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राज्य में राजनैतिक अस्थिरता

राज्य में राजनैतिक अस्थिरता

by राम प्रताप मिश्र 'सांकेती'
in उत्तराखंड दीपावली विशेषांक नवम्बर २०२१, राजनीति, विशेष
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इसे छोटे राज्य का दुर्भाग्य कहें या राजनीतिक लिप्सा का एक अंग कि अब तक नारायण दत्त तिवारी को छोड़कर कोई भी मुख्य मंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है। 2022 में उत्तराखंड में चुनाव होने हैं। जनता को जिस दल का कार्यकाल अच्छा लगेगा उसे जनता चुनेगी।

उत्तराखंड के विकास में यहां के मुख्यमंत्रियों का उत्कट योगदान प्रदेश को विकास की नई ऊंचाइयां दे रहा है। 9 नवंबर 2000 को आधी रात को अस्तित्व में आए पृथक उत्तराखंड राज्य के प्रशासन की पहली कमान अंतरिम सरकार के रूप में उत्तर प्रदेश विधानसभा के सभापति नित्यानंद स्वामी ने संभाली थी। नित्यानंद स्वामी लंबे अर्से से विधान परिषद उत्तर प्रदेश में सक्रिय रहने के साथ-साथ प्रखर समाजसेवी थे और उन्होंने राजनीति को शुचिता का जो मार्ग दिखाया वह लगातार आगे नहीं बढ़ पाया। मुख्य मंत्री नित्यानंद स्वामी ने 9 नवंबर 2000 को तत्कालीन राज्यपाल सरदार सुरजीत सिंह बरनाला से शपथ ग्रहण की और प्रदेश की बागडोर संभाली। बिना किसी व्यवस्था के कम अधिकारियों, कर्मचारियों के बीच प्रदेश का कामकाज चलाना काफी टेड़ी खीर था, लेकिन दिग्गज मनीषा के धनी नित्यानंद स्वामी ने इस असंभव को संभव कर दिखाया और लगातार विकास की गति को बढ़ाने का काम किया। यह बात सच है कि पहले मुख्य मंत्री को राज्य संचालन के लिए व्यवस्थाओं का प्रबंधन करना था, साथ ही साथ कार्यपालिका और व्यवस्थापिका दोनों को सचेष्ट करते हुए विकास की गति को बढ़ाने का काम करना था। यह काम पूरी तरह संचालित हुआ। यह बात अलग थी कि राजनीति में जोड़तोड़ गठजोड़ का भी अपना महत्व है। नित्यानंद स्वामी उन लोगों में थे जो साफ-सुथरी राजनीति के पक्षधर थे। उन्होंने उत्तराखंड के विकास के नींव के पत्थर इस तरह रखे जिस पर भव्य महल खड़ा किया जा सकता था। कम व्यवस्थाओं और कम सुविधाओं के बीच अधिकतम काम कैसे हो सकता है, इसका प्रमाण नित्यानंद स्वामी का कार्यकाल है। उन्होंने 29 अक्टूबर 2001 तक मुख्य मंत्री का पद संभाला। इसे संयोग ही कहेंगे कि मुख्य मंत्री नित्यानंद स्वामी मात्र 354 दिन ही मुख्य मंत्री रहे, लेकिन इस अवधि में उन्होंने राज्य को ठोस आधार देने का काम किया। आज नित्यानंद स्वामी नहीं है लेकिन उनके इस असार-संसार से जाने के बाद अब लोग उनके कामों का आंकलन कर रहे हैं।

मुख्य मंत्री नित्यानंद स्वामी के बाद भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं उत्तर प्रदेश विधान परिषद के निवर्तमान सदस्य एवं तत्कालीन उत्तरांचल सरकार में वरिष्ठ मंत्री भगत सिंह कोश्यारी को राज्य की बागडोर सौंपी गई। भगत सिंह कोश्यारी ने इससे पहले टिहरी बांध परियोजना को पूर्णता देने का जो भगीरथ प्रयास किया वह इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया।

