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हठयोग के साधक मेढ़को की महानिद्रा

हठयोग के साधक मेढ़को की महानिद्रा

by मारुती चितमपल्ली
in अगस्त-२०१२, कहानी
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बरसात का मौसम समाप्त होते ही मेढ़क जमीन के भीतर से चार से सात फीट गहरे बिल में महानिद्रा में लीन होने लगते हैं। मेढ़क का फुफ्सुस आदिम स्थिति में होने के कारण श्वसन क्रिया के लिए वह पूरा नहीं पड़ता। श्वसन क्रिया को पूरा करने के लिए उसे अलग से प्राण वायु लेनी तथा छोड़नी प़ड़ती है। महानिद्रा के समय मेढ़क का मुंह बंद रहता है, उस समय उसके शरीर में प्राण वायु का संचार कैसे होता है? तथा वह कहां से प्राप्त होती है। इसका स्पष्टीकरण जीव विज्ञान के ग्रंथों में नहीं मिलता।

हठयोग की साधना में साधक योग की खेचरी मुद्रा का सहारा लेते हैं। इस क्रिया में साधक अपनी जीभ के अग्रभाग को मुंह के भीतर उलट कर नाक के छिद्र तक ले जाकर घंटों तक बैठे रहते हैं, अर्थात् इस अवधि में उनका प्राणु वायु ग्रहण करना बंद रहता है। इस अवस्था में साधक स्वयं को कई बार जमीन के भीतर मिट्टी से ढ़क लेते हैं। मेढ़क के बारे में भी यही बात लागू होती है।
मनुष्य की पीनियल ग्लैंड में सिरोटोनिव नामक रासायनिक द्रव तैयार होता है। इस रसायन का उपयोग कुंडिलिनी जागृत करने के लिए होता है। प्राकृतिक रुप से यह रसायन खजूर, केला, अलूबुखार में प्रचूर मात्रा में मिलता है। इसी तरह अंजीर, बरगद और पीपल के फलों में भी खूब पाया जाता है। यह रसायन मेढ़क के शरीर में भी तैयार होता है। मेढ़क के शरीर में सिरोटोविन का उपयोेग महानिद्रा की अवस्था में होता होगा।

बरसात बंद होने के उपरांत सभी मेढ़क जमीन के भीतर जाते हैंं, ऐसा नहीं होता, कुछ मेढ़क गढ्डे में आश्रय ढ़ूढ़ते हैं। पर्वत श्रृंखलाओं पर रहने वाले मेढ़क पत्थर के छेदों और दरारों में आश्रय लेते हैं। वृक्ष मेढ़क पेड़ों के कोटर में रहते हैं। इसी तरह तालाब और पोखर में भी वे महानिद्रा लेते हैं। चीन की एक घटना है। लोगांग नामक एक गृहस्थ एक बार गलती से एक खंदक में गिर गया, उस खंदक के बिलों में बहुत से मेढ़कों ने आश्रय ले रखा था। सूर्योदय के समय मेढ़कों ने बिल से बाहर मुंह निकालकर सूर्य की किरणों को अपनी जिह्वा पर लेने लगे, जैसे कि वे सूर्य की किरणों को चाट रहे हों। उस गृहस्थ ने मेढ़कों की पूरी क्रिया का अवलोकन किया। भूख से व्याकुल होने पर उस गृहस्थ ने मेढ़कों की क्रिया का अनुकरण किया और यह जानकर उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा कि सूर्य की किरणों को चाटने के कारण उनकी भूख समाप्त हो गई। लोगांग किसी तरह उस खंदक से बाहर आ गये। वे हमेशा उसी क्रिया को दोहराने लगे। जीवन में उन्हें फिर कभी भी भूख नहीं लगी।
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Tags: arthindi vivekhindi vivek magazineinspirationlifelovemotivationquotesreadingstorywritingआसनमुद्रायोगहठयोग

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