इस्लाम में स्वर्ग और नरक

मुहम्मद पैगंबर की तरह प्रत्येक धर्म संस्थापकों ने मनुष्य के पारलौकिक जीवन और स्वर्ग-नरक की संकल्पनाओं को रचा है। शायद उसका लक्ष्य केवल इतना ही था कि जनसाधारण सन्मार्ग पर चलें और दुष्कृत्यों से दूर रहें। आज की कसौटी तो यही है कि मानवता, आपस में भाईचारा और सहिष्णुता कायम करने से पृथ्वी पर ही स्वर्ग आ जाएगा।
हजारो वर्षों पूर्व से ही प्रत्येक धर्म में मानव के मरणोत्तर अस्तित्व एवं उसके पारलौकिक जीवन के विषय में विविध मत रहे हैं एवं आज भी हैं। इसके अनुसार जीवितावस्था में जिसका जैसा व्यवहार हो उसे उसी के अनुरूप परलोक मिलेगा। अच्छे व्यवहार वाला व्यक्ति पुण्यवान कहलाएगा एवं उसे स्वर्गलोक (जन्नत) की प्राप्ति होगी और बुरे व्यवहार वाले व्यक्ति को नरक (दोज़ख/जहन्नुम) प्राप्त होगा। यह बात लगभग सभी ने मान्य की है। चार्वाकवादी नास्तिकों द्वारा ‘‘भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमने कुत:’’ अर्थात राख हुए शरीर का पुनरागम कहां से होगा ऐसा प्रश्न पूछने के बावजूद, सेमेटीक-ज्यू, ईसाई एवं मुस्लिम समाज में सभी मानवमात्र कयामत के दिन पुन: जिंदा होंगे यह मूलभूत धारण मानी जाती है।
इस विषय में हिन्दुओं के ग्रंथ ‘गरूडपुराण’, ईसाइयों के नया करार के अंतिम अध्याय ‘प्रगटीकरण’ में वर्णित बातें तथा कुरान व हदीस इन मुस्लिम ग्रंथों में अनेक जगह स्वर्ग-नरक (जन्नत-दोज़ख) और वहां आत्माओं के अस्तित्व के संदर्भ में अनेक आयतें एवं प्रसंग दिए हैं। प्रस्तुत लेख में इस्लाम के अंतर्गत पुनरुत्थान, जन्नत-दोज़ख एवं वहां के जीवन का परिचय कराया जा रहा है।
पुनरुत्थान व जन्नत-जहन्नुम की पृष्ठभूमि
पवित्र कुरान से कुछ सांख्यशास्त्रीय एवं कालनिर्देशक जानकारी प्राप्त की जा सकती है। उसमें से कुछ जानकारी परंपरागत है। मक्का में पहली सुरा के अवतरण से लेकर मदीना में पैगंबर के अंत तक छोटी-बड़ी सुराओं का अवतरण कभी पूर्ण तो कभी आयत के रूप में हुआ है। इन सब का समुच्चय याने पवित्र कुरान है। इसमें से कौनसी आयतें मक्की हैं, कौन सी मदिनी हैं यह भी परंपरा से निश्चित है। कुछ आयतों के बारे में दोमत भी है।
कुल मिला कर स्वर्ग-नरक एवं पुनरुत्थान की घड़ी के संबंध में वर्णित सुरा एवं आयतें (गीता के अध्याय एवं श्लोक के विभाजन के अनुसार) मुख्यत: मक्का में अवतरित हैं। उस समय मूर्तिपूजा नकार कर मूर्तिविरहित अल्लाह की आराधना करने के आदेश का काल था। नया धर्म ‘दीन’ आकार ले रहा था। उस समय इस धर्म का स्वीकार करने पर प्राप्त होने वाला स्वर्ग सुख मन को लुभाने वाला तथा न स्वीकारने पर प्राप्त होने वाली नरक की यातनाएं दिल को दहलाने वाली थीं। अफ्रीका, मिस्र और मध्यपूर्व के देशों में पुरातन काल से पुनरूत्थान दिन की संकल्पना प्रचलित थी। उस समय तक अपने हाड़मांस के शरीर को जतन करके रखने हेतु मिस्र में पूराहो राजपुरूषों ने अपने शरीर को लेप इ. लगा कर जतन करने की व्यवस्था की थी। आज भी वह ‘ममी’ अच्छी स्थिति में है। जनसामान्य शव को दफनाते हैं। जब पुनरूत्थान का समय आएगा तब अल्लाह उनमें प्राणों का संचार कर उन्हें न्यायदान हेतु जिंदा करेगा ऐसा तीनों ही एकेश्वरवादी- सेमेटिक धर्म- का मानना है। दूसरा कारण कि रेतीली जगह-बंजरभूमि में शव जलाने के लिए लकड़ियां कहां से लाई जाएं यह प्रश्न था। उसके कारण शव को गाड कर उसे समाप्त करने एवं उसके साथ परलोक संबंधी धारणा का निर्माण होना, ऐसा क्रम तैयार हुआ।
यहूदी (ज्यू), ईसाई एवं मुस्लिम धर्म में पुनरुत्थान के समय का उल्लेख है। सांख्यशास्त्र की दृष्टि से देखा जाए तो कुरान में पुनरुत्थान के संदर्भ में काफी उल्लेख हैं। मक्काकालीन सूरा में भी वह बार-बार मिलते हैं। स्वर्ग से संबंधित १६४ एवं नरक से संबधित १३७ उल्लेख हैं। यहां एक बात ध्यान देने योग्य है कि पैगंबर व्यापार के निमित्त ईसाई एवं यहूदी धर्म की बहुलता वाले प्रदेशों में घूम रहे थे। उनके पूर्व की ओर बिलकुल नजदीक में ईरान में उनका प्रवास ज्यादा नहीं हुआ होगा। भारत और चीन इन दोनों में चीन अधिक दूर है इसकी उन्हें जानकारी रही होगी। ज्ञान ग्रहण करने हेतु चीन तक जाना चाहिए ऐसा उनका मानस था। इसकारण कुरान में यहूदी पैगंबरों का उल्लेख एवं उनकी कहानियों का वर्णन बार-बार हुआ है। पुनरुत्थान, स्वर्ग एवं नरक इसे बार-बार दुहराने की आवश्यकता नवदीक्षित अनुयायियों में धर्म के साथ तारतम्य की दृष्टि से आवश्यक थी। जब मदीना में जीत मिलना प्रारंभ हुआ तब लूट में मिली संपत्ति, गुलाम, बच्चे, महिलाएं इत्यादि के वितरण का समय प्रारंभ हुआ। उसी तारतम्य में संपत्ति का वितरण, स्त्री-पुरुष व्यवहार इत्यादि के बाबत आयतें निर्माण होती दीखती हैं। उसके मजमून से वे मक्की हैं या मदीनी कह नहीं सकते।
पुनरुत्थान का समय एवं वर्णन
