भूकंप का विज्ञान: कहां, क्यों और कैसे

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भूकंप तब होता है जब दो पृथ्वी के ब्लॉक अचानक एक दूसरे के पीछे खिसक जाती है। भूकंप प्रदर्शित करते हैं कि पृथ्वी एक गतिशील ग्रह बनी हुई है, आंतरिक शक्तियों द्वारा प्रत्येक दिन बदलती रहती है। भूकंपीय स्टेशनों के विश्वव्यापी नेटवर्क द्वारा हर साल दस लाख से अधिक भूकंप…

देसी वृक्षारोपण से भारत होगा प्रदुषण मुक्त

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"श्री स्कंदपुराण" में एक सुंदर श्लोक है अश्वत्थमेकम् पिचुमन्दमेकम् न्यग्रोधमेकम् दश चिञ्चिणीकान्। कपित्थबिल्वाऽऽमलकत्रयञ्च पञ्चाऽऽम्रमुप्त्वा नरकन्न पश्येत्।। अश्वत्थः= पीपल। (100% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है) पिचुमन्दः = नीम (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है) नयग्रोधः = वटवृक्ष (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है) चिञ्चिणी = इमली (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है) कपित्थः = कविट…

“बिन पानी सब सून” कहावत कहीं वास्तविकता न बन जाए

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ऐसा कहा जा रहा है कि आगे आने वाले समय में विश्व में पानी को लेकर युद्ध छिड़ने की स्थितियां निर्मित हो सकती हैं, क्योंकि जब भूगर्भ में पानी की उपलब्धता यदि इसी रफ्तार से लगातार कम होती चली जाएगी तो वर्तमान स्थानों (शहरों एवं गावों में) पर निवास कर…

नहीं जागे तो जोशीमठ से भी बुरा नैनीताल का हाल होगा

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कल्पना कीजिए... जहां कोई आदमी सो रहा हो उसके बेड के नीचे ही जमीन पर मोटी मोटी दरारें पड़ी हों । रात में उन्हीं दरारों से गड़गड़ाने की जोर जोर की डरावनी आवाजें आ रही हों । और भी खतरनाक बात ये कि पूरा इलाका भूकंप के अतिसंवेदनशील जोन 5…

भूधसांव की वजह से भविष्य को लेकर बेहद चिंतित जोशीमठ

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भूधसांव की वजह से अपने भविष्य को लेकर बेहद चिंतित हूं, हो सके तो जमींदोज होने से बचा लीजिए.. “मैं जोशीमठ हूँ” आदिगुरु शंकराचार्य जी की तपस्थली ज्योतिर्मठ। सीमांत जनपद चमोली का सरहदी ब्लाँक। विश्व प्रसिद्ध हिम क्रीडा स्थल औली, आस्था का सर्वोच्च धाम श्री बदरीनाथ धाम, हेमकुंड साहिब और…

आओ पहल करें

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प्रदूषण नियंत्रण के लिए हमें किसी दिन विशेष पर आश्रित होने की बजाय सामाजिक स्तर पर बहुत तेजी से कार्य करना चाहिए, क्योंकि इस महामारी ने बहुत खतरनाक रूप धारण कर लिया है। यदि लोग अभी नहीं चेते तो बहुत तेजी से इसके दुष्परिणाम सामने आएंगे और मानव जीवन खतरे में पड़ जाएगा।

ईसाई धर्मांतरण के खिलाफ स्वधर्म रक्षक तालिम रुकबो

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निर्धन एवं अशिक्षित वनवासियों की मजबूरी का लाभ उठाया और लालच देकर हजारों लोगों को ईसाई बना लिया। अरुणाचल प्रदेश के पासीघाट जिले में एक दिसम्बर, 1938 को जन्मे श्री तालिम रुकबो ने शीघ्र ही इस खतरे को पहचान लिया। वे समझते थे कि ईसाइयत के विस्तार का अर्थ देशविरोधी तत्वों का विस्तार है। इसलिए उन्होंने आह्वान किया कि अपने परम्परागत त्योहार सब मिलकर मनायें। उन्होंने विदेशी षड्यन्त्रकारियों द्वारा जनजातीय आस्था पर हो रहे कुठाराघात को रोकने के लिए पूजा की एक नई पद्धति विकसित की। उनके प्रयासों का बहुत अच्छा फल निकला। राज्य शासन ने भी स्थानीय त्योहार ‘सोलुंग’ को सरकारी गजट में मान्यता देकर उस दिन छुट्टी घोषित की। 

