कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
भगवान श्रीकृष्ण का स्वयं का भी जीवन उतार-चढ़ाव से ओत-प्रोत है। वे जेल में पैदा हुए, महल में जिये और जंगल से विदा हुए। उनका यह मानना था कि व्यक्ति जन्म से नहीं कर्म से महान बनता है। उनके द्वारा कुरुक्षेत्र के मैदान में गीता-ज्ञान का ऐसा उपदेश दिया गया जो कर्तव्य से विमुख हो रहे हर व्यक्ति को दिशा व उर्जा प्रदान करने वाला है। वस्तुतः श्रीमद्भगवद्गीता उनके उपदेश का एक ऐसा दर्शन है जो हमें नश्वर जगत में अपना कर्तव्य निस्पृह भाव से निभाने के लिए प्रेरित करता है।