पुनरूत्थान का समय कितने सालों बाद या कितने युगों बाद आएगा इस विषय में कुरान में कोई निर्णायक जानकारी न होने के बावजूद पुनरुत्थान अटल है ऐसा भाव व्यक्त करने वाली अनेक आयतें हैं। मक्का कालीन सुरा क्र: १४, सुरा इब्राहिम में स्पष्ट आदेश है। जिन्होंने इस्लाम स्वीकार नहीं किया उनके लिए वह चेतावनी देने वाला है। ‘‘आज अत्याचारी लोग जो कुछ कर रहे हैं उससे अल्लाह अनभिज्ञ है, ऐसा मत समझिए। अल्लाह उन्हें उस दिन के लिए टाल रहा है, जब उनकी अवस्था ऐसी होगी कि आंखें फटी की फटी ही रह जाएंगी। वेऊपर की ओर देखते हुए भागेंगे एवं उनके हृदय की धड़कनें बढ़ जाएंगी। हे पैगंबर, उस दिन का उन्हें भय दिखाइये जब यह प्रकोप उन पर होगा। उस समय ये अत्याचारी कहेंगे कि हे हमारे पालनहार, हमें और कुछ मोहलत दो, हम तुम्हारे आवाहन का सकारात्मक उत्तर देंगे और पैगंबर का अनुकरण करेंगे।’’ (परंतु उन्हें स्पष्ट उत्तर दिया जाएगा कि) ‘‘तुम वह लोग हो जिन्होंने पहले शपथ लेकर कहा था कि हमारा कभी र्हास होगा ही नहीं।’’ (दिव्य कुरान, सुरा इब्राहिम १४.४२-४४)
इस्लामी धर्मशास्त्र में शैतान का नाम ‘इब्लीस’ है। इब्लीस द्वारा अल्लाह की अवज्ञा करने के प्रसंग का वर्णन सुरा अल हिज्र १५.२६-४३ में है। उसकी आयत ३६ में मृत शरीर जीवित किए जाने के दिन का उल्लेख है। उस दिन का वर्णन करने वाली पूर्ण सुरा, अल मुर्सलात क्र. ७७ है। पुनरुस्थान के दिन पूरे विश्व में उत्पात होगा, उसका वर्णन है। संपूर्ण पृथ्वी अल्लाह के कब्जे में होगी, स्वर्ग उसके दाहिने हाथ में होगा, उस दिन भयानक परिणाम करने वाला बिगुल बजेगा। जो पृथ्वी या आकाश में होंगे वे सब बेहोश हो जाएंगे। फिर जब दूसरी बार बिगुल बजेगा तब वे सभी अकस्मात उठ खड़े होंगे और देखने लगेंगे। पृथ्वी अपने पालनकर्ता के तेज से प्रदीप्त होगी। कर्म का बहीखाता लाकर रखा जाएगा। (सुरा अज जुमर ३९-६७-६९) प्रत्येक मानव को उसके कर्म का मेहनताना दिया जाएगा। उस समय आकाश फटने का उल्लेख सुराअश शूरा, ४२.५ में किया गया है। ऐसा ही उल्लेख जमीन से मृतकों के निकलने के दिन के बारे में सुरा काऽऽऽफ (५०.४२) में आया है। उस क्षण का परिणामकारक वर्णन मक्काकालीन सुरा अल हाऽऽक्का ६९-१३-१८ में है। ‘‘फिर जब एक बार बिगुल फूंका जाएगा और पृथ्वी तथा पर्वतों को उठा कर एक ही प्रहार में चकनाचूर किया जाएगा। उस दिन की वह घटित होने वाली घटना होगी। उस दिन आकाश फट जाएगा और उसका कसाव ढ़ीला पड जाएगा। दूत अल्लाह के चारों ओर होंगे और आठ दूत तुम्हारे पालनकर्ता का राजसिंहासन अपने कंधों पर उठाए होंगे। (दिव्य कुरान, ६९-१३-१८)
मक्काकालीन सुराओं में प्रारंभिक काल की सुरा अत तकबीर में प्रलय के दिन का, कयामत का वर्णन ८१-१-१४ तक है। ‘‘जब सूर्य अस्तित्वहीन हो जाएगा एवं तारे टूट कर गिर जाएंगे, पर्वत चलाए जाएंगे, जब दस माह की गर्भवती मादा ऊंटों को उनके हाल पर छोड़ दिया जाएगा, जब वन्य पशुओं को इकट्ठा किया जाएगा, जब समुद्र में आग लगाई जाएगी, जब प्राणों को शरीर से जोड़ा जाएगा, जब जिंदा गाड़ी गई नवजात बच्ची से पूछा जाएगा कि उसे कौन से अपराध में मारा गया, जब कर्म का हिसाब किया जाएगा, जब आकाश का परदा दूर किया जाएगा, जब नरकाग्नि भड़काई जाएगी, जब स्वर्ग पास लाया जाएगा, तब प्रत्येक व्यक्ति को समझ में आएगा कि वह क्या लेकर आया है।’’ (अत तकवीर ८१.१-१४)
यह जिस दिन होगा उस दिन पृथ्वी एवं पर्वत कांप उठेंगे और पर्वतों की स्थिति ऐसी हो जाएगी जैसे बालू (रेत) के टीले बिखरे पड़े हैं। (सुरा अल मुज्जम्मिल ७३.१४)
‘‘(वह प्रकोप तब होगा) जब आकाश गलाई गई चांदी के समान पतला होगा और पर्वत रंगबिरंगी धुनकी रुई के समान होंगे। कोई भी व्यक्ति अपने सगे रिश्ते को नहीं पूछेगा। वस्तुत: वे एक दूसरे को दिखाए जाएंगे।’’ (मक्काकालीन सुरा, अल्म आरिज ७०.८.११) जब पृथ्वी सतत रेगिस्तान बना दी जाएगी। ऐसी स्थिति में दूत कतारों में प्रकट खड़े होंगे और तुम्हारा पालनकर्ता प्रगट होगा। (सुरा अल फज्र ८९।२१।२२) कयामत के दिन अल्लाह तराजू में वजन कर न्याय करेगा। ऐसा वर्णन अल्लाह के मुख से कहा गया है।
‘‘पुनरूत्थान के दिन हम बिलकुल सही वजन करने वाले तराजू रखेंगे। फिर किसी भी व्यक्ति पर थोड़ा भी अत्याचार नहीं होगा। किसी ने राई के दाने के बराबर भी कुछ किया होगा तो उसे हम सामने लाएंगे और हिसाब करने के लिए हम समर्थ हैं।’’ (मक्का कातील सुरा अल अंबिया २१.४७)
पुनरुत्थान के दिन जो पैंगबर के उपदेश से मुंह मोडेंगे उन्हें अपने पाप का बोझ उठाना पड़ेगा जो काफी तकलीफ देह होगा। (सुरा तॉहा २०.१०१.१०२)
पैगंबरों के मुख से यह वर्णन सुनते हुए लोग कांप रहे होंगे इसमें कोई शंका नहीं। अन्यत्र भी कुरान में दिया हुआ वर्णन थोड़े बहुत अंतर के साथ आया है। उनका सारांश निकालना हो तो कयामत-प्रलय के दिन दृश्य विश्व पृथ्वी, आकाशसहित नष्ट होगी। सभी दफन किए हुए मानव जिंदा होंगे। उस दिन अल्लाह तराजू में तौल कर उनके अच्छे बुरे कामों का न्याय करेगा। इस सब में महत्वपूर्ण याने उस दिन भयंकर गरभी पड़ेगी। उससे जो ताप उत्पन्न होगा उससे चांदी भी पिछल जाएगी।
