” कुछ मीठे के बजाए “गजक” हो जाए ……..”

गजक …….. तिलों से बनने वाली यह मिठाई कितनी पुरानी है ? करीब 4-5 हजार वर्ष पुरानी। यह संसार की सबसे पुरानी मिठाइयों में से एक है। गुजरात के कच्छ जिले में हाल ही पुरातत्व विद्वानों ने जो हड़प्पा कालीन स्थल खोजा है वहां तिल भी मिले हैं और गुड़ के अवशेष भी.. प्राचीन भारत में तिलोदन (तिलों की खीर) का भी उल्लेख है और राजस्थान-मध्यप्रदेश-गुजरात के आदिवासी इलाकों में आज भी आदिवासी और किसान लोग सर्दियों में तिल गुड़ और घी का बना पकवान खाते हैं। इस पकवान का नाम ही है “जंगल”…यह जंगल राजस्थान में गुजरात सरहद से लेकर भीलवाड़ा-अजमेर की अरावली पहाड़ी के गांवों-कस्बों तक आज भी खाया जाता है ….. 
विश्व में सर्वाधिक मानव गुफाएं और रॉक पेंटिंग खोजने वाले महान पुरातत्वविद ओमप्रकाश कुक्की कहते हैं कि भारत में तिल चौथ का त्योहार ही बहुत बड़ा साक्ष्य है इतिहास का, गजक का और तिलोदन का ……
भारत जहां 13 हजार से अधिक मिठाई और मीठे पकवान बनते हों, वहां बाजार की ताकतों ने हमें “कुछ मीठा हो जाए” की विज्ञापन पंच लाइन से चॉकलेट खाना सिखा दिया। सिखा दिया वहां तक भी कोई बात नहीं लेकिन गजक जैसी गज़ब मिठाई खाना भुला दिया। शेष काम डायबिटिज के डॉक्टराना डर ने कर दिया ……लोगों से मीठा ही छुड़वा दिया …… गजक ना केवल पौष्टिक है बल्कि स्वादिष्ट भी। उत्तर भारत में तो सर्दियों की रातों में गजक का आनंद ही कुछ और है …….
जयपुर में भी गजक खूब प्रसिद्ध है। पग-पग पर साहू गजक के नाम से करीब 10 हजार दुकानें हैं। फ़िर राजस्थान में ब्यावर की तिलपट्टी और मध्यप्रदेश के मुरैना की गजक भी देश की सरहदें लांघ चुकी हैं। भारत के साथ षड़यंत्र कुछ ऐसे-ऐसे हुए हैं कि हलवा, जलेबी, कलाकन्द तक को विदेशी धरती का बता दिया जाता है जबकि भारत में यह चीजें तब भी बन रही थी जब शेष दुनिया शौच जाना भी ठीक से नहीं सीखी थी ……
भारत के साथ संकट यह है कि वो इतना उदारमना है कि जो इरफानूद्दीन थापर कह दे इतिहास के नाम पर उसे ही मान लेता है और अब तो बाजार में नए-नए मणिशंकर खुर्शीद भी इतिहासकार हो रहे हैं …… खैर देशी-विदेशी भी छोड़ो यह बताएं कि जो मजा करारी गजक और कुरकुरी तिलपट्टी और ताकतवर जंगल में है वो चॉकलेट या केक पेस्ट्री में आता है क्या ? सच सच बताना …….
– उपेंद्र शर्मा

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