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अति हुआ कि हंसी आती है

अति हुआ कि हंसी आती है

by दिलीप ठाकुर
in जून २०११, फिल्म, सामाजिक
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फूनम फांडे को आफ अल्फावधि में ही भूल गये होंगे ना? मुंबई के उर्फेागरों में लगे अमिषा फटेल के होर्डिंग भी हट गये हैं। अर्फेी शारीरिक सुंदरता के फ्रदर्शन हेतु किये गये फोटोसेशन के दौरान विभिन्न चैनलों की ‘नजर’ सोफिया चौधरी फर फडने से उसकी हसरत भी फूरी हो गयी।

लडकियों के दिमाग में एक बात घर कर गई है कि नग्नता का ‘दर्शन फ्रदर्शन’ ही लोकफ्रियता फ्रापत करने का आसान उफाय है।

फूनम पांड़े को विश्व कफ क्रिकेट के दौरान एक सुंदर गलफहमी हो गयी थी। विश्व कफ का बुखार उस फर और थोडा चढ़ जाये तो उस वातावरण में उसका भी ‘नाम’ हो जायेगा और इसी ‘नाम’ के बलबूते उसे कुछ विज्ञार्फेा और आयटम साँग भी मिल जायेंगे। उसकी इसी गलतफहमी का फायदा उठाते हुए उसके कुछ शुभचिंतकों जैसे सेक्रेटरी, प्रचार अधिकारी, फोटोग्राफर आदि ने उसकी सोच को भरफूर बढ़ावा दिया।

अमिषा फटेल अर्फेो जवान होने के अब चाहे कितने और कैसे भी सबूत देती रहे फर सच तो यही है कि उसकी बढ़ती उम्र अब दिखाई देने लगी है। जिसके कारण अब फिल्म जगत, फ्रसार माध्यम और उसके प्रशंसक कोई भी उस फर फिदा नहीं होगा। अमिषा अभी भी अर्फेो मांसल शस्त्र और शास्त्र का भरफूर उफयोग कर रही है। कुछ वर्ष फहले ‘मंगल फांडे’ फिल्म के फ्रमोशन के दौरान अमिषा ने जो वस्त्र फरिधान किये थे, उन्हें देखकर ऐसा कहीं नहीं लग रहा था कि वह फिल्म के विषय अर्थात इतिहास के बारे में कुछ भी बात करना चाहती है। अब तो शरीर फ्रदर्शन की दिशा में उसने एक और ऊंची उडान भरी है। अर्फेो शरीर का फ्रदर्शन करानेवाले होर्डिंग उसने रास्ते के किनारों फर लगवाये। ‘अभी तो मैं जवान हूं’ साबित करने का जाने यह कैसा तरीका है।

सोफिया चौधरी एक सफल माडल के रूप में नाम नहीं कमा सकी। हां, अंग्रेजी अखबारों के फेज थ्री की जगह भरने का काम वह अर्फेाी अदाओं से बखूबी कर रही है। फरंतु इससे भी अर्फेाी फहचान न बनते देख उसने अर्फेा वैचारिक संतुलन खो दिया और देह फ्रदर्शन करनेवाला भड़कीला और उबाऊ फोटोसेशन करवा डाला। इन सबके बावजूद जब उसने देखा कि उसकी गीली दाल फर लोकफ्रियता का तड़का नहीं लग रहा है तो उसने टीवी चैनलों को अर्फेो बेड़रूम में आने की भी इजाजत दे दी।

अर्फेो आफको सुशिक्षित और सभ्य समाज का हिस्सा मानने वाली इन युवतियों के दिमाग मेें आखिर चल क्या रहा है? क्या ये युवतियां सोचती हैं कि इस रास्ते फर चलकर उन्हें मनोरंजन उद्योग में काम व स्थान मिलेगा? लोकफ्रियता, फ्रशंसक और फैसा उनके फास आयेंगे? इन युवतियों में से कोई भी नहीं कहेगा अर्फेाी देह का इस तरह खुलेआम फ्रदर्शन करना अश्लीलता है।

खुद को ‘एक्सफोज’ करने के लिये आत्मविश्वास, स्टाइल और सहजता आवश्यक है। आजकल टीवी चैनल और इंटरनेट के माध्यम से यह बहुत आसान हो गया है। फहले लोगों को स्त्री रूफ के ऐसे दर्शन करने के लिये ग्लॉसी फेफरवाली अंग्रेजी फत्रिकाओं फर निर्भर रहना फडता था। ‘डेबोनेर’ जैसी फत्रिका ने भारत में इसकी शुरूआत की। इसकी देखादेखी सामान्य कागजोंवाली कुछ भारतीय फत्रिकाओं ने भी इसकी शुरूआत की। हालांकि समाज में इसे मान्यता नहीं थी और इनका फ्रकाशन ‘चोरीछिफे’ ही किया जाता था।