पवित्र कुरान में नरक का वर्णन
नरक यातनाओं में बार-बार आने वाली संकल्पना नरकाग्नि की है। मक्काकालीन सुरा अन नसा क्र. ७८ में विश्व में मानव जीवन हेतु पृथ्वी की निर्मिति, प्रलय का दिन, नरक का जीवन, स्वर्ग का जीवन इन सभी का संक्षिप्त वर्णन है। एकेश्वरी-सेमेटिक धर्म- के अनुसार स्वर्ग या नरक का वास यदि मिलता है तो वह अनंतकाल के लिए है। खासकर काफिरों के नसीब में नरकवास तो अनंतकाल के लिए है ही।
नरक में पीने के लिए गरम ही नहीं खौलता हुआ पानी मिलेगा (सुरा अर रहमान ५५.४४) नरक यातना के लिए अल्लाह ने क्या व्यवस्था की है इसका वर्णन सुरा अल कहफ क्र. १८ में है। हमने (सत्य को नकारने वाले) अत्याचारियों के लिए एक अग्नि तैयार रखी है जिसकी ज्वालाओं ने उन्हें घेर लिया है। वहां यदि उन्होंने पीने के लिए पानी मांगा तो उनकी इच्छा ऐसे पानी से पूरी की जाएगी जो उनका मुंह जला देगी। निकृष्ट पेय एवं अत्यंत खराब निवास स्थान होगा। (दिव्य कुरान, अल कहफ १८.२९) मदीना कालीन सुरा अन निसा क्र. ४ में अल्लाह के संकेत वचन नकारने वालों को चेतावनी दी गई है, ‘‘जो लोग हमारे संकेत वचनों को मानने से इन्कार करेंगे उन्हें हम निश्चित रूप से आग में फेंक देंगे और जब उनके शरीर की त्वचा जल कर गल जाएगी तब उसके स्थान पर नई त्वचा का निर्माण करेंगे जिससे उन्हें उस प्रकोप का बार-बार अनुभव हो।’’ (सुरा अन निसा ४.५६)
कुरान में अनेक स्थानों पर गैर मुस्लिमों को अत्याचारी कहा गया है एवं उनका अंतिम आश्रयस्थान नरक है ऐसा नस्त्र में लिखा गया है। (नस्त्र पृ. २४६, आयत क्र. ४.१२१ टीका) उसमें से कुछ आयतें हैं ३-१५१, ४-९७, ८-१६ इ.। अत्याचारियों के नसीब में जो आखिर का आश्रयस्थान है वह नरक है और वह अत्यंत खराब है। (कुरान ३.१५१) प.कु. ९.७९ इस आयत में कहा गया है कि जो युद्ध में शामिल न होने वाले दांभिकों का अल्लाह मजाक उड़ाता है। उनके लिए नरक की यातना की सजा मुकर्रर है। नरकाग्नि (पृथ्वी की अग्नि की अपेक्षा) अधिक तीव्र है (प. कु. ९.८१)
अल्लाह ने नरक यातनाएं भोगने वालों के लिए ‘‘जक्कूम के वृक्ष (बिषवृक्ष) का निर्माण किया है।’’ हमने उस झाड़ को अत्याचारियों को सताने के लिए बनाया है। वह नरक के तल से निकलता है। उसकी कलियां शैतान के सिर के समान हैं। नरक के लोग वह खाएंगे और अपना पेट भरेंगे। उसके बाद उन्हें पीने के लिए खौलता पानी दिया जाएगा और बाद में उनकी खाल भी नरकाग्नि की ओर होगी।(प.कु. ३७-६२-६८) कुरान सौरभ में दी गई नोट के अनुसार (प्र. ९९७) इस वृक्ष के ङ्गल अत्यंत कटु होते हैं और उसमें बहुत दुर्गंध होती है। उसका दूध यदि शरीर में लग जाए तो शरीर पर सूजन आ जाती है। इस वृक्ष के संदर्भ में एक दूसरा उल्लेख यह भी है कि पेट में जाने के बाद पिघले हुए शीशे के समान वह पेट में उबलते हुए पानी के समान उबाल मारेगा।
नरक में सजा भोगने वालों के लिए बेड़ियों में जकड़ने की सजा का भी प्रावधान है। वह बेड़ी कितनी लंबी होगी वह भी एक आयत में वर्णित है। (आदेश होगा) पकड़ो इसे और इसका गिरेबान पकड़ कर ङ्गिर इसे नरक में ङ्गेंक दो, बाद में सत्तर हाथ लंबी बेड़ी में जकड़ो। (कारण) यह श्रेष्ठ व सर्वोच्च अल्लाह को नहीं मानता था। (दिव्य कुरान, अल हाऽऽक्का ६९.३०.३४)
उपरोक्त आयतों में ७० हाथ लंबी जंजीर (बेड़ी) का जिक्र है। अरबों की सांस्कृतिक परंपरा में ७० का आकड़ा अनगिना के रूप में उपयोग करने की परंपरा थी। इसका अर्थ एक-एक को जकड़ना न होकर अनेकों को एकसाथ जकड़ने से है। एक जगह पर डामर का उल्लेख भी मिलता है। सऊदी अरब में खनिज तेल प्राचीन काल से उपलब्ध था। उसी का एक उच्च तापमान पर उबलने वाला भाग याने डामर या टार है।
‘‘जिस दिन तुम अपराधियों को देखोगे कि उनके हाथपांव बेड़ियों में जकड़े हैं उनके वस्त्र तारकोल (ज्वालाग्राही डामर) के हैं और उनके चेहरा पर आग की ज्वालाएंं हैं।’’ (सुरा इब्राहिम १४-४९-५०)
नरक के सात प्रकार हैं। उनके सात द्वार है। सऊदी अरेबिया के प.कु. १५-४४ की अनुदित नोट में लिखा गया है कि पापों के अनेक प्रकार होने के बावजूद उनका वर्गीकरण सात भागों में किया गया है। प्रत्येक प्रकार के पाप के लिए अलग नरक है।’’ ‘कुरान माजिद’ के अनुसार उनके नाम हैं, जहन्नुम, लजा, हतमा, सईर, सकर, जहीम और हाविया। इन नरकों के रक्षक इब्लीस के अनुयायी हैं।
इन नरकों में सजा भोगने वालों के साथीदार अन्य पापी होंगे (इसी के साथ अलग- अलग सजाएं देने के लिए शैतान के सहयोगी होंगे। (प.कु. ११.११९) उनका प्रमुख इब्लीस होगा। अल्लाह ने मानव को कीचड़-मिट्टी से तयार किया है और जिन्न समूह को अग्नि की ज्वालाओं से तैयार किया है। (प. कु. आयत ५५.१४)
