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विरोधी दलों पर भारी भाजपा

विरोधी दलों पर भारी भाजपा

by मनोज वर्मा
in दिसंबर २०२१, राजनीति, विशेष
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उ.प्र. सहित देश के पांच राज्यों में अगले साल फरवरी-मार्च में विधानसभा चुनाव होने हैं। चुनावी राज्यों में राजनीतिक तापमान गर्म है और जो सर्वेक्षण उभर कर सामने आ रहे हैं। उनमें से चार राज्यों में भाजपा के पक्ष में माहौल दिख रहा है। दूसरी ओर भाजपा विरोधी दल जातीय और धार्मिक समीकरणों के सहारे भाजपा को घेरने की रणनीति पर काम कर रहे हैं।

द्रीय चुनाव आयोग अगले साल फरवरी मार्च 2022 में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा इन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव कराने जा रहा है। उनके मुख्य चुनाव अधिकारी और चीफ सेक्रेटरी को चिट्ठी लिखकर  निर्देश दिया है कि वह यह सुनिश्चित करें कि चुनाव प्रक्रिया से जुड़ा हुआ कोई भी अधिकारी अपने गृह जिले में पोस्टिंग पर ना रहे। अपने इस आदेश में केंद्रीय चुनाव आयोग ने पांचों राज्यों की विधानसभाओं के टर्म के बारे में भी जानकारी दी है। मसलन उत्तर प्रदेश विधानसभा की समय सीमा 14 मई 2022 तक तो उत्तराखंड विधानसभा की समय सीमा 23 मार्च 2022 तक है। पंजाब विधानसभा की समय सीमा 27 मार्च 2022 तक, मणिपुर विधानसभा की समय सीमा 19 मार्च 2022 तक और गोवा विधानसभा की समय सीमा 15 मार्च 2022 तक है। इससे एक बात तो साफ है कि आगामी विधानसभा चुनाव 15 मार्च से पहले संपन्न हो जाएंगे क्योंकि गोवा की विधानसभा की समय सीमा 15 मार्च तक की ही है।

आमतौर पर लोकसभा और विधानसभा चुनावों से पहले निर्वाचन आयोग की ओर से निर्देश जारी किए जाते हैं ताकि अधिकारी किसी भी तरीके से चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं करें तथा लोकतांत्रिक प्रक्रिया निष्पक्ष एवं स्वतंत्र बनी रहे। आयोग ने पत्र में कहा, आयोग आशा करता है कि ऐसा कोई भी अधिकारी चुनाव ड्यूटी के साथ जुड़ा नहीं रहेगा अथवा उसकी तैनाती नहीं होगी, जिसके खिलाफ अदालत में कोई आपराधिक मामला लंबित हो। एक ओर जहां चुनाव आयोग ने पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है, तो दूसरी ओर राजनीतिक दलों ने भी चुनाव मंथन तेज कर दिया है। मीडिया घरानों और एजेंसियों के चुनावी सर्वे भी सामने आने लगे हैं।

ऐसे ही एक सर्वे में अगले वर्ष 2022 में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर और पंजाब में विधानसभा चुनाव होने हैं। उनमें से चार राज्यों में भाजपा के पक्ष में माहौल दिख रहा है, जहां वह सरकार बना सकती है। एबीपी-सीवोटर-आईएएनएस बैटल फॉर द स्टेट्स-वेव एक के दौरान चुनावी राज्यों के मतदाताओं से ली गई राय में यह सामने आया है। सर्वे के दौरान पांच राज्यों में 690 विधानसभा सीटों पर 81,006 लोगों की राय ली गई है। यह राज्य

सर्वेक्षण पिछले 22 वर्षों में भारत में स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय मतदान एजेंसी सीवोटर द्वारा आयोजित सबसे बड़े और निश्चित स्वतंत्र नमूना सर्वेक्षण ट्रैकर शृंखला का हिस्सा है। इस सर्वे के अनुसार भाजपा उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में अन्य पार्टियों से आगे नजर आ रही है।

