संघ समर्पित माधवराव मुळे

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघके भूतपूर्व सरकार्यवाह तथा स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय माधवरावजीका यह जन्म शताब्दी वर्ष है। पंजाब, जम्मू-कश्मिर, हिमाचल, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान प्रांतोंमें उन्होने कार्य किया। पूजनीय डॉक्टर हेडगेवारजीका यथायोग्य मार्गदर्शन प्राप्त हुआ और श्रीगुरुजीके साथ संघकार्य करने का उनको सौभाग्य मिला। पुराने कार्यकर्ताओंके यादों में आजभी माधवराव है। नयी पिढीको उनके संबंध में विशेष जानकारी न होना हर संभव है। अखंड हिंदुस्थान के नक्शेपर तब पंजाब-सिंध प्रांतोंकी सीमा काश्मिरसे लेकर कराची तक और खैबर घाटी पेशावर से लेकर दिल्ली तक थी। इस पुरे इलाखे में माधवरावजीके नेतृत्व मे संघकार्य विस्तार हुआ था। अनेक स्वयंसेवकोंकी सहाय्यतासे माधवरावजीने यह कार्य किया। तब कार्यकर्ताओंका आधार, व्यक्तित्व और कृतित्त्व की रचना के शिल्पकार थे माधवराव। उनका बहुत बडा प्रभाव था। वे सचमुच अनेकोंके प्रेरणास्थान रहे। संघके इस प्रारंभके कार्यकर्ता का संक्षेपमे परिचय करा देने का यह प्रयास है। आपातकाल के दौरान और उनकी बिमारी बढनेपर उनकी गतिविधीयोंकी संक्षेप मे यहा जानकारी दे रहे है।

इंदिराजी ने चुनावों की घोषणा की और जेल से मिसा बंदी राजनैतिक नेता और कार्यकर्ताओं को मुक्त किया गया। दिसम्बर 1977 में देश के 60 प्रतिशत बंदियों को मुक्त किया गया। लेकिन संघ स्वयंसेवक, पदाधिकारियों का बंदिवास अभी समाप्त नहीं हुआ था। सभी विरोधी दलों ने ‘जनता पार्टी’ के नाम से चुनाव लडने का निर्णय लिया था। लोकसभा मतदाता संघ को लेकर समझौते हो रहे थे। भूमीगत रहने वाले माधवराव, मोरोपंत, भाऊराव देवरस आदि ज्येष्ठ प्रचारक मार्गदर्शन कर रहे थे। इस दौरान माधवराव का दिल्ली में निवास था। उनका सर्वत्र संचार था, लेकिन किसी को पता नहीं चलता था। ऐसे में उनका स्वास्थ्य भी ठीक से साथ नहीं दे रहा था। दवापानी चल रहा था। रोजाना जनसंघ और अन्य दलों के कार्यकर्ताओं के साथ गुप्त बैठकें हुआ करती थी। कई बार माधवराव जिस किसी के घर पर रुके होते, वहाँ से बाहर गाँव किए जाने वाले फोन पर संभाषण करते समय वे कार्यकर्ताओं के नाम खुलेआम लिया करते थे। उनकी व्यवस्था के लिए नियुक्त सभी को इस बात से डर लगता था। माधवराव कहते थे जब कैसा डरना? दो महीनों में यह सरकार गिरने वाली है। जनता का नया राज आने वाला है। चिंता न करें संघ स्वयंसेवकों को हम स्वयं सम्मान से बाहर निकालेंगे! कैसा जबरदस्त आत्मविश्वास था!! उनकी बात शीघ्र ही साच भी हो गई। जनता पार्टी बहुमत से सत्ता में आई। ‘डरो मत, निर्भय रहो’ का मंत्र उन्होंने सबको दिया था। इस चुनाव की भागदौड का माधवराव की तबीयत पर विपरीत परिणाम हुआ।

मार्च 1978 मे माधवराव बिगडी हुई तबीयत के कारन मुंबई आये। डा. अजित फडके, डा. श्रीखंडेने उनपर इलाज शुरु किये। चेंबुर के अनंतराव देशपाण्डेके घर उनका निवास रहा। वहा मुंबई और बाहर गाँव के संघ कार्यकर्ता माधवरावको मिलने आते थे।