कुल मिला कर यदि देखा जाए तो प. कुरान में किए गए नरक के वर्णन, सजाएं, सजा देने वाले शैतान के अनुयायी, उनका प्रमुख शैतान इब्लीस यह सब पृथ्वी पर घटित हो सकने वाले, भौतिक धरातल पर घटने वाली घटनाएं लगती हैं।
प.कुरान में स्वर्ग का वर्णन
प. कुरान में स्वर्ग के वर्णन स्थानीय रेतीले प्रदेश की पृष्ठभूमि पर आधारित हैं। रेगिस्तान में जहां दूर-दूर तक जलविरहित रेतीला समुद्र ङ्गैला है, जहां झाड़ का पत्ता तक नहीं दिखता, ऐसे प्रदेश में रहने वालों के लिए भरपूर पानी, बाग-बगीचे, और उत्तमोत्तम पकवानों का आकर्षण स्वाभाविक है। प. कुरान में स्वर्ग का वर्णन उसके अनुरूप है।
प. कुरान में मक्काकालीन सुरा अल लाकिआ (क्र. ५६) स्वर्ग और नरक का वर्णन करती है। उसमें मृतात्माओं को तीन वर्गों में विभाजित किया गया है। सब से आगे रहने वाले लोग प्रथम क्रमांक पर होंगे। उन पर अल्लाह की असीम कृपा रहेगी। दूसरे प्रकार के लोग अल्लाह के दायीं ओर होंगे, वे ईमानदार मुसलमान होंगे। उन्हें स्वर्गसुख मिलेगा। तीसरे क्रमांक के लोग बायी ओर के होंगे, जिन्हें नरक यातनाएं मिलेंगी।
‘‘आप लोग जब तीन गुटों में विभाजित किए जाओगे उस समय दायीं ओर वालों के सौभाग्य के क्या कहने! बायीं ओर के लोगों के दुर्भाग्य के विषय में क्या कहा जाए और जो सब से आगे प्रथम क्रमांक पर हैं, वे ही अल्लाह के निकटर्ती लोग हैं। वे ऐश्वर्यसंपन्न स्वर्ग में रहेंगे। बिलकुल अग्रिम पंक्ति के सभी एवं उनके पीछे के कुछ थोड़े लोग नक्काशीदार आसनों पर तकिया लगा कर आमने सामने बैठेंगे। उनकी महङ्गिल में बच्चे बहते हुए झरने के पेय के भरे हुए गिलास एवं सुराही लेकर सेवा करते रहेंगे। इसके पीने से उनका सिर भी नहीं चकराएगा एवं बुद्घि भी भ्रष्ट नहीं होगी। उनके सामने विविध प्रकार के ङ्गल एवं विभिन्न पक्षियों का मांस परोसा जाएगा, जिसे जो पसंद है खाये। उनके लिए सुंदर नेत्रों वाली अप्सराएं वहां उपस्थित रहेंगी। पृथ्वी पर रहते हुए उन्होंने जो कर्म किए हैं यह उसके बदले में उन्हें मिलेगा। वहां वे कोई भी असभ्य बर्ताव या पाप की बातों का सामना नहीं करेंगे। जो सब होगा वह बिलकुल ठीकठाक होगा। (५६.७-२६) दायें बाजूवालों के सौभाग्य का क्या कहना! बिना कांटो वाले बेर के पेड़, केलों से लदे हुए केले के पेड़, दूर तक ङ्गैली हुई छांव, हमेशा प्रवाहित रहने वाला पानी, कभी न समाप्त होने वाले और सरलता से मिलने वाले ङ्गल, सोने के लिए आलां दर्जे के बिस्तर और उसके लिए खास नवनिर्मित कुमारिकाएं और समवयस्क विलासिनी सहचर ये सब दायीं ओर वालों के लिए है।
स्वर्ग के पेय एवं आहार
स्वर्ग के वर्णन में कुछ बातों की अधिक जानकारी नीचे दी गई टिप्पणियों से मिलती है। स्वर्ग में घूमने वाले बच्चे हमेशा बच्चे ही रहेंगे। ईसाई धर्म के चित्रों में पंख लगे हुए बालवयीन देवदूतों का स्वर्ग में विचरण दिखाई देता है। खाने के लिए पक्षियों के मांस का उल्लेख मिलता है। उसके लिए अनेक प्रकार के पक्षी वहां उपलब्ध रहेंगे। अन्य प्राणियों के मांस का उल्लेख नहीं है।
आयत क्र. ५६.१८ में प्याले, सुराही के जिस पेय का उल्लेख है वह शराब है। उसका अनुवाद ‘कुरान सौरभ’ में प्याला निथरी (बहती शराब) से भरा हुआ किया गया है। वह पीने से उन्माद नहीं चढ़ेगा ऐसा अगली आयत में स्पष्ट किया गया है। इस आयत पर नस्त्र ने विस्तृत टिप्पणी लिखी है। वह लिखता है, भले ही पृथ्वी के जीवन में शराब पीना मना होगा (४.४३,५-९०) परंतु परलोक में जो शराब सेवन हेतु मिलेगी उसके कोई दुष्परिणाम नहीं होंगे। एक अन्य सुरा में स्वर्ग में मिलने वाली शराब का वर्णन करते हुए कहा गया है कि वह शुद्घ, उत्तम एवं मोहरबंद होगी एवं उसमें कस्तुरी का स्वाद होगा। (सुरा अल मुतफ्ङ्गिङ्गीन ८३.२५.२६) वैसे ही उसका स्वाद लेते समय वे तस्नीम के साथ लेंगे। तस्नीम का अर्थ नस्त्र स्वर्गीय झरना बताते हैं। (नस्त्र पृ. क्र. १४९०) स्वर्ग में जो शराब का पात्र दिया जाएगा उसका वर्णन – निथरी बहती (शराब के स्रोत) से मद्यपात्र भरभरकर उनके बीच घुमाए जाएंगे, (वे) उज्ज्वल और पीने वालों के आस्वाद के लिए होंगे।’’ (कुरान सौरभ ३७-४५-४६) ‘कुरान माजिद’ ने इसका उल्लेख शराब के जाम (पृ. क्र. ७२२) ऐसा किया है। इस पेय का मद्य के रूप में स्पष्ट उल्लेख दिव्य कुरान, अब्दुला युसुङ्ग अली, सऊदी, अरेबिया इ. ने नहीं किया है। कुल मिला कर ऐसा लगता है कि इस जगह मूल में जो शब्द है उसके अनुवाद में अनुवादकों ने अर्थांतर किया है। नस्त्र ने उसका उल्लेख अपनी टिप्पणी (पृ. १४६६) में अल्ला के द्वारा मान्य स्वर्गीय मद्य इस प्रकार किया है। इसका पूरक उल्लेख बगीचे एवं अंगूर के बाग के रूप में सुरा अन नवा क्र. ७८.३२ में आया है। नस्त्र ने उसका वर्णन तळपशूरीवी इस प्रकार किया है।