एक सरल और सहृदय मंत्री के रूप में भगतदा ने जो कार्य किया था वह उनके मुख्य मंत्रित्व कार्यकाल में भी जारी रहे। इसे दुरयोग कहेंगे कि खांटी पर्वतीय पृष्ठभूमि के भगतदा को काम करने को अवसर काफी कम मिला। वह मात्र 123 दिन ही प्रदेश के मुख्य मंत्री रहे, जिसमें से लगभग तीन महीने आचार संहिता का कार्यकाल भी रहा। उन्होंने 30 अक्टूबर 2001 से 1 मार्च 2002 तक मुख्य मंत्री पद का दायित्व निभाया। इस अवधि में उन्होंने प्रदेश को विकास की राह पर चलाने का विशेष प्रयास किया। जिसका परिणाम जनता के सामने है। भगत सिंह कोश्यारी भले ही अल्पकाल के मुख्य मंत्री रहे लेकिन उन्होंने उत्तराखंड ही नहीं समग्र देश के लिए टिहरी बांध की पूर्णता पर जो काम किया है वह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जाना गया। वर्तमान में राजनीति के यह पुरोधा महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं। प्रदेश के विकास को त्वरित गति देने वाले तथा कार्यकर्ताओं का व्यक्तिगत नाम लेकर बुलाने वाले मुख्य मंत्री के रूप में भगत सिंह कोश्यारी की पूरे प्रदेश में विशेष पहचान है। चाहे गढ़वाल हो या कुमाऊं, पहाड़ हो या मैदान हर स्थान पर भगत सिंह कोश्यारी के शुभचिंतक और उनके जानने वाले मिल ही जाते हैं जो भगत सिंह कोश्यारी की लोकप्रियता का प्रमाण है।

भगत सिंह कोश्यारी के कार्यकाल के बाद विधानसभा चुनाव हुआ, जिसमें भारतीय जनता पार्टी सीटों के मामले में पिछड़ गई और सत्ता राजनीति के चतुर खिलाड़ी नारायण दत्त तिवारी के हाथों में आई। नारायण दत्त तिवारी तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष हरीश रावत को पीछे धकेलते हुए प्रदेश की सत्ता प्राप्त की। इसे संयोग कहेंगे कि उत्तराखंड निर्माण के बारे में अच्छी राय न रखने के बाद भी कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व ने विकास पुरूष के नाम से जाने जाने वाले नारायण दत्त तिवारी को प्रदेश की कमान सौंपी। नारायण दत्त तिवारी के 2002 में कार्य संभालने के बाद उनके ही दल के लोगों ने जिनमें प्रमुख नाम हरीश रावत का है उन्हें चैन से नहीं बैठने दिया। नारायण दत्त तिवारी जब-जब दिल्ली जाते तब-तब यह हवा फैल जाती थी कि वे इस्तीफा दे रहे हैं। लेकिन इसी ऊहापोह के बीच उन्होंने 5 वर्ष 5 महीने का अपना कार्यकाल पूरा किया जो उत्तराखंड के इतिहास में सर्वाधिक कार्यकाल है।

