हिंदी साहित्य के प्रकृति प्रेमी कवि सुमित्रानंदन पंत

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कवि सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई 1900 को उत्तराखंड के कुमाऊं की पहाड़ियों में स्थित बागेश्वर के एक गांव कौसानी में हुआ था।उनके पिता का नाम पंडित गंगादत्त एवं मां का नाम सरस्वती देवी था। उनके जन्म के कुछ घंटों के भीतर ही उनकी मां का निधन हो गयाअतः…

प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत

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अपनी कविता के माध्यम से प्रकृति की सुवास सब ओर बिखरने वाले  कवि श्री सुमित्रानंदन पंत का जन्म कौसानी (जिला बागेश्वर, उत्तराखंड) में 20 मई, 1900 को हुआ था। जन्म के कुछ ही समय बाद मां का देहांत हो जाने से उन्होंने प्रकृति को ही अपनी मां के रूप में…

और कितने मोड़

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अस्वस्थता का ध्यान आते ही शरीर में एक लहर-सी दौड़ गई। वह तेज बुखार में तप रहा था। जी चाह रहा था हिले भी न, फिर भी छुट्टी न मिल पाने के कारण फैक्टरी जाना पड़ रहा था। जैसे ही आधे रास्ते पहुंचा कि तेज वर्षा प्रारम्भ हो गई। भींगने के कारण कंपकंपी छूटने लगी। अत: टेस्ट रूम में पहुंचकर उसने हीटर जलाया।

राम की अयोध्या वापसी

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कौशल्या ने सादगी का जो चोला पति के जाने के बाद ओढा, वह नहीं बदला। अब वह दुकान शहर में ‘कौशल्या रेस्टोरेन्ट’ के नाम से जानी जाने लगी। अपनी आमदनी से वह कुछ दान-पुण्य करती, बचत से भावी बहू के लिए जेवर बनवाती, मन में बेटे की गृहस्थी बसाने का सपना जो आकार लेने लगा था।

संवेदनाएं अपनी-अपनी

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अचानक स्टेशन का शोर सुनाई देने लगा था। न्यू दिल्ली स्टेशन आ चुका था। सभी यात्री अपना सामान लेकर दरवाजे की ओर बढ़ने लगे। नितिन और भव्या भी मालती को लेकर सामान के साथ नीचे उतर आए। सबको मालती के बेटे अरुण का इंतजार था। भव्या और नितिन की निगाहें मालती की ओर थीं, कि कब वह संकेत देगी कि मेरा बेटा अरुण आ गया।

“जिस पापी को गुण नहीं गोत्र प्यारा है, समझो उसने ही हमें यहां मारा है” राष्ट्रकवि दिनकर

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उठ मंदिर के दरवाजे से, जोर लगा खेतो में अपने। नेता नहीं, भुजा करती है, सत्य सदा जीवन के सपने।।   राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर वह कवि थे जिनकी कविताएं लोगों को जोश से भर देती थी। 23 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय में पैदा हुए रामधारी सिंह दिनकर को…

यथार्थ का चित्रण करती कहानियों का संग्रह – एक था आदमी

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साहित्य में कहानी एक सशक्त विधा के रूप में स्थापित है। हिन्दी में कहानी की एक लम्बी परम्परा रही है। प्राचीन काल में जब लेखन कला लोकप्रिय नहीं थी, तब भी श्रुति परम्परा के रूप में कहानी आख्यान के रूप में कही व सुनी जाती थी।

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