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राम मंदिर पर प्रसन्नता, बॉलीवुड़ का शुद्धिकरण जरूरी

राम मंदिर पर प्रसन्नता, बॉलीवुड़ का शुद्धिकरण जरूरी

by pallavi anwekar
in जुलाई - सप्ताह पांचवा, फिल्म, विशेष, साक्षात्कार, सामाजिक
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राम मंदिर, सुशांत सिंह की आत्महत्या, बॉलीवुड़ में माफिया की दादागिरी, वेब सीरीजों से परोसी जाती अश्लीलता, कोरोनो व अर्थव्यवस्था जैसे अद्यतन मामलों पर सांसद डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने हमेशा की तरह अपने बेबाक विचार प्रस्तुत किए। ‘हिंदी विवेक’ से हुई विशेष प्रदीर्घ बातचीत के ये हैं कुछ महत्वपूर्ण अंशः-

अयोध्या में श्री राम मंदिर बनने जा रहा हैं, आप श्री राम मंदिर मामले से जुड़े रहे हैं। अब आप कैसा अनुभव कर रहे हैं?

मुझे इस बात की खुशी और संतोष है कि राम काज का दायित्व मुझे अशोक सिंघल जी ने सौंपा था। उन्होंने पत्रकार परिषद बुलाकर विश्व हिंदू परिषद के सभी पदाधिकारियों की उपस्थिति में कहा था कि ’मुझे लगता है कि मेरे कार्यकाल में राम मंदिर नहीं बनेगा इसलिए यह दायित्व मैं सुब्रह्मण्यम स्वामी को सौंपता हूं। उन्होंने यह भी कहा था कि सुब्रह्मण्यमजी ने ही उस समय राम सेतु बचाने में अपना योगदान दिया, जब हम सब हताश होकर बैठ गए थे।’ मैं पहले राम मंदिर आंदोलन से जुड़ा हुआ नहीं था। अशोक जी ने मुझ पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी डाल दी थी। प्रभु राम जी की कृपा से अब राम मंदिर के निर्माण का काम शुरू होने वाला है। इसका मुझे बहुत आनंद है। इस समय मुझे अशोक सिंघल जी की याद आ रही है। वह जहां कहीं भी होंगे उन्हें राम मंदिर निर्माण से बहुत खुशी मिल रही होगी। अभी और भी काम शेष है। अभी विश्राम करने का समय नहीं है। काशी विश्वनाथ और मथुरा श्री कृष्ण जन्मभूमि का उद्धार जब तक नहीं होगा तब तक हम चैन की सांस नहीं लेंगे।

अयोध्या राम मंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट में आपने क्या भूमिका अदा की और क्या राम मंदिर विवाद सुलझने के बाद इससे काशी विश्वनाथ एवं मथुरा को मुक्त कराने में मदद मिलेगी?

राम जन्मभूमि मामले में यह किसकी संपत्ति है, इस बात पर लड़ाई थी। जिसे सिविल सूट कहते हैं। जब सिविल सूट का मामला जज के सामने आता है तो उनकी मंशा यह होती है कि दोनों पक्षों में संपत्ति बांटकर इसका निपटारा कर दे। उसीके अनुरूप जजों ने वह जमीन बांट दी थी। मैंने पूरी मजबूती और तथ्यों के साथ अपनी बात रखी, जिसके चलते तिथियां तय हुईं और सुनवाई प्रक्रिया को गति मिली। इसके पूर्व 7 -8 साल तक तो एक दिन की भी इस मामले में सुनवाई नहीं हुई थी। पता नहीं हमारे वकील क्या कर रहे थे? मैंने सुप्रीम कोर्ट में यह बात कही कि आस्था के अनुरूप पूजा करने का हमें संविधान में मूलभूत अधिकार दिया गया है। मेरी आस्था कहती है कि राम जी वहां जन्मे थे और देश के करोड़ों – करोड़ हिंदू भी यही मानते हैं, इसलिए मेरी आस्था के अनुरूप हमें वहां पर मंदिर मिलना चाहिए। मस्जिद कहीं और भी बन सकती है। अरब देशों में वैसे भी मस्जिद विकास कार्य के लिए तोड़ी जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद अनिवार्य नहीं है। वह कहीं भी नमाज पढ़ सकते हैं। यही बात श्री कृष्ण जन्मभूमि और काशी विश्वनाथ पर भी लागू होती है। इसलिए मुझे लगता है कि राम जन्मभूमि मामले से अब काशी – मथुरा केस में मदद मिलेगी और यह मामला भी आसानी से हल हो जाएगा।

अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत आत्महत्या केस आपने किस उद्देश्य से अपने हाथ में लिया है?

