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भगवान श्रीगणेश के जन्म का रहस्य

भगवान श्रीगणेश के जन्म का रहस्य

by विकास शर्मा
in अध्यात्म, ट्रेंडींग, विशेष, संस्कृति, सामाजिक
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भारतीय धर्म और संस्कृति में भगवान श्रीगणेश सर्वप्रथम पूजनीय और प्रार्थनीय हैं। भगवान श्री गणेश अग्र पूज्य, गणों के ईश गणपति, स्वस्तिक रूप तथा प्रणव स्वरूप हैं। उनकी पूजा के बगैर कोई भी मंगल कार्य शुरू नहीं होता। इन्हें विघ्न विनाशक और बुद्धि प्रदाता भी कहा जाता है। इसके स्मरण मात्र से ही संकट दूर होकर शांति और समृद्धि आ जाती है।इसलिये वे सार्वभौमिक, सार्वकालिक एवं सार्वदैशिक लोकप्रियता वाले देव हैं। शास्त्रों के अनुसार भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश की उत्पत्ति हुआ थी, देशभर में इस दिन को गणेश चतुर्थी के पर्व के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन को कलंक चतुर्थी भी कहा जाता है इस दिन चंद्रमा का दर्शन करना निषेध बताया गया है।
विष्णु पुराण के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने एक बार चतुर्थी के दिन चंद्रमा देख तो उन पर स्यमंतक मणि की चोरी का आरोपी भी लगा था इस दिन को चांद देखना अशुभ  माना जाता है इसके पीछे भी श्री गणेश जी का चंद्रमा को दिया  श्राप बताया जाता है । इसके पीछे भी एक कथा है कथा के अनुसार एक बार जब श्री गणेश भोजन कर आ रहे थे तभी उनको रास्ते में चंद्रदेव मिले और उनके बड़े उधर को देखकर हंसने लगे इससे गणेश जी क्रोधित हो उठे और उन्होंने श्राप  दिया की तुमको अपने रूप पर इतना अहंकार है इसलिए तुमको क्षय होने का श्राप देता हूं पुराणों के अनुसार इसी श्राप के कारण चंद्रमा और उसका तेज हर दिन क्षय होता लगता है। चंद्रदेव ने श्री गणेश से क्षमा याचना की तब श्री गणेश मैं उनको क्षमा करते हुए कहा कि मैं इस श्राप को खत्म तो नहीं कर सकता लेकिन आप हर दिन क्षय होगी और 15 दिन बाद फिर बढ़ने लगेंगे और पूर्ण हो जाएंगे। लेकिन भद्र पक्ष मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन जो भी आपके दर्शन करेगा उसको झूठा कलंक लगेगा ।
 भगवान श्री गणेश जी के अवतरण को लेकर कई प्रकार की कथाएं एवं लीलाओं का वर्णन है जिससे उनके मनोरम स्वरूपों का वर्णन शास्त्रों में प्राप्त होता है बताते हैं –
गणेश चालीसा की मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री गणेश के जन्म की एक कथा यह भी है की एक बार माता पार्वती  ने पुत्र प्राप्ति के लिए कठोर तप किया। जब  यज्ञ पूरा हुआ अब श्री गणेश ब्राह्मण का रूप  में पहुंचें। अतिथि मानकर माता पार्वती ने उनका सत्कार किया। श्री गणेश ने प्रसन्न होकर वर दिया कि माते, पुत्र के लिए जो तप आपने किया है उससे आपको विशिष्ट और अलौकिक बुद्धि वाला पुत्र बिना गर्भ के ही प्राप्त होगा। वह गणनायक होगा, गुणों की खान होगा। कहकर वे अंतर्ध्यान हो गए और पालने में बालक का स्वरूप धारण कर लिया।
