तेरे बज्म में आनेसे ऐ साकी….

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‘उर्दू गजल’ के चाहनेवाले दिन-ब-दिन बढते ही रहे हैं; और यह बडी खुशी की बात है । इस में पुरानी फिल्मों के संगीत का बडा योगदान रहा है। संगीतकार मदनमोहन, नौशाद, सी. रामचंद्र जैसे कई महान संगीतकारों ने इस विषय में अपनी छाप छोडी है । जगजितसिंग, अनुप जलोटा, तलत…

  लोकगीतों और संगीत का हिंदी फिल्मों पर प्रभाव

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  अपना इतिहास अपने लोक गीतो में सुरक्षित है, वर्ना नया मार्क्सिस्ट इतिहास तो हमें मुग़लों और अंग्रेजों के शासन के अलावा कुछ बताता ही नहीं। राजस्थान के लोक गीत न होते तो मेवाड़ के राणाओं की गाथा और जौहर के किस्से तो मिथक ही कहलाते। आल्हा उदल की कहानी…

दिल ही तो है….    

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 शायरी के शब्दों के पीछे भी गहरा मतलब छिपा रहता है इसलिए तो वह शायरी या कविता कहलाती है। वह गहरा अर्थ समझने पर ही पाठक को असली आनंद आता है। पुराने गीत अच्छी शायरी हुआ करती उर्दू शायरी में दिलचस्पी रखने वालों की संख्या आजकल कम नहीं है ।…

दर्द-ए-मलिका मीना कुमारी

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इत्तेफाकन् मैं आपके कंपार्टमेंट में चला आया; आपके पांव देखे; बहुत हसीन हैं इन्हें जमीन पर मत उतारिएगा, मैले हो जाएंगे.. पाकीजा फिल्म में राजकुमार का यह संवाद याद आता है? पाकीजा याने शुद्ध, पवित्र! एक नर्तकी के जीवन में एक ऐसा गबरू जवान आता है, जो उससे ‘रूहानी’ मुहब्बत…

मिसाल-ए- कलाकार – कादर खान

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सन 1973 में राजेश खन्ना के साथ फ़िल्म 'दाग' से अपने फ़िल्मी करियर की शुरआत करने वाले फ़िल्मी दुनिया के हरदिल अज़ीज़ सितारे,  रहे श्री कादर खान का पिछले दिनों हुआ निधन भारतीय फ़िल्म इंडस्ट्री के एक अपूर्णनीय क्षति है। लगभग तीन सौ फ़िल्मों में काम करने वाले कादर खान…

फैशन का गृहप्रवेश, माध्यम फिल्में

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फिल्में, यद्यपि आती जाती रहती हैं फिर भी समाज से फैशन का रिश्ता कायम रहता है। समाज उसमें भी कुछ नया ढूंढ़ने की कोशिश करता है। फैशन को बढ़ाने में फिल्मों का बहुत बड़ा योगदान है।

धीमी हो बदलाव की गति

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कुछ ही सालों के दौरान फिल्मों में जिस तरह तेजी से बदलाव आया यदि इसी तरह बदलाव आता रहा तो 2050 तक फ़िल्में कैसी होंगी? सकारात्मकता की ओर हम फिर लौटेंगे या नकारात्मकता अधिक बढ़ेगी? नई नई तकनीक हमें कहां ले जाएगी? हो सकता है कुछ सालों में ही हम चांद पर फिल्माई गई फिल्म देखें।

भंसाली, पद्मावती और विवाद

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आम दर्शक सोलहवीं सदी के सूफी फकीर मलिक मोहम्मद जायसी के महाकाव्य ‘पद्मावत’ के पन्नों में चित्रित महारानी पद्मावती के सौंदर्य, वीरता और जौहर को सत्तर एमएम के पर्दे पर जरूर देखना चाहता है| लेकिन फिल्म में अलाउद्दीन खिलजी के स्वप्न में रानी पद्मावती के आने  के कथित दृश्य को लेकर विवाद उपजा है| इस संबंध में जनभावनाओं को ध्यान में रखना जरूरी है|

बाहुबली भारतीय सिनेमा में नई क्रांति

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ऐसे समय में जबकि देश में राष्ट्रवादी विचारधारा का वर्चस्व अपने उरूज पर है, बाहुबली का इतना हिट होना एक और संकेत भी देता है। एक वरिष्ठ पत्रकार ने अपने फेसबुक पर लिखा ‘मनमोहन की जगह मोदी, अखिलेश की जगह योगी और अब दबंग की जगह बाहुबली, देश बदल रहा है।’ हम में से शायद ही कोई ऐसा शख्स हो जिसे बालीवुड और हालीवुड की फ़िल्में देखना न पसंद हो, मगर यदि आपको उनकी शूटिंग के पीछे की वास्तविक तस्वीर दिखा दी जाए तो आपका विश्वास उन फिल्मों पर से हट जाएगा। क्योंकि जो आप देखते हैं, असल में वैसा होता नहीं है। आ

भारतीय चित्रपट संगीत

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भारतीय संगीत न केवल हमारी संस्कृति की अमूल्य निधि है वरन वह संगीत विश्व के इन सांगीतिक संस्कृतियों व कला संस्कृतियों की पोषक है; जिसने अपनी संवेदनाओं और मनोभावों को विभिन्न आयामों में प्रस्तुत किया। भारतीय संगीत बहुत व्यापक विषय है जिसने कई सांगतिक शैल

 खेल फिल्मों का जमाना

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या द है आपको हम खेलों पर आधारित फिल्मों को गंभीरता से     कब से लेने लगे? ठीक से विचार करें तो २००१ में आई ‘लगान’ के बाद से| इस बार खेल आधारित फिल्मों के विषय में बात करने का विशेष अवसर है|

 ग्रामीण फिल्मों में संस्कृति दर्शन

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अधिकांश फिल्मों ने देश के ग्रामीण इलाके की विविधता को परदे पर दिखाया है| इन फिल्मों में लोक संगीत नृत्य, महाराष्ट्र की ‘लावणी’ से लेकर पंजाब के ‘भांगड़ा’ तक को अनुभव किया जा सकता है| सच तो यह है कि, ग्रामीण फ़िल्में बहु-सांस्कृतिक होती हैं|

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