‘इंडिया’ नाम देकर फंसा विपक्ष 

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2019 में बीजेपी की सीटें 282 से बढ़कर 303 हो जाने के बाद विपक्षी दलों को भविष्य नहीं, अस्तित्व का ही संकट महसूस होने लगा है। इसलिए तमाम दल आपसी एकता बनाने की ओर बढ़े। लेकिन परस्पर विश्वास और सम्मान के बिना राजनीतिक गठबंधन कैसे बने? अपने विपक्षी गठबंधन का नाम ‘इंडिया’ रखकर इंडिया बनाम मोदी संघर्ष निर्माण करना चाहते हैं। ‌जो विरोधी दल अपनी दोनों बैठकों को 'ऐतिहासिक' बता रहे है, वह डरे सहमें  विरोधियों का जमावड़ा है।‌ अपने गठबंधन का नाम रखते हुए भी बहुत बड़ी चूक उन्होंने की है। अपने भ्रमित संगठन को इंडिया नाम देकर विपक्षियों ने बहुत बड़ी गलती की है। ‘इंडिया’ यानी भारत के साथ विपक्षी संगठन के प्रत्येक नेता और पक्ष ने कितना  छल किया है, यह देश की जनता भलीभांति जानती है इसलिए  इसका उत्तर देश की जनता जरूर देगी।

पाकिस्तान-पोषित खालिस्तानी आंदोलन

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पाकिस्तान अपनी जमीन पर खालिस्तानी समूहों को पनाह दे रहा है। जबकि, सबको लगता है कि इसकी जड़ें उन देशों में हैं जहां सिख ज्यादा संख्या में रहते हैं। पाकिस्तान इनके माध्यम से भारत के सबसे समृद्ध हिस्से को अशांत रखने की कुत्सित मानसिकता का परिचय देता है।

पंजाब में अध्यात्म-शौर्य का संगम – स्वामी विवेकानंद

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स्वामी विवेकानंद को गुरु नानक देव के विचारों एवं गुरु गोविंद सिंह की राष्ट्र भावना ने काफी प्रभावित किया था। वे चाहते थे कि युवावर्ग इनसे सीख लेकर अपने अंदर आत्म सम्मान का भाव पैदा करे।

सिख चरित्र बनाम राजनीति

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गुरु नानक देव महाराज ने इस ‘निर्मल पंथ’ को कर्मकांड और तीर्थयात्रा से दूर रखा। मुगलों, अफगानों और अंग्रेजों से लोहा लेने वाली कौम को हमेशा अपनों ने ही छला। स्वतंत्रता के पश्चात् कांग्रेसनीत सरकार ने उसे हाशिये पर डाल दिया और अपने नेता भी उन्हें अब तक छलते रहे हैं।

खालसा-धर्म सिरजना की पृष्ठभूमि

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गुरु गोविंद सिंह के खालसा ने निःस्वार्थ राष्ट्रप्रेम के लिए त्याग और बलिदान की जो परम्परा समाज के सामने रखी, वह सम्पूर्ण विश्व में अप्रतिम एवं अतुलनीय है। पंच प्यारे और गुरुजी के चारों पुत्रों का बलिदान हमें राष्ट्र एवं समाज के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने की प्रेरणा देता है।

गुरु गोविंद सिंह जीवनगाथा

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दसवें गुरु गोविंद सिंह का व्यक्तित्व अद्भुत था। उन्होंने समाज को जीवन के हर क्षेत्र में ऊपर उठाने के लिए प्रयास किया। उनकी सोच कालातीत थी, जिसका सबसे बड़ा उदाहरण उनके द्वारा मुगल बादशाह को लिखा गया पत्र ‘जफरनामा’ है।

नानक नाम जहाज चढ़े सो उतरे पार

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जब उत्तरापथ म्लेच्छ आक्रमणों के दौर में संक्रमण काल से गुजर रहा था गुरु नानक ने एक ऐसे समाज-धर्म की नींव रखी, जो संत सिपाही गुरु गोविंद सिंह से होते हुए आज भी मानव मात्र के प्रति समान भाव रखते हुए राष्ट्र-धर्म-समाज की रक्षा को अपने जीवन का आधार मानती है।