वहीं आम आदमी पार्टी वर्तमान में पंजाब में दूसरे दलों पर भारी लग रही है। कांग्रेस को सभी राज्य इकाइयों में गंभीर संघर्ष का सामना करना पड़ सकता है, जिसमें पंजाब और मणिपुर ऐसे राज्य हो सकते हैं, वहां उसे उम्मीद से कहीं अधिक निराशा हाथ लग सकती है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं। सर्वे से पता चलता है कि सत्ता विरोधी भावनाओं और कोविड महामारी ने भाजपा की सापेक्ष वोट पकड़ने की क्षमता को प्रभावित नहीं किया है। जैसा कि सर्वेक्षण में पाया गया है, कांग्रेस की स्थिति संकटग्रस्त बनी हुई है और वह एक ऐसा एकजुट संगठन बनाने में असमर्थ है, जो एक सार्थक चुनौती प्रस्तुत कर सके। अगर उत्तर प्रदेश की बात करें तो सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में भाजपा (एनडीए) 42 प्रतिशत वोट हासिल कर सकती है। सपा 30 प्रतिशत वोटों के अनुमान के साथ दूसरे स्थान पर है और बसपा को 16 प्रतिशत वोट मिलने का अनुमान है। 5 प्रतिशत अनुमानित वोट शेयर के साथ कांग्रेस एक सीमांत यानी मार्जिनल पार्टी बनी हुई है। अनुमानित 263 सीटों के साथ भाजपा आराम से बहुमत हासिल कर सकती है। हालांकि यह संख्या 2017 की तुलना में 62 कम है इसलिए, कुछ सत्ता विरोधी लहर कही जा सकती है। सर्वे में पाया गया है कि सपा 113 सीटों के साथ प्रमुख विपक्षी दल के रूप में उभरेगी। जबकि बसपा का वोट शेयर और सीटों की संख्या में नुकसान की उम्मीद है और उसे केवल 14 सीटें मिलने का अनुमान है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ राज्य में सबसे लोकप्रिय नेता के तौर पर उभरे हैं और सर्वे में शामिल 40 प्रतिशत लोगों ने उन्हें पसंदीदा मुख्य मंत्री के रूप में नामित किया है। सपा के अखिलेश यादव 28 प्रतिशत पुष्टि के साथ दूसरे सबसे लोकप्रिय नेता हैं पूर्व सीएम मायावती 15 प्रतिशत वोटिंग के साथ तीसरे स्थान पर हैं। दरअसल यूपी भाजपा का नेतृत्व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के रूप में एक ऐसा नेता कर रहा है, जो अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी से करीब 13 प्रतिशत लोकप्रियता रेटिंग अंक से आगे है। साथ ही, यूपी भाजपा लगभग 12 प्रतिशत वोट शेयर से निकटतम प्रतिद्वंद्वी एसपी से आगे नेतृत्व करती हुई दिखाई दे रही है इसलिए, भाजपा को उत्तर प्रदेश में लोकप्रिय नेतृत्व और मजबूत वोट बैंक का लाभ प्राप्त है। हांलाकि उत्तर प्रदेश में कई छोटी-छोटी पार्टियां भी जो अपनी-अपनी जातियों में प्रभाव रखती है और कुछ सीटों या क्षेत्रों में चुनाव को प्रभावित भी कर सकती हैं।

वहीं पंजाब की बात की जाए तो आम आदमी पार्टी के पंजाब में 55 सीट शेयर और 35 प्रतिशत वोट शेयर के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनने का अनुमान है। गुटों से घिरी कांग्रेस 29 प्रतिशत वोट शेयर और 42 सीट शेयर अनुमान के साथ दूसरे नंबर पर रह सकती है। जब यह सर्वे हुआ था उस समय तक पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने अपनी अलग पार्टी बनाने का ऐलान नहीं किया लेकिन अब पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह अपनी अलग राजनीतिक पार्टी के साथ चुनाव लड़ेंगे और नया गठबंधन बनाएंगे। किसानों के विरोध और अकाली दल के साथ गठबंधन के नुकसान से उत्पन्न गुस्से के कारण भाजपा की पंजाब इकाई हाल के दशकों में अपने सबसे खराब प्रदर्शन को देख रही है। पार्टी को मामूली वृद्धि जरूर मिल सकती है और उसे कुल मतों का 7 प्रतिशत हासिल हो सकता है।

