मोदी सरकार की कृषिनीति एवं न्यूनतम समर्थन मूल्य

स्वतंत्रता के पश्चात 1950 में भारत की जनसंख्या 36.1 करोड़  थी और अनाज का उत्पादन 50.82 mt था। स्वाभाविक है अपनी पूरी जनसंख्या को भोजन कराने के लिए यह उत्पादन पूरा नही पड़ता था। इसलिए भारत सरकार ने अमेरिका से PL480 समझौता किया।  जिसके अंतर्गत अमेरिका ने हमें लाल गेहूं दिया और उसका मूल्य उन्होंने रुपयों में लिया, परन्तु उसका उपयोग उन्होंने भारत में ही अपने धर्म के विस्तार के लिए किया।

भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली 1940 से शुरु हुई थी, परन्तु 1960 में भारत सरकार ने उसका विस्तार किया और सारे देश में राशन प्रणाली लागू की। भारत में अन्न की कमी को दूर करने के लिए किसानों का आवाहन किया और सतलज नदी पर बने भाखड़ा नांगल बांध, जिसका निर्माण 1948 में शुरु हुआ था और 1963 में पूरा हुआ, उसका पानी पंजाब के सभी किसानों को दिया गया। जिससे भारत में हरित-क्रांति की शुरूआत हुई।

भारत सरकार ने 1964 में धान के लिए न्यूनतम समर्थन मुल्य (Minimum Support Price–MSP) 33.5 ₹/ क्विंटल घोषित किया। इस न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान की खरीद की। इसी प्रकार 1965-66 में गेहूं का भी  न्यूनतम समर्थन मुल्य 54 ₹/ क्विंटल निश्चित किया और इस भाव पर भारत सरकार ने खरीद की। 1980 में अनाज का उत्पादन 129.59 mt से 1990 में 176.39 mt हो गया। इस दशक में हमारा अनाज का उत्पादन 35.5 % बढ़ा। भारतीय किसानों के परिश्रम से अनाज का उत्पादन बढ़ता ही चला गया और 1980-90 के दशक के पश्चात हम अन्न के सम्बन्ध में स्वयंपूर्ण हो गए। इसी प्रकार भारत में बाजरा, मक्का, ज्वार इत्यादि मोटे धान्य का उत्पादन भी बढ़ा। साथ ही तिलहन और दलहन  का उत्पादन भी बढ़ा, परंतु फिर भी उत्पादन हमारी कुल जरुरत  से कम था। इसलिए हमें खाद्य तेलों का और दालों का आयात करना पड़ता था। सन 2000-01 में हमारा अनाज का उत्पादन 196.81 mt हो गया।

सभी प्रांतो में सिंचाई की सुविधाएं बढ़ी और कृषि में उपयोग में आनेवाली दवाओं का उत्पादन व उपयोग भी बढ़ा, जिससे देश के कृषि उत्पादन बढ़ा। 2012-13 तक हमारा अनाज का उत्पादन बढ़कर के 255 mt हो गया। जिसमें धान का उत्पादन 104.4 mt, गेहूं 92.46 mt, मोटे अनाज का 40 mt, मक्का 22.23 mt और दालों का उत्पादन 18.45 mt हो गया। न्युनतम समर्थन मूल्य पर भारत सरकार केवल गेहूं और चावल ही खरीदती थी और उनके भंडारण की भी सुविधाएं थी, परंतु जैसी होनी चाहिए उतनी अच्छी नही थी। इसके कारण कई बार नीचे का अन्न खराब हो जाता था। इसके लिए न्यायालय ने एक बार यह टिप्पणी भी की कि यदि भंडारण में अनाज सड़ जाता है तो हम इसे गरीबों को मुफ्त क्यों नही बांट देते।

भारत सरकार ने डॉ. स्वामीनाथन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय किसान आयोग (National Commission on Farmers (NCF)) बनाया, जिसने 2004-06 में अपनी पांच रिपोर्टें  प्रकाशित की। जिसमें उन्होंने कृषि उत्पादकता बढ़ाने और किसानों की आय बढ़ाने सम्बंधी कई सुझाव दिए। स्वामीनाथन आयोग ने यह सुझाया था कि कृषि उत्पादों का न्युनतम समर्थन मूल्य कृषि के उत्पादों की लागत मूल्य का 150% होना चाहिए, जिससे किसानों को थोड़ा आर्थिक लाभ मिल सके। उन्होंने यह भी सुझाया कि सरकार ने न्युनतम समर्थन मूल्य खरीफ मौसम की शुरुआत से पहले घोषित करना चाहिए, जिससे किसान यह योजना बना सके कि उसे अपनी जमीन में खरीफ और रबी के मौसम मे कौन-कौनसी फसल उगानी चाहिए, जिससे उसे अधिक फायदा मिल सके। इसी प्रकार उन्होंने यह भी सुझाया कि भारत सरकार ने अनाज की अन्य फसलों का भी न्युनतम समर्थन मूल्य घोषित करना चाहिए। यह रिपोर्ट सादर अवश्य हुई, परंतु भारत सरकार ने न्युनतम समर्थन मूल्य, भारत सरकार की cost of cultivation  की योजना के अनुरुप ही रखा। उसको डेढ़ गुना भाव देकर किसान को फायदा हो, यह स्वीकर नही किया।