चुनौतियों के बीच जी-20 का नेतृत्व 

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निरंतर गहराते भू-राजनीतिक तनाव, आर्थिक मंदी की आहट तथा बढ़ती ऊर्जा की कीमतें व ऊर्जा सप्लाई पर प्रतिबंधों जैसी चुनौतियों के बीच एक दिसंबर 2022 से भारत जी-20 की मेजबानी करने जा रहा है। वर्तमान में संपूर्ण विश्व दो ध्रुवों में बटकर संघर्षों की ओर अग्रसर है, परन्तु भारत किसी पक्ष में न होकर शांतिपूर्ण समाधान के लिये कूटनीतिक प्रयास व संवाद का पक्षधर रहा है।

जनजाति समाज के लिए आर्थिक विकास की योजनाएं

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केंद्र सरकार द्वारा जनजाति समाज को केंद्र में रखकर उनके लाभार्थ चलाई जा रही विभिन योजनाओं की विस्तृत जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से एक विशेष पोर्टल का निर्माण किया है। जिसकी लिंक है - भारत सरकार का राष्ट्रीय पोर्टल https://www.इंडिया.सरकार.भारत/ - इस लिंक को क्लिक करने के बाद “खोजें” के बॉक्स में जनजाति समाज को दी जाने वाली सुविधाएं टाइप करने से, भारत सरकार द्वारा प्रदान की जा रही विभिन्न सुविधाओं की सूची निकल आएगी एवं इन योजनाओं का लाभ उठाने के लिए उपयोग किए जाने वाले प्रपत्रों की सूची भी डाउनलोड की जा सकती है।

आर्थिक विकास में जनजाति समाज का योगदान

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अनादि काल से जनजाति संस्कृति व वनों का चोली दामन का साथ रहा है और जनजाति समाज का निवास क्षेत्र वन ही रहे हैं। इस संदर्भ में यह भी कहा जा सकता है कि वनों ने ही जनजातीय जीवन एंव संस्कृति के उद्भव, विकास तथा संरक्षण में अपनी आधारभूत भूमिका अदा की है। भील वनवासियों का जीवन भी वनों पर ही आश्रित रहता आया है। जनजाति समाज अपनी आजीविका के लिए वनों में उत्पन्न होने वाली विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का उपयोग करते रहे हैं।

प्रकृति और अध्यात्म के सम्मोहन का सिद्ध मंत्र उत्तराखंड

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9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड नाम से भारतीय गणतंत्र का 27 वां राज्य बना। उस समय के प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस राज्य का पुनर्गठन किया। हिमालय की पहाड़ियों से घिरा होने के कारण यहां देश के शेष हिस्सों से लंबे समय तक आवागमन अत्यंत कठिन रहा है किंतु आजादी के बाद इस क्षेत्र में विकास कार्यों का प्रारंभ हुआ और उत्तराखंड राज्य के निर्माण के बाद सड़कों, पुलों, सुरंगों तथा जलाशयों के निर्माण में तेजी आई। इन विकास कार्यों का जनजीवन पर बहुत सकारात्मक असर तो हो रहा है लेकिन गत 7 दशकों में हुए इन परिवर्तनों के बावजूद भी इस प्रांत में बहुत समस्याएं हैं, जिन पर विशेष ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है।

उत्तराखंड भारत की सांस्कृतिक धरोहर – स्वामी विश्वेश्वरानंद महाराज

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सनातन धर्म की पुनर्स्थापना आद्य शंकराचार्य ने की। उन्होंने शस्त्र नहीं चलाया, केवल शास्त्र के माध्यम से ही समाज में सनातन धर्म की पुनर्स्थापना की। इसलिए शास्त्र परम्परा का संरक्षण व संवर्धन होना चाहिए। यह उद्गार व्यक्त करते हुए अपने साक्षात्कार में संन्यास आश्रम के महामंडलेश्वर आचार्य स्वामी विश्वेश्वरानंद गिरि महाराज ने उत्तराखंड के आध्यात्मिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डाला। पेश है उनसे बातचीत के प्रमुख अंश –

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