चील ओर लोमड़ी
चील और लोमड़ी एक चील और लोमड़ी काफी लंबे अर्से से एक अच्छे पड़ोसी की तरह रहते चले आ रहे थे। चील का घोसला पेड़ के ऊपर स्थित था और लोमड़ी की माँद उसी पेड़ के नीचे।.
चील और लोमड़ी एक चील और लोमड़ी काफी लंबे अर्से से एक अच्छे पड़ोसी की तरह रहते चले आ रहे थे। चील का घोसला पेड़ के ऊपर स्थित था और लोमड़ी की माँद उसी पेड़ के नीचे।.
बाल हृदय चोट खाकर तिलमिलाता हुआ घर पहुंचा था, ‘‘मम्मा, पापा को कहो कितनी भी देर हो जाए, वह मुझे कार से ही स्कूल पहुंचाएं. लड़के मेरा मज़ाक उड़ा रहे थे. वैभव कह रहा था, ‘मेरे घर तो 3 कारें हैं… मेरे पापा 200 रु. कमाते हैं.’’ स्मिता को 200 रु. सुनकर हंसी आ गई कि बच्चों को अभी सौ और हज़ार-लाख की क्या समझ, फिर भी उसका मन कड़वाहट से भर उठा.
राजन बाबू आज ही कनाडा से लौटे हैं। कनाडा में उनका शाकाहारी रेस्टोरेन्ट है। वे रमन के मित्र हैं। इसलिए वे रमन से मिलने रमन के घर पहुँचे परन्तु सन्ध्या ने उन्हें बताया कि वे संन्यास लेकर सिद्धेश्वर मंदिर में ही रहते हैं। अब वे घर नहीं आते। यह सुनकर राजन बाबू सिद्धेश्वर मंदिर की ओर चल दिए। रास्ता चलते हुए वे सोच रहे थे कि ऐसा क्या हुआ होगा, जिसने रमन को संसार और परिवार से विरक्त कर दिया।
कुत्ते के मालिक होते हैं यह तो आपने हमने सबने सुना है। और मालिक के साथ चलते हुये कुत्ते का गरूर देखते ही बनता है। यह जीभ बाहर निकाल कर बेवजह लम्बे समय तक मुंडी हिलाता रहता है।
एक बार की बात है कि एक कुत्ते का पिल्ला अपने मालिक के घर के बाहर धूप में सोया पड़ा था। मालिक का घर जंगल के किनारे पर था। अतः वहां भेड़िया, गीदड़ और लकड़बग्घे जैसे चालाक जानवर आते रहते थे।
एक समय की बात है। कि एक छोटे से गांव में रामू नाम का व्यक्ति रहता था। वह बहुत गरीब था वह अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए वह दिन रात मेहनत करता और उससे जो चार पैसे मिलते वह अपने बच्चों की किताबे व कॉपी लाता और फीस जमा कर देता था ।
एक घने जंगल में एक बड़ा-सा नाग रहता था। वह चिड़ियों के अंडे, मेढ़क तथा छिपकलियों जैसे छोटे-छोटे जीव-जंतुओं को खाकर अपना पेट भरता था।
विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय होली का त्योहार बड़ी धूम-धाम से मनाते थे। इस अवसर पर हास्य-मनोरंजन के कई कार्यक्रम होते थे। हर कार्यक्रम के सफल कलाकार को पुरस्कार भी दिया जाता था।
प्राचीन मगध के किसी गांव में एक ज्ञानी पंडित रहते थे। वे भागवत कथा सुनाते थे। गांव में उनका बड़ा सम्मान था। लोग महत्वपूर्ण विषयों पर उनसे ही विचार-विमर्श कर मार्गदर्शन लेते थे।
मनोहर पर्रिकर जी को हम सभी सादगीपूर्ण परंतु तेजतर्रार और हमेशा कार्यमग्न व्यक्ति के रूप में जानते हैं। उनका यह स्वभाव कैसे बना ये उन्होने ही अपने एक आलेख के माध्यम से प्रस्तुत किया था।
एक बार की बात है भगवान् श्रीराम और सीता में वाद -विवाद हो गया । श्रीराम ने कहा कि हनुमान मेरा भक्त है , और सीता माता ने कहा कि हनुमान मेरा भक्त है । तब फिर श्रीराम ने कहा कि हनुमान से ही पूंछ लिया जाये ।
बहुत पुराने समय की बात है एक बार दो राजाओ के बीच युद्ध हुआ। एक राजा दूसरे राजा पर भारी पड़ने लगा।