघीय संविधान की एक अस्थाई धारा370 की चर्चा अनिवार्य रूप से होती है। धारा370 पर दो गुट बन गये हैं।
यह प्रश्न आज भी विवादास्पद है कि भारत सरकार जम्मू-कश्मीर पर 1947 में पाकिस्तान के आक्रमण के प्रश्न को संयुक्त राष्ट्र संघ में लेकर क्यों गयी? इसके माध्यम से सरकार क्या प्राप्त करना चाहती थी और इस पूरे प्रकरण में संयुक्त राष्ट्र संघ भारत की क्या सहायता कर सकता था?
जम्मू-कश्मीर राज्य के मुख्यमन्त्री उमर अब्दुल्ला ने 25 मार्च 2013 को राज्य विधान सभा में कहा कि जो लोग चिल्लाते रहते हैं कि जम्मू-कश्मीर भारत का अटूट अंग है, वे भूल जाते हैं कि राज्य का भारत में विलय केवल तीन विषयों- सुरक्षा, संचार और विदेश सम्बन्धी मुद्दे को लेकर हुआ था।
जम्मू-कश्मीर आजकल फिर चर्चा में है। जिस प्रकार बिहार लालू प्रसाद यादव के कारण चर्चा में रहता है, उसी प्रकार जम्मू-कश्मीर आमतौर पर अब्दुल्ला परिवार के कारण चर्चा में रहता है।