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“कृष्ण जैसी महान विभूति हमारे लिये जन्म नही लेती।”

“कृष्ण जैसी महान विभूति हमारे लिये जन्म नही लेती।”

by अमोल पेडणेकर
in संस्कृति, सामाजिक
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कृष्ण जैसी  महान विभूति  हमारे लिए जन्म लेती है, यह हमारी धारणा है। कृष्ण जैसे महान विभूति के जन्म के लिए कोई समय, काल, परिस्थिति निर्भर हो सकता है ?  कोई काल,कोई  परिस्थिति या कोई समय कृष्णा जैसी विभूति के जन्म का कारण कभी नहीं हो सकती। कृष्ण जैसी  ऊर्जा कभी भी काल,समय, स्थिति पर निर्भर नहीं होती। हम हमेशा सोचते हैं कि युग बुरा चल रहा है इसलिए कृष्ण जन्म लेते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि हमारी सोच कृष्ण के जन्म को हमारे स्वार्थ की उपयोगिता के अनुसार ढाल लेती है। इसका अर्थ  यह हो गया कि हम कृष्ण जैसी विभूति को अपनी खुद की सेवा के अर्थों में देख रहे हैं।

रास्ते के किनारे फूल खिलते हैं, तब वहां से गुजरने वाले व्यक्ति को आनंद मिलता है, सुगंध मिलता है। उसे  लगता है कि उन्हे आनंद देने के लिए, सुगंध देने के लिए फूल खिलते हैं।  लेकिन  सत्य यह है कि फूल किसी के लिए नहीं खिलते। फूल  सिर्फ अपने  लिए खिलते हैं। उनके खिलने से किसी दूसरे को सुगंध मिलता है,  यह दूसरी बात है। कृष्ण जैसे  महान व्यक्ति किसी के लिए जन्म नहीं लेते। अपने आनंद के लिए ही जन्म लेते हैं। कलियुग आया है, मानव  पीड़ित है,   सभी जगह में दुख हुआ है।  इस कारण कृष्ण जन्म लेंगे, इस प्रकार के विचार मन में रखकर कृष्णा जैसे विभूति के संदर्भ में उपयोगिता की भाषा में सोचना गलत है। लेकिन हमारी मजबूरी है, हम हर चीज को अपने उपयोग में ही सोचते हैं। यह व्यक्ति किस उपयोग में आए ? निरुपयोगी व्यक्ति का हमारे लिए कोई मूल्य नहीं रहता। कोई अर्थ नहीं रहता है। आदमी सोचता है तो हर चीज को अपने अहंकार के केंद्र में रखकर सोचता है। आदमी के लिए फूल खिलते हैं।  आदमी के लिए चांद तारे चलते हैं। आदमी के लिए सूरज निकलता है। हां सूरज के निकलने से हमें रोशनी मिलती है, लेकिन हमें रोशनी देने के लिए सूरज नहीं निकलता है। यह सत्य है।  उपयोगिता की भाषा में सोचना ही गलत है। जिंदगी में जो सब कुछ हो रहा है, वह किसी के लिए नहीं हो रहा है। फूल खिल रहे अपने आनंद के लिए,  नदियाँ बह रही है  अपने आनंद के लिए, बादल  चल रहे हैं अपने आनंद के लिए। चांद तारे टीम – टीमा रहे हैं, अपने आनंद के लिए। कृष्णा जैसा महान व्यक्ति तो अपने ही आनंद में जी रहा है।

समाज की परिस्थिति उनके जन्मों का कारण नहीं हो सकती। जब कृष्ण जैसे  अद्भुत व्यक्ति का जन्म होता है तब समाज की परिस्थितियां बहुत पीछे होती है। कृष्णा जैसी  ऊर्जा को जन्म देने  की क्षमता समाज में नहीं है। लेकिन कृष्णा जैसी  चैतन्य का  निर्माण होने से समाज को नई दिशा अनजाने में  वह  महान विभूति दे जाते हैं।  नया मार्ग, नई शक्ल, नई रूपरेखा  अपने जीवन प्रवास में दे जाते हैं। कृष्ण – जीवन  कोई उपयोगिता नहीं है, वह तो अद्भुत लीला है। कृष्ण जैसे व्यक्ति किसी काम के लिए नहीं जीते। वह अपनी जिंदगी  अद्भुत तरीके से जीते हैं। उनकी जिंदगी  आनंद से घूमने जैसी है। कहीं तय करके जाने जैसी नहीं है। हम काम करने के लिए निकलते हैं,  तो मन पर काम का एक  बोझ होता है ना। लेकिन हम कहीं  बेवजह घूमने निकलते हैं, पिकनिक के  लिए निकलते हैं तो मन में  आनंद के भाव आ जाते हैं।  कृष्ण के जन्म  और जीवन के कोई कार्य – कारण भाव या श्रंखला नहीं है। इसलिए  हमें अपने स्वार्थ भाव में सोचना नहीं चाहिए। कृष्ण  अकारण घटित हुए महान विभूति है। उनके जन्म और कार्य के कारण आंतरिक है। हमारे समाज और बाह्य स्थिति के  कारणों से उसके  जन्म का कोई लेना-देना नहीं है।  कृष्ण किसी समाज के लिए पैदा नहीं होते। न किसी राजनीतिक स्थिति के लिए पैदा होते हैं। ना किसी को बचाने के लिए पैदा होते हैं। हां , कई लोक बच जाते हैं , यह बिल्कुल दूसरी बात है। कृष्ण तो आनंद के लिए  खिलते हैं। और यह खिलना वैसे ही अकारण है जैसे आकाश में बादलों का चलना।  जमीन पर फूलों का खिलना। हवाओं का बहना। यह जैसे अकारण ही होता है, उतना ही अकारण कृष्णा जन्म  है। लेकिन हमारी सोच  कारणों को  ढूंढती है । इसलिए

