बिहार का पुराना गौरव लौटा दो

बिहार का अतीत बेहद गौरवशाली रहा है। मगर, आधुनिक भारत की जब हम बात करते हैं, तो बिहार की चर्चा एक पिछड़े प्रदेश के तौर पर होती है। जो बिहार कभी राजनीति, ज्ञान, धर्म, अध्यात्म और शिक्षा के क्षेत्र में न सिर्फ भारतवर्ष में बल्कि विश्व में अग्रणी रहा, वह बिहार आज हर क्षेत्र में पिछड़ा है। ऐसे में बरबस यह सवाल उठता है, आखिर क्यों?

बिहार की बर्बादी में मुस्लिम आक्रमणकारियों से लेकर अंग्रेजों तक ने तो बड़ी भूमिका निभाई ही, आजादी के बाद भारत और बिहार के नेताओं का योगदान भी कम नहीं रहा। शहरीकरण और औद्योगीकरण के माध्यम से देश के विकास का स्वप्न देखने वाले नेताओं ने शासन के लिए बिहार के मगध साम्राज्य के महान सम्राट अशोक को रोल मॉडल माना और अशोक स्तंभ और अशोक चक्र को भारत के प्रतीक चिह्न के तौर पर तो अपनाया, मगर विकास की यात्रा में बिहार को हमेशा बैक सीट के लायक ही समझा। यह बिहार की उर्वरा की ही बात है कि आर्थिक मोर्चेपर बेहद पिछड़ जाने के बावजूद बिहार के युवा अपनी मेहनत और शिक्षा के बल पर विभिन्न क्षेत्रों में उच्च पद हासिल करने में लगातार कामयाब होते रहे हैं।

बहरहाल, अतीत से निकलकर आज की भी बात करें, तो बिहार संभावनाओं से भरी भूमि है। मिट्टी और पानी बिहार की सबसे बड़ी ताकत है। बिहार की मिट्टी असीम उर्वर संभावनाओं से भरी है, जो कि धान, गेहूं, दलहन-तिलहन, सब्जियों और विभिन्न प्रकार के फलों के लिए बेहद उत्तम है। पानी की भी यहां कोई कमी नहीं है- चाहे पीने के पानी की बात हो या सिंचाई के लिए पानी की। गंगा समेत छोटी-बड़ी सैंकड़ों नदियों का प्रदेश में जाल बिछा हुआ है। मगर, उचित जल प्रबंधन के अभाव से वरदान स्वरूप यही नदियां बार-बार विनाश का रूप धर लेती हैं। बारिश के मौसम में बाढ़ बिहार की स्थायी और बेहद गंभीर समस्या बनी हुई है। कोशी नदी को तो ‘बिहार का अभिशाप’ संबोधित कर बच्चों तक को पाठ्यक्रम की किताबों में पाठ के तौर पर पढ़ाया जाता है। सिर्फ कोशी ही नहीं, छोटी-छोटी नदियां भी बाढ़ का कारण बन जाती हैं और प्राय: किसानों का काफी नुकसान कर जाती हैं। उचित जल प्रबंधन के अभाव और पुराने तालाबों-खत्तों-पाइनों को स्थानीय किसानों द्वार कब्जा कर खेत बना लेने की नीयत ने जल संग्रह के पुराने साधनों को भी खत्म कर दिया है। फलस्वरूप, नदियों में पानी की अधिकता होने पर बाढ़ और पानी की कमी की स्थिति में सूखे की समस्या से किसानों को जूझना पड़ता है। नतीजा है, कृषि पूर्णतया भगवान भरोसे और नुकसान का सौदा बन गई है। किसान लगातार कृषि से विमुख होते जा रहे हैं। वे अपनी अगली पीढ़ी को हर कीमत पर खेती से दूर रखना चाहते हैं। बच्चों को ऊंची शिक्षा या कहें अच्छी नौकरी लायक शिक्षा दिलाने के लिए पुश्तैनी खेत बेच देने में भी कोई बुराई नहीं देखते। बड़े और मंझोले किस्म के लगभग किसान खेती से पलायन कर चुके हैं।

राज्य व केन्द्र सरकार चाहे तो यह स्थिति बदल सकती हैं। तमाम परेशानियों के बावजूद आज भी, बिहार कृषि प्रधान राज्य है। प्रदेश की ७० प्रतिशत से अधिक आबादी आज भी कृषि पर आश्रित है। ऐसे में किसानों को कैसे अधिक से अधिक आय हो, इस पर गंभीरता से विचार करके व्यवस्था बनाए जाने की ज़रूरत है। सही जल प्रबंधन के अभाव में अभिशाप बन चुकी नदियों को वरदान में बदला जा सकता है। कोशी आदि बड़ी नदियों पर बांध बनाकर बाढ़ की समस्या से तो निजात पाया ही जा सकता है, अच्छी खासी मात्रा में बिजली का उत्पादन भी किया जा सकता है। इसके अलावा किसानों को कृषि उत्पादनों का बाज़ार से मुनाफा सहित मूल्य मिले, इसके लिए सही व्यवस्था करनी होगी। प्रोसेस्ड फूड के बढ़ते बाजार की वजह से फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री की यहां काफी संभावनाएं हैं। फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री को बढ़ावा मिलने से यहां के युवाओं को रोजगार तो मिलेगा ही, इसमें किसानों को भागीदार बनाकर उनकी आर्थिक स्थिति को भी संवारा जा सकता है। और, जो किसान खेतों से विमुख होते जा रहे हैं, वे वापस खुशी-खुशी खेती में दिलचस्पी ले सकते हैं

