सी सी डी के सिद्धार्थ की आत्महत्या से उठे सवाल ?

लाश जिसकी बेकफन सडती रही राह किनारे…
वो हमारे शहर का मशहूर फनकार था ।।

समाज में होने वाली कुछ घटनाएं मन पर गहरा सदमा पहुंचाती है। खासकर मृत्यु की खबरें। और अगर यह मृत्यु आत्महत्या से सबंधित हो, तो आधात और भी गहरा हो जाता है। कुछ ऐसी ही घटना से वर्तमान मे भारतीय समाज मन को गुजारना पड रहा है। “एक उद्योजक इस नाते मैं नाकाम ठहरा हूँ ” अपनी भावनाओं को इस प्रकार लिखकर व्यक्त करके लापता होने वाले कॉपी डे इंटरप्राइजेज के संस्थापक अध्यक्ष व व्यवस्थापकीय संचालक वी जी सिद्धार्थ का शव मंगलूर के नजदीक नेत्रावती नदी के तट पर मिल गया है।

सीसीडी के माध्यम से भारतीय जगत को कॉफी के विभिन्न स्वादों की पहचान देने वाले सिद्धार्थ कॉरपोरेट जगत मे प्रतीतयश उद्यमियों के रुप मे पहचाने जाने वाला नाम था। ऐसे उद्यमी व्यक्तिमत्व ने आत्महत्या के माध्यम से अपने आप को समाप्त करने का निर्णय क्यों लिया? आत्महत्या करने से पहले सिद्धार्थ ने कंपनी के कर्मचारी और संचालक मंडल को एक पत्र लिखा है। उस पत्र में अपने कंपनी में निर्माण हुए आर्थिक संकट के संदर्भ में लिखा है कि ,” मैने परिस्थिति के सामने अपना हौसला खो दिया है ।”

अपने पिताजी से सिर्फ 5 लाख रुपयों की पूंजी लेकर अपने खुद के बलबूते पर बिजनेस इंडस्ट्री में अपना नाम निर्माण करने वाला , देश के लगभग सभी शहरों में सीसीडी के शाखाओं का जाल फैलाने वाला, हजारों युवाओं को रोजगार देने वाले सिद्धार्थ ने तनाव और आर्थिक विवंचना के कारण नदी में कूदकर आत्महत्या करने का मार्ग स्वीकार किया। अपने अब तक के जीवन में अलौकिक कार्य करने वाले सिद्धार्थने तो एक सामान्य व्यक्ति की तरह आत्महत्या के मार्ग को क्यों स्वीकार किया?

अपने भारत देश में एक भी दिन ऐसा नहीं बितता है ,जहां आत्महत्या की कोई वारदात ना हुई हो। गरीब -आमिर सभी वर्ग में होती रहती है। कुछ सालों पहले आत्महत्या अकेलेपन के कारण होती थी, आज वह संपन्न परिवार में, समाज में अपनी प्रतिमा बनाने वाले व्यक्तियों में ज्यादा मात्रा में दिखाई देने लगी है। समाज में अपनी प्रतिमा बनाने में कामयाब रहे संपन्न व्यक्ति आत्महत्याओं के माध्यम से जीवन समाप्त करते हुए दिखाई देते है। ऐसा क्यों हो रहा है?

अपने क्षेत्र में कभी यश और कीर्ति के शिखरों पर रहने वाले, सुखी – सम्पन्न जीवन जीने वाले व्यक्तियों की जीवन जीने की इच्छा ऐसी अचानक समाप्त कैसे हो जातीं है? इस बात पर आश्चर्य महसूस किया जाना स्वाभाविक है ।

आजकल बिजनेस उद्योगों में अती महत्वाकांक्षा होने के कारण उद्यमियों का प्रभाव क्षेत्र असाधारण तेजी से बढ़ रहा है। उद्योग में जादा नफा कमाने की अंतहिन आकांक्षाओं के कारण राजनेताओं से इनके रिश्ते सुरु होते रहते है। लेकिन आज के दौर मे इन रिश्तों का एक बिजनेस एंगल भी निर्माण किया जाता है। उद्यमी और राजनैतिक सबंधो के गलत व्यवहार के कई मामलों की आए दिन पोल खुलती रहतीं है। कइ मान्यवरों की जेल जाने की प्रक्रिया भी सुरु हो गई है।

