अल्पसंख्यक तुष्टिकरण और वोट बैंक

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इतने सालों की अल्पसंख्यक वर्ग के तुष्टिकरण की राजनीति के बावजूद अब भी अल्पसंख्यक वर्ग की हालत बिगड़ती ही जा रही है। इसके पीछे छिपे तथ्य एवं कारण क्या हैं यह देखना चाहिए। राजनीतिक दलों से ज्यादा अल्पसंख्यक वर्ग को इस बारे में चिंतन करना चाहिए।

सिविल सोसायटी: वामपंथ के पुनर्जागरण का साधन

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अस्सी के दशक में ब्राजील से प्रारम्भ हुये सिविल सोसायटी संगठनों के लोक-लुभावन आंदोलनों के पूरे लैटिन अमेरिका में फैल जाने के फलस्वरूप, विगत दशक में एक दर्जन लैटिन अमेरिकी देशों के 17 चुनावों में वामपंथी सरकारों के लिये सत्ता में आना सम्भव हुआ है।

इतिहास की छीछालेदार करती पाठ्यपुस्तकें

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राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (छउएठढ) ने छठवीं से बारहवीं तक समाजशास्त्र विषय की पाठ्यपुस्तकें तैयार की हैं।

सत्ता की डोर मध्यम वर्ग के हाथ

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भारतीय लोकतंत्र की स्वयं की एक पहचान और इतिहास है। स्वतंत्रता सेनानियों और संविधान के शिल्पकारों ने इसकी नींव रखी है। कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका ये भारतीय लोकतंत्र के मूल तीन स्तंभ हैं। चौथा स्तंभ मीडिया को माना गया है, हालांकि संविधान में ऐसा स्पष्ट उल्लेख नहीं है।

विकास के लिए वोट

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पहली बार किसी चुनाव में ‘वोट फॉर इंडिया’ (भारत के लिए वोट) का नारा सामने आया है। लोकसभा के लिए अब तक हुए 15 चुनावों में कभी किसी ने ‘देश के लिए वोट’ देने का आह्वान नहीं किया। हर चुनावों में हर बार पार्टी के लिए वोट मांगे गए। इसका तात्पर्य क्या है?

सामाजिक क्रांति के पुरोधा महात्मा फुले

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भारत के इतिहास में उन्नीसवीं शताब्दी को सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक क्रांति और पुनर्जागरण का कालखण्ड माना जाता है। इस शताब्दी में अनेक महान पुरूषों का आविर्भाव हुआ, जिन्होंने हिन्दू समाज में नव-चैतन्य को संचारित करने का स्तुत्य प्रयास किया।

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