नया सवेरा

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“सुबह सूरज ने अपनी पहली दस्तक दे दी थी, रोशनदान से हल्की सुनहरी किरण छनकर लाजो को चेहरे पर बिखरी थी, मानो सहला रही थी, एक नया सवेरा उसे जिंदगी के संघर्ष के लिए हौसला देना चाहती हो। लाजो ने उठकर खिड़की खोली तो देखा दूर आसमान पर सूरज अपनी थकान मिटाकर फिर से नई शक्ति के साथ अपने साम्राज्य को विस्तार दे रहा है।”

ड्रैगन फ्लाय

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“बिट्टू ने आशा और विश्वास से कहा, चीनी ड्रैगन फ्लाई तुम्हें फ्लिट कर दिया जाएगा। और वह नए जोश के साथ चीनी बबुए को भगाने की रणनीति बनाने में लग गया।”

केवल झाग, बस वही

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“दरवाज़े के पास पहुंच कर वह एक पल के लिए रुका और मेरी ओर मुड़ कर उसने कहा, उन्होंने मुझे बताया कि तुम मेरी हत्या कर दोगे। मैं केवल यही जानने के लिए यहां आया था। पर किसी को मारना इतना आसान नहीं होता। तुम मेरा यक़ीन मानो...”

हठयोग के साधक मेढ़को की महानिद्रा

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बरसात का मौसम समाप्त होते ही मेढ़क जमीन के भीतर से चार से सात फीट गहरे बिल में महानिद्रा में लीन होने लगते हैं। मेढ़क का फुफ्सुस आदिम स्थिति में होने के कारण श्वसन क्रिया के लिए वह पूरा नहीं पड़ता।

मारेय नाम का किसान

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“अचानक किसी चमत्कार की वजह से मेरे भीतर मौजूद सारी घृणा और क्रोध पूरी तरह ग़ायब हो गए थे। चलते हुए मैं मिलने वाले लोगों के चेहरे देखता रहा। वह किसान जिसने दाढ़ी बना रखी है, जिसके चेहरे पर अपराधी होने का निशान दाग दिया गया है, जो नशे में धुत्त कर्कश आवाज़ में गाना गा रहा है, वह वही मारेय हो सकता है।”

लच्छू

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“सप्ताहभर बाद लच्छू ने कारखाने की शुरुआत की, जिसका उद्घाटन लच्छू के पिता जी के साथ क्षेत्रीय सांसद के हाथों हुआ। उस दिन गांव के बीस और युवकों को लच्छू के कारखाने ’मुन्नी अगरबत्ती प्राडक्ट्स’ में नौकरी मिली।”

मातृत्व की महिमा

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‘जीवन में तीन चीज कभी नहीं हो-1.छोटे बच्चों की मां कभी न मरे। 2. जवानी में पति कभी नहीं मरे। और 3. बुढापे में पत्नी न मरे। ये तीनों आर्य सत्य हैं जिन्हें नकारना असम्भव है।’

पहचान

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‘आख़िर थोइबा ने अपनी मणिपुरी पहचान और विरासत को स्वीकार कर लिया था। प्रशांत को लगा कि उसकी पत्नी लीला भी स्वर्ग में से अपने बेटे का अपनी मणिपुरी पहचान को स्वीकार कर लेना देख कर बेहद प्रसन्न हो रही होगी।”

दिप चूर्ण

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‘रास्ते भर ज्योति के सुद़ृढ़, विश्वासपूर्ण वाक्य कानों में टकराते रहे- ‘मैं नारी को छले जाते रहने की परिपाटी को तोड़, इन्हें सबक सिखाकर ही रहूंगी, भाई साहब! ताकि इन्हें पता चले, झूठ बोलने का नतीजा क्या होता है। लेकिन कहानी यहां थोड़े खत्म होती है....”

गुलशन‌

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उसका नाम था गुलशन। छोटी-सी प्यारी-सी गुड़िया। उम्र कोई 10-11 साल। जैसे गुलशन में फूल महकते हैं और अपनी आभा बिखेरते हैं, वह भी अपने नाम के अनुरूप, अपने गुणों, अपनी योग्यता और अपनी वाणी से अपने घर और आसपास के वातावरण को महकाती रहती थी।

चूहा और सांप

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उस चूहे ने चारों ओर देखा। तभी उसे एक सांप नजर आया। सांप ही 'बचाओ-बचाओ' चिल्ला रहा था। सांप के ऊपर एक बड़ा सा पत्थर रखा था।' चूहे को देख कर सांप ने कहा,'चूहा भाई, मुझे आजाद करो। इस पत्थर के नीचे दबा होने के कारण मैं रेंग नहीं पा रहा हूं।'

अम्मा

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बात तब की है जब हम बहुत छोटे थे। इतने छोटे कि हमारे मन में भूत-जिन्न, डायन- जोगी आदि अपना स्थाई डेरा जमाए रहते। रात में अकेले उठने में नानी मरती। कभी उल्लू महोदय जोर से चिल्लाते हुए उड़ते तो हमारी घिग्घी बंध् जाती।

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