सुशांत सिंह बिहार के एक साधारण परिवार से आया था। वह इंजीनियरिंग का होनहार छात्र था और देश में इंजीनियरिंग की परीक्षा में टॉप टेन में से 7 वें रैंक पर आया था। एक्टिंग में दिलचस्पी के चलते वह बॉलीवुड में आया। बेहद कम समय में अपनी काबिलियत के बल पर उसने बॉलीवुड में अपना स्वतंत्र मुकाम बनाया और वह उसने सफलता की बुलंदियों को छुआ। उसने चांद पर भी अपनी जमीन खरीद ली थी। ऐसा होनहार और प्रतिभावान युवा आत्महत्या क्यों करेगा? देश भर में यह मांग उठ रही थी कि सुशांत सिंह आत्महत्या प्रकरण की सच्चाई सामने लाने के लिए मैं यह केस लडूं। मैंने उनसे पूछा कि आपकी मुझसे क्या अपेक्षा है? उन्होंने कहा कि सुशांत सिंह आत्महत्या मामले की सच्चाई सामने लाने के लिए सीबीआई जांच कराई जाए। मैंने इस तरह के कई केस लड़े हैं और उसमें सफल भी हुआ हूं। सीबीआई जांच की मांग के लिए भूमिका बनाने की मैंने तैयारी शुरू कर दी है। जैसे ही मैंने यह केस अपने हाथों में लिया तो मैंने देखा कि ऐसे कई लोग बीच में आने लगे जिन्हें बीच में आने की कोई जरूरत ही नहीं थी। कई फिल्मकार, डायरेक्टर आदि लोग यह कहने लगे कि यह आत्महत्या है लेकिन वह किस आधार पर यह दावा कर रहे हैं कि सुशांत सिंह ने आत्महत्या की? जबकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बस इतना ही कहा है कि दम घुटने से उसकी मृत्यु हुई है? फांसी लगाने से दम घुटा है या उसका गला दबाकर दम घोटा गया है? यह जांच का विषय है। हमारे क्रिमिनल लॉ में यह है कि किसी ने आत्महत्या के लिए मजबूर या प्रेरित तो नहीं किया? किसी ने दबाव बनाकर प्रभावित तो नहीं किया? किसी ने भड़काया तो नहीं? इन सारे पहलुओं से जांच किए बिना और इन्हें देखे बिना कैसे केवल आत्महत्या.. आत्महत्या कहने से आत्महत्या नहीं माना जा सकता। श्रीदेवी दुबई में मरी इसलिए मैं कुछ नहीं कर सका। सुनंदा के मामले में भी ऐसा ही हुआ। सुनंदा की संदिग्ध मृत्यु के बाद शशि थरूर को आरोपी बनाया गया। उन पर केस चल रहा है और वह अभी जमानत पर हैं। इसी तर्ज पर सुशांत सिंह मामले की भी जांच निष्पक्ष रूप से की जानी चाहिए। यदि ऐसे ही प्रतिभावान अभिनेता एक के बाद एक मरते रहेंगे और उसे आत्महत्या माना जाएगा तो कल उठकर नौजवान भी उनकी देखा देखी आत्महत्या करना शुरू कर देंगे। जिंदगी की राह में जब भी कोई रुकावट, समस्या, परेशानी आए तो आत्महत्या कर लेना यह रोल मॉडल नहीं बनना चाहिए। यह सभी को पता है कि हत्या को आत्महत्या का रूप कैसे दिया जाता है। समाज में नई चेतना जगाने के लिए मैंने यह केस लड़ने का निर्णय लिया है। बॉलीवुड में दाऊद और खान गैंग का दबदबा है। एक साधारण परिवार से आकर बॉलीवुड में अपना सिक्का जमाने वाले सुशांत सिंह एक आदर्श थे। उसका अंत कर उस आदर्श को खत्म करने का षड्यंत्र किया गया है। सुशांत सिंह आत्मनिर्भर एवं स्वाधीन थे। वह किसी के दया पर बॉलीवुड में नहीं जमे थे बल्कि अपनी प्रतिभा के बल पर आगे बढ़ रहे थे। मैं सुशांत सिंह से जुड़ी जांच को बारीकी से देख रहा हूं। यदि जांच सही रूप से नहीं होगी तो मैं सीबीआई जांच की मांग करूंगा। इस संबंध में मैंने प्रधानमंत्री जी को पत्र लिखा है। मैं इस केस को तब तक नहीं छोडूंगा जब तक सीबीआई जांच नहीं हो जाती।

