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न तुम हमें जानो…

न तुम हमें जानो…

by सुलोचना देवलकर
in नवम्बर २०१४, फिल्म, सामाजिक
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पार्श् वगायन के क्षेत्र में बहुत स्पर्धा है। पहले जैसी ‘मोनोपली ’ अब नहीं रही। रोज एक नई आवाज से पहचान होती है। फिल्म चली और गाने हिट हुए कि थोड़ेे दिन किसी गायिका का नाम जोर -शोर से सुनने में आता है। अल्प समय में हम वह गाना और नाम भूल जाते हैं। इसे कुछ और नाम नहीं दिया जा सकता – कालाय तस्मै नम :।

फिल्मों ने भारतीय मन पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है। भारतीय फिल्मों में संगीत बेहद महत्व रखता हैै। पुरानी फिल्मों में ज्यादातर रचनाएं शास्त्रीय संगीत पर आधारित होती थीं। अच्छी अर्थपूर्ण शायरी, सुमधूर संगीत ७० के दशक तक फिल्मों की विशेषता थी। समयानुसार संगीत बदलता गया। आजकल के संगीत में तेज गति होती है। आयटम सांग लगभग हर फिल्म का अविभाज्य हिस्सा बनता जा रहा है।

फिल्मों में काम करनेवाले नायक -नायिकाओं को परदे के पीछे रहकर गायक अपनी आवाज देता है, यह बहुत महत्वपूर्ण बात है। आइए, अपनी जादूभरी आवाज में गीत गानेवाली पार्श् व गायिकाओं के बारे में थोड़ी जानकारी ले लें। हिंदी फिल्मों के पात्र जब बोलने लगे तब पार्श् वगायन शुरू हुआ। आरंभिक काल में फिल्मों में अभिनय करनेवाली अभिनेत्रियों को ही गीत गाना पड़ता था। जो गाना भी गाए और अभिनय भी कर सके ऐसे कलाकारों को ही काम मिलता था। नूरजहां, सुरैया, उमादेवी (टुनटुन ) ये अभिनेत्री और गायिका दोनों थी। बंटवारे के बाद नूरजहां पाकिस्तान चली गईं। ४० वें और ५० वें दशक में सुरैया बेहद लोकप्रिय गायिका और अभिनेत्री थी। राजकुमारी, ललिता देऊलकर (गायक सुधीरजी फड़के की पत्नी ) उस समय पार्श् वगायिका थी। सुरैया सब से आखरी गायिका अभिनेत्री थी। गीता दत्त भी अपनी आवाज की अलग विशेषता लिए हुए थी। एस . डी . बर्मन, ओ . पी . नैय्यर जैसे संगीतकारों ने उसकी आवाज से अनेक सुंदर गीतों का निर्माण किया। ‘मेरा सुंदर सपना बीत गया ’, ‘तदबीर से बिगड़ी हुई तस्वीर बना दे ’, ‘आज सजन, मोहे अंग लगा दे ’, ‘वक्त ने किया क्या हंसी सितम ’ जैसे गाने आज भी लोग शौक से सुनते हैं।

इसी समय अद्भुत आवाज की गायिका लता मंगेशकर का उदय हुआ। पहले के सारे गीत उनके सामने फीके पड़ने लगे। लताजी कोई भी गाना स्वाभाविक, सहज रूप से गाती थी। किसी भी उमर की अभिनेत्री के उमर के मुताबिक लताजी का गाना होता था। पार्श् वगायन कैसा हो ? इसका आदर्श उन्होंने प्रस्थापित किया। ४० /५० के दशक में उनकी आवाज बिलकुल मलमल की तरह मुलायम, युवावस्था की जोश से भरी थी। गीत शास्त्रीय संगीत पर आधारित हो या विरह -वेदना का, दु :खभरा हो या रोमांटिक मूड में हो, या वात्सल्य से भरापूरा मन को प्रसन्नता देनेवाला होता था। हर गाना उन्होंने मन :पूर्वक गाया। उनके जैसी ही शक्तिशाली गायिका, उनकी बहन आशा भोसले ने भी अति सुंदर -सुमधुर गीत गाये। सामान्यत : प्रमुख अभिनेत्रियों के लिए लताजी की आवाज में ही गाने गवाये जाते थे।

