जित गांव तित मुहावरा
मनुष्य को स्वर-ज्ञान प्रकृति से मिला, स्वरों से वाणी ने आकार लिया, फिर अक्षर एवं शब्द बने और वाक्य तथा भाषा को आज का रूप मिलता गया| भाषा को जैसा-जैसा नियमित रूप मिलता गया, मुहावरें भी अपने लक्षणा एवं व्यंजना के गुणों के कारण दृढ़ होते गए| इसके केंद्र में जनसाधारण था| इसलिए बोली में मुहावरें पनपे, आज भी हैं और इसकी ऊर्जा-स्थली निश्चित रूप से गांव थी और आज भी है| वहीं से कूदते-फांदेते ये शहरों/महानगरों एवं आज की लिखित भाषा में अपना वजूद बनाए हुए हैं|