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पति बेचारा….. कोरोना और बारिश का मारा

पति बेचारा….. कोरोना और बारिश का मारा

by pallavi anwekar
in जुलाई - सप्ताह चार, मनोरंजन, सामाजिक
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“पत्नी ने भी झूठा गुस्सा दिखाते हुए एक गैस पर चाय का बर्तन और दूसरे पर कढ़ाई चढ़ा दी। साथ ही अपने भी वॉट्सएप्प ज्ञान का परिचय देते हुए पति को नसीहत भी दे डाली कि कल से रोटियां बनाना सीख लो क्योंकि मोदी जी ने कहा है कि जब तक देश के सारे मर्द गोल रोटियां बनाना नहीं सीख लेते तब तक लॉकडाउन नहीं खुलेगा।”

अपने ‘बिजी शेड्यूल’ में भी एक दूसरे की खामियों को गिनाकर चिढ़ाने वाले, एक दूसरे को शाब्दिक चूंटियां काटने वाले और कई बार तो एक दूसरे के पूरे खानदान का उद्धार करने वाले पति-पत्नी अगर चौबीस घंटे एकसाथ हों और नोंकझोंक न हो तो समझ लेना चाहिए कि मामला कुछ गड़बड़ है। या तो ये तूफान के पहले की शांति है या बाद की। पति-पत्नी के बीच की ये नोंकझोंक तो टिकटॉक का भी सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला ‘कंटेंट’ था। पर क्या करें अब तो सरकार ने टिकटॉक ही बैन कर दिया है। चलिए कोई बात नहीं टिकटॉक पर चढ़ाइए चंदन का हार और हमसे सुनिए नोंकझोंक की खबरें दो चार…..
तो भई हुआ यूं कि सुबह-सुबह कोरोना का ताजातरीन हाल जानने के लिए जैसे ही पत्नी ने टीवी शुरू किया, न्यूज चैनल की एंकर बड़े ही उच्च स्वर में बिग बी को कोरोना होने की खबर सुना रही थी। एक तो फेवरेट हीरो और उस पर कोरोना का डर……। पत्नी का दिल ऐसे बैठा जा रहा था मानो नौलखा हार पाकर भी न उठे और पतिदेव थे कि कुछ तो न्यूज एंकर का चेहरा देखकर और कुछ पत्नी का चेहरा देखकर मुस्कुरा रहे थे। उनको मुस्कुराता देख पत्नी की भौंहें और तन गईं। गुस्से में पैर पटकते हुए और रसोई घर में जाते हुए ठेठ लहजे में पति से पूछने लगी, ‘तुम क्यों खींसे निपोर रहे हो?’ पति ने अपने चेहरे की शरारत छिपाते हुए कहा, ‘अरे! मैं तो यह सोच रहा था कि अब कहीं अस्पताल में डिब्बा ले जाने के लिए जया और रेखा के बीच झगड़ा न हो जाए?’ ‘उफ्फ..!! तुम और तुम्हारे वॉट्सएप्प मैसेज‘ कहकर पत्नी अपने काम में लग गई।

पर पतिदेव कहां चुप रहने वाले थे। आज तो उन्होंने ठान ही लिया था कि पत्नी से यह बात मनवाकर ही रहेंगे कि वॉट्सएप्प मैसेज के कारण ही कोरोना और लॉकडाउन का यह काल कुछ आरामदेह गुजरा है वरना चारों ओर फैली मनहूसियत तो जीना दूभर किए जा रही है।

कनखियों से पत्नी की तरफ देखते हुए पतिदेव बोले, ’पता है जब एक व्यक्ति कोरोना के कारण मरकर परलोक पहुंचा तो भगवान से पूछ बैठा कि हमको बचाने काहे नहीं आए? भगवान भी बडे मस्त मूड में थे। तपाक से बोल पडे…. आए तो रहे… कभी पीएम बनके, कभी सीएम बनके, नगर निगम कर्मचारी बनके, पुलिस वाला बनके दुईठो डंडे भी दिए रहे कि अब तो घर में बैठ जा…..पर तूने एक न मानी……अब तू कौन सा बड़ा अर्जुन था कि तुझे विराट रूप दिखाता।’

पत्नी के चेहरे की ओर बड़ी ही आशाभरी निगाहों से देखा कि अगर चेहरे पर थोड़ी सी भी हंसी आई होगी तो एक कप चाय की फरमाइश तो की ही जा सकती है। पर ये क्या….. भगवान पर चुटकुला सुनकर तो उसका पारा और चढ़ गया। सीलिंग की ओर देखती हुई (जैसे भगवान पंखे की तरह सीलिंग पर लटक रहे हों) बोली…….क्षमा करना भगवान!!……इन लोगों ने तुम्हें भी नहीं छोड़ा। मनुष्य के पापों की सजा के रूप में ही तुमने ये कोरोना भेजा है, पर फिर भी मनुष्य नहीं सुधर रहा है।