बिहार का दूसरी बड़ी संभावनाओं वाला क्षेत्र है पर्यटन। प्राचीन काल से बिहार ज्ञान-विज्ञान, राजनीति और धर्म की भूमि रहा है। नालंदा, विक्रमशिला और ओदंतपुरी जैसे विश्वविद्यालयों के माध्यम से बिहार की भूमि ने दुनिया में जिस तरह ज्ञान का प्रकाश फैलाया, वह अद्वितीय है। जीवक, आर्यभट्ट, पतंजलि और विद्यापति जैसे विद्वान लेखकों तथा बिंबिसार, अजातशत्रु, चन्द्रगुप्त मौर्य और सम्राट अशोक जैसे महान शासकों-सम्राटों की जन्मभूमि है बिहार। दुनिया के तीन महान धर्मों -जैन, बौद्ध और सिखों की पवित्र भूमि है बिहार। इसके साथ ही, गया में फल्गु नदी हिंदुओं के पितरों की मोक्षदायिनी नदी के रूप में सारे हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए आस्था और श्रद्धा का केन्द्र है। जापान की मदद की वजह से बिहार बौद्ध पर्यटन स्थल के रूप में थोड़ा बहुत चर्चित तो हुआ है, मगर विडंबना है कि हमारी सरकारों ने बिहार में पर्यटन को बढ़ावा देने के ख्याल से आज तक कोई ठोस योजना बनाने में दिलचस्पी तक नहीं दिखाई है। हालांकि पटना में बुद्ध पार्क बनाकर बिहार सरकार ने एक अच्छी शुरूआत की है, मगर यदि सरकार चाहें तो अतीत के गौरव को सहेज कर, उन्हें स्मृति स्थलों में ढाल कर बिहार को पर्यटन का बड़ा केन्द्र बना सकती है। बिहार बौद्ध, जैन, सिख और हिंदू धर्मावलंबियों के लिए प्रमुख धार्मिक पर्यटन केन्द्र तो है ही, ऐतिहासिक स्थलों में दिलचस्पी रखने वाले पर्यटकों के लिए भी यह बड़े आकर्षण का केन्द्र बन सकता है

इनके अलावा बिहार में स्वास्थ्य पर्यटने को भी बड़ी सहजता से विकसित किया जा सकता है। बिहार के युवाओं में शिक्षा के प्रति सब से अधिक दिलचस्पी होने से डॉक्टरों की यहां भारी संख्या है। दूसरे राज्यों और बड़े शहरों की तुलना में यहां इलाज सस्ता भी है। सरकार पंचसितारा किस्म के अस्पतालों को शुरू करने में मदद कर स्वास्थ्य लाभ के बहाने आराम करने की मानसिकता से उपजे बाजार को बढ़ावा दे सकती है।

बिहार में ‘एजुकेशन हब’ की भी बड़ी संभावना है। कृषि प्रधान राज्य होने और कृषि के गर्त में चले जाने की वजह से पिछले दो-तीन दशकों से बिहार के युवाओं और उनके अभिभावकों की नज़र सिर्फ और सिर्फ शिक्षा की तरफ है, इस वजह से बिहार में नौकरी पानेवाली शिक्षा और कोचिंग सेंटरों का बाजार खूब बढ़ा है। राजधानी पटना की मुख्य सड़कों से लेकर गली-मोहल्लों तक में कोचिंग सेंटर खुल गए हैं और इनके प्रचार से राजधानी पटी हुई है। शाम में फुटपाथ पर भी प्रतियोगी परीक्षाओं की किताबें बेचनेवालों के पास छात्रों की भारी भीड़ होती है। ऐसा लगता है, मानो पूरे शहर में कोई मेला चल रहा हो। बिहार छोटे-छोटे शहरों में भी यही हाल है। इस वजह से बिहार में अच्छे शिक्षकों की संख्या भी बढ़ी है। सुपर थर्टी के मेंटौर आनन्द कुमार की प्रसिद्धि आज न सिर्फ बिहार के बाहर पूरे भारतवर्ष, बल्कि दुनिया के दूसरे देशों में भी गूंज रही है। सरकार शिक्षा के लिए ज़रूरी वातावरण तैयार कर और शहर में आनेवाले शिक्षार्थियों को जरूरी नागरिक सुविधाएं देकर शिक्षा के बढ़ते बाजार को रोजगार की बड़ी संभावना के तौर पर विकसित कर सकती है। वैसे नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित किया जाना बेशक बड़ी रचनात्मक पहल है। लेकिन, राजधानी की बुनियादी सुविधाओं- बिजली, सड़क और कानून व्यवस्था को सुधारने की चुनौती का सामना करने की हिम्मत दिखाना अभी शेष है।

दुनिया चाहे बढ़ती जनसंख्या को अभिशाप मानती रही है, मगर चीन ने दुनिया के बाजार पर एकाधिकार सा प्राप्त कर दुनिया को सोचने पर बाध्य कर दिया है कि जनसंख्या को वरदान में बदला जा सकता है। बिहार की आबादी भी भूमि के क्षेत्रफल की तुलना में पूरे देश में सबसे अधिक है। अगर सरकार अपनी नीति और नीयत को विकासवादी बना लें तो बिहार के कुशल-अकुशल युवाओं को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराकर देश-विदेश के बाजार में बिहार की महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज करा सकती है।

इस प्रकार हम पाते हैं कि बिहार में संभावनाओं की कोई कमी नहीं है, मगर सरकार की अदूरदर्शी नीतियों और स्वार्थपरक राजनीतिक दृष्टि के कारण विकास की तमाम संभावनाओं के बावजूद बिहार पिछड़ा है। पड़ोसियों और मेहमानों का पेट भरना तो दूर अपनों का पेट भरने में भी असमर्थ है, और बिहार के सपूत देश-विदेश पलायन करने और बाहरी होने का अपमानदंश सहने को मजबूर हैं।

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