पंजाब की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इकाई के प्रमुख अश्विनी शर्मा ने पंजाब विधानसभा चुनाव को लेकर बड़ा ऐलान किया है। अश्विनी शर्मा ने हाल ही में भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में कहा कि भाजपा पंजाब में होने वाले विधानसभा चुनाव में सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी। यदि पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने मिलकर कोई नया गठबंधन बनाया तो पंजाब की स्थिति पलट भी सकती है। सर्वे में नए पीसीसी अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू मतदाताओं के बीच अधिक लोकप्रिय के तौर पर नहीं देखे गए हैं, मुख्य मंत्री के रूप में उनकी लोकप्रियता संख्या (15 प्रतिशत) आप के भगवंत मान (16 प्रतिशत) से पीछे है। सिद्धू वर्तमान में पंजाब के नेतृत्व के सबसे बड़े 5 नेताओं में सबसे कम लोकप्रिय हैं। पंजाब में कांग्रेस के बड़े साहसिक दांव सिद्धू ने कोई ठोस लाभ नहीं दिखाया है। बल्कि इस कदम ने पार्टी को बांट दिया है। आम आदमी पार्टी को स्पष्ट रूप से किसान विरोध और सत्ता विरोधी लहर से फायदा हो रहा है लेकिन सीएम चेहरे की अनुपस्थिति आप के लिए अभी समस्या है। अकाली दल और बसपा का गठबंधन हो चुका है। इसलिए पंजाब में बहुकोणीय मुकाबले के आसार बन रहे हैं जो सर्वे के परिणाम से उलट हो सकते हैं।

उत्तराखंड की बात की जाए तो कम समय में ही अपने मुख्यमंत्रियों को बदलने की नीति का पालन करने के बावजूद, भाजपा का इस बार भी राज्य जीतने का अनुमान है। भाजपा को 43 प्रतिशत वोट शेयर और 46 सीटें जीतने का अनुमान है। कांग्रेस को अपनी स्थानीय इकाई द्वारा उत्साही लड़ाई के बावजूद 33 प्रतिशत वोट शेयर हासिल करने का अनुमान है। यह वोट शेयर 21 सीटों में तब्दील हो सकता है। भाजपा के इस आश्चर्यजनक प्रदर्शन का मुख्य कारण पहाड़ी राज्य में आप का उदय है। आप को 15 प्रतिशत वोट शेयर हासिल करने का अनुमान है और इस तरह कांग्रेस के रास्ते में आने वाले सत्ता विरोधी वोटों का एक बड़ा हिस्सा छीन लिया जाएगा। हालांकि आप के वोट ऑफ शेयर में इस वृद्धि के परिणामस्वरूप महत्त्वपूर्ण संख्या में सीटें नहीं हो सकती हैं, क्योंकि पार्टी को सर्वे में दो सीटें जीतने का अनुमान है। वैसे सर्वे के हिसाब से विडंबना यह है कि कांग्रेस को दूसरे स्थान पर रखा गया है, लेकिन उसके नेता मुख्यमंत्री की पसंद के रूप में सबसे लोकप्रिय नेता बने हुए हैं। हरीश रावत को राज्य के 31 प्रतिशत लोगों ने मुख्यमंत्री के तौर पर पसंद किया है। मौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी 22.5 प्रतिशत लोकप्रियता के साथ दूसरे स्थान पर हैं। भाजपा के अनिल बलूनी 19 प्रतिशत लोकप्रियता के साथ तीसरे स्थान पर हैं। आप के कर्नल कोठियाल उत्तराखंड के लगभग 10 प्रतिशत लोगों के लिए पसंदीदा मुख्यमंत्री उम्मीदवार हैं।

गोवा में भाजपा 39 प्रतिशत के अनुमानित वोट शेयर और 24 सीटों के सीट शेयर के साथ सरकार बनाने की स्थिति में दिखाई दे रही है। कांग्रेस, आप और तृणमूल कांग्रेस की मौजूदगी एक दूसरे को नुकसान पहुंचा रही है और इसका सीधा फायदा भाजपा को होता दिख रहा है क्योंकि भाजपा विरोधी मतों को बंटवारा होता दिख रहा है। मणिपुर में भाजपा गठबंधन 41 प्रतिशत वोट शेयर और 34 सीटों के साथ राज्य में जीत हासिल कर सकता है। यह महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह भारत के कई क्षेत्रों में सत्ता विरोधी लहर को मात देने की भाजपा की क्षमता की भौगोलिक विविधता का संकेत देता है। मणिपुर में कांग्रेस प्रमुख विपक्षी दल के अपने दर्जे पर कायम रह सकती है। पूर्वोत्तर भारत में भाजपा का सुनहरा दौर जारी रहने की उम्मीद की जा रही है। शेष भारत की तरह कांग्रेस नेतृत्व की कमी और विश्वसनीयता के संकट का सामना कर रही है। दूसरी ओर भाजपा अपने संगठन के बल पर चुनावी मोर्चे की तैयारी में जुट गई है। जैसा कि हाल में दिल्ली में हुई भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कार्यकर्ताओं को पांच राज्यों में आगामी चुनाव को लेकर मंत्र दिए। प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्ष, खासकर कांग्रेस पर परोक्ष निशाना साधते हुए कहा कि भाजपा किसी परिवार पर केंद्रित पार्टी नहीं है। सेवा, संकल्प व समर्पण इसके मूल्य हैं।