ऐसे कौन से मुख्य बिंदु हैं, जिनको लेकर आप सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं?

मुंबई में मैं दो बार लोकसभा चुनाव जीता हूं और वहां का सांसद रहा हूं इसलिए मुंबई का माहौल मैं जानता हूं। बॉलीवुड के लोग पुलिस और नेताओं की खुशामद में हमेशा लगे रहते हैं। इससे कई पुलिस वाले प्रभावित भी हो जाते हैं। फिर पुलिस वाले भी उनके इशारों पर काम करने लगते हैं। इसलिए मैं नहीं मानता हूं कि मुंबई पुलिस इस मामले की निष्पक्ष जांच कर पाएगी। सुशांत सिंह के मित्रों ने कहा है कि वह रात-रात घर से बाहर रहते थे। अपनी गाड़ी में अकेले सोते थे। वह डरा सहमा सा लगता था। बताया जाता है कि केवल पार्टी करने के लिए वह उस दिन घर पर आया था। उस दिन पार्टी में कौन-कौन आए थे? दूसरे दिन पता चला कि सुशांत ने आत्महत्या कर ली।

जांच टीम के लोगों ने कहा है कि जिस कपड़े से फंदा लगाकर उसने आत्महत्या की है, उस कपड़े में इतना दम नहीं है कि वह उसके शरीर का वजन संभाल सके। जांच के दौरान भंसाली और अन्य लोगों के बयान विरोधाभाषी हैं। ऐसी क्या वजह थी कि मुंबई पुलिस सुशांत के शव को बेहद मामूली हॉस्पिटल में ले गए? इतनी जल्दी शव को क्यों जला दिया गया? मैं मुंबई पुलिस पर आरोप नहीं लगा रहा हूं। आज जो पार्टी महाराष्ट्र में सत्ता में है वह दाऊद को बहुत मानती है। ये लोग कई बार दुबई जाकर आए हैं। बॉलीवुड में दाऊद को सलाम करने वाले लोग भरे पड़े हैं। बॉलीवुड से हमें करोड़ों का राजस्व मिलता है। उस पर किसी विदेशी का नियंत्रण हो तो यह देश के लिए खतरनाक है। इसका पर्दाफाश होना ही चाहिए।

क्या सुशांत सिंह जैसे व्यक्तित्व वाला व्यक्ति आत्महत्या नहीं कर सकता? इस पर आपके क्या विचार हैं?

मैं यह नहीं कह रहा हूं कि वह आत्महत्या नहीं कर सकते हैं। मैं तो बस इतना कह रहा हूं कि उसने आत्महत्या नहीं की है, इसका सबूत मुझे दे दो क्योंकि आप लोग ही कह रहे हो कि उसने आत्महत्या की है। मैं तो बस यही कह रहा हूं कि आप ठीक से जांच कर रहे हो यह दिखा दो मुझे। यदि आप मुझे नहीं दिखाओगे तो मैं इसकी सच्चाई देश के सामने लाने के लिए सीबीआई जांच की मांग करूंगा। मैं किसी पर कोई आरोप नहीं लगा रहा हूं। मुझे पता चला है कि सुशांत के पास करीबन 50 सिम कार्ड थे। एक व्यक्ति, जो उनके मित्र थे, उन्होंने मुझसे कहा कि वह किसी से डरते थे। उन्हें लगातार फोन पर धमकी दी जा रही थी। आश्चर्य की बात यह है कि पुलिस ने उस अपार्टमेंट को सील नहीं किया। पुलिस का पहला काम तो यही होना चाहिए। सुनंदा केस में कोई संदेह शुरू में नहीं था। सब ने मान लिया था कि यह आत्महत्या है। बावजूद इसके 3 साल के लिए उसका परिसर दिल्ली पुलिस ने सील करके रखा था। ऐसी बहुत ही छोटी – छोटी बातें है जिन पर ध्यान देना आवश्यक है।