शिक्षा संस्थानों की मनमानी शिक्षकों की कमी

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भारत में स्कूली शिक्षकों की नितांत कमी है। ऐसे में निजी विद्यालयों के प्रबंधक कम मानक के शिक्षकों को रखकर, शिक्षा की गुणवत्ता की बजाय अपनी तिजोरी भरने की भावना के तहत कार्य कर रहे हैं। इस पर रोक लगाना आवश्यक है।

लव जिहाद से धधकता उत्तरकाशी

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पर्वतीय प्रदेश उत्तराखंड में गायब होती बच्चियों एवं लव जिहाद के मुद्दे के निराकरण का देवभूमिवासियों ने मन बना लिया है। इसलिए बाहर से आकर बसे मुसलमानों पर कार्रवाई की जा रही है, जो कुछ सेक्युलरों को रास नहीं आ रही है। जल्द ही इस मुद्दे पर महापंचायत बुलाई जा रही है।

हिंदू मैतेई को चाहिए संवैधानिक सुरक्षा

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हिंदू मैतेई समुदाय, जो कि वहां पर हमेशा से रहता आया है, म्यांमार से आए ईसाई कुकी समुदाय की वजह से अपने सरकारी हक खोता जा रहा है। मैतेई समुदाय एसटी आरक्षण की मांग कर रहा है। इसलिए दोनों सम्प्रदायों के बीच तनाव कायम है।

राष्ट्र सेविका समिति की संस्थापिका लक्ष्मीबाई केळकर  

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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भारत और पाकीस्तान के विभाजन का निर्णय हुआl महिलाओं पर हो रहे अत्याचार की तो कोई परिसीमा  ही नहीं थीl  सिंध प्रांत भारत से विभाजित होनेवाला थाl  वहाँ के माता बहनों की मौसीजी को बहुत चिंता थीl  इसी समय कराची से मा.जेठाबहेन के आये हुये भावनापुर्ण पत्र से मौसीजी आत्यंतिक व्यथित हो गयी और वेणुताई कळंबकर के साथ अत्यंत विपरित परिस्थिती में विमान से कराची गयीl  वहाँ पर तो पाकिस्तान का मदोन्मत्त स्वतंत्रता उत्सव मनाया जा रहा थाl ऐसे अत्यंत विकट परिस्थिती मे १२०० राष्ट्राभिमानी सेविकाओं का और मौसीजी का अनोखा राष्ट्रभावपूर्ण एकत्रिकरण हो रहा था! उस रात भगवे ध्वज को साक्षी रखकर अपने स्त्रीत्व की रक्षा करने की एवं भारतभू की सेवा आमरण करने की प्रतिज्ञा मौसीजी के सामने लीl  और विभाजन के बाद इन सभी सेविकाओं की भारत मे अनेक स्थानों पर रहने की व्यवस्था मौसीजी ने कीl विपरीत परिस्थिती मे संगठन का अत्याधिक महत्व होता है ये प्रतिपादीत करने के लिये वं. मौसीजी सेविकाओं को यह सिंध का हृदयस्पर्शी उदाहरण देती थीl

अयोध्या : पर्यटन का अद्भुत विकास

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अयोध्या के वाह्य स्वरूप में तो बहुत परिवर्तन आये,  जीवन शैली भी बदली किन्तु चिंतन के पिण्ड में अयोध्या सुरक्षित और श्रद्धेय रही । जो रामजन्म भूमि की मुक्ति के सतत संघर्ष और देश वासियों के मन में उठती उन हिलोरों से स्पष्ट है जिसमें कमसेकम जीवन में एक बार अयोध्या यात्रा की इच्छा बसी होती है । इसी आंतरिक चेतना  शक्ति से रामलला बाबरी ढांचे में प्रगट हुये और फिर वहाँ मंदिर का मार्ग प्रशस्त हुआ । भव्य मंदिर का शिलान्यास हुआ और पूरे संसार का ध्यान एक बार पुनः अयोध्या की ओर आकर्षित हुआ । इसके बाद अयोध्या आने वाले श्रृद्धालुओं और जिज्ञासुओं की संख्या में गुणात्मक वृद्धि हुई । यह भी बहुत स्पष्ट है कि जन्मभूमि मंदिर निर्माण पूर्ण हो जाने के बाद अयोध्या आने वालों की संख्या असीम होगी । और इसके लिये अयोध्या तैयारी कर रही है । यह तैयारी दोनों ओर बहुत तीव्र है । मंदिर निर्माण की दिशा में भी और आगन्तुकों के "स्वागत" के लिये भी । 

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