दिव्यांग बच्चों को चाहिए सहायता-डॉ. वीरेन्द्र कुमार

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दिव्यांग बच्चों को सहायता की आवश्यकता - डॉ. वीरेन्द्र कुमार, सामाजिक न्याय मंत्री दिव्यांग बच्चों को सहानुभूति की नहीं अपितु स्नेह, अपनत्व एवं सहायता की आवश्यकता है। दिव्यांग बच्चों को सहयोग प्रदान करना दिव्य एवं पुण्य का कार्य है। संस्था द्वारा दिव्यांग छात्रों के लिए किये जा रहे कार्य सराहनीय…

सामाजिक न्याय के नैतिक प्रश्न और आंबेडकर

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आज जब भारतीय जनता पार्टी डॉ. भीमराव आंबेडकर की जयंती के उपलक्ष्य में सामाजिक न्याय पखवाड़े मना रही है, तब मन में यह विचार आता है कि सामाजिक न्याय के मामले में भारतीय जनमानस की अवधारणा क्या है। इस विषय पर यदि गहरी दृष्टि डाली जाए तो हम तय कर…

समाज में एकत्व भाव का निर्माण ही है समाजिक समरसता

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सामाजिक समरसता समाज के भीतर रहने वाले तमाम जन समुदायों के बीच एकत्व निर्माण की एक आदर्श स्थिति है, जिस समरस समाज की अवधारणा को प्रभु राम ने बताया जिसमें वे कहते है“ समाज का निर्माण व्यक्ति-व्यक्ति के भीतर परस्पर “एक होने” के भाव एवं समता, बंधुत्व के विचार पर…

रिश्तों में विसंगति कहीं शादी की परंपरा तोड़ने की साज़िश तो नहीं?…

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हमारे देश में शादी को पवित्र बंधन माना गया है। खासकर हिन्दू धर्म की बात करें तो शादी को दो आत्माओं का मिलन कहा गया है। जिसमें न केवल दो प्राणी बल्कि दो परिवार एक दूसरे के सुख दुःख के भागी बनते है। विवाह से समाज की सबसे छोटी इकाई…

सामाजिक बदलाव

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महान दार्शनिक सुकरात ने कहा था, ‘‘अज्ञानता सारी बुराइयों की जड़ है। ज्ञान साधना है, तपस्या है और ईश्वर की सुन्दर देन है।’’ बिल्कुल सही है। ज्ञान मानव को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाली उदात्त शक्ति है।

अप्रतिम शौर्य की जनगाथा- आल्हा

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‘आल्हा’ अथवा ‘आल्हखण्ड’ बारहवीं शताब्दी में रचित दो बनाफर राजपूत वीरों आल्हा और ऊदल की वीरता का महाकाव्य है। इस महाकाव्य के रचइता जगनायक या जगनिक महोबा के चंदेल राजा परमाल के दरबारी कवि एवं दिल्ली के सम्राट पृथ्वीराज के प्रसिद्ध दरबारी कवि चंदबरदाई के समकालीन थे।

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