एक दिन माधवराव, श्री हेरंब कोल्हटकर, डा. परळकर के साथ संगीतकार श्री सुधीर फडके के घर भोजन के लिए गए। वहाँ पुणे के ग्राहकपेठ के श्री बिंदुमाधव जोशी, जानेमाने इतिहासकार श्री बाबासाहब पुरंदरे, मुंबई के कार्पोरेटर श्री मधू मंत्री और श्री वसंत जोशी, पुणे स्थित ज्ञान प्रबोधिनी संस्था के प्रमुख तथा पूर्व प्रचारक श्री अप्पा पेंडसे भी आए हुए थे। इन सबके साथ दिल खोलकर गपशप हुई, इनके कार्यका जायजा भी लिया गया। पूजनीय डाक्टरजी जिन्हें संघ में लाए और आगे जिनका अभिनय देखकर उन्हें सिनेमा जगत में काम करने का सुझाव दिया गया वे श्री नाना पलशीकर (बाद में प्रसिद्ध सिनेमा कलाकार सिद्ध हुए) उन दिनों मुंबई में रहते थे। उनके निमंत्रण और आग्रह पर माधवराव उनके घर गए। इस भेंट के दौरान माधवराव ने श्री सुधीर फडके और उपस्थितों को पळशीकरजी की 1961 की एक याद बतलाई।

सिनेकलाकारों की प्रशंसा : श्री बलदेवराज और श्री यश चोपडा दोनों बंधु बचपन में लाहौर में संघ शाखा में आया करते थे। श्री बलदेवराज (याने बी. आर. चोपडा) को लार्हार के तत्कालीन प्रचारक बाबू दीनानाथ और ज्येष्ठ संघ कार्यकर्ता प्रा. धर्मवीर शाखा में लाए थे। चोपडा बंधुओं के जीवन पर इन दो व्यक्तियों को काफी प्रभाव था। दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले धारावाहिक ‘महाभारत’ के विमोचन के अवसर पर उन्होंने कहा था कि, ‘‘1932 में स्कूली छात्र की अवस्था में डा. धर्मवीरजी ने महाभारत की सुरस कथाएं मुझे सुनाई थी। अत: वही मेरे इस ‘महाभारत’ धारावाहिक की मूल प्रेरणा है। इन्हीं चोपडा बंधुओं द्वाराव निर्मित ‘कानून’ सिनेमा माधवराव, चमनलालजी, विश्वनाथजी और बलराज मधोकजी ने एकसाथ दिल्ली में रोहतक रोड के एक सिनेमाघर में बी. आर. चोपडाजी के आग्रह पर देखा था। इस चित्रपट में नाना पळशीकर ने काम किया था। उन्हें इसी भूमिका के लिए 1961 में सहायक अभिनेता का पुरस्कार मिला था। चरित्र अभिनेता नाना पळशीकर की भूमिका देखने सभी संघकार्यकर्ताओं ने इस चित्रपट का आनंद लिया था।

1958 में कोल्हापुरके श्री भालजी पेंढारकर द्वारा दिग्दर्शित ‘नेताजी पालकर’ नामक एक चित्रपट माधवराव और श्री काशीनाथपंत लिमये ने सांगली में देखा था। उसी दौरान व्ही. शांताराम द्वारा बनाई गई फिल्म ‘झनक झनक पालय बाजे’ भी माधवराव और बापूराव मोघे ने देखी थी। उसमें केशवराय दाते नामक स्वयंसेवक ने काम किया था।