जब माता पार्वती के तब से उन्होंने एक दिव्य एवं बुद्धिमान पुत्र की प्राप्ति हुई जिससे कैलाश पर्वत पर चारों ओर खुशी  और उत्सव का माहौल हो गया सभी देव गढ़ कैलाश पर्वत पर  बालक गणेश को देखने आए और भगवान शिव और माता पार्वती के उत्सव में शामिल हुए उस उत्सव में शनिदेव महाराज भी आये और तब माता पार्वती ने उनसे बालक को आशीर्वाद देने के लिए कहा लेकिन मैं अपनी दृष्टि की वजह से बच्चे को देख नहीं पा रहे थे तभी पार्वती जी ने कहा कि लगता है आपको बालक का आगमन पसंद नहीं आया शनिदेव ने कहा कि ऐसी बात नहीं है माता फिर उन्होंने जैसे ही अपनी दृष्टि बालक पर डाली उसके उससे बालक का शेर आकाश में उड़ गया और चारों तरफ उत्सव के माहौल में हाहाकार मच गया तब गरुड़ जी से उत्तम से लाने को कहा और वह हाथी का सर लेकर आए जिसे भगवान शंकर ने बच्चे के सर शरीर पर रखकर बच्चे में प्राण डाल दिए इस प्रकार गणेश जी को हाथी का सिर प्राप्त हुआ सभी देवताओं ने मिलकर उनका गणेश नामकरण किया और उन्हें प्रथम पुज्य होने का वरदान भी दिया। इस प्रकार श्री गणेश का जन्म हुआ।
स्कंद पुराण के अनुसार भगवान शंकर द्वारा माता पार्वती को दिए गए पुत्र प्राप्ति के वरदान के बाद ही श्री गणेश जी का अवतरण राजस्थान के अर्बुद पर्वत (माउंट आबु), जिसे अर्बुदारण्य भी कहा जाता है पर हुआ था। आज इस मंदिर को सिद्धि गणेश के नाम से भी जाना जाता  है ।
वारहपुराण के अनुसार भगवान शिव एक अत्यंत दिव्य एवं अलौकिक बालक का निर्माण पंचतत्वों से कर रहे थे तब देवताओं को खबर मिली कि भगवान शिव अत्यंत रूपवान और विशिष्ट बालक का निर्माण कर रहे हैं इससे देवताओं को डर सताने लगा कि गणेश जी सबके आकर्षण का केंद्र न बन जाएंगे देवताओं के इस डर को भगवान शिव जान गए और उन्होंने विनायक के पेट को बड़ा कर दिया तो मुंह हाथी का लगा दिया।
शिव पुराण  के अनुसार एक बार शिवजी के  गणों द्वारा माता पार्वती की आज्ञा का पालन न करने पर माता पार्वती नाराज हो गई तब उन्होंने प्रण किया कि मैं ऐसे पुत्र को प्राप्त करूंगी जो मेरी आज्पालन करें। माता पार्वती ने अपने शरीर की उबटन से एक बालक नुमा आकृति का निर्माण किया और अपने मंत्र शक्ति से उस बालक मेंं डाल डाल दिए इस प्रकार भगवान गणपति का अवतरण हुआ तब माता ने  आज्ञा दी कि मैं स्नान करने जा रही हूं आप द्वार  पर खड़े रहना और किसी को अंदर ना आने देना कुछ देर बाद वहां भगवान शिव आए पर बालक गणेश ने  उन्हें रोक दिया यह देखकर भगवान शिव क्रोधित हुए और विवाद ने युद्ध का रूप धारण कर लिया । गणों और देवताओं का बालक श्री गणेश के साथ युद्ध हुआ ।
श्री गणेश ने सभी को आसानी से परास्त कर दिया यह देखकर भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने बालक श्री गणेश का सर धड़ से अलग कर दिया।  जब माता पार्वती ने यह देख कर क्रोधित हो विलाप करने लगी। उनकी क्रोधाग्नि से सृष्टि में हाहाकार मच गया। तब सभी देवताओं ने मिलकर उनकी स्तुति की एवं भगवान शिव से बालक को पुनः पुनर्जीवित करने के लिए कहा। तब भगवान शिव ने एक हाथी के बच्चे का सर काटकर बालक के धड़ से जोड़ दिया एवं बालक श्री गणेश जी को पुनर्जीवित किया ।  सभी देवताओं ने वरदान दिया तभी से भगवान गणेश प्रथम पूज्य  देवता है।शास्त्रों में भगवान श्री गणेश के अवतरण की और भी बहुत मनोहर कथाओं का वर्णन है।गणेश के वाहन मूषक के बारे में कई प्राचीन कथाएं प्रचलित हैं।
भगवान श्री गणेश की शारीरिक बनावट के मुकाबले उनका वाहन छोटा सा मूषक है। गणेश जी ने आखिर छोटे से जीव को ही अपना वाहन क्यों चुना? उनकी ध्वजा पर भी मूषक विराजमान है। गणेश जी बुद्धि और विद्या के अधिष्ठाता देवता हैं। तर्क-वितर्क में उनका सानी कोई नहीं। एक-एक बात या समस्या की तह में जाना, उसकी मीमांसा करना और उसके निष्कर्ष तक पहुंचना उनका शौक है। मूषक भी तर्क-वितर्क में पीछे नहीं हैं। हर वस्तु को काट-छांट कर रख देता है और उतना ही फुर्तीला भी है। जो जागरूक रहने का संदेश देता है। भगवान श्रीगणेश जी ने कदाचित चूहे के इन्हीं गुणों को देखते हुए उसे अपना वाहन चुना होगा। वास्तव में भगवान गणेश के वाहन मूषक के बारे में कई प्राचीन कथाएं प्रचलित हैं।