बॉलीवुड में क्या किसी खास एजेंडे के तहत काम किया जा रहा है? क्या बॉलीवुड किसी एक विचारधारा का संवाहक बनता जा रहा है?

मुंबई से जब मैं सांसद था तब से ही में बॉलीवुड की सच्चाई के बारे में जानता हूं। बॉलीवुड में काला धन का प्रभाव बहुत है, जो हमारे देश की सुरक्षा के लिए भी बड़ा खतरा है। इसलिए भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ रहा हूं। भ्रष्टाचार और काले धन को खत्म किए बिना देश कभी आगे बढ़ नहीं सकता। देश आत्मनिर्भर नहीं बन सकता। संस्कृति, परंपरा की रक्षा नहीं की जा सकती। काला धन को सफेद करने के खिलाड़ी तो दुबई में बैठे हुए हैं। काला धन को सफेद करने के लिए बॉलीवुड के कई लोग दुबई से जुड़ गए। फिर धीरे-धीरे दुबई की पकड़ बॉलीवुड में बहुत मजबूत हो गई। इसके बाद दुबई के दादा लोग बॉलीवुड से हफ्ता उगाही करने लगे। अपनी दहशत कायम करने के लिए बॉलीवुड के कई लोगों की हत्या की गई। कई लोग मारे गए हैं। यह कोई पहली बार नहीं हुआ है। सुशांत सिंह की एक सहयोगी महिला ने भी कुछ दिन पूर्व ही इमारत से कूदकर आत्महत्या की थी। लेकिन उसने छलांग लगाई या उसे धक्का दिया गया? इस पर कोई बात करने को तैयार नहीं है, सब चुप्पी साधे हुए हैं। यहां तक कि उसके परिवार वाले भी कुछ नहीं बोलना चाहते हैं। क्या वे किसी से डरे हुए हैं या आतंकित हैं इसलिए वे कुछ नहीं बोल रहे हैं। मेरा मानना है कि बॉलीवुड में जो दादागिरी हो रही है वह अब बंद होनी चाहिए। मैंने यह भी देखा है कि बॉलीवुड में हिंदू को निशाना बनाया जा रहा है। हिंदुओं को प्रताड़ित करने का बॉलिवुड में ट्रेंड बन चुका है। बॉलीवुड की फिल्मों में हिंदू भगवान का मजाक बनाया जा रहा है। हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। आमिर खान की पीके फिल्म तो हिंदुओं के आराध्य भगवान के अपमान की पराकाष्ठा है। सेंसर बोर्ड में बैठे लोग कैसे इन आपत्तिजनक घटिया फिल्मों को इजाजत दे देते हैं? अब बॉलीवुड का शुद्धिकरण करना बेहद जरूरी हो गया है।

क्या फ़िल्म जगत आज की युवा पीढ़ी को पथभ्रष्ट कर रहा है?

फिल्म जगत अब भारतीय संस्कृति की उपेक्षा कर पश्चिमी संस्कृति को परोस रहा है जो भारत की वास्तविकता नहीं है। जो सच्चाई नहीं है उसे दिखाया जा रहा है और जानबूझकर ऐसी फिल्में बनाई जा रही हैं जो आज की युवा पीढ़ी को पथभ्रष्ट करें। महिला पुरुष का संबंध इस तरह से मसाला लगाकर पेश किया जा रहा है जो नैतिक रूप से सही नहीं है। उसमें पश्चिमीकरण की संस्कृति दिखाई जा रही है। इतिहास को तोड़मरोड़ कर पेश किया जाता है ताकि भारतीय हीन भावना से ग्रसित हो जाए। मैं स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूं कि बड़े ही सुनियोजित तरीके से हिंदुओं की धार्मिक सांस्कृतिक भावनाओं को निशाना बनाया जा रहा है, इससे हमें सावधान रहना चाहिए।

क्या सिनेमा जगत भारतीय समाज संस्कृति से विमुख हो गया है? राजनीति और सिनेमा जगत के संबंधों पर आपकी क्या राय है?

