हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result

गौर से सुनिए, आवाजें फिर उठेंगी…

by pallavi anwekar
in अगस्त २०१८, राजनीति, विशेष, सामाजिक
0

क्या आपको बुरहान वानी के जनाजे में शामिल हुए लोग याद हैं? उनके द्वारा लगाए जा रहे कश्मीर की आजादी की मांगों वाले और बुरहान की जयजयकार करनेवलो नारे याद हैं? क्या आपको अवार्ड वापसी गैंग के शब्द याद हैं? क्या आपको जेएनयू में कन्हैया कुमार और उमर खालिद द्वारा लगाए गए देशद्रोही नारे याद हैं? क्या आपको हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवाणी के आंदोलन करने वाली भीड के सामने दिए गए वक्तव्य याद हैं? क्या आपको भीमा कोरेगांव में हुई घटना और उसकी देश के विभिन्न शहरों में हुई प्रतिक्रियाओं के स्वर याद हैं? अगर नहीं तो दोबारा इन सारी घटनाओं के वीडियो देखिये और अगर याद हैं तो समझने की कोशिश कीजिए कि किस तरह देश को फिर से विभाजन के ज्वालामुखी पर बिठाने की तैयारी हो रही है।

अंग्रेज तो चले गए पर अपनी फूट डालो और शासन करो की नीति छोड़ गए। वे इतने साल तक शासन इसलिए ही कर पाए क्योंकि भारतीय समाज एक नहीं था। आज फिर से राष्ट्रविरोधी शक्तियां वही करने का प्रयास कर रही हैं। वे लोग अच्छी तरह से जानते हैं कि देश को अगर विभाजित करना है तो सबसे बड़ा और सुलभ हथियार है जाति। भारतीय पहले भी इसी आधार पर विभाजित हुए थे और अभी भी सामाजिक विचारधारा में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया है।

एक निश्चित समय, अंतराल से योग्य राजनीतिक और सामाजिक अवसर पर देशद्रोही अपनी कार्रवाई कर रहे हैं। जैसे ही उन्हें यह दिखाई देता है कि समाज शांत हो रहा है, वे अपने गुर्गों की मदद से कोई न कोई कांड कर देते हैं, और भारतीय समाज फिर से आंदोलित हो जाता है। इन गुर्गों की विशेष बात यह है कि उस निश्चित समयावधि के लिए ही चमकने वाले सितारे होते हैं, जो उस कांड के दौरान खूब चमकते हैं और फिर शांत हो जाते हैं। वह कांड या आंदोलन थमने के बाद उन्हें कोई पूछता भी नहीं। परंतु फिर भी उस समयावधि में लोग इनके पीछे ऐसे चलने लगते हैं जैसे बैगपाइपर के पीछे चूहे चलने लगते हैं। खाई में गिरने के अपने भविष्य को जानते हुए भी वे इनका अंधानुकरण करते रहते हैं।

एक बार इन सभी आंदोलनों का मकसद और समय ध्यान से देखने की आवश्यकता है। अगर हर आम आदमी यह समझ जाए कि इन आंदोलनों का मकसद केवल और केवल आम लोगों के बीच दरार डालना और उसका राजनैतिक फायदा उठाना है तो शायद ये सभी बैगपाइपर अकेले पड़ जाएंगे।

हार्दिक और जिग्नेश का प्यादे की तरह उपयोग करने वाले लोगों ने अपना राजनीतिक उल्लू सीधा करके इन्हें छोड़ दिया। गुजरात चुनावों के पहले पटेल आरक्षण के मुद्दे को लेकर किए गए इस आंदोलन ने हार्दिक और जिग्नेश को रातोंरात स्टार तो बना दिया परंतु उनका असर न तो गुजरात चुनावों पर कुछ खास दिखा और न ही उसके बाद हुए अन्य चुनावों पर। और अब तो लोग इन्हें याद भी नहीं करते।

भाीमा-कोरेगांव के आंदोलन को हवा देने का काम उस  प्रकाश आंबेडकर ने किया जो स्वयं अपना राजनीतिक और सामाजिक अस्तित्व बचाने में लगे हैं। आंदोलन शुरू करनेवाले पर्दे के पीछे चले गए और प्रत्यक्ष आंदोलन के लिए सड़कों पर उतरे कई युवा जेल में बंद हैं। ऐसा ही कुछ हाल बाकी लोगों का भी है।

हालांकि इन आंदोलनों को जनआंदोलनों का स्वरूप देने का प्रयास किया गया था, परंतु वे एक गुट के आंदोलन बनकर ही रह गए। जनआंदोलन बनाने के लिए आंदोलन का एक निश्चित, सात्विक और एकीकृत लक्ष्य होना आवश्यक है।

भारतीय समाज के जनआंदोलनों का इतिहास देखें तो ये आंदोलन उनके सामने फीके दिखाई देंगे। सबसे बडा जनआंदोलन था हमारा स्वतंत्रता संग्राम जिसमें बच्चे से लेकर बूढ़ों तक सभी शामिल थे। गुलामी के कारण उनके मन में उठनेवाले क्रोध की ज्वाला ने उन्हें एकसाथ अपने देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ने हेतु प्रेरित किया था। आंदोलन में सभी देशवासियों का उद्देश्य समान था, सात्विक था।