उन्होंने 2 मार्च 2002 से 7 मार्च 2007 तक कुल 1832 दिन मुख्य मंत्री का कार्यभार संभाला। इसे छोटे राज्य का दुर्भाग्य कहें या राजनीतिक लिप्सा का एक अंग कि अब तक नारायण दत्त तिवारी को छोड़कर कोई भी मुख्य मंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है। इसे संयोग ही कहेंगे कि तत्कालीन मुख्य मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पंडित नारायण दत्त तिवारी के कार्यकाल में उत्तराखंड को विशेष औद्योगिक पैकेज तथा विशेष राज्य का दर्ज दिया था, लेकिन अवधि पूर्ण होने से पहले ही तत्कालीन केंद्र की कांग्रेस सरकार ने उत्तराखंड के साथ छलावा करते हुए अवधि से पहले ही उसका विशेष राज्य का दर्जा और औद्योगिक पैकेज दोनों खत्म कर दिया जिसके कारण विकास के कामों में बाधा आई, लेकिन कांग्रेस ने न तो इस बात के लिए क्षमा मांगी और न ही प्रदेश के विकास के लिए विशेष अनुग्रह किया जिसका परिणाम यह हुआ कि यह नवोदित राज्य आर्थिक संकुचन के अभाव में उतनी तेजी से विकसित नहीं हो पाया जितनी तेजी से होना चाहिए था।

2007 में उत्तराखंड में चुनाव हुआ जिसमें भारतीय जनता पार्टी ने सरकार बनाई। भारतीय जनता पार्टी ने मुख्य मंत्री के रूप में पूर्व केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री मेजर जनरल(सेनि)भुवनचंद्र खंडूरी को 8 मार्च 2007 को मुख्य मंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपी और उन्होंने फौजी अधिकारी की तर्ज पर काम को गति देने का प्रयास प्रारंभ किया। विकास कामों में तेजी आई और व्यवस्थाओं में भी सुधार हुआ। एक सैन्य अधिकारी के हाथ में सत्ता आने के बाद सैनिक की गति से विकास के काम शुरू हुए और चलते रहे लेकिन राजनीतिक अस्थिरता के कारण 23 जून 2009 तक 839 दिन के शासन के बाद रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्य मंत्री पद का दायित्व सौंपा गया। डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने 24 जून 2009 को मुख्य मंत्री पद की शपथ ली थी और 10 सितम्बर 2011 तक 808 दिन मुख्य मंत्री पद पर रहे। मूलत: साहित्यकार और पूर्व केन्द्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक को भी अधिक कार्यकाल नहीं मिला। उन्हें 2012 के विधानसभा चुनाव के मात्र 4 महीने पहले मुख्य मंत्री पद से पृथक कर दिया गया और एक बार फिर प्रदेश का उत्तरदायित्व मेजर जनरल (सेनि) भुवनचंद्र खंडूरी को सौंपा गया। अपने दूसरे कार्यकाल में भुवचनंद्र खंडूरी ने 11 सितम्बर 2011 को मुख्य मंत्रीपद की शपथ ली और 13 मार्च 2012 तक 185 दिन दोनों कार्यकाल मिलाकर 1024 दिन मुख्य मंत्री रहे। भले ही डा. रमेश चंद्र पोखरियाल निशंक ने विकास के कामों को समग्र रूप से आगे बढ़ाया लेकिन आपसी उठापटक और दलीय गुटबंदी के कारण भारतीय जनता पार्टी 2012 के चुनाव में पिछड़ गई और सत्ता पुन: कांगे्रस के हाथों में आ गई। इसे दुर्भाग्य कहेंगे कि प्रदेश के मुखिया के रूप में भुवनचंद्र खंडूरी कोटद्वार विधानसभा से चुनाव हार गए और आसानी से सत्ता कांग्रेस को सौंप दी।