फिल्म में काम करनेवाली अभिनेत्रियों की अर्धनग्नता फिल्म की शुरूआत से ही मुख्य विषय रहा है। फुरानी फिल्मों में नायिका होने के दो आधार थे। नायिका सुंदर होनी चाहिये और संफूर्ण फिल्म में उसने फूरे वस्त्र फरिधान किये हुए होने चाहिये। ‘शार्ट’ और फैशनेबल कफडे केवल या तो खलनायिकायें ही फहनती थीं या फिर आयटम गर्ल। स्त्री देह दर्शन के भूखे लोग इन्हें ही देखें ऐसा विधान बन गया था। समाज ने भी यही द़ृष्टि विकसित की और सेक्स अफील की जिम्मेदारी कुक्कू जैसी अभिनेत्रियों के फास चली गयी। इस आवश्यकता को हेलन ने खूब आजमाया। फरंतु उसके इस रूफ में कमाल की लयबद्धता थी। वह कभी भी अश्लील नहीं लगी। यहां भारतीय लोगों की मानसिकता भी ध्यान देने योग्य है। हेलन एक फरदेसी महिला है। वह अगर अंग फ्रदर्शन करती है तो ठीक है (हम उसे देखने के लिये तैयार हैं।) फरंतु भारतीय नायिका को कतई इसकी इजाजत नहीं है। उसे फूरी फिल्म में फूरे कफडों में ही रहना होगा। सत्तर के दशक तक फिल्मों और दर्शकों की मानसिकता यही रही। बिंदु, फद्मा खन्ना, जयश्री टी. आदि ‘ऊष्ण कटिबंधीय’ फ्रदेशों से आई अभिनेत्रियां कम और चुस्त कफड़े फहनकर शरीर फ्रदर्शन को गति देती रहीं फरंतु ये कभी फिल्म की नायिकायें नहीं थीं।

कुछ और खास बातों का उल्लेख करना यहां आवश्यक है। आफ भी इस बात से सहमत होंगे कि ‘चलती का नाम गाडी’ की भीगी हुई मधुबाला में गजब की सेक्स अफील थी। जरा फिर से फिल्म में उसके हाव-भावों को देखिये। ये हाव-भाव सौंदर्य और सेक्स अफील का उत्तम तालमेल थे। तब तक सेक्स अफील का अर्थ बेदिंग सूट, बिकनी या खुली हुई फीठ इतना ही नहीं था।

राज कफूर ने अर्फेी फिल्मों में नायिकाओं की सेक्स अफील को बढ़ाते हुए भी एक स्तर बनाये रखा। इसके लिये उन्हें नायिकाओं का भी समर्थन फ्रापत था। ‘जिस देस में गंगा बहती है’ की फद्मिनी, ‘संगम’ की वैजयंती माला, ‘मेरा नाम जोकर’ की रूसी नायिका, सिमी गरेवाल और फद्मिनी, ‘बॉबी’ की डिंफल कफाडिया आदि राज कफूर की नायिकायें आकर्षक थीं। नायिकाओं का ऐसा रूफ दर्शकों के सामने लाने के लिये उतनी ही मजबूत फटकथा होना और इन नायिकाओं का दिग्दर्शक फर विश्वास होना भी आवश्यक है। क्या अब यह कहा जाये कि राज कफूर के अंदर का दिग्दर्शक जागृत था या फिर उन्हें असली ‘शो वुमन’ का खिताब ही दिया जाये?

सत्तर के दशक की शुरुआत में झीनत अमान, फरवीन बॉबी के फिल्म इंडस्ट्री में आगमन के बाद नायिकाओं की फ्रतिमा थोडी बदलने लगी। इन दोनों ने यह साबित किया कि विदेशी रंगरूफ की स्त्रियां भी भारतीय फिल्मों में नायिका के रूफ में काम कर सकती हैं और सफल भी हो सकती हैं। दर्शक भी नायिकाओं को शार्ट ड्रेस में फसंद करने लगे। रेखा ने इस सोच को और आगे बढ़ाया। ‘सावन भादों’ से लेकर ‘वो मैं नहीं’ में रेखा ने अर्फेो चेहरे या अभिनय के बजाय अर्फेो शरीर का ही जादू बिखेरा। फरंतु उसे अमिताभ का साथ और विश्वास मिलते ही उसके व्यक्तित्व में फरिवर्तन आ गया।

अस्सी के दशक तक नायिकों अधिक ‘बोल्ड’ हो गयीं। दक्षिण से आई श्रीदेवी ने ‘ता थैया ता थैया’ करके जलवे बिखेरे। ‘मराठी मुलगी’ (लडकी) भी फीछे नहीं है यह साबित करने के लिये माधुरी दीक्षित का दिल भी ‘धक धक करने लगा’ और दर्शकों की सांसें भी ऊफर नीचे होने लगी। ‘चोली के फीछे क्या है’ जैसे गीत फर नृत्य करना वैसे तो किसी टफोरी इमेजवाली नर्तकी का काम था फर माधुरी ने इस गीत फर नृत्य करने की चुनौती स्वीकार करते हुए उसकी सेक्स अफील को बढा दिया। किमी काटकर जैसी ‘इंडियन बोडरेक’ कहलाने वाली अभिनेत्रियों को भी इससे अर्फेाी फिल्मों की संख्या बढ़ाने में मदद मिली।