भोलीभाली(शायद) पत्नी की इस बात पर पतिदेव विचार कर ही रहे थे कि क्या सच में कोरोना को भगवान ने भेजा होगा, उनका बेटा कॉपी पेन लिए कूदता-फांदता आया और कहने लगा ‘कल से जो मेरी ऑनलाइन क्लास शुरू हुई है, उसमें मुझे टीचर ने कोरोना पर दस लाइन लिखने को कहा था। मैंने जो लिखा सुनाऊं?’ पति-पत्नी दोनों ही बोले, ‘सुनाओ।’ बेटा बोला, ‘कोरोना भी एक प्रकार का त्यौहार है, जिसे मास्क लगाकर और हैण्डगव्ज पहनकर मनाया जाता है। इस त्यौहार को सारा परिवार साथ मिलकर घर पर रहकर ही मनाता है। हर घर में कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं। अन्य त्यौहारों में उपयोग किए जाए वाले इत्र और सुगंधित जल की तरह कोरोना में सेनेटायजर का छिड़काव किया जाता है…।’

‘बस! बहुत हो गया। किसने पढ़ाया तुम्हें यह बेतुका पाठ?‘ पत्नी ने बेटे से पूछा। इसके बाद बेटे ने जो जवाब दिया उसे सुनकर तो पत्नी का भड़कना स्वाभाविक ही था। बेटा बोला, ‘पापा ने ही तो अपने वॉट्सएप्प फैमिली ग्रुप पर डाला था।’ पत्नी के एक हाथ में बेलन और दूसरे में चिमटा था। उस समय पतिदेव को वह दुर्गा मां नजर आ रही थी। बेटे को समझाने का बहाना बनाकर वे धीरे से खिसक तो लिए, पर उनके मन का कीड़ा कुलबुला ही रहा था और चयास(जैसे पानी की प्यास वैसे चाय की चयास) भी बढ़ रही थी।

गुस्से के बादल छंट चुके थे और मौसम कुछ सुहावना सा लग रहा था। हाथ में मोबाइल और मोबाइल में वॉट्सएप्प तो था ही। पत्नी से कहने लगे, ‘देखो विदेशी लोग क्या कह रहे हैं भारतीय महिलाओं के बारे में। उनका कहना है कि हमारे यहां की महिलाएं इस चिंता में हैं कि हमारे देश का क्या होगा, हम बचेंगे या नहीं और भारतीय महिलाओं ने सालभर के अचार-पापड भी बना लिए हैं।’ शायद इस तारीफ का असली मतलब वह समझ गई थी इसलिए पति को केवल एक बार घूरकर वह फिर अपने काम में लग गई।

बाहर धीरे-धीरे बारिश शुरू हो चुकी थी। मौसम ठंड़ा होने लगा था। चयास के साथ-साथ अब तो भजिये-पकौड़ों की तलब भी जागृत होने लगी थी। बैठे-बैठे पतिदेव सोच रहे थे कि ये कोरोना पूरी गरमी खा गया अब कहीं बारिश का मौसम भी न लील जाए। उन्होंने अपनी सोसायटी में रहने वाले दोस्त जो कि उनके ही दफ्तर में भी काम करता था, को फोन मिला दिया। दोनों दोस्तों की बातें चलने लगीं। पिछले साल की बारिश को याद करते हुए दोनों ही खयालों में ऑफिस के कैंटीन तक जा पहुंचे। कैंटीन वाले की चाय और पकौड़े और दोस्तों की बातें……..वाह क्या रंग जमता था। पर अब न तो ऑफिस, न कैंटीन और न ही पकौड़े। बस मन मसोस के जी रहे हैं। ‘वैसे सामने की टपरी वाला भी काफी अच्छी चाय और पकौड़े बनाता है।’ पति कितने ही धीरे बात कर रहा हो और पत्नी कितने ही कामों में व्यस्त हो, उसे पति की बात सुनाई दे ही जाती है। और अगर कहीं बाहर के खाने की तारीफ हो रही तब तो खैर नहीं।

अपनी चोरी पकड़ी गई है यह समझते ही पति ने चाय पकौड़े के विषय को वहीं बंद करना ठीक समझा कि बात कहीं ज्यादा बढ़ गई तो दोपहर का खाना भी नसीब नहीं होगा और अभी तो सारे होटल भी बंद हैं।

पत्नी ने भी झूठा गुस्सा दिखाते हुए एक गैस पर चाय का बर्तन और दूसरे पर कढ़ाई चढ़ा दी। साथ ही अपने भी वॉट्सएप्प ज्ञान का परिचय देते हुए पति को नसीहत भी दे डाली कि कल से रोटियां बनाना सीख लो क्योंकि मोदी जी ने कहा है कि जब तक देश के सारे मर्द गोल रोटियां बनाना नहीं सीख लेते तब तक लॉकडाउन नहीं खुलेगा।
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