सुबह का भूला

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आरुषि अभी तक सोफे पर पड़ी सुबक रही थी। आज उसे रह-रह कर रोना आ रहा था। साथ ही उसे पछतावा भी हो रहा था कि उसने अपने पिता समान स्वसुर पर घ्ाूरते रहने का आरोप लगाया था। इतना ही नहीं उसने तो यह भी कहा था कि वे उसके साथ कुछ गलत करना चाहते हैं।

पत्रकारिता के शिखर पुरुष आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी

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‘प्रताप’ के संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी जी एवं केसरी के संपादक लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी, आचार्य द्विवेदी जी को ही सर्वश्रेष्ठ संपादक मानते थे। यही कारण था कि जब कोई व्यक्ति पत्रकारिता सीखने के उद्देश्य से लोकमान्य अथवा विद्यार्थी जी के पास जाता था तो वे उसे आचार्य द्विवेदी जी के पास यह कहकर भेज देते थे कि पत्रकारिता की बारीकियां सीखनी हैं तो केवल आचार्य द्विवेदी जी ही सबसे उपयुक्त गुरु हो सकते हैं।

भाग्य विधाता

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अस्मिता ने सीतापुर की जिलाधिकारी के रूप में पहली बार जिलाधिकारी कार्यालय में कदम रखा। उस दिन वह अपने तेजस्वी व्यक्तित्व और इकहरे बदन पर उजले लिबास में जैसे कोई देवकन्या लग रही थी। सीतापुर से स्थानांतरित हुए जिलाधिकारी श्री अवधेश पचौरी ने उसका स्वागत करते हुए सभी से उसका परिचय कराया तो सभी अधीनस्थ कर्मचारियों ने उसे सैल्यूट किया।

लच्छू

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“सप्ताहभर बाद लच्छू ने कारखाने की शुरुआत की, जिसका उद्घाटन लच्छू के पिता जी के साथ क्षेत्रीय सांसद के हाथों हुआ। उस दिन गांव के बीस और युवकों को लच्छू के कारखाने ’मुन्नी अगरबत्ती प्राडक्ट्स’ में नौकरी मिली।”

वर्तमान युग के मानव सम्बंधों का दर्पण

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‘निरीह’ मानवीय भावों के कुशल चितेरे, शब्दशिल्पी डॉ.दिनेश पाठक‘शशि’ का नव प्रकाशित कहानी संग्रह है। इस संग्रह में कुल बाईस कहानियां संग्रहीत हैं। ये सभी कहानियाँ आकाशवाणी से प्रसारण को ध्यान में रखते हुए रची गई हैं इसलिए इनका आकार, समय सीमा के अनुरूप है। इन कहानियों में ‘निरीह’ शीर्षित कहानी का क्रमांक दस है परन्तु कथा कृति की सभी कहानियों में कहीं न कहीं पात्र निरीहता की स्थिति में अवश्य द़ृष्टिगोचर होते हैं।

फैसला

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राजन बाबू आज ही कनाडा से लौटे हैं। कनाडा में उनका शाकाहारी रेस्टोरेन्ट है। वे रमन के मित्र हैं। इसलिए वे रमन से मिलने रमन के घर पहुँचे परन्तु सन्ध्या ने उन्हें बताया कि वे संन्यास लेकर सिद्धेश्वर मंदिर में ही रहते हैं। अब वे घर नहीं आते। यह सुनकर राजन बाबू सिद्धेश्वर मंदिर की ओर चल दिए। रास्ता चलते हुए वे सोच रहे थे कि ऐसा क्या हुआ होगा, जिसने रमन को संसार और परिवार से विरक्त कर दिया।

एक शाम की मुलाकात

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शादी के पहले के प्रेम के किस्से बहुत होते हैं परन्तु शादी के बाद अपने जीवनसाथी से प्रेम की पराकाष्ठा के किस्से कम ही सुनने को मिलते हैं। इन दोनों ही युगलों के प्रेम की पराकाष्ठा थी। यह कहना कठिन होगा कि पुष्पेश-मीनाक्षी का रिश्ता अधिक प्रगाढ़ था या शशांक-तेजस्विनी का। ये दोनों ही युगल एक से बढ़कर एक थे।

करुणाकंद

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“एक ओर तो मुझे अपराध-बोध हो रहा था कि मैं स्वयं सिद्धि और देव के लिए कुछ नहीं कर पाया; दूसरी ओर मेरा मन कह रहा था- धन्य हो करुणाकंद! आपने सिद्धि को वापस लाकर देव जैसे करोड़ों लोगों की आस्था को टूटने से बचाया है।” देवदत्त भारद्वाज चौबीस वर्षीय…

सबक

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“वाह! बेटा वाह! मैं जीवनभर दिवाली अपने अहंकार के साथ नकारात्मक मनाता रहा। असली दिवाली का उत्सव तो तुमने मनाया है। धन्य हो तुम! धन्य हैं माता महालक्ष्मी और धन्य है दीपावली का यह महापर्व।”

करुणाकंद

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“एक ओर तो मुझे अपराध-बोध हो रहा था कि मैं स्वयं सिद्धि और देव के लिए कुछ नहीं कर पाया; दूसरी ओर मेरा मन कह रहा था- धन्य हो करुणाकंद! आपने सिद्धि को वापस लाकर देव जैसे करोड़ों लोगों की आस्था को टूटने से बचाया है।”

पर्यावरण, प्रदूषण और बच्चों की स्थिति

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खाद्य प्रदूषण भी विश्‍व के लिए एक बहुत बड़ा खतरा है। आज खाने-पीने की हर वस्तु प्रदूषित है। रासायनिक प्रभाव प्रत्येक वस्तु पर दिखाई देता है। पेड़ पर लगने वाले फल और सब्जी भी प्रदूषित हैं क्योंकि खाद भी रासायनिक है। वायु में भी जहर है। जल भी प्रदूषित है तथा हथियारों की होड़ तथा आतिशबाजी में किए जा रहे बारूद के कण भी पूरे वातावरण में व्याप्त हैं।

दीपावली

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दिवाली दे सुषमा निराली विश्व को नव ज्ञान दे। शांति दे इस विश्व को गौरवमयी पहचान दे। चिर पुरातन हिंद से विद्वानता का मान दे। प्रीति, वैभव, चेतना,यश हर हृदय को दान दे॥ दिवाली पर मानव हृदय में प्रकृति के प्रति प्यार हो। कष्ट का होवे निवारण आरोग्यमय संसार हो। प्रात: स्वागत गान गाए सांझ गाए आरती- दीप की शुभ रश्मियों का विश्व को उपहार हो। आओ एक इतिहास रचाएं। इस दुनिया में तम ही तम है दीवाली पर दीप जलाएं। नेहन्नीति की सुंदर सरगम मिल कर हम तुम सारे गाएं॥ विश्व गुरु भारत का सपना, आओ! हम साकार बनाएं दी

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