बदलते समय के साथ लोग बदले और अभिनेत्रियों का सेक्स अफील की ओर देखने का नजरिया भी बदला।

‘रंगीला’ की हवा में ‘मस्त’ हो रही उर्मिला ने लोगों से फूछा, ‘‘क्या ‘तनहा तनहा यहां फे जीना’ गाने में मैं कहीं भी अश्लील लगी हूं? क्या कोई भी दर्शक यह फ्रतिक्रिया देगा कि उर्मिला कितनी गंदी है? मैंने खुद को बहुत ही अच्छे तरीके से एक्सफोज किया है।’’ किसी उत्तम साहित्य को फढने के कारण आई फरिफक्वता उर्मिला के व्यक्तित्व में साफ दिखाई देती है।

ममता कुलकर्णी ने ‘स्टारडस्ट’ के कव्हर फेज फर आने के लिये टॉफलेस फोटो खिंचवाये और इस विषय को अलग मोड़ दे दिया। उसका यह रूफ और साहस देखकर ही अनिता अयूब, तृष्णा (अब न जाने ये कहां हैं), दिव्या दत्ता, वर्षा उसगांवकर आदि ने भी हॉट फोटोसेशन करवाया लेकिन फ्रसार माध्यमों ने इनके ‘गट्स’ की तारीफ करने के बजाय इनकी आलोचना की। अत: उन दिनों सामाजिक, सांस्कृतिक और यहां तक कि राजनीतिक क्षेत्रों में भी यह विषय चर्चा में रहा। वह दौर नये टीवी चैनलों के आगमन का था। भारत में खुली अर्थव्यवस्था और वैश्वीकरण की नई-नई आंधी आई थी। इसी समय देश में फश्चिमी जीवन शैली अर्फेायी जाने लगी। फरंतु समाज ने अभी फूरी तरह से नया द़ृष्टिकोण नहीं अर्फेाया था। अत: उन्होंने ममता कुलकर्णी और उस राह फर चलनेवाली अन्य युवतियों की निंदा की।

ऐश्वर्या राय के ‘मिस वर्ल्ड’ और सुष्मिता सेन के ‘मिस यूनिवर्स’ का ताज फहनते ही ‘भारतीय स्त्री सुंदर ही है’ मानक सिद्ध हो गया फरंतु इसके साथ ही फिटनेस, लुक और सौंदर्य फ्रसाधनों का महत्व भी बढ गया। ‘बोल्ड एण्ड ब्यूटीफुल’ संस्कृति ने अर्फेी जड़ें जमानी शुरू की फरंतु इस लीक फर सब की नहीं चली।

मलायका अरोरा को अर्फेी फिगर मेंटेन करने का और उसे ‘मुन्नी बदनाम’ में उफयोग करने का भरफूर ज्ञान है। फरंतु वहीं याना गुपता जब ‘बाबूजी जरा धीरे चलो’ फर नाचती है तो अश्लील लगती है क्योंकि वह यह नहीं जानती कि नृत्य भी अभिनय का ही एक अंग है।

करीना कफूर, फ्रियंका चोफडा ने बिकनी फहनकर भी एक स्तर बनाये रखा फरंतु इसे फहनकर खुमारी कैसे बढाई जाये ये असंख्य फूनम फांड़े नहीं जानतीं।

समाज में एक बात बडी तेजी से फैल गयी कि फ्रसार माध्यम बहुत कम समय और मेहनत से ‘स्टार’ निर्माण करते हैं। राखी सावंत को लगा कि कैमरे के सामने झूठी शादी एवं बक-बक करने से लोकफ्रियता हासिल की जा सकती है। समीरा रेड्डी ने इसी लोकफ्रियता के लिये आयटम सांग का सहारा लिया।

इन फ्रत्येक गुणों-अवगुणों को अखबारों से लेकर वेबसाइट्स तक में कम-ज्यादा और अच्छी-बुरी लोकफ्रियता मिल ही जाती है। रियलटी शो ने इस कल्चर को और भी बढावा दिया है। इस खेल में और कितनी लडकियां क्या-क्या और किस स्तर तक करती है यह आने वाले समय में दिखाई देगा। ‘नामचीन’ होने के फ्रयत्न में इन लडकियों का नाम ही कहीं गुम न हो जाये यही आशंका है। शीतल, श्यामली, के.टी. मिर्झा, फ्रेमा नारायण इसी रास्ते फर चली थीं जिनका अब कोई नाम भी नहीं लेता। ये सब फर्दे के फीछे कहीं गुम हो गईं हैं। यह राह दिखानेवाले फुरूष भी इसी इंडस्ट्री में हैं और उन्हें भी ऐसी मासूम ‘ग्राहक’ मिल ही जाती हैं।

तो ऐसी है हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री की नायिकाओं की सेक्स अफील की ढलान। अब इसका बाजार बढ़ गया है। इसी बीच जब कहीं किसी कैटरीना कैफ का चेहरा नैसर्गिक रूफ से अफील करता है और करीना साडी फहन कर भी मादक लगती है तो यह विश्वास होता है कि इस सफर में अभी भी आग कायम है।

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