सहनायिका और खलनायिकाओं के लिए भी आशाजी की आवाज होती थी। मस्त अदा और मदहोश करनेवाले नृत्य -गीत और कैेबेरे स्टाइल के गीत ज्यादातर उनके हिस्से आते थे। पर आशाजी ने हर गाने को मानो सोने जैसा चमकीला बना दिया। उन्होंने अपने आपको बहुमुखी प्रतिभा की गायिका के रूप में सिद्ध किया है। गज़ल गाए तो आशाजी ही। ‘उमराव जान ’ फिल्म की गज़लें बहुत मशहूर हुईं।

लताजी की आवाज से मेल खाती हुई दूसरी आवाज भी थी और वह थी सुमन कल्याणपूर की आवाज।

‘न तुम हमें जानो ’ (बात एक रात की ) ‘मेरे मेहबूब न जा ’ (नूरमहल ) जैसे मशहूर गीत उन्होंने गाए हैं। पर कुछ कारणवश वह पार्श् वगायन से दूर चली गईं।

इसी समय उषा मंगेशकर, पुष्पा पागधरे, कृष्णा कल्ले, सुधा मल्होत्रा ये भी अपने गानें अच्छी तरह से गा रही थीं। कुछ समय पश् चात् सुरीली आवाज की अनुराधा पौडवाल भी इस क्षेत्र में आईं। लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के संगीत -निर्देशन में गाया ‘मधुबन खुशबू देता है ’ गाना सुपरहिट हुआ। ‘हिरो ’ फिल्म के सारे गीत भी लोकप्रिय हुए। पर इसी समय अलका याज्ञिक और कविता कृष्णमूर्ति ये पार्श् वगायिकाएं भी लोकप्रिय हुईं। इस कारण अनुराधा पौडवाल के हिस्से ज्यादा गाने नहीं आते थे। टी . सीरीज के गुलशन कुमार के साथ गीत -गायन के लिए उन्होंने करार किया, ‘आशिकी ’, ‘लाल दुपट्टा मलमल का ’ फिल्म के गीत सुपर डुपर हिट हो गए। दोनों ने भक्ति -संगीत के अल्बम बनाए। अनुराधा पौडवाल जैसी लोकप्रियता शायद ही किसी पार्श् वगायिका को मिली हो। बदकिस्मती से गुलशन कुमार की हत्या हुई। हिंदी फिल्मों के दरवाजें तो उनके लिए पहले ही बंद हो चुके थे।

अलका याज्ञिक ने भी लंबे समय तक राज किया। ‘तेजाब ’ के ‘एक दो तीन ’ गाने से वह लोकप्रिय हुई। माधुरी दीक्षित के लिए उसकी कोमल आवाज सुयोग्य साबित हुई। सात बार उसे फिल्म -फेअर अवॉर्ड मिला। कविता कृष्णमूर्ति पहले लताजी के लिए डबिंग आर्टिस्ट का काम करती थीं। उनकी आवाज, गाने की योग्य समझ होने के कारण आगे चलकर उन्हें स्वतंत्र रूप से काम मिलने लगा। श्रीदेवी के ‘हवा -हवाई ’ गाने को मिली सफलता के पश् चात् उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। कई विज्ञापनों को उनकी आवाज मिली है। विवाह के बाद वह बेंगलुरु रहने लगीं। पति एल . सुब्रमण्यम के साथ उनके फ्यूजन म्यूजिक के कार्यक्रम होते हैं।

इन गायिकाओं के साथ एक और सुरीली गायिका थी। वह है साधना सरगम। उसने भी कई फिल्मों के लिए पार्श् वगायन किया। ‘कयामत से कयामत तक ’ के सारे गाने हिट हुए। ए . आर . रहमान के निर्देशन में उसने अनेकों गाने गाए। कल्याणजी -आनंदजी के साथ देश -विदेश में स्टेज शो किए।

कुछ समय पहले ‘मेरी आवाज सुनो ’ संगीत -स्पर्धा में विजेेता रही सुनिधि चौहान थोड़े ही समय में बहुत लोकप्रिय हुईं। उसीका गाया पहला गीत १९९९ की ‘मस्त ’ फिल्म का है। ‘धूम मचा ले धूम मचा ले धूम ’ यह गाना हिट हुआ। उसकी आवाज अलका याज्ञिक अथवा अनुराधा पौडवाल की तरह मधुर नहीं थी। आवाज भारी थी, (वजनदार ) आवाज की अच्छी रेंज थी, इस कारण आवाज बहुत पावरफुल यानी शक्तिशाली थी। उसमें जो ताल है, जिसकी वजह से गानें हिट हुए वह हैं ‘शीला की जवानी ’ (तीसमार खान ) ‘हलकट जवानी ’ हिरोइन।