बहुत जगह पर हमें यह बात दिखाई दे रही है कि उद्यमी व्यक्तियों की संपन्न स्थिति में उनके नजदीक आने वाले राजनीति व्यक्तित्व स्वार्थी और भ्रष्टाचारी होते हैं। यह भ्रष्टाचारी , सत्ता से जुड़े लोग जब उस उद्यमियों का उपयोगिता खत्म होती है ,या उद्योग गहरे संकट में आता है तब उसका साथ छोड़ देते हैं। जो अपना उद्योग गलत सहारे पर विस्तार करने का प्रयास करते हैं वह जल्द ही गलत रास्ते से चलकर बहुत बड़ी खाई तक पहुंच जाते हैं। यह आज का सत्य है। और वह हमें कभी वीडियोकॉन, कही विजय मल्ल्या, तो कभी सिद्धार्थ के रूप में दिखाई देता है। कई बैंकों से जुड़े हुए प्रतीथयश चेयरमैन जिन्होंने कभी अपनी बैंक को यशस्वीता के शिखर तक ले जाने में अपना योगदान दिया हुआ है । ऐसे व्यक्तित्व भी आज घोर निराशा के घेरे में फस गए हैं। वीडियोकॉन समूह को दिए गए वादग्रस्त कर्ज प्रकरण में चंदा कोचर को भी अपने पद से नीचे उतारना पड़ा है। दुनिया के सुप्रसिद्ध ‘फॉर्ब्स’ मासिक ने कभी चंदा कोचर को दुनिया की 100 प्रभावशाली महिलाओं में समाविष्ट किया था। आज वह न्यायालयीन लड़ाई मे कही भटक गई है ।ऐसे माहौल मे मन में एक सवाल निर्माण होता है,अपने उद्योग को तेज रफ्तार से बढ़ाने की लालसा ने सीसीडी के मालिक सिद्धार्थ को निगल तो नहीं लिया?

आज अपनी समाज में आत्महत्या की ओर देखने का दृष्टिकोण मानसिक विकृति के रूप में है। आत्महत्या करने की मानसिकता की ओर मानसिक विकृति की बजाय एक मानसिक त्रासदी के रूप में देखना आवश्यक है। आत्महत्या करने वाले व्यक्ति कमजोर है, कमकुवत है ऐसी धारणा रखना एकदम गलत बात है। उसके मन मे दो तरह कि भावनाएं होती है। एक निराशा और दूसरी असहायता। जिसे हम अंग्रेजी में ‘हॉपलेस’ और ‘हेल्पलेस’ कह सकते हैं। यह दोनों भावनाएं इस प्रकार की होती है की वह मन में निर्माण होने के बाद उस व्यक्ति को बाहर से सहारा देना आवश्यक होता है। इस प्रकार की यंत्रणा की व्यवस्था अपने समाज में अब तक नहीं है।

कुछ सालों पहले तक आत्महत्या करने वाले लोगों में ज्यादातर अकेली व्यक्तियों की संख्या बड़ी मात्रा में होती थी। आज वह स्थिति बदल गई है। आज किसान हो या उद्यमी उनमें जो आत्महत्याए होती है, वह दोनों व्यक्ति अपने परिवार में संपन्न परिवार जनों में रहते हैं। जिन्होने अपने जीवन में नवसृजन किया है। अपने काम से कुछ नई बातें निर्माण कि है ऐसे व्यक्ति थोड़ी सी आर्थिक विवंचना या कोई अनहोनी बात होती है तो अपनी समृद्ध-संपन्न जीवन को समाप्त करने की इच्छा उन्हें क्यों होती है ? यह एक आश्चर्यजनक सवाल है । एक राजनैतिक -सामाजिक प्रश्न की दृष्टी से इस विषय की ओर देखना आवश्यक है उतना ही मानव शास्त्रीय दृष्टिकोण से इसका आकलन करना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

जीवन में आने वाली समस्या कुछ समय की होती है। इस पर आत्महत्या यह कायम स्वरूपी इलाज है।?कोई भी देश संकट मुक्त नहीं रहा है। इस प्रकार से व्यक्ति का जीवन भी संघर्ष विरहित नहीं हो सकता। संघर्ष यह जीवन का एक अविभाज्य भाग है। उस संघर्ष का भी व्यवस्थापन करना अत्यंत आवश्यक है। और संघर्ष का व्यवस्थापन यही इसका सही इलाज हो सकता है।