फिल्मी सितारों को हमें ज्यादा महत्व नहीं देना चाहिए और हमारे राजनेताओं को सिनेमा जगत की हस्तियों का फायदा भी नहीं उठाना चाहिए। राजनीतिक नेताओं को बॉलीवुड जाना ही नहीं चाहिए। आपातकाल के बाद जो चुनाव हुआ था उस समय बॉलीवुड के सारे लोगों ने जमा होकर मेरे इलाके में बैठक की थी और उस बैठक में मुझे भी बुलाया था लेकिन मैंने बैठक में आने से साफ इंकार कर दिया। मेरा मानना है कि राजनीतिज्ञों को ज्ञानी और त्यागी होना चाहिए। जैसे आप सिनेमा वालों से मिलोगे, उनके साथ रहोगे तो आप भोगी बन जाओगे। उनकी संगत से ज्ञान विवेक भी भ्रष्ट हो जाएगा। आज वर्तमान समय में भारतीय समाज, संस्कृति से बॉलीवुड सिनेमा जगत दूर होता जा रहा है और समाज के विपरीत जाकर काम कर रहा है इसलिए इन पर नकेल कसनी होगी।

सुशांत सिंह का केस अपने हाथ में लेकर आप बॉलीवुड को क्या संदेश देना चाहते हैं?

मेरे आने मात्र से केस की सच्चाई सामने आ जाएगी। यह सभी के लिए एक चेतावनी होगी। अब हमारा समाज सिनेमा वालों को देवता नहीं मानेगा। यदि वह हमारे समाज, नियमों का उल्लंघन करेंगे तो उन्हें माफ नहीं किया जाएगा। हम उन्हें नहीं छोड़ेंगे, उनके पीछे पड़कर उनके गुनाहों की सजा दिलवाकर रहेंगे। उनको पहले लगता था कि हम जो कुछ भी करेंगे वह सब चलता रहेगा। पुलिस को अपने पैसों पर नचा सकते हैं। सलमान खान ने कई लोगों को अपनी गाड़ी से कुचल कर मार डाला था। संजय दत्त ने भी हथियार अपने घर पर रखा था। बावजूद इसके भ्रष्ट सिस्टम के चलते वह सब बच गए लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। गुनाहगारों को सजा मिलकर रहेगी।

बॉलीवुड से प्रभावित होकर काफी लोग फैशन के नाम पर अंग प्रदर्शन को बढ़ावा दे रहे हैं? भारतीय परंपरा के अनुरूप परिधान पहनने पर आपके क्या विचार हैं?

मैं मानता हूं कि बॉलीवुड कल्चर हमारे समाज में बढ़ता जा रहा है। हमारे देश में जो धार्मिक सांस्कृतिक उत्थान होना चाहिए, वह नहीं हो पा रहा है। उसमें बॉलीवुड एक बहुत बड़ी बाधा बनकर खड़ा है। लोग मुझे कहते हैं कि आप कुर्ता-पाजामा, धोती क्यों पहनते हैं? मैंने उनसे कहा कि यह पहनावा मौसम के अनुकूल है। शरीर के किसी भी अंग पर तनाव या दबाव नहीं पड़ता। गर्मी के मौसम में तो यह बहुत ही सुविधाजनक है। जो भी मुझसे मिलने आते हैं उन्हें मैं कहता हूं कि कम से कम सप्ताह में एक बार अपने पारंपरिक परिधान जरूर धारण करें। हमारी घरेलू महिलाओं की तो मैं तारीफ करूंगा जिन्होंने अपनी परंपराओं को सहेज कर रखा है। मैं अंतरिक्ष संगठन ’इसरो’ में गया था। वहां पर मैंने देखा कि महिला वैज्ञानिक साड़ी पहनकर आसानी से अपना काम कर रही हैं। मुझे उन पर बहुत ही गर्व हुआ। मुझे लगता है कि हमारे देश में सांस्कृतिक क्रांति की आवश्यकता है। बॉलीवुड हमारे देश में अपवाद है। बॉलीवुड हमारी संस्कृति को दूषित करने का प्रयास कर रहा है। उसका शुद्धिकरण करना बेहद जरूरी है। सिनेमा समाज को सही दिशा दिखाने में अहम रोल अदा कर सकता है। मैं यह नहीं कहता कि सिनेमा भारतीय संस्कृति का प्रचार करें लेकिन कम से कम वह हमारे समाज संस्कृति का उपहास तो न उड़ाए, हमारे संस्कृति सभ्यता को दूषित तो न करे। आज की फिल्में हम परिवार के साथ बैठकर नहीं देख सकते हैं। फिल्में देखकर अब घृणा होती है।