2012 के विधानसभा चुनाव में कांटे का मुकाबला हुआ और 70 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस को 32 सीटें, भाजपा को 31 सीटें, बसपा को 8, उत्तराखंड क्रांतिदल को एक और निर्दलीय विधायक के रूप में 3 विधायक चुनकर विधानसभा पहुंचे। यहां भी भुवनचंद्र खंडूरी को समर्थन न मिलने के कारण उत्तराखंड क्रांति दल, निर्दलीय तथा अन्य लोगों ने कांग्रेस को समर्थन दिया। परिणाम यह हुआ कि भाजपा की आपसी कलह के कारण सत्ता हाथ से फिसल गई। उस समय खंडूरी के स्थान पर  यदि डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक को महत्व दिया गया होता तो शायद सत्ता भाजपा के हाथों में होती, लेकिन आपसी प्रतिद्वंदिता के कारण भाजपा के हाथ से सत्ता फिसल गई। इस अवधि में विकास के काम कम नहीं हुए थे लेकिन प्रतिद्वंदिता के कारण कांग्रेस ने जोड़तोड़ गठजोड़ कर सरकार बनाई और पंडित हेमवती नंदन बहुगुणा के पुत्र विजय बहुगुणा को मुख्य मंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपी गई। विजय बहुगुणा ने 13 मार्च 2012 को मुख्य मंत्री पद की शपथ ली थी और 31 जनवरी 2014 तक मुख्य मंत्री रहे। यह अवधि 690 दिनों की बनती है। जो स्थिति पंडित नारायण दत्त तिवारी के कार्यकाल में हरीश रावत ने की, उसी तरह की चाल उन्होंने विजय बहुगुणा के कार्यकाल में चली इसका उन्हें परिणाम भी मिला। एक फरवरी 2014 को हरीश रावत को मुख्य मंत्री बनाया गया। उनका कार्यकाल 27 मार्च 2018 तक रहा जो 785 दिन का था है। केंद्रीय मंत्री के रूप में हरीश रावत ने जो पहचान बनाई थी उसके नाम पर उन्होंने विकास को आगे बढ़ाने का काम किया और उत्तराखंड निरंतर बढ़ता रहा। इसी बीच राजनीतिक अस्थिरता के कारण 27 मार्च 2016 से 21 अप्रैल 2016 तक राष्ट्रपति शासन लगा और पुन: 21 अप्रैल 2016 से 22 अप्रैल तक हरीश रावत पुन: मुख्य मंत्री बने और 22 अप्रैल 2016 से 11 मई 2016 तक पुन: राष्ट्रपति शासन लग गया। 11 मई 2016 को न्यायालय के आदेश पर हरीश रावत पुन: मुख्य मंत्री बनाए गए और 18 मार्च 2017 तक 311 दिन मुख्य मंत्री रहे।

एक बार फिर विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने बढ़त बनाई और 2017 के चुनाव में भाजपा ने 57 सीटें जीती। मुख्य मंत्री की जिम्मेदारी 18 मार्च 2017 को त्रिवेंद्र सिंह रावत को सौंपी गई। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्य मंत्री के रूप में 18 मार्च 2017 से 10 मार्च 2021 तक 1453 दिन मुख्य मंत्री पद का कार्यभार संभाला और विकास के कामों को गति देने का काम किया। इसे संयोग कहेंगे कि इस अवधि में उन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा तथा 10 मार्च 2021 को तीरथ सिंह रावत ने मुख्य मंत्री पद का कार्यभार संभाला। रावत विधानसभा के स्थान पर लोकसभा के सदस्य थे जिसके कारण उन्हें पुन: चुनाव लड़ना पड़ता, ऐसे में भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने 4 जुलाई 2021 को मात्र 116 दिनों के कामकाज के बाद  मुख्य मंत्री पद से अलग कर दिया। उनके बाद 4 जुलाई 2021 को पुष्कर सिंह धामी को 10वें मुख्य मंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई है। युवा नेतृत्व के रूप में पुष्कर सिंह धामी ने विकास के कामों को गति देने का जो प्रयास प्रारंभ किया है उसकी सराहना हो रही है।

पूत के पांव पालने में ही दिखते है की तर्ज पर पुष्कर सिंह धामी का अब तक का कार्यकाल काफी सराहा जा रहा है। 2022 में उत्तराखंड में चुनाव होने हैं। जनता को जिस दल का कार्यकाल अच्छा लगेगा उसे जनता चुनेगी। लेकिन युवा मुख्य मंत्री पुष्कर सिंह धामी के प्रयास प्रभावकारी और सराहनीय दिख रहे हैं।

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