दिनांक 30 अक्टूबर,, 2022 को गुजरात के मोरबी में 100 बरसों से अधिक पुराने एक पुल के टूटने से 135 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी और बड़ी संख्या में लोग आहत भी हुए। हालांकि, इस पुल की समय-समय पर जांच और मरम्मत की जाती थी, और दुर्घटना से कुछ दिनों पहले ही में मरम्मत के बाद इसे पुनः खोला गया था। फिर भी, किसी न किसी प्रकार की चूक के कारण यह पुल एक बड़े हादसे का शिकार हो गया। कोताही किस स्तर पर हुई यह जांच का विषय है, परंतु, काश! कोई ऐसी प्रौद्योगिकी होती जिससे जर्जर और कमजोर पुलों को गिरने से पहले सूचना मिल पाती। विश्व की प्रसिद्ध विज्ञान पत्रिका ’न्यु साइंटिस्ट’ के 2 नवंबर, 2022 के ताज़ा अंक में मोबाइल स्मार्टफोन पर आधारित एक ऐसी प्रौद्योगिकी के विकसित होने की जानकारी दी गई है जिसके माध्यम से नए अथवा पुराने किसी भी पुल के टूटने, गिरने अथवा ढहने से पहले संकेत मिल सकेंगे।
पुलों की मजबूती का मूल्यांकन बहुधा विशेषज्ञ इंजीनियरों अथवा प्रशिक्षित तकनीशियनों द्वारा देखकर किया जाता है। कई तथ्यों पर आधारित इस जांच प्रक्रिया में समय अधिक लगता है। ’न्यू साइंटिस्ट’ नामक वैज्ञानिक जर्नल के ताजा अंक में प्रकाशित शोधलेख के अनुसार संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यूयॉर्क स्थित यूनाइटेड स्टेट्स मिलट्री एकेडमी के थॉमस मैटराज़्जो और उनके सहयोगियों ने पुल के कंपन अर्थात मोडल फ्रिक्वेंसीज़ (आवृतियों) की माप के लिए एक प्रणाली विकसित की है, जिससे मोबाइल स्मार्टफोन से पुल पर आवागमन के आंकड़ों का प्रयोग करते हुए पुल की मजबूती पर निगरानी रखी जा सकेगी। मैटराज़्जो के अनुसार बड़ी संख्या में आवश्यक आंकड़ों को एकत्र करने के लिए किसी अतिरिक्त अथवा विशेष सेंसर्स को खरीदने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
इसके लिए उन शोधकर्ताओं ने स्मार्टफोन में उपलब्ध एक ऐप के माध्यम से पुलों के ऊपर से गुजरने से जुड़े आंकड़े एकत्र किए। उन लोगों ने फोन के एक्सेलेरोमीटर्स से जीपीएस लोकेशन के आंकड़ों और सूचना का प्रयोग किया, जिससे फोन में हुई किसी भी प्रकार की छोटी से छोटी हलचल की जानकारी मिल सकती है।
यह अध्ययन तीन भागों में विभाजित किया गया था : पहले अध्ययन में शोधकर्ताओं ने अपनी कार में दो आईफोन स्थापित किए और सैन फ्रांसिस्को में स्थित गोल्डन गेट ब्रिज पर कुल 100 बार कार की सवारी किए। दूसरे अध्ययन में उन्होंने उबर टैक्सी के चालकों से गोल्डन ग्रेट ब्रिज पर दैनिक आवागमन के दौरान 70 बार आने जाने से संबंधित आंकड़े प्राप्त किए। उन शोधकर्ताओं ने इटली के सियाम्पिनो में कंक्रीट से निर्मित एक छोटे पुल पर एंड्राइड स्मार्टफोन पर 250 बार गुजरने से जुड़े आंकड़ों का भी प्रयोग किया। इन तीनों अध्ययनों में प्राप्त आंकड़ों में भिन्नता थी। एक ओर जहां गोल्डन गेट ब्रिज पर सावधानीपूर्ण नियंत्रित आंकड़े लिए गए थे, वही उबर टैक्सी से प्राप्त आंकड़े मुख्य रूप से अनियंत्रित आवागमन पर आधारित थे।
शोधकर्ताओं ने उन तीनों स्थानों से मिले आंकड़ों से अत्यंत एक्युरेट स्टैटिक सेंसर्स द्वारा पुलों पर से गुजरने से संबंधित कंपन अर्थात मोडल आवृत्तियों/फ्रीक्वेंसीज़ की माप की। मैटराज़्जो के अनुसार वास्तव में यह एक चिरस्मरणीय परिणाम है, क्योंकि इसके माध्यम से इन महत्वपूर्ण डायनामिक विशेषताओं की माप के लिए सस्ते, पूर्व में प्राप्त आंकड़ों का प्रयोग किया जा सकता है। इस निगरानी में उबर जैसे टैक्सी ऐप्स से प्राप्त मौजूदा आंकड़ों को भी शामिल किया जा सकता है।
हालांकि, नए-पुराने किसी भी प्रकार के पुलों की मजबूती का निर्धारण केवल स्मार्टफोन से प्राप्त आंकड़ों पर आधारित इस तकनीक पर नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि, देखकर जांच करना सहायक होगा। शोधकर्ताओं के अनुसार इस विधि से हजारों पुलों की मजबूती अथवा जर्जर्ता ज्ञात की जा सकती है, उसके आधार पर विशेषज्ञ तकनीशियन को भेजकर निर्णय लिया जा सकता है। आज दुनिया के सभी भागों में स्मार्टफोन की उपलब्धता को देखते हुए इसके आंकड़ों के आधार पर किसी पुराने पुल की समय रहते मरम्मत करके उसके जीवन काल को कम से कम 2 वर्षों तक बढ़ाया जा सकेगा। इसी आधार पर नए पुलों का भी यथोचित समय पर उपयुक्त रखरखाव सुनिश्चित कर उनका जीवनकाल भी लगभग 15 वर्षों तक बढ़ाया जा सकेगा।
वैसे तो शासन-प्रशासन द्वारा समय-समय पर पुराने पुलों की मजबूती विशेषज्ञ इंजीनियरों, तकनीशियनों द्वारा निर्धारित की जाती है, फिर भी लापरवाही और सटीक जानकारी नहीं मिल पाने के कारण कभी-कभी चूक हो जाने के कारण समय पर उनकी मरम्मत नहीं हो पाती। जिसके कारण मोरबी जैसी दुर्घटनाओं के चलते बड़ी संख्या में मौतें होती हैं। आशा की जाती है कि इन शोधकर्ताओं द्वारा स्मार्टफोन के माध्यम से विकसित इस तकनीक से नए और पुराने विशेषतया जोखिम भरे जर्जर पुलों की कंपन अर्थात मोडल फ्रीक्वेंसीज़ की वास्तविक स्थिति की पहचान हो जाने और समय पर मरम्मत करने से उन्हें दुर्घटनाग्रस्त होने से बचाने के साथ-साथ बड़ी संख्या में लोगों के जीवन को बचाया जा सकेगा। अतः, इस तकनीक को और विकसित करने तथा दुनिया भर में सुलभ बनाने की आवश्यकता है।
– डॉ. कृष्णा नन्द पाण्डेय