यही उसे दूसरी पार्टियों से अलग बनाता है। पार्टी को सामान्य आदमी के विश्वास का सेतु बनना चाहिए। उन्होंने जनता की सेवा को सबसे बड़ी पूजा बताया। वहीं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा ने उत्तर प्रदेश और पंजाब समेत पांच राज्यों में अगले साल की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनावों में पार्टी के पक्ष में माहौल तैयार करने और संगठन को मजबूत बनाने के लिए रविवार को कुछ लक्ष्य निर्धारित किए और दावा किया कि पार्टी पिछले सात सालों से केंद्र की सत्ता में है और पूरब से लेकर पश्चिम तथा उत्तर से लेकर दक्षिण तक कई राज्यों में उसकी सरकारें भी हैं लेकिन उसका उत्कर्ष आना अभी बाकी है। नड्डा ने अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में संगठन को मजबूत बनाने के लिए इस साल 25 दिसम्बर तक सभी मतदान केंद्रों में बूथ समितियों का गठन, पन्ना प्रमुखों की समिति का गठन करने का लक्ष्य निर्धारित किया।

बैठक के दूसरे सत्र में गोवा, उत्तराखंड, मणिपुर और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों और प्रदेश अध्यक्षों के द्वारा आने वाले समय में भाजपा चुनाव के सम्बंध में पूरा विषय रखा गया। बैठक में महंगाई व तेल के दामों पर भी चर्चा हुई। मोदी सरकार और भाजपा शासित राज्यों ने तेल के दामों में कटौती कर लोगों को राहत देने काम किया है। राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने एकतरफा संदेश यह भी दिया कि पार्टी को कोरोना संकट के दौर में तमाम चुनौतियों के बावजूद 100 करोड़ से अधिक टीकाकरण और 80 करोड़ लोगों के लिए मुफ्त राशन योजना को बड़ी उपलब्धि के रूप में जनता के सामने प्रदर्शित करना चाहिए और यह आगामी चुनावों में काफी बड़ा मुद्दा हो सकता है। इसके साथ ही पार्टी ने पीएम किसान सम्मान निधि के माध्यम से लाखों किसानों को आर्थिक मदद दी है। इससे विधानसभा चुनावों में किसानों का पार्टी पर भरोसा बनेगा। भाजपा कार्यकारिणी की बैठक में 18 मुद्दों पर पारित राजनीतिक प्रस्ताव में पश्चिम बंगाल में हो रही राजनीतिक हिंसा की आलोचना की गई है। इसके अलावा किसानों की मदद पर सरकार की तारीफ की गई है। वैसे पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले अगले साल एक फरवरी को केंद्रीय बजट और उससे पहले भी कई महत्त्वपूर्ण फैसले चुनाव की दिशा बदल सकते हैं या प्रभावित कर सकते है। कुल मिलाकर सर्वे ही नहीं जमीनी स्तर पर भी भाजपा अपने विरोधियों पर भारी दिख रही है।

दूसरी ओर भाजपा विरोधी दल जातीय और धार्मिक समीकरणों के सहारे भाजपा को घेरने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। दरअसल उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ओबीसी मतदाताओं को लुभाने के लिए जातीय जनगणना नहीं कराने के फैसले को लेकर भाजपा पर निशाना साध रही है, तो वहीं सपा मुखिया के साथ-साथ असदुद्दीन ओवैसी भी मुस्लिमों की सुरक्षा और हितों का मुद्दा उठाकर भाजपा सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। उत्तराखंड में हरीश रावत मुसलमानों के साथ-साथ दलितों को भी साधने की कोशिश कर रहे हैं। अन्य चुनावी राज्यों में भी विरोधी दल भाजपा को घेरने के लिए इसी तरह की गोलबंदी करने का प्रयास कर रहे हैं। विरोधी दलों की इस जातीय और धार्मिक गोलबंदी को तोड़ने के लिए भाजपा ने केंद्र सरकार द्वारा गरीबों के कल्याण के लिए चलाई जा रही तमाम योजनाओं का सहारा लेने की रणनीति बनाई है।

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