माधवराव का मुंबई में निवास : मुंबई के इस निवास में माधवराव निजी रुप से अनेक लोगों को मिले। चिपलून के स्व. प्रेमजीभाई आसर इस पुराने स्वयंसेवक की पत्नी, उन्हे सब ‘बाई’ नाम से पुकारते थे-उन दिनों मुंबई में अपने बेटे चि. सुभाष के साथ रहती थी। उनकी मुलाकात इन निजी मुलाकातों में प्रमुख थी। प्रेमजीभाई का तीन वर्ष पूर्व निधन हुआ था। कई दिनों से बीमार चल रहे सिंध के पुराने कार्यकर्ता श्री खानचंद गोपालदास को माधवराव अस्पताल में जाकर मिले (अगले दस ही दिनों में दि.29 दिसम्बर 77 को उनका देहावसान हो गया।) संघकार्यकर्ता श्री शांतिलाल सोलंकी के पुत्र की 11 अक्तूबर को दुर्घटना में मृत्यू हो गई थी। श्री मनोहर मुजुमदार, श्री मुकुंदराव दामले, श्री शिवराय तेलंग के साथ माधवराव सोलंकीजी के घर उनका सांत्वन करने के लिए गए थे। श्री हशु अडवाणी के साथ स्व. राजपाल पुरी के घर भी सांत्वन करने के लिए माधवराव गए थे। उनका भी हाल ही में निधन हुआ था। विद्यार्थी परिषद के प्रा. यशवंतराव केळकर बीमार होने के कारण माधवराव, प्रांत प्रचारक श्री वसंत केळकर के साथ उन्हें मिलने पहुँचे थे। कल्याण आश्रम का कामकाज देखने वाले श्री. रामभाऊ गोडबोले का भी हालचाल उन्होंने पूछा। राष्ट्रसेविका समिति की सुश्री बकुलताई देवकुळे, जनसंघ की सुश्री चंद्रकांताबेन गोयल और उनके पति वेदप्रकाशजी, ईश्वर नागराणी, विश्वेश्वर बक्षी, सेंट जॉर्जेस रुग्णालय में पूर्वसांसद श्री उत्तमराव पाटील, शिल्पकार गोरेगावकर आदि अनेक लोगों से मिले। अपने व्यस्त कामसे समय निकालकर व्यक्तीगत रुपसे कार्यकर्ताओंको मिलना, उनके सुख-दु:खमे साथ देना, अच्छी कामकी प्रशंसा करना माधवरावने सदैव किया। यह उनकी विशेषता रही।

कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहन: पुणे से संघ के पुराने कार्यकर्ता श्री विश्वनाथ नरवणे का जून 1978 में दिल्ली आना हुआ। वे पहले प्रचारक रहे थे, इसलिए माधवराव के साथ अच्छा परिचय था। माधवराव के पुणे आने पर अक्सर उनकी मुलाकात हुआ करती थी। उन्होंने ‘भारतीय कहावतें और मुहावरों का एक कोश’ तैय्यार किया था। तीनं खंडों का लगभग 2000 पृष्ठों का एक अत्यधिक उपयुक्त खजाना आगे चलकर 16 भारतीय भाषाओं में प्रकाशित हुआ था। उनकी इस निर्मिती के लिए उन्हें राज्य शासन और मराठी वाङ्मय मंडल के पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया था। इस प्रकाशित खंड का वितरण मध्य प्रदेश, दिल्ली, उ. प्रदेश, राजस्थान में हो, इसलिए विश्वनाथजी से माधवराव ने सभी प्रमुख व्यक्तियों को सिफारिश करनेवाले परिचय पत्र दिये। स्वास्थ की ऐसी बिकट अवस्था में भी माधवराव ने उन्हें हर प्रकार की सहायता की। देखते ही देखते पाँच सौ प्रतियों का वितरण भी हो गया।

माधवराव और श्री भाऊराव देवरस ने मुंबई के ‘साप्ताहिक विवेक!’ के संपादक श्री ब. ना. अर्थात् बालासाहब जोग को 1978 में अपने मुंबई निवास के दौरान नवयुग निवास के संघ कार्यालय में बुलाया और उन्हें स्वातंत्र्यवीर सावरकर के अंदमान में बीते दिनों के बारे में अधिक जानकारी निकालने का सुझाव दिया। उसके लिए प्रत्यक्ष अंदमान जाने की सूचना भी उन्होंने की। इससे पहले बालासाहब अंदमान नहीं गए थे। परंतु माधवराव और भाऊराव दोनों की इच्छा थी कि यह काम स्वयं बालासाहब ही करें। अत: उन्होंने हामी भरी और कामों की आवश्यक व्यवस्था लगाकर वे मुंबई के सर्वश्री पद्माकर वझे, ज. वा. परचुरे, चंदू परांजपे और प्रचारक रामदासजी कलसकर के साथ पोर्ट ब्लेअर के लिए रवाना हो गए। अंदमान के इस सेल्युसर जेल में अब भला क्या मिलने वाला था? जेल के कमरा नं.123- जहाँ सावरकरजी को रखा गया था, उसका रंगरुपही बदल चुका था। जिस दीवार पर तात्या ने महाकाव्य लिखा, जिस दीवार का उपयोग किसी पोस्टर की तरह किया गया, वह दीवारे अब पूर्णत: बदल चुकी थी। उनके समय का अब कोई नही था। यात्रा के बाद उन्होंने माधवराव को इस बारे में सूचित किया। बस एक बात थी जो बालासाहब को बहुत पसंद आई, और वह थी वहाँ की प्रकृति, समुद्र किनारा आदि। उन्होंने आसपास का खूब निरीक्षण किया। उस दृष्टि से उन्हें अंदमान बहुत भाया था। दुर्भाग्यसे यह बात वे माधवराव को नहीं बता पाए। तब उनका निधन हुआ था।