क्या बॉलीवुड में अनुशासन की कमी है? क्या वह बेलगाम हो गया है?

सेंसर बोर्ड पर यह बड़ी जिम्मेदारी है कि वह फिल्मों का बारीकी से निरीक्षण करें और जहां कहीं भी आपत्तिजनक दृश्य हो वहां पर कैंची चलाएं। भाजपा को सभी क्षेत्रों में काम करना होगा। भाजपा ने अभी तक आधा ही काम किया है और बहुत सारे काम करने बाकी है। जैसे मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करना चाहिए लेकिन हम मंदिर का अधिग्रहण कर रहे हैं। कई ऐसी चीजें हो रही हैं जो होनी नहीं चाहिए। धीरे-धीरे ही सही सुधार हो जाएगा। कांग्रेस से तो हम बहुत अच्छे हैं। सही दिशा में बहुत अच्छे काम किए हैं। वातावरण में परिवर्तन दिखाई देने लगा है। अब किसी को स्वयं को हिन्दू कहने में शर्म नहीं आती। पहले लोग कहते थे कि मैं हिंदू हूं लेकिन सांप्रदायिक नहीं हूं। मैंने कहा- भाई यह जोड़ने की क्या जरूरत है। जवाहरलाल नेहरू ने हमें पापी बना दिया। जो कहते थे कि मैं हिंदू हूं लेकिन कम्युनल नहीं हूं। जब मैं हिंदू धार्मिक पुनरुत्थान की बात करता हूं तो उसका दायरा बहुत ही व्यापक होता है। उसमें सभी विषय आ जाते हैं। सिनेमा जगत भी उससे अछूता नहीं है। हम सभी अनुशासन से बंधे हुए हैं। सिनेमा जगत को भी स्वयं प्रेरणा से अनुशासन में आना चाहिए। मनमाने ढंग से कुछ भी आपत्तिजनक, अपमानजनक, उत्तेजित, लालायित करने वाले दृश्य दिखाया जाए, यह हम स्वीकार नहीं कर सकते हैं। सेंसर बोर्ड में भी ऐसे लोग शामिल किए जाने चाहिए जो बॉलीवुड की चकाचौंध से प्रभावित ना हो।

सुशांत सिंह के पहले भी कई लोगों की हत्याओं व आत्महत्याओं के मामले सामने आए हैं लेकिन इस बार ऐसा क्या हुआ कि समाज और बॉलीवुड दोनों ओर से आक्रोश भरी प्रतिक्रिया सामने आई?

कहते हैं कि पाप का घड़ा भरने के बाद ही वह फूटता है। उसी तरह बॉलीवुड के पापियों का भी पाप का घड़ा भर गया है, बहुत जल्द ही वह भी फूट जाएगा। बॉलीवुड में गुंडों का जो गठजोड़ है उसके खिलाफ लोग लड़ने के लिए मन बना रहे हैं। सुशांत सिंह अपनी प्रतिभा के बल पर इंडस्ट्री में टिके थे। उनके सद्भाव भरे व्यवहार से लोग उसके प्रशंसक बन गए। जब ऐसे सज्जन व्यक्ति को निशाना बनाया जाएगा तो जाहिर सी बात है कि उनसे जुड़े लोगों का आक्रोश