हमें  महान विभूतियों के जन्म समझने में कठिनाई होती है। हम तो अपना संपूर्ण जीवन कारण से जीते हैं। हम किसी से प्रेम भी करते हैं, तो कारण से करते हैं।  हम बीना कारण तो कुछ कर ही नहीं सकते। और ध्यान रहे, जब तक आपके मन में बीना कारण किसी बात का  जन्म  ना हो। तब तक आपको जिंदगी के धर्म का  सही अर्थ समझ में नहीं आएगा।  आपकी जिंदगी में जिस दिन अकारण कुछ बातें होने लगे तो समझ लीजिए आपके मन में बिना कारण के कृष्ण का जन्म हो रहा है। वह आपके संपूर्ण जीवन के आनंद की एकमात्र  वजह हो सकती है।

हां,  कृष्णा ने कहा है, जब-जब धर्म की हानि होती है, तब तक मुझे आना पड़ेगा।

इसका क्या मतलब होगा ?

यह वही कृष्ण कह रहा है,  जिसका जन्म अकारण हुआ है ऐसा हमारी सोच हैं। कृष्ण परम स्वतंत्र है। हम और आप कह सकते है ? कि जब-जब ऐसा होगा,  तब तब मैं आऊंगा। हम ऐसा वादा नहीं कर सकते।  यह  वादा सिर्फ कृष्ण जैसे महान व्यक्ति कर सकते हैं। कारण  यह वादा सिर्फ  स्वतंत्र चेतना से ही संभव है। किसी परिस्थिति के कारण नहीं। कारण कृष्ण किसी परिस्थिति के कारण  जन्मे नहीं है।

अगर कृष्ण  कहते हैं कि मैं आ जाऊंगा, ऐसी स्थिति अगर हुई,  तो परिस्थिति के  कारण कृष्णा नहीं आ जाएंगे। अपनी स्वतंत्रता के कारण आ जाएंगें । हम और आप इस प्रकार का वादा नहीं कर सकते,  क्योंकि हमें कोई ऊर्जा-चेतना नहीं है। हमारे हाथ पारिवारिक उलझनों  में बंधे हैं। हम अपनी  जिंदगी एक कैदी की तरह इस दुनिया में बिता रहे हैं। और कैदी कभी स्वतंत्र नहीं होता।

और  कृष्णा हमसे जो वादा कर रहे हैं , वह कल का वादा नहीं कर रहे हैं, वह लंबा वायदा कर रहे हैं।  वादा यह है कि जब भी जरूरत पड़ेगी,  तब मैं आ जाऊंगा। इस प्रकार  युगो तक आपके लिए तत्पर रहने का वादा हम जैसा कोई कैदी  कभी नहीं कर सकता। जिसके हाथ सांसारिक  मोह,माया,लोभों  की जंजीरों  मे बंधे हो, वह इस सामान्य जन इस प्रकार  का वादा कभी नहीं कर सकता। यह वादा तो परम स्वतंत्रता जिसके पास है वही कर सकता है। लेकिन ध्यान में रहे कृष्णा जैसे महान व्यक्ति कहते हैं  कि मैं आऊंगा,  तब  उनके आने के लिये तत्कालीन परिस्थितियां कारण नहीं होती है, महान विभूतियों के स्वतंत्र चेतना के कारण  यह संभव होता है। कृष्ण के इस वादे में इतनी ही सूचना है कि समय, परिस्थितियों से  मेरे जन्म, जीवन  और वादों का कोई बंधन नहीं है। मैं स्वतंत्र हूं। और मेरे अमर्याद स्वतंत्रता के कारण ही  मैं इस प्रकार की घोषणा करता हूं।

कृष्ण जैसी महान व्यक्ति आपके कारण जन्म नहीं लेती है। वह अपने आनंद के कारण आती है, अपनी  अमर्याद स्वतंत्रता के कारण आती है। हम सब बंधे हुए हैं इसलिए हमारी सोच भी बंधी हुई है। कृष्ण जैसे महान व्यक्तित्व अपने आनंद के लिए आते हैं। अपने आनंद  के लिए जीवन में  अद्भुत लीलाएं करते हैं। हां, उस लीलाओं से, उनके जीवन से हमें कुछ लाभ मिलता है  तो  फूलों के जैसा है,  जो अपने लिए खिलते हैं  और सुगंध देकर जाते हैं।

                                                                                                                                (आचार्य रजनीश जी के विचार बिन्दुओं से प्रेरित )

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