‘सारेगमप ’ की प्रतियोगिता में दो बार – पहली बार – बालगायिका और दूसरी बार वयस्कों के समुदाय में विजयी श्रेया घोषाल आज की अत्यंत सफल और लोकप्रिय गायिका हैं। उसने नौ बार फिल्म फेअर अवॉर्ड जीता है। ‘बैरी पिया ’ (देवदास ), ‘पिया बोले ’ (परिणीता ), ‘जादू है नशा है ’ (जिस्म ) ये गीत हिट हुए। इसी प्रतियोगिता में विजयश्री प्राप्त पार्श् वगायिका बेला शेंडे रहमान जैसे संगीतकार के साथ काम कर रही हैं।

हिंदी की अपेक्षा वह दक्षिण में और मराठी में ज्यादा लोकप्रिय है।

आलिशा चिनॉय १९८८ से काम कर रही हैं। उसका अपना निजी अल्बम बेबी डॉल बहुत मशहूर हुआ। अपनी अलग आवाज की पहचान बनानेवाली यह गायिका ‘बेटी और बबली ’ के ‘कजरारे ’ गाने से ज्यादा मशहूर हुई। इस गाने के लिए उसे फिल्म फेअर अवॉर्ड भी मिला। पर उसके बाद उसे कुछ ज्यादा काम नहीं मिला। रेखा भारद्वाज की विशेषतापूर्ण आवाज के ‘बीड़ी जलाइ लै ’ अथवा ‘गेंदा -फूल ’ जैसी लोक -संगीत की धुनवाले गाने हिट हुएं वे सिर्फ ऐसे टाइप के गानों के लिए ही विख्यात हैं।

 

दाक्षिणात्य पार्श् वगायिका चित्रा की आवाज में ए . आर . रहमान ने अनेकों गीत गवाए। कुछ वर्षों पहले वाणी जयराम, हेमलता, आरती मुखर्जी जैसी गायिकाओं ने अच्छे गाने गाए। आगे किसी कारणवश वे अपनी कार्यक्षमता को साबित नहीं कर सकीं।

श्रुति पाठक ने ‘काय पो चे ’ फिल्म के लिए ‘शुभारंभ ’ वाला गाना स्वयं लिखा भी था और गाया भी था। ‘मर जाना ’ यह गाना भी हिट हुआ। ‘मुन्नी बदनाम हुई ’ इस एकमात्र गाने के लिए ममता शर्मा को शोहरत मिली। कोई फिल्म जब हिट होती है तब उसके गाने लोग गुनगुनाते हैं। छह महीने बाद शायद किसी के ध्यान में नहीं रहते। आज जिसके नाम का डंका बज रहा है, वह गायिका है – शाल्मली खोलकडे। ‘इश्कजादे ’ फिल्म के लिए उसी का गाया गीत ‘परेशान ’ उसे शोहरत की बुलंदी पर ले गया। टाइम्स स्न्वेअर, न्यू यॉर्क में होनेवाले संगीत -समारोह में वह भारत का प्रतिनिधित्व करनेवाली हैं।

पार्श् वगायन के क्षेत्र में बहुत स्पर्धा है। पहले जैसी ‘मोनोपली ’ अब नहीं रही। रोज एक नई आवाज से पहचान होती है। फिल्म चली और गाने हिट हुए कि थोड़ेे दिन किसी गायिका का नाम जोर -शोर से सुनने में आता है।

अल्प समय में हम वह गाना और नाम भूल जाते हैं। इसे कुछ और नाम नहीं दिया जा सकता – कालाय तस्मै नम :। और क्या।

हिंदी फिल्मों की प्रमुख पार्श् वगायिकाओं की यह हुई थोड़ी सी पहचान। कुछ नाम इसमें छूट गए होंगे। इसमें कोई शक नहीं कि आनेवाले समय में रोज नये नाम चर्चा में आते रहेंगे।

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