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मराठी के बाद उठी उर्दू बोर्ड की मांग

मराठी के बाद उठी उर्दू बोर्ड की मांग

by हिंदी विवेक
in उद्योग, ट्रेंडींग, राजनीति, सामाजिक
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हम किसी दुकान को उसके नाम से ही पहचानते हैं लेकिन उस दुकान का नाम किस भाषा में लिखा हुआ है हमें उससे कोई सरोकार नहीं होता है और होना भी नहीं चाहिए क्योंकि अलग अलग राज्यों की अपनी भाषा होती है और सभी को अपनी भाषा का इस्तेमाल करने का पूरा अधिकार होता है लेकिन हाल ही में महाराष्ट्र सरकार की तरफ से यह आदेश जारी किया गया है कि अब महाराष्ट्र की सभी दुकानों के बोर्ड मराठी भाषा में ही होने चाहिए हालांकि यह कोई नया आदेश नहीं है पुरानी सरकार के आदेश को कुछ सुधारों के बाद फिर से लागू किया जा रहा है। उद्धव सरकार के इस आदेश के बाद से अब व्यापारी वर्ग में विरोध की भी खबर आ रही है। व्यापारी वर्ग सरकार के इस फैसले से नाखुश है क्योंकि इसे ऐसे समय में लागू किया जा रहा है जब कोविड की मार से सभी लोग परेशान हैं ऐसे में बोर्ड बदलने का एक और खर्च व्यापारी समुदाय नहीं उठाना चाहता है।

दरअसल वर्ष 2017 में देवेंद्र फडणवीस सरकार के दौरान ही यह फैसला लागू हुआ था कि राज्य के सभी दुकानदार अपनी दुकान का बोर्ड मराठी में लगाएंगे लेकिन यह कानून पूरी तरह से लागू नहीं हो सका और जल्दी ही ठंडे बस्ते में चला गया। कोरोना काल के दौरान इस पर विशेष ध्यान भी नहीं दिया गया लेकिन अब फिर से मराठी बोर्ड का जिन्न बाहर आ गया है और इस बार सरकार इसे पूरी तरह से लागू करने के मूड में नजर आ रही है। सरकार ने अपने फैसले यह भी साफ किया है कि दुकान के बोर्ड पर बड़े व बोल्ड अक्षरों में मराठी में ही नाम लिखा होगा जबकि इससे पहले कुछ दुकानदारों ने बोर्ड को अपनी मनपसंद भाषा में किया था और सरकारी आदेश के मुताबिक छोटा सा मराठी नाम भी लिखा था। इससे पहले छोटे व्यापारियों को इस आदेश में छूट मिली हुई थी लेकिन अब सरकार ने इसे सभी के लिए लागू कर दिया है। सरकार ने इस बार यह मूड बना लिया है कि अब राज्य की सभी दुकानों के बोर्ड मराठी में ही होंगे।

हालांकि सरकार का यह फैसला किस आधार पर लिया गया है यह पूरी तरह से साफ नहीं हो पाया है। महाराष्ट्र की मौजूदा सरकार आखिर इस फैसले को किस फायदे के लिए देख रही है। महाराष्ट्र में बाहरी वोटरो का भी प्रतिशत काफी अधिक है और उन्होंने भी सरकार को चुनने में बड़ा योगदान दिया है फिर ऐसे में सरकार को सभी भाषा के लोगों के बारे में सोचना चाहिए। सरकार को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि मुंबई सहित महाराष्ट्र के तमाम शहर ऐसे हैं जहां बाहरी लोगों का आना जाना अधिक होता है। मुंबई को आर्थिक राजधानी भी कहा जाता है इसलिए यहां व्यवसाय के लिए भी लोगों का आगमन होता रहता है ऐसे में अगर सभी बोर्ड मराठी भाषा मे लिखे होंगे तो बाहरी लोगों को बड़ी परेशानी से गुजरना पड़ सकता है। गैर मराठी भाषा के लिए दुकान ढूंढना एक टेढ़ी खीर साबित होगी। अब अगर सभी राज्य सरकारें यह कानून लागू करती है तो अपने ही देश में घूमना और व्यापार करना मुश्किल हो जायेगा जब भी कोई गैर हिन्दी भाषा वाले राज्यों में जाएगा तो उसे मेडिकल स्टोर और जनरल स्टोर में कोई फर्क नहीं समझ आयेगा और उसे दुकान वाले से जाकर ही पूछना होगा कि इस दुकान में क्या मिलता है।

 

 

महाराष्ट्र सरकार के फैसला अभी पूरी तरह से राज्य में लागू भी नहीं हुआ कि ‘उर्दू मरकज’ नामक संस्था ने राज्य के कुछ हिस्सों के लिए उर्दू बोर्ड की मांग कर दी है। उर्दू मरकज संस्था की तरफ से मुस्लिम बहुल इलाके के दुकानदारों से अपील की गयी है कि वह अपनी दुकान का बोर्ड उर्दू में लगाए। उर्दू मरकज की तरफ से सरकार से भी अपील की गयी है कि जिन इलाकों में मुस्लिमों की आबादी अधिक है वहां उर्दू भाषा में बोर्ड लगाने की इजाजत दी जाए। देश में उर्दू भाषा का महत्व पहले से चला आ रहा है ऐसे में उसे पूरी तरह से समाप्त नहीं किया जा सकता है। अभी तो सिर्फ उर्दू भाषा में बोर्ड की मांग उठी है आने वाले समय में और भी भाषा के आधार पर इसकी मांग उठ सकती है इसलिए सरकार को इस पर विचार करना चाहिए और देश को भाषा या फिर किसी भी दूसरे आधार पर बांटने से बचना चाहिए।

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