कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

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भगवान श्रीकृष्ण का स्वयं का भी जीवन उतार-चढ़ाव से ओत-प्रोत है। वे जेल में पैदा हुए, महल में जिये और जंगल से विदा हुए। उनका यह मानना था कि व्यक्ति जन्म से नहीं कर्म से महान बनता है। उनके द्वारा कुरुक्षेत्र के मैदान में गीता-ज्ञान का ऐसा उपदेश दिया गया जो कर्तव्य से विमुख हो रहे हर व्यक्ति को दिशा व उर्जा प्रदान करने वाला है। वस्तुतः श्रीमद्भगवद्गीता उनके उपदेश का एक ऐसा दर्शन है जो हमें नश्वर जगत में अपना कर्तव्य निस्पृह भाव से निभाने के लिए प्रेरित करता है।

हिन्दू पंचांग : ‘रक्षा-सूत्र’ का त्यौहार

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आख़िर  ‘रक्षा-सूत्र’  प्रेम, शक्ति और सौहार्द्र का प्रतीक है। दुर्लभ समय में आपके प्रियजन की रक्षा और सुरक्षा के लिए यह सूत्र बांधा जाता है तो फिर ये केवल भाईयों की कलाई पर ही क्यों सजे! हर उस कलाई पर होना चाहिए जिसके सुख, समृद्धि, लंबी उम्र और सुरक्षा की कामना की जाती है।

ठेंगड़ी, बोकरे व स्वदेशी अर्थशास्त्र

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ठेंगड़ी ने बोकरे को प्रेरित किया कि वह हिंदू धर्मशास्त्रों का अध्ययन कर यह जानने का प्रयास करें कि वहां अर्थशास्त्र अथवा आर्थिक सिद्धांतों के बारे में कितनी जानकारी है तथा वर्तमान में ये जानकारी अथवा शास्त्रीय सिद्धांत कितने प्रासंगिक हैं। बतौर वामपंथी बोकरे ने हिंदू शास्त्रों का गहन अध्ययन आरंभ किया और कुछ ही समय में उनकी सोच ही बदल गई। अंतत: अथक परिश्रम के बाद उन्होंने 1990 के दशक के आरंभिक वर्षों में एक पुस्तक प्रकाशित की जिसका शीर्षक था  ‘हिंदू अर्थशास्त्र: एक अनवरत आर्थिक व्यवस्था’। इस पुस्तक में स्वदेशी मॉडल की बड़ी स्पष्ट रूपरेखा दी गई है।

स्वतंत्रता के 75 साल बाद भी भारतीयकरण शेष है

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आजादी के 7 दशकों के बाद भी देश के तंत्र का भारतीयकरण करना शेष है। स्वदेशी, स्वभाषा और स्वाभिमान किसी भी राष्ट्र की स्वतंत्रता के मुख्य स्तंभ होते हैं। जब तक इनके आधार पर हम अपना शासन तंत्र नहीं बदलते तब तक तो राज्य को सुराज्य में बदलना संभव नहीं होगा। जब तक भारत स्वदेश, स्वभाषा और स्वाभिमान के साथ उठकर विश्व के सामने खड़ा नहीं हो जाता, तब तक स्वतंत्रता प्राप्ति का अर्थ और लक्ष्य अधूरा ही रहेगा।

गोवंश आधारित शाश्वत खेती और अर्थव्यवस्था

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गोवंश आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए समस्त महाजन संस्था और भारत सरकार के जीव जंतु कल्याण बोर्ड देश भर में गोपालन और गोवंश के संरक्षण व संवर्धन के लिए विशेष तौर पर कार्यरत है और भारत के पूर्वजों की परम्परा व धरोहर को आगे बढ़ा रही है। समस्त महाजन संस्था के नेतृत्व में जैन धर्म से जुड़े बहुतायत लोग जीवदया मामले में उल्लेखनीय कार्य कार्य रहे है जो समाज के लिए अनुकरणीय है और एक आदर्श भी है।

विरासत के आधार पर स्वतंत्र भारत का विकास

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स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में अगर हर भारतीय यह निश्चय कर ले कि वह अपनी हर कृति के केंद्र में अपने राष्ट्र को रखेगा, उस कृति का परिणाम अगर राष्ट्रहित में नहीं है तो वह कृति नहीं करेगा तो भारत को विकसित और सुखी राष्ट्र बनने से कोई नहीं रोक सकता।

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