आपातकाल के विरोध में उठे आंदोलन को भी जनआंदोलन कहा जा सकता है क्योंकि कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं और शुभचिंतकों को छोड़कर अन्य सभी लोग इस आंदोलन में सहभागी हुए थे। इंदिरा गांधी के द्वारा थोपे गए इस निर्णय से सारा भारतीय समाज उद्वेलित था, क्योंकि ये उनके मौलिक अधिकारों का हनन करने वाला था।

भ्रष्टाचार के विरोध में अण्णा हजारे द्वारा किया गया आंदोलन भी जनआंदोलन का ही स्वरूप है। जब तक इसे अरविंद केजरीवाल की टीम ने हाइजैक नहीं किया था तब तक अण्णा के पीछे चलनेवाले सभी लोग केवल भ्रष्टाचार का विरोध करने के लिए ही एकत्रित हुए थे। जो लोग उस स्थान तक नहीं पहुंच पाए उन लोगों ने भी विभिन्न माध्यमों से अण्णा के साथ होने की बात जाहिर की थी। सभी लोग भी कांग्रेस के लगातार दस साल के शासनकाल में हुए भ्रष्टाचारों से परेशान हो चुके थे।

दिल्ली में निर्भया मामले के बाद भी लोग, विशेषकर युवा दिल्ली और देश के अन्य शहरों की सड़कों पर उतरे थे। उनके मन में निर्भया के लिए सहानुभूति और अपराधियों के प्रति क्रोध और घृणा के भाव थे। उनके द्वारा किए गया आंदोलन केवल इसी का प्रतीक था। इसमें किसी भी तरह का कोई राजनैतिक हित नहीं था। इसलिए यह भी एक तरह का जनआंदोलन ही था।

इन सभी आंदोलनों की पृष्ठभूमि पर आलेख के शुरुआत में किए गए आंदोलनों का अगर विचार किया जाए तो वे आंदोलन किसी भी तरह से देश को एक करनेवाले या देशहित के किसी मुद्दे को रेखांकित करनेवाले नहीं रहे। चूंकि इनका लक्ष्य तो एक जरूर था, परंतु न तो वह सात्विक था और न ही एकीकृत। अत: वे कभी जनआंदोलन नहीं बने और न कभी आगे बन पाएंगे। वे महज कुछ गुटों की आवाजें ही रह पाएंगी। ये आवाजें देशद्रोही गुटों की हैं तथा सत्ताविहीनों से जुड़ी हैं इसलिए जाहिर है कि ये राष्ट्रीय विचारधारा की सत्ताधारी पार्टी के विरोध में ही उठेंगी। फिर चाहे वह राज्य में हो या केंद्र में।

सन 2019 में भारत में आम चुनाव होने वाले हैं। इनके पहले कुछ राज्यों के चुनाव भी हैं। आरक्षण जैसे अन्य कई जातीय मुद्दों पर आवाजें उठाने का उनके लिए यह मौका है। जिस प्रकार भीमा-कोरेगांव की घटना ने तूल पकड़ा था, उसी तरह किसी भी छोटी घटना को जातीय रंग देकर उसके माध्यम से समाज को उद्वेलित करने का षड्यंत्र रचा जा सकता है। दलित, मुस्लिम विरुद्ध अन्य समाज यह आंदोलन की बिसात होगी और कुछ चेहरे और नाम बदलकर नए प्यादे बिसात पर उतारे जाएंगे।

कश्मीर में भाजपा और पीडीपी का गठबंधन टूटकर राज्यपाल शासन लगाया जा चुका दिया गया है। सीमा पर सेना की गतिविधियां तेज हो गई हैं। परिणामस्वरूप देश के अंदर छिपे आतंकवादियों के आकाओं के पेट में मरोड़ जरूर उठने लगी होगी। फिर किसी बुरहान वानी के मरने पर उसके जनाजे में शरीक होने की पुकार हो सकती है।

दरअसल ये आवाजें शक्ति प्रदर्शन करने की पुकार होती है। अगर शक्ति सही दिशा में लगाई जाए तो वह सकारात्मक परिणाम देगी, परंतु अगर शक्ति स्वयं के या किसी समुदाय विशेष के स्वार्थ से प्रेरित होगी तो उसका परिणाम नकारात्मक ही होगा। तो क्या इसका अर्थ यह है कि इन आवाजों की ओर ध्यान नहीं देना चाहिए? नहीं, बिल्कुल नहीं। ध्यान जरूर देना चाहिए परंतु बैगपाइपर के चूहे बनकर नहीं बल्कि खुली आंखों, खुले कानों और खुले दिमाग से। भारत के नागरिक होने के नाते हमारा यह कर्तव्य है कि हम पहले अपने देश के बारे में सोचें। अगर देश रहेगा तो ही हमारा अस्तित्व रहेगा। देश के बाहर की ताकतें सदैव इन कोशिशों में लगी रहती हैं कि किसी भी तरह देश को नुकसान पहुंचाया जाए। उनकी इस कोशिश को विफल करने के लिए हमारी सेना तैयार है। परंतु देश को अंदर  से खोखला करने के लिए जो ताकतें कार्यरत हैं उनके मनसूबे समझकर उनकी कोशिशों को विफल करना आम भारतीयों का ही कर्तव्य है। इसलिए ध्यान दीजिए, गौर कीजिए, आवाजें फिर उठेंगी।

 

 

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: arkshan andolanhindi vivekhindi vivek magazineselectivespecialsubjective

pallavi anwekar

Next Post
फ्रांस विश्व विजेता

फ्रांस विश्व विजेता

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0