पहले विद्यार्थी परिषद का काम करनेवाले और आपात्काल के बाद जनता पार्टी में सक्रीय रहनेवाले श्री पद्मनाभ आचार्य ने उत्तर-पूर्व सीमान्त प्रदेश के मिझोराम, मणिपुर, नागालैंड, त्रिपुरा और अरुणाचल की यात्रा 1978 के जून-जुलाई महीनों में की थी। मा. सुंदरसिंग भंडारी भी उन्हीं दिनों आसाम में जनता पार्टी के काम के लिए गए थे, उन्होंने भी कुछ राज्यों की यात्रा की थी। श्री आचार्य ने यात्रा पर निकलने से पूर्व माधवराव के साथ इस के बारे में बातचीत की थी। जनता युवामोर्चा के काम के संदर्भ में माधवराव ने उन्हें कुछ सुझाव दिए थे। वैसे इससे पहले वे कई बार इस प्रदेश में परिषद के काम के लिए जा चुके थे, इसीलिए अनेक लोगों कों जानते भी थे। लेकिन इस बार वे जनता पार्टी के राजनीतिक प्रभारी के रूप में वहाँ जा रहे थे। इसीलिए उनकी माधवराव और भंडारीजी से बातचीत हुई थी। यात्रा के दौरान मणिपुर से श्री पद्मनाभजी ने माधवराव के नाम एक पत्र लिखा। पत्र में उन्होंने कुल वनवासी, पिछडे और अन्य सामाजिक समस्याओं की ओर तथा राजनैतिक पक्षों विशेषत: कम्युनिस्ट एवं मिशनरियों की गतिविधियों के बारे में विस्तार से लिखा था। माधवराव ने ऐसी बुरी हालत में भी उनके पत्र का उत्तर दिया और मुंबई आने पर सूचित करने के लिए कहा ताकि वहाँ बातचीत हो सकेगी। इसके फलस्वरुप आगे श्री आचार्यजीने ‘अकादमी फॉर इंडियन ट्रायबल डायलेक्ट’ प्रकल्पका निर्माण करके इस विषयमें कई छोटी-मोटी किताबे संपादित की, आजभी पुरे उत्तर-पूर्व सीमांत प्रदेश में इसका इस्तेमाल किया जाता है। माधवरावजीकी प्रोत्साहना तथा प्रेरणासे यह प्रकाशन संभव हुआ।

इस वर्ष संघ शिक्षा वर्गांमे माधवरावजीका प्रवास हो नही पाया। तबियतकी बिगडी हुई अवस्थामे डाक्टरोंने जादा परिश्रम तथा आने-जानेपर पाबंदी डाल दी थी। फिर भी नागपूर मे तृतीय वर्ष मे एक दिन के लिए उनका जाना हुआ। जून अखिर मे वे दिल्ली लौट गये। प्रकृती चिंताग्रस्त होने से अगस्तमे उन्हे पुना लाया गया। डाक्टरोंने हर संभव प्रयास करने के बावजुद भी कुछ अच्छा प्रतिसाद नही मिला। अखीर 30 सितम्बर को माधवरावका देहावसान हुआ। यह वज्राघात संघजीवन के सभी क्षेत्रपर था। सभी शोकाकुल थे। उनकी इच्छानुसार अंतीम संस्कार पुणे मे किया गया। पूरे देशमे श्रद्धांजली कार्यक्रम संपन्न हुऐ। पुणे की सभा मे प्रांत संघचालक मा. बाबाराव भिडेजीने अपने भाषण मे कहा ‘संघ नेताओं की मृत्यू पर केवल शोक व्यक्त न करते हुए वे जिस ध्येय के लिए जिये उस राष्ट्र के लिए समर्पण भाव से निश्चित रुप से कुछ करने का संकल्प हर स्वयंसेवक को करना चाहिये। यही श्रद्धांजली उन्हें मान्य होगी।’’

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