2014 में मोदी सरकार चुनकर आई और मोदी सरकार ने किसानो के हित में कई योजनाएं लागू की। उसमें सबसे महत्वपुर्ण  योजना है, किसान सन्मान निधि योजना, जिसमें गरीब  किसानो को 6000/- प्रतिवर्ष सन्मान निधि दी गई, यह निधी दो-दो हजार के तीन हफ्तों में दी गई, इससे गरीब किसानों को काफ़ी बड़ी आर्थिक सहायता हो गई। इसी प्रकार भारत सरकार ने फसलों के न्युनतम समर्थन मूल्य भी स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के अनुरूप उत्पादन मूल्य के डेढ़ गुना बढ़ाए। साथ ही यह न्युनतम समर्थन मूल्य फसलों के खरीफ और रबी मौसम की शुरुआत से  पहले घोषित किए गए।

सन 2023-24 में न्युनतम समर्थन मूल्य सामान्य धान के लिए 2040 तथा A grade धान के लिए 2060, गेहूं  के लिए 2125, ज्वार सामान्य के लिए 2970 एवं मालदाण्डी के लिए 2970, बाजरा के लिए 2350 व मक्का के लिए 1963 घोषित किए गए हैं। न्युनतम समर्थन मूल्य भारत सरकार की खरीद के लिए है, परंतु व्यापारी खुले बाजार में इससे अधिक या कम मूल्य दे सकते है। इसके कारण कृषि के सम्बंध में बड़े बदलाव आए हैं। आज कृषि उत्पादन बढ़कर 355 t हो गया है। इसी प्रकार फल व सब्जीयों का उत्पादन 2023-24 में बढ़कर 355.2 mt हो ग्या है। दूध का उत्पादन 2022-23 में बढ़कर 230.5 mt हो गया है।

कोरोना संकटके समय सभी को ऐसा लग रहा था कि भारत इस समस्या को कैसे सुलझाएगा? परंतु मोदी जी के कुशल नेतृत्त्व में वॅक्सीन तैयार हुई, कोवॅक्सीन और कोविशील्ड। भारत की सीरम इन्स्टिट्यूट ऑफ इण्डिया दुनिया की सबसे बड़ी वॅक्सीन निर्माता कंपनी है। उन्होंने और भारत बायोटेक ने अपनी पूरी क्षमता से वॅक्सीन का निर्माण किया और भारत सरकार ने अपनी सारी जनता को वैक्सीन मुफ्त लगाकर कोविड पर नियंत्रण पा लिया। इतना ही नही बल्कि विश्व के अन्य देशों को भी वैक्सीन भेजी, जिससे पूरा विश्व इस समस्या का सामना कर सका और उस पर नियंत्रण पा सका।

कोरोना के दौरान ही काफी लोग अपना काम छोड़कर अपने-अपने प्रांतो में वापस जाने लगे। इससे उनके अपने प्रांत में व्यवसाय की और उनके खाने पीने की समस्या निर्माण हो गई। भारत सरकार ने फिर एक बड़ा क्रांतिकारी निर्णय लिया और लगभग 80 करोड़ लोगों को मुफ्त धान्य वितरण किया। मुफ्त धान्य योजना यशस्वी हुई और देश की एक बड़ी जनसंख्या भूखमरी से मुक्ति पा गई। इस प्रकार भारत सरकार ने क्रांतिकारी निर्णय लेकर अपनी जनता को भूखमरी से बचाया तथा कोरोना जैसी बीमारी से भी बचा लिया ।

आज देश प्रगति के मार्ग पर अग्रसर है। उसमें भारत सरकार की जनहितकारी नीतियों का बहुत बड़ा योगदान है। पण्डित दीनदयाल उपाध्याय की एकात्म मानववाद की नीति का सही अर्थो में पालन करने के कारण भारत प्रगति की ओर अग्रसर हो रहा है।

– प्रो. डॉ. मदनगोपाल वार्ष्णेय

 

 

 

 

 

 

 

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