पुराणों के अनुसार जब गजमुखासुर नामक दैत्य ने अपने बाहुबल से देवताओं को बहुत परेशान कर दिया। सभी देवता एकत्रित होकर भगवान श्रीगणेश के पास पहुंचे। तब श्रीगणेश ने उन्हें गजमुखासुर से मुक्ति दिलाने का भरोसा दिलाया। श्रीगणेश का गजमुखासुर दैत्य से भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध में श्रीगणेश का एक दांत टूट गया। तब क्रोधित होकर श्रीगणेश ने टूटे दांत से गजमुखासुर पर ऐसा प्रहार किया कि वह घबराकर चूहा बनकर भागा लेकिन गणेशजी ने उसे पकड़ लिया। मृत्यु के भय से वह क्षमायाचना करने लगा। तब श्रीगणेश ने मूषक रूप में ही उसे अपना वाहन बना लिया।
पुराणों अनुसार एक मान्यता यह भी है कि एक बार राजा इन्द्र के दरबार में क्रौंच नामक गंधर्व था। एक बार इंद्र किसी गंभीर विषय पर चर्चा कर रहे थे लेकिन क्रौंच किसी और ही मूड में था। वह अप्सराओं से हंसी ठिठोली कर रहा था। इंद्र का ध्यान उस पर गया तो नाराज इंद्र ने उसे चूहा बन जाने का शाप दे दिया। क्रौंच का चंचल स्वभाव तो बदलने से रहा। एक बलवान मूषक के रूप में वह सीधे पराशर ऋषि के आश्रम में आ गिरा। आते ही उसने भयंकर उत्पात मचा दिया, आश्रम के सारे मिट्टी के पात्र तोड़कर सारा अन्न समाप्त कर दिया, आश्रम की वाटिका उजाड़ डाली, ऋषियों के समस्त  वस्त्र और ग्रंथ कुतर दिए। आश्रम की सभी उपयोगी वस्तुएं नष्ट हो जाने के कारण पराशर ऋषि बहुत दुखी हुए और अपने पूर्व जन्म के कर्मों को कोसने लगे कि किस अपकर्म के फलस्वरूप मेरे आश्रम की शांति भंग हो गई है।
अब इस चूहे के आतंक से कैसे निजात मिले? पराशर ऋषि श्री गणेश की शरण में गए। तब गणेश जी ने पराशर जी को कहा कि मैं अभी इस मूषक को अपना वाहन बना लेता हूं। गणेश जी ने अपना तेजस्वी पाश फेंका, पाश उस मूषक का पीछा करता पाताल तक गया और उसका कंठ बांध लिया और उसे घसीट कर बाहर निकाल गजानन के सम्मुख उपस्थित कर दिया। पाश की पकड़ से मूषक मूर्छित हो गया। मूर्छा खुलते ही मूषक ने गणेश जी की आराधना शुरू कर दी और अपने प्राणों की भीख मांगने लगा। गणेश जी मूषक की स्तुति से प्रसन्न तो हुए लेकिन उससे कहा कि तूने ब्राह्मणों को बहुत कष्ट दिया है।
मैंने दुष्टों के नाश एवं साधु पुरुषों के कल्याण के लिए ही अवतार लिया है, लेकिन शरणागत की रक्षा भी मेरा परम धर्म है, इसलिए जो वरदान चाहो मांग लो। ऐसा सुनकर उस उत्पाती मूषक का अहंकार जाग उठा, बोला, ‘मुझे आपसे कुछ नहीं मांगना है, आप चाहें तो मुझसे वर की याचना कर सकते हैं।’ मूषक की गर्व भरी वाणी सुनकर गणेश जी मन ही मन मुस्कराए और कहा, ‘यदि तेरा वचन सत्य है तो तू मेरा वाहन बन जा। मूषक के तथास्तु कहते ही गणेश जी तुरंत उस पर आरूढ़ हो गए। अब भारी भरकम गजानन के भार से दबकर मूषक को प्राणों का संकट बन आया। तब उसने गजानन से प्रार्थना की कि वे अपना भार उसके वहन करने योग्य बना लें। इस तरह मूषक का गर्व चूर कर गणेश जी ने उसे अपना वाहन बना लिया। यही  मूषक श्री गणेश का प्रिय वाहन बना। भगवान श्री गणेश सभी देवों में प्रथम पूज्य हैं। शिव के गणों के अधिपति होने के कारण इन्हें गणेश और गणपति , इन्हें मंगलमूर्ति भी कहे जाते हैं।

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