हम ‘छात्र प्रतिज्ञा’ भूल तो नहीं रहे?

आपको याद है बचपन में पाठशाला में प्रार्थना होने के पहले या बाद में अक्सर हम छात्र प्रतिज्ञा बोलते थे | हम सभी को हमारे बचपन में जो कुछ दो चार चीजें रटीं थीं, उनमें से एक थी छात्र प्रतिज्ञा |

“भारत हमारा देश है | हम सब भारतवासी भाई बहन हैं | हमें हमारा देश प्राणों से भी प्यारा है | इसकी समृद्धी, विविधता और संस्कृतिपर हमें गर्व है | हम इसके सुयोग्य अधिकारी बनने का प्रयत्न सदैव करते रहेंगे | हम अपने माता पिता, शिक्षकों और गुरुजनों का आदर करेंगे | और सबके साथ शिष्टका का व्यवहार करेंगे | हम अपने देश और देशवासियों के प्रति वफादार रहने की प्रतिज्ञा करते हैं | उनके कल्याण और संस्कृति में ही हमारा सुख निहित है | जय हिंद|”

ये होती थी छात्र प्रतिज्ञा जो बचपन से ही हम पर देशप्रेम और भाईचारे के संस्कार करती थी | जिसने हमेशा हमें यह सिखाया कि सभी देशवासी हमारे भाई बहन हैं, और देश के कल्याण और संस्कृति में ही हमारा सुख निहीत है | लेकिन आज के समय में क्या हम ये मायने भूल रहे हैं ? क्यों आज के समय में हम बचपन में मिली इस शिक्षा को अनदेखा कर रहे हैं, या फिर भूल चुके हैं ?

छात्र प्रतिज्ञा भारदेश के प्रति निष्ठा की शपथ है | यह प्रतिज्ञा देश के नागरिकों में एकता और राष्ट्रवाद बनाए रखने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है | भारत में लगभग सभी भाषाओं की पाठ्यपुस्तकों में पहले पन्ने पर यह छपी होती है, और पाठशाला में इसका नियमित पठन भी होता है | स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस तथा सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी इसका पठन किया जाता है | लेकिन यह प्रतिज्ञा केवल इस पठन तक ही सीमित नहीं है, वरन यह भारत में हमारे जीने का आधार और हमारे वर्तन का आधार होनी चाहिये | जो कि कुछ समय पहले तक होता भी था, लेकिन अब शायद समय थोडा बदला है, और इस छात्र प्रतिज्ञा के मायने भी |

जेएनयू में घटित घटना का उदाहरण ले लीजिए, “भारत तेरे टुकडे होंगे इंशाहअल्लाह इंशाहअल्लाह” कहने वाले भी विद्यार्थी ही थे, जिन्होंने अपने बचपन में पाठशाला में रोज “भारत हमारा देश है, हम सब भारतीय भाई बहन है” रोज कहा होगा | रटा होगा | लेकिन सामाजक कंटकों के ब्रेनव्हॉश के चलते आज उनके मुँह में “जय हिंद” या “भारत माता की जय” ना होकर, “भारत तेरे टुकडे होंगे” शब्द हैं, और यह एक बहुत बडी चिंता का विषय है |

हमारी यह छात्र प्रतिज्ञा सर्वप्रथम पिदिमारी वेंकट सुब्बाराव द्वारा तेलगु में १९६२ में लिखी गई | इसे पहली बार १९६३ में विशाखापट्टनम के एक विद्यालय में सार्वजनिक तौर पर पढा गया | बाद में देश की विभिन्न भाषाओं में इसका अनपवाद किया गया | और आज यह हमारे सार्वजनिक जीवन का आधार है |

समय के साथ पाठशाला, पाठ्यपुस्तकों में काफी परिवर्तन हुए | लेकिन छात्र प्रतिज्ञा हमेशा से ही हमारे शालेय जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही है | कहते हैं, बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, उन्हें जो आकार दिया जाए वे उसमें ढल जाते हैं | छात्र प्रतिज्ञा के कारण ये कच्ची मिट्टी के घडे, मानसिक रूप से परिपक्व होते हैं | और इसके एक एक शब्द का अर्थ समझने पर वे देश के और देशवासियों के और करीब आते हैं | लेकिन धीरे धीरे समाज में फैल रहे इस धर्म और जाती के आधार पर हो रहे भेदभाव और ‘लव्ह जिहाद’ और ‘धार्मिक कट्टरता’ जैसी बुराईयों से जन्मी नफरत ने कहीं ना कहीं हमारी इस प्रतिज्ञा को ठेस पँहुचाई है | और आज हम इसके मायने भूलते चले जा रहे हैं |

तो क्या किया जाए कि ये प्रतिज्ञा और इसमें निहीत भावनाएँ आखिरतक हमारे साथ रहें ?

शुरुआत अपने घर से करना आवश्यक है | छात्र प्रतिज्ञा केवल एक प्रतिज्ञा या रटने की रचना मात्र नहीं है, तो इस प्रतिज्ञा के एक एक शब्द का अर्थ घर के बच्चों को आप समझाएँ, उन तक इस प्रतिज्ञा में निहीत भावनाएँ उनके शब्दों में पँहुचाए | साथ ही उन्हें इसका महत्व भी समझाएँ | शुरुआत घर से होने पर, ये बच्चे बडे होने पर भी बहकावे में नहीं आते | राष्ट्रप्रेम घर से शुरु होता है | बच्चे बडों का अनुकरण करते हैं | यदि इस प्रतिज्ञा के महत्व का पालन हम बडे अपने अपने घरों में करेंगे, तो बच्चे भी इसका अनुकरण करते हुए आखिरतक इस प्रतिज्ञा को अपने से बांधे रखेंगे |

हमें यह विश्वास रखना आवश्यक है कि यह प्रतिज्ञा हर काल के लिये सुसंगत है | और हमारी परवरिश का एक अहम हिस्सा है, जिसे हमें आखिर तक अपने साथ रखना है | तभी हमारा यह राष्ट्र और अधिक बलशाली होगा, और धार्मिक कट्टरता का बलि का बकरा बनने से बचेगा |

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