चुनौतियों के बीच जी-20 का नेतृत्व 

निरंतर गहराते भू-राजनीतिक तनाव, आर्थिक मंदी की आहट तथा बढ़ती ऊर्जा की कीमतें व ऊर्जा सप्लाई पर प्रतिबंधों जैसी चुनौतियों के बीच एक दिसंबर 2022 से भारत जी-20 की मेजबानी करने जा रहा है। वर्तमान में संपूर्ण विश्व दो ध्रुवों में बटकर संघर्षों की ओर अग्रसर है, परन्तु भारत किसी पक्ष में न होकर शांतिपूर्ण समाधान के लिये कूटनीतिक प्रयास व संवाद का पक्षधर रहा है। सितम्बर 2022 में उज़्बेकिस्तान के समरकंद में हुई शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में भारत ने रूस से स्पष्ट कह दिया था कि आज का युग, युद्ध का नहीं है। ऐसे समय में जब संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्था विश्व की गंभीर समस्याओं को सुलझाने में निरर्थक साबित हुई है, तब जी-20 की जिम्मेदारी बढ़ जाती है, जो दुनिया का सबसे बड़ा और शक्तिशाली आर्थिक संगठन है। इसमें विश्व के विकसित और विकासशील अर्थव्यवस्था वाले 19 देश और यूरोपीय यूनियन जैसे देशों का संघ सम्मिलित हैं। इसमें अर्जेन्टीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, दक्षिण कोरिया, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्कीये, ब्रिटेन व अमेरिका हैं। ये देश विश्व की कुल जीडीपी का 80 प्रतिशत, जनसंख्या लगभग 67 प्रतिशत हैं तथा क्षेत्रफल का लगभग 50 प्रतिशत के भागीदार हैं।  ग-20
इस समय विश्व चुनौती पूर्ण परिस्थितियों से गुजर रहा है, जिसमें रूस-यूक्रेन युद्ध से विश्व का आर्थिक ढांचा प्रभावित हुआ है। रूस-यूक्रेन युद्ध को 08 महीने बीत जाने के बाद भी जंग जारी है। चीन भारत के विभिन्न हिस्सों पर कब्जे कर अपने विकास के मार्ग को खोल कर वैश्विक महाशक्ति के शीर्ष पर स्थापित होना चाहता है। साथ ही वन चाइना पॉलिसी के बहाने ताइवान पर कब्जे कर व्यापारिक मार्गों को नियंत्रित करना चाहता है। कश्मीर मसले पर पाकिस्तान के साथ तुर्कीये भी कई बार बयान दे चुका हैं। पाक-अधिकृत कश्मीर में चीन का हित निहित है, साथ ही तिब्बत पर चीन के कब्जे के कारण तिब्बतियों की भावनाओं का भी ध्यान रखना भारत के लिए चुनौती पूर्ण होगा। इसके साथ ही सर्दियों में यूरोप में भारी ऊर्जा संकट, गेहूं की पैदावार व उसके निर्यात का संकट, जर्मनी के पावर प्लांट की स्थिति के साथ ही वर्ष 2008 के बाद पुन आर्थिक मंदी आने की आसार के बीच भारत विश्व की सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था के साथ जी-20 का नेतृत्व मिलना अनेक चुनौतियों के साथ खुद को साबित करने का एक अवसर है। एक तरफ जहां विश्व की महाशक्तियां अपनी भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए राष्ट्रों की संप्रभुता को चोट कर रही है, वही भारत शांति और विकास की गुहार लगा रहा है।
बाली में आयोजित 15 से 16 नवम्बर 2022 को शिखर सम्मेलन में जी-20 देशों ने यूक्रेन युद्ध को तत्काल खत्म करने का आह्वान किया था तथा रूस और यूक्रेन युद्ध को लेकर सभी एकमत नहीं थे। जी-7 के देश यूक्रेन में रूस के आक्रमण पर पूरा समय केन्द्रित करना चाहते थे। इस तनाव पूर्ण स्थिति को सुलझाने और आम सहमति बनाने में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मंत्र ‘आज का दौर युद्ध का नहीं है’ ही जी-20 देशों को एक साथ लाने का आधार बनी और बैठक के बाद जारी घोषणापत्र में इस बयान को प्रमुखता से जगह भी दी गई। भारत अपनी सकारात्मक और रचनात्मक दृष्टिकोण से सर्वसम्मति से समाधान देने वाले देश के रूप में विश्व पटल पर उभरकर आया है।
इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो ने आधिकारिक रूप से भारत को जी-20 नेतृत्व सौंप दिया है तथा वर्ष 2023 में 09 व 10 सितम्बर को नई दिल्ली में शिखर सम्मेलन होना है। भारत के नेतृत्व में जी-20 विश्व समुदाय से धन शोधन और आतंक के वित्तपोषण से प्रभावी रूप से निपटने के प्रयास के साथ सार्वजनिक निवेश को बढ़ावा देने और बहुपक्षीय व्यापार को मजबूत करने की चुनौतियां है। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण कमजोर हुई वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करने, हरित निवेश, खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा देने, कुपोषण और भूख से मौतों को रोकने के लिए कृषि व खाद्य व्यापार नियमों में सुधार जैसे महत्वपूर्ण विषयों के साथ जलवायु परिवर्तन की चुनौतियां सामने खड़ी है। इसके साथ ही घोषणापत्र के मुख्य संकल्प मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी फंडिंग के खिलाफ़ सख्त रुख अपनाना, विकासशील देशों विशेषकर छोटे द्वीपीय देशों की मदद करना, रोजगार सृजन सुनिश्चित करने और आर्थिक प्रगति के लिए मजबूत कदम उठाने के साथ ही शंघाई सहयोग संगठन की अध्यक्षता मिलने के कारण वर्ष 2023 भारत के लिए बेहद अहम रहने वाला है। आज के अशांत व विध्वंसक परिस्थितियों के बीच विस्तारवादी शक्तियों को रोकने तथा शांति व सहयोग के साथ आगे बढ़ने के लिए भारत के नेतृत्व की ओर विश्व एक उम्मीद की नजर से देख रहा है।
 – डॉ. नवीन कुमार मिश्र
(भू-राजनीतिक मामलों के जानकार)

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