कोई कोई व्यक्ति समाज में अत्यंत प्रभावशाली होती है। अपने आसपास के लोगों के जीवन की समस्या का निराकरण करने में वह माहिर होते हैं। लेकिन खुद की समस्या सुलझाने मे वह नाकामयाब हो जाते हैं। ऐसे समय में उस व्यक्ति ने विशेष व्यक्ति के रूप में समाज मे निर्माण की हुई उसकी आत्म प्रतिमा संकट में आ गई इस प्रकार की भावना उसमें निर्माण होती है। अन्य लोगों को नियंत्रित करते करते अपने लिऐ आवश्यक स्व नियंत्रण की कमी उसे महसूस होने लगती है । इस कारण उसके मन में हताशा, निराशा निर्माण होकर खुद पर का भरोसा डगमगाने लगता है। इन समस्याओं से छुटकारा यानी आत्महत्या यह उनकी धारणा बनती है। सत्य यह है कि किसी के जीवन में किसी किस्म की कोई बड़ी समस्या नहीं होती। वहां सिर्फ और सिर्फ स्थितियां होती है। जिसे आदमी को अपना दिमाग लगाकर निपटाना होता है। स्थितियों से अगर हम निपटाने के बजाय उसके बारे में नकारात्मक सोचते रहे, तो अंत में भंवर बनकर हमें वह निगल सकती है। नकारात्मक विचारों से बचने के लिए उत्तम तरीका है, आप किसी भी विचारों को पकड़ीये मत, वह विचार कितना भी अच्छा हो या बुरा। विचार बादलों की तरह होते हैं जो आते हैं और कुछ देर में चले जाते हैं।

इस वर्ष में हुई कुछ आत्महत्याऐं , जैसे भय्यूजी महाराज, हिमांशु रॉय, अमृत मलम के संचालक शैलेश जोशी इन घटनाओं का हम निरीक्षण करेंगे तो उनके पास धन, संपन्नता, प्रसिद्धी, स्वास्थ्य आदि सब कुछ तो था। जिसे पाने के लिए लोग पूरा जीवन लगा देते हैं, वह सब बातें उनके पास थी। यशस्वी व्यक्तिमत्व के रूप में अपने आपको उन्होंने सिद्ध किया था। फिर एक अचानक आए आर्थिक संकट के कारण उन्होंने अपना जीवन समाप्त करने के आत्मघाती राह पर क्यो चले ? इस प्रकार के घटनाओं से जुड़े सवाल हमारी पारिवारिक, सामाजिक और मानसिक व्यवस्था की ओर इशारा करते हैं। इन घटनाओं के पीछे जो भी कारण गिनाए जाए लेकिन बुनियादी वजह है ज्यादा से ज्यादा पाने की लालच, कामयाबी के लिए किसी हद तक संकट मोल लेने की वृत्ति, संकट आने पर भावनात्मक टूटना , रिश्तो से भरोसा टूटना। सी सी डी के चेयरमैन सिद्धार्थ ने अपने अंतिम खत से खुदखुशी को इस प्रकार समझाया है, उसका फार्मूला इस प्रकार हो सकता है …..उद्यम मे जादा लालसा+गलत राजनैतिक सहयोग+उद्यम मे असफलता + लोगों का बकाया +कर्ज +बदनामी+तनाव =आत्महत्या। इस फार्मूले मे उनके यशस्वी जीवन से लेकर नाकामयाब जीवन तक के अगणित सवाल छुपे हुए है।

सीसीडी के अध्यक्ष सिद्धार्थ के आत्महत्या की कारणों को लेकर अपनी भावनाओं का सैलाब सिर्फ चार दिन तक उठता रहेगा। उसके बाद सब अपने अपने काम में उलझ जाएंगे। भावनाओं का सैलाब राजनीति के लहर जैसा होता है ,वह दीर्घकाल तक रुकता नहीं। समय के प्रवाह मे जैसे भययू महाराज, हिमांशु राॅय के जैसे कईयों के सवाल धुंडना हम भुल गये है। हमारी सामाजिक व्यवस्था के कारण सी सी डी के चेयरमैन सिद्धार्थ के आत्महत्या निमित्त उठा सवाल भी ना सुलझाने वाले सवालों की तरह है। अरे ….आप गंभीर क्यो हो रहे हो ? यह बातें तो चलती ही रहेगी..चलो अपने कामों मे फिरसे उलझ जाते है।

दबाके कब्रमें सब चल दिए, न दुआ न सलाम ।
जरासी देरमे क्या हो गया जमानेको।।

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