सामने के एवं दाहिनी ओर के दो भाग करने के बाद उनके निवास एवं विहार हेतु दो प्रकार के उद्यान (५५.४६), दो प्रकार के झरने (५५.५०) एवं वहां दो प्रकार के ङ्गल (५५.५२) होंगे। दूसरी एक सुरा में स्वर्ग में बहने वाली नदियों के पदार्थ-प्रवाह का उल्लेख है। ईश्वरभक्त लोगों के लिए जिस स्वर्ग का वचन दिया गया है उसका वैभव तो इस प्रकार है कि वहां कभी भी प्रदूषित न होने वाली पानी की एवं दूध की नदियां होंगी जिनका स्वाद कभी नहीं बदलेगा। (अर्थात वे कभी खराब नही होंगी) जिन्हें शराब पीना है उनके लिए स्वादिष्ट शराब की नदियां होंगी। (प.कु. ४७.१५) इस आयत के संदर्भ में विस्तृत टिप्पणी दी गई है। दिव्य कुरान की टिप्पणी के अनुसार ‘हदीस में दिए गए स्पष्टीकरण के अनुसार वह दूध जानवरों के स्तनों से नहीं निकला होगा, वह शराब ङ्गल सड़ा कर नहीं बनाई गई होगी, वह शहद मधुमक्खियों का नहीं होगा। यह सारा नैसर्गिक झरनों के रूप में बहता होगा।’’ (पृ. ६९९)
नस्त्र ने इस आयत पर विस्तृत टिप्पणी (पृ. १२३९-४०) दी है। पैगंबर मोहम्मद ने स्वर्गारोहण के दौरान चार नदियों से उसका संबंध जोड़ा है। वह टिप्पणी बहुत बड़ी होने के कारण यहां उसका विश्लेषण विस्तार होने के भय के कारण नहीं किया गया है। परंतु आयात ५५-५० में दो झरनों का उल्लेख है। ये दो झरने शराब एवं दूध के हो सकते हैं ऐसा नस्त्र ने लिखा है। स्वर्ग के पेय पदार्थों के नाम प. कुरान में दिए गए हैं। इसमें से ‘तस्नीम’ नामक पेय का उल्लेख आयत ८३-२७ में तो ‘सलसबील’ का उल्लेख आयत क्र. ७६-१८ में हैं। इन पेयों में सोंठ या अदरक डाला हुआ होगा। (आयत ७६.१७) अरब वासियों को शराब के साथ सोंठ मिश्रित पानी पिलाना अच्छा लगता था इसलिए जिस में सोंठ मिली हो ऐसा पानी वहां मिलाया जाएगा ऐसा स्पष्टीकरण दिव्य कुरान ने दिया है (टिप्पणी क्र. ८, पृ. ८३६) स्वर्ग के पेयों के साथ-साथ रेगिस्तानी गरम प्रदेश में जल्दी खराब न होने वाले एवं ज्यादा दिन चलने वाले दो ङ्गलों, खजूर एवं अनार, का उल्लेख आयत क्र. ५५.६८ में आया है। उसके साथ ऑलिव और अंजीर का निर्देश नस्त्र ने किया है।
स्वर्ग की अप्सराएं
स्वर्ग की अप्सराओं के संदर्भ में उनके सौंदर्य का दर्शन कराने वाले अनेक वर्णन हैं। उन्हें हूर कहा गया है। वे गोरी-गोरी एवं मृगनयनी होगी। (प.कु. ४४.४५) उनकी नजर लज्जा से भरी होगी एवं उन्हें इन स्वर्गस्थ लोगों के पहले किसी मानव या देवों ने स्पर्श नहीं किया होगा। (प.कु. ५५.५६) वहां तंबुओं में रखी गई अप्सराएं होंगी। (प.कु. ५५.७२) प.कु. ५५.५६ एवं ७२ में जिन स्वर्गीय ललनाओं का जिक्र आया है उस संदर्भ में नस्त्र ने स्पष्टीकरण दिया है। वह लिखता है, आलां दर्जे के बगीचों में रहने वाली ललनाओं की नजर लज्जायुक्त होगी। कनिष्ठ स्तर के बगीचों में रहने वाली ललनाएं एकांतवास के लिए बनाए गए तम्बुओं में होंगी। शायद अमीर-उमरावों के मनबहलाव के लिए जिस प्रकार के तंबू निर्माण किए जाते हैं उसी प्रकार के ये तंबू होंगे। उस मनबहलाव के स्थान पर जगह-जगह तंबू लगाए गए होंगे। वहां अप्सराएं उनके लिए आनंद एवं उपभोग के साधन उपलब्ध कराएंगी। (दिव्य कुरान पृ. ७४९)
आयत ५६.३७ में समवयस्क विलासिनी सहचरी इस प्रकार का उल्लेख मिलता है। उसका अनुवाद कुरान सौरभ ने प्रेयसी और समवयस्क, नस्त्रने Amorous Peers सऊदी अरब के अनुवादकों ने full of love for their mates ऐसा किया है। पिकथाल ने lovers and friends किया है? समवयस्कों के संबंध में कुरान माजिद में उन अप्सराओं के प्रेमी तरुण होंगे और उनकी तरूणाई अखंड रहेगी ऐसा वर्णित है। परंतु समवयस्क कहने के बाद कौनसी उम्र यह प्रश्न उत्पन्न होता है। उसका उत्तर नस्त्र ने अन्य संदर्भों के माध्यम से दिया है। वह ३३ है, अर्थात स्वर्गीय सुखों का उपभोग करने वाले और उनकी समवयस्क सहचरी सदैव ३३ वर्ष के रहेंगे। इस ३३ साल की उम्र का जिक्र केवल नस्त्र ने किया है। ऐसे समवयस्क सहचारियों का उल्लेख आयात ३८-५२ एवं ७८-३३ में है। ७८-३३ में नवयुवतियां मांसल होंगी (Buxom) ऐसा अनुवाद नस्त्र ने दिया है।
स्वर्ग की सहचारिणियों की सतेज कांति के संदर्भ में जो हदीस (अल बुखारी ४.४६८ पृ. ६४९) है उसमें उनका वर्णन उनके हड्डियों में स्थित रस (Bone marrow) दिखता है इस प्रकार का है। प्रत्येक को दो ही सहचारिणियां मिलेंगी ऐसा उसमें लिखा है? इसमें लिखे वर्णन के अनुसार ह. अबु हुरैरा कहते हैं, पैगंबर मोहम्मद के बताए अनुसार स्वर्ग में प्रथम प्रवेश प्राप्त करने वाले लोक समूह की कान्ति चंद्रमा के समान उजली होगी। वे थूकेंगे नहीं, उनकी नाक नहीं बहेगी एवं वे मलमूत्र विसर्जित नहीं करेंगे। (अल बुखारी ४.४६८ पृ. ६४८)
पृथ्वी की महिलाओं का स्वर्ग प्रवेश अत्यंत कठिन
इस संदर्भ में तीन महत्वपूर्ण हदीस ध्यान में रखने योग्य हैं। उसमें पै. मुहम्मद के अनुसार पृथ्वी की महिलाओं को स्वर्ग में प्रवेश मिलना अत्यंत कठिन है। अल बुखारी द्वारा संग्रहित हदीस ये तीनों लिए गए हैं। पहली हदीस यह परंपरानुसार पै. मुहम्मद की यादें ह. अबु सैद अल खुद्री ने निवेदित की है। एक बार पै. मुहम्मद (स.) इद अल अधा या अल ङ्गीत्र की प्रार्थना करने गए। कुछ महिलाओं के बाजू से गुजरते हुए उनसे बोले, अरे महिलाओे! दान करो। क्योंकि नरक के बहुसंख्य (majority) निवासी आप ही थीं ऐसा मैंने देखा। महिलाओं ने पूछा, ‘‘हे अल्लाह के दूत! ऐसा क्यों?’’ उस पर पैगंबर बोले, ‘‘आप लोग अपने पतियों को हमेशा भलाबुरा कहती रहती हैं और उनके साथ कृतघ्नता करती हैं। आप महिलाओं की अपेक्षा मुझे दूसरा कोई जरूरत से ज्यादा बुद्घिमान और धर्म पालन में कमी करने वाला नहीं मिला। धर्म पालन के बारे में जागरूक मनुष्य आप लोगों में से कुछ के कारण मार्ग भ्रष्ट हो सकता है।’’ इस पर महिलाओं ने कहा, ‘‘हे अल्लाह के पैगंबर! हमारी बुद्घिमता एवं धर्म पालन में क्या कमी हैं?’’ तब पैगंबर ने कहा, ‘‘गवाही देते समय दो महिलाओं की गवाही एक पुरुष की गवाही के बराबर मान्य नहीं है?’’ महिलाओं ने इसे माना। पैगंबर ने कहा, ‘‘यह आप की बुद्घिमता में कमी है। महिलाओं को मासिक धर्म के समय नमाज पढ़ने की मनाही है। वैसे ही उपवास भी नहीं कर सकते।’’ ‘‘ऐसा है ना?’’, महिलाओं ने इसे भी मान्य किया। तब पैगंबर ने कहा, ‘‘यह आपके धर्म पालन में कमी है।’’ (अल बुखारी १.३०१, मेरे पास मौजूद पुस्तक में पृ. क्र. १४४)
ऐसी कौनसी महिला होगी, जिसने अपने पति से थोड़ा बहुत झगड़ा न किया हो। प. कुरान २.२५ में अंत में दिए गए निर्देश के संबंध में नस्त्र की टिप्पणी से सदैव आज्ञाधारक सहचरी एवं स्त्रियों की मानसिक एवं शारीरिक पवित्रता के संदर्भ को समझा जा सकता है।
दूसरी हदीस ह. इम्रान बीन हुसैन ने निवेदित की है। इसके अनुसार पै. मुहम्मद ने जब स्वर्ग की ओर दृष्टि डाली तब वहां रहने वाले अधिकतर लोग पृथ्वी के गरीब लोग थे। जब उन्होंने नरक की ओर दृष्टि डाली तब वहां उन्हें स्त्रियां ही अधिक दिखीं। (अल बुखारी ४.४६४ पृ. क्र. ६४८) ऐसे ही स्त्रियों की बहुसंख्या के बारे में उल्लेख अल बुखारी ७.१२४ पृ. ९०१ में भी है।
परिपूर्णता प्राप्त कर स्वर्ग में पहुंची हुई केवल दो महिलाओं के नाम ह. अबु मूसा ने बताए हैं। आशिया (ङ्गराहो की पत्नी) और मरयम (अल्लाह के इन इम्रान की पुत्री) अल बुखारी ४.६२३ पृ. ६७५)
स्वर्ग के अन्य सुख
स्वर्ग में रहने वाले लोगों को अन्य सुखों की भी प्राप्ति होगी। उनके वस्त्र रेशम के होंगे। उन्हें गले में सोने-मोती की मालाएं पहनाई जाएंगी। (आयत प. कुरान २२.२३) सुरा अल बकरा इस सब से बडी सुरा में लिखी गई आयत के अनुसार, ‘‘और ये पैगंबर (स.) जो ईमानदार होंगे व सद्वर्तन करेंगे उन्हें खुशखबर दीजिए कि उनके लिए ऐसे बगीचे हैं जिनके नीचे से नदियां बहती हैं। इन बगीचों के ङ्गल दिखने में संसार में दिखने वाले ङ्गलों जैसे ही होंगे। जब उन्हें कोई ङ्गल दिया जाएगा तब वे कहेंगे कि ऐसे ही ङ्गल हमें इसके पूर्व पृथ्वी पर दिए जाते थे। उनके लिए वहां पवित्र और चरित्रवान साथी रहेंगे और वे हमेशा वहीं रहेंगे। (प. कु. २.२५) यहां नोट करने लायक बात याने दिव्य कुरान ने स्वर्ग के बगीचों के लिए भारतीय परंपरा में उपयोग किया जाने वाला शब्द ‘नंदनवन’ का उपयोग किया है। वह उचित लगता है। स्वर्ग में चांदी के गिलास में पेय दिए जाएंगे। वहां नरम रेशम की हरी पोषाख होगी तथा अतलस व दिबा के वस्त्र होंगे। (पृ. कु. ७६.२१) बगीचे गहरे हरे रंग की चादर ओढ़े होंगे। (प. कु. ५५.६४) यहां गहरे हरे रंग का उल्लेख मूल अरबी में ‘मुद हम्मतानी’ ऐसा किया गया है। इस रंग की तुलना ‘शस्यशामल’ के वर्णन से की जा सकती है। इस बगीचे के ङ्गल इतने नीचे होंगे कि हाथ से तोड़े जा सकेंगे। उनकी उपजिविका उन्हें नियमित रूप से सुबह-शाम मिलती रहेगी। (सुरा मरयम १९.६२) यहां सुबह-शाम का उल्लेख होते हुए भी कुछ भाष्यकारों के अनुसार स्वर्ग में अंधेरा होगा ही नहीं। घरों को परदों से ढंकने या उन्हें बाजू में करने का समय निश्चित होगा। (नस्त्र टिप्पणी पृ. ७८०)
स्वर्गस्थान एडन एवं इहलोग में समानता
पूर्व में दिए गए कुछ निर्देश बाइबल से मेल हैं। उसमें से एक, ‘एडन’ स्वर्गस्थान का है। बाइबल के विश्वनिर्मिति अध्याय (२.१५) में ईश्वर ने आदम और इव को ‘एडन’ विभाग के बगीचे में रखा था ऐसा कहा गया है। यहूदी और ईसाई परंपरा के अनुसार एडन प्राचीन बेबीलोन, अर्थात आज के इराक में था। वह प्रदेश बहुत पुरानी परंपरा एवं समय से अनेक संस्कृतियों से व्याप्त था। बेबीलोन शब्द का अर्थ ही देवताओं का द्वार है। युङ्ग्राटिस नदी के तीर पर बड़े-बड़े हिस्से कर (tervacing) बनाया हुआ यह बगीचा प्राचीन काल से प्रसिद्घ था। उसे तैरने वाला बगीचा (hanging Garden) कहते थे। उस बगीचे में पानी ऊपर चढ़ाने के लिए यंत्र एवं जलखंदक (Aguadhcts) का उपयोग किया गया था। प्राचीन पुरातत्व में उनके चित्र उपलब्ध हैं। उस स्थान अथवा अन्य ऐसे ही स्थानों को १६.३१ एवं १८.३१ और अन्य अनेक स्थानों पर ‘जन्नति अदनीन’ कहा गया है।
बगीचों के नीचे से झरने या नदी बहने का स्पष्टीकरण नस्त्र ने भी दिया है। प्राचीन एडन एवं बेबीलोन के हैंंगिंग गार्डन की जानकारी मुझे होने के कारण उसका संबंध स्थापित कर सका। प. कुरान के स्वर्ग का भौतिक साधर्म्य बेबीलोन के तैरते बगीचे एवं उनके नीचे बहने वाली नदियों से है। यह मेरा मत इस विषय के अन्य जानकारों को ठीक लगता है क्या? यह जानने की मेरी उत्सुकता है।
स्वर्ग का वर्णन हदीस में और अधिक विस्तार से किया गया है। ह. अबु हुरैरा के अनुसार पै. मुहम्मद जब सोये थे तब उन्होंने स्वत: को स्वर्ग में देखा। वे जिस भव्य महल के सामने खड़े थे वहां एक महिला थी। उसे पूछने पर उसने जानकारी दी कि वह महल उनके निस्सिम अनुयायी उमर बिन अल खत्रब, दूसरे आदर्श खलीङ्गा के लिए था। (अल बुखारी ४.४६५ पृ. ६४८)
स्वर्ग के दरवाजों की भव्यता का वर्णन करते हुए ह. अबु सदीद अल खोद्री के कहे अनुसार पै. मुहम्मद ने बताया कि स्वर्ग के दरवाजों के दो स्तंभों के बीच का अंतर वर्तमान के मक्का एवं बहरीन के हजर गांव के बीच अंतर के बराबर है। गूगल मैप पर यह अंतर १३५० कि.मी. है। (मिस्कत उल मसाबी, सब की सहमति वाला हदीस, खंड क्र. ४ पृ. क्र. १३०)
स्वर्ग में बहने वाली नदियों की चौड़ाई कितनी है इसका वर्णन हजरत इब्न ओमर ने किया है। अल्लाह के पैगंबर ने कहा कि इस प्रवाह के दो किनारों का अंतर जरबा एवं अज़रूज के अंतर के बराबर है। इस संदर्भ की टिप्पणी में लिखा गया है कि जरबा एवं अज़रूज सीरिया के दो गांव हैं एवं उनका अंतर तीन रातों की यात्रा के बराबर है। साधारणत: रेगिस्तानी प्रदेश में एक रात्रि में ३५ से ४० कि.मी. प्रवास किया जाता है। (मिस्कत उल मसाबी खंड ४ पृ. १४८)
नरक में या रसातल में गया ऐसा वाक्प्रचार है। गहरे नरक की कल्पना हदीस में भी है। नरक के रसातल की गहराई तक पहुंचने में सत्तर वर्ष का समय लगेगा ऐसा कहा गया है। (मिस्कत उल मसाबी, मुस्लिम हदीस, खंड ४, पृ. १५०)
आश्चर्य की बात याने स्वर्ग-नरक बिलकुल पास-पास बसे बताए गए हैं। वहां के पुण्यवान एवं पापी लोग एक दूसरे से बात कर सकते हैं। प.कु. अल आउसराफी क्र. ७ में स्वर्ग एवं नरक में रहने वाले लोगों के बीच का वार्तालाप दिया गया है। अल आउसराफी इस शब्द का अर्थ ऊंचा भाग इस प्रकार का है। वह उल्लेख इस वार्तालाप में है।
स्वर्ग के लोगों द्वारा झांक कर नरक की ज्वालाओं में स्थित लोगों को देखने का उल्लेख प.कु. ३७-५५ में है। वैसे ही आयत ५७-१३ में स्वर्ग एवं नरक में दीवार खड़ी कर उसमें एक दरवाजा होने का उल्लेख है। इस दरवाजे के अंदर कृपा होगी एवं बाहर प्रकोप। (दिव्य कुरान पृ. ७५६)
मरने के बाद तुरंत स्वर्ग नहीं
सन १९८५ के आसपास नेशनल जिऑग्राफिक के एक अंक में ईरान-इराक युद्ध में युद्ध क्षेत्र में जाने वाले किशोर बच्चों के चित्र प्रकाशित हुए थे। उसके साथ जो खबर लिखी थी उसमें ईरान का सर्वेसर्वा अयातुल्ला खोमेनी बच्चों को एक-एक चावी देकर यह कहता है कि तुम लोग जमीन पर लुढ़कते हुए जाओ एवं युद्ध क्षेत्र में जो बारूद जमीन पर बिछाई गई है उसका खात्मा करो जिससे ईरान की सेनाएं तुम लोगों के पीछे सुरक्षित रूप से युद्ध क्षेत्र में आ सके। इन सब मासूम बच्चों को जो चावियां दी गई थीं वह स्वर्ग में उनके लिए नियत कमरों की थीं। वे बच्चे युद्धभूमि पर शरीर पर गद्दियां लपेट कर जाते और नीचे बारूद आने पर उनके चीथड़े-चीथड़े हो जाते। उन्हें यह बताया जाता था कि मरने के तुरंत बाद वे स्वर्ग पहुंचेंगे और उनके लिए आरक्षित कमरे सब सुख -सुविधाओं के साथ उन्हें प्राप्त होंगे। मुझे स्वयं भी यह पश्चिमी राष्ट्रों का ईरान-खोमेनी के विरुद्ध प्रचार लगा था परंतु मेरे अमेरिकी निवास के दौरान ईरान से भाग कर आए एक सैनिक अधिकारी से मेरी बात हुई तब उसने इस स्वर्ग के कमरे की चावी की बात बताई। बच्चों के उड़ते हुए चीथड़े देख कर उसका मन व्यथित हो गया था। युद्ध में घायल होने का कारण बता कर वह वापस आ गया एवं बाद में उसने अमेरिका में आश्रय लिया।
२०१५ के दौरान इराक में इसिस की विजय का रथ जब दौड़ रहा था तब यूरोप एवं ब्रिटेन से खिलाफत के स्वप्न देखने वाले नौजवानों के साथ युवतियां भी उनके साथ आ रही थीं। ब्रिटेन से आई दो युवतियों के प्रेमी युद्ध में मारे गए थे। तब उन्होंने ट्वीट किया था कि अब उनके प्रेमी स्वर्ग में वहां की परियों के साथ अपना समय बिता रहे होंगे। यहां विस्तार से यह सब बताने का कारण यह है कि इस तरह ‘दीन’ धर्म के लिए मारे गए तरूण तुरंत स्वर्ग पहुंचेंगे यह मुल्लाशाही ने उनके दिलो-दिमाग में अच्छे से भर दिया था। इस संदर्भ में अल बुखारी में एक हदीस (खंड प. भाग ५२, कथन ५७) बताई गई है। यह हदीस ह. अनास द्वारा निवेदित है। पै. मुहम्मद ने बनी सलीम जनजाति के (Tribe) ७० लोगों को बनी अमीर जनजाति के लोगों के पास बात करने भेजा। बनी अमीर के लोगों ने उनके साथ दगाबाजी कर उन्हें मार डाला। केवल एक लंगड़ा व्यक्ति उनकी कहानी बताने हेतु वापस आया। उस समय अल्लाह के दूत गैब्रियल ने पैगंबर मुहम्मद को बताया कि दगाबाजी से मारे गए लोगों की अल्लाह से प्रत्यक्ष भेंट हुई व उन पर अल्लाह की कृपा हुई। उसके बाद चालीस दिन तक पै. मुहम्मद ने अल्लाह से प्रार्थना की वह दगाबाज लोगों को सजा दे।
गैब्रियल द्वारा दी गई आयत प्रथमत: प. कुरान में आयत के रूप में स्वीकार की गई। परंतु बाद में उसे निकाल दिया गया। कारण वह प. कु. की आयत क्र. ३३-२१ के विरोध में थी। प. कु. की आयत ३३.२१ के अनुसार सभी योद्धाओं को अंतिम दिन तक रूकना है। उस समय पै. मुहम्मद अल्लाह के पास उनके लिए पैरवी करेंगे।
ऊपर दी गई बुखारी हदीस के बाद आई हुई हदीस में इसकी पुष्टि होती है। उसके अनुसार लड़ाई में ‘दीन’ धर्म के लिए जो योद्धा मारे गए हैं वे अल्लाह को ज्ञात हैं। जब उनका पुनरुत्थान होगा तब भले ही उनके जख्मों से खून बह रहा हो फिर भी उसमें कस्तुरी का सुगंध होगा (भाग ५२ निवेदन ५९) इसका अर्थ ‘दीन’ के लिए मारे गए योद्धा या वर्तमान में आत्मघात कर निरपराध लोगों को मारने वालों का निर्णय भी पुनरुत्थान के दिन होगा। तब तक उन्हें कब्र में ही रहना होगा। उन्हें तुरंत स्वर्ग नहीं मिलेगा। उन्हें तुरंत स्वर्ग मिलेगा ऐसा दिलासा देने वाले मुल्ला-मौलवी उन निष्पाप बच्चों को फंसा कर क्या घोर पाप के धनी नहीं हो रहे थे?
स्वर्ग-नरक की संकल्पना का पुनर्विचार
पुनरूत्थान एवं स्वर्ग-नरक की कल्पना जैसी सेमेटिक धर्म में है, उससे थोड़ी अलग परंतु पुनर्जन्म स्वीकार कर पाप निवृत्ति कर स्वर्ग में जाने या पुनर्जन्म प्राप्त करने की संकल्पना पौर्वात्य धर्मों में हैं। हिंदू मान्यता के अनुसार मानव जन्म-मरण के चक्र से बार-बार गुजर कर अंतत: ब्रह्म में विलीन होता है। अन्य कुछ धर्मों में स्वर्ग निवास, श्रेष्ठ देवों अथा आत्माओं के सान्निध्य में रहने की संकल्पना है।
वैसे देखा जाए तो आद्य धार्मिक ग्रंथ ऋग्वेद में स्वर्ग या नरक का निर्देश भी नहीं है। वह बाद में उपनिषद एवं भागवद् गीता में स्पष्ट रूप से आता है। जिस गरूड़ पुराण का इस लेख के प्रारंभ में उल्लेख किया गया है वह मुझे बहुत बाद का लगता है। उस समय तक पाश्चात्य धर्म की स्वर्ग नरक की कल्पना भारत में पहुंच गई होगी। उसमें से गरूड़ पुराण की रचना हुई होगी ऐसा मेरा मत है। जानकारों -अभ्यासकों को इसका विचार अवश्य करना चाहिए।
आधुनिक वैश्विक ज्ञान तथा स्वर्ग-नरक संकल्पना
यहां आधुनिक विज्ञान के आधार पर सभी धर्मों की स्वर्ग-नरक की संकल्पनाओं का विचार करना है। गत शतक से आकाशगंगा के शोध में शास्त्रज्ञों को जो अंतर ध्यान में आए वे प्रकाश वर्षों की परिमिती के हैं। हमारी आकाशगंगा ही हजारों प्रकाश वर्ष विस्तारित है। वह अंतर देखते हुए गरूड़ पुराण की दुर्गंधी नदी या बाइबल की रूपरेखा, या कुरान के नरक और स्वर्ग के वर्णन उसकी तुलना में नगण्य लगते हैं। अभी तक मानव को आकाश में कही भी दूसरे प्रकार के मानवी-अमानवी अस्तित्व की जानकारी नहीं मिली है। वहां का जीवन स्वर्ग या नरक किस प्रकार का होगा निश्चित नहीं कहा जा सकता। पारसी धर्म ग्रंथ बुंदाहिस १२-७ में संसार के मध्य से नरक के द्वार तक जाने वाले चिन्वत पुल की संकल्पना है। परंतु वैसा पुल आकाश विज्ञानी अभी तक नहीं खोज पाए हैं।
प. कुरान के स्वर्ग नरक के वर्णन भौतिक इहलोक की स्थिति में रहन-सहन का उन्नयन एवं पावित्र्यात्मक है। वहां मिलने वाले सुख-दु:ख पृथ्वी पर मिलने वाले सुख- दु:खों की अपेक्षा अधिक तीव्रता से मिलेंगे एवं अनंत काल तक मिलेंगे।
स्वर्ग नरक की इन संकल्पनाओं में प्रत्येक धर्म के स्थापकों ने, जनसामान्य सन्मार्ग पर चले, स्वर्ग की आशा से सत्कृत्य करें एवं नरक यातनाएं टालने हेतु दुष्कृत्यों से दूर रहे यह जनमानस के दिलो-दिमाग में बैठाने हेतु बताई है। अच्छे कामों की कसौटी आज बदल गई है। नई शासन प्रणाली, नए नियम, नए संसाधन निर्माण होने के कारण मानव के दैनंदिन व्यवहार की कसौटी बदलने के बावजूद मानवता, मानव-मानव के बीच हार्दिक संबंध, परस्पर प्रेम, विश्वास एवं आज के संदर्भ में सहिष्णुता कायम करने का प्रयत्न, यही अंतत: पृथ्वी पर स्वर्ग ला सकता है।

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  1. Anonymous

    Aap praja pita Brahma kumari eshwariya vishw Vidyalay me seven days corse karo …tab aapko Sara Gyan mil jayega …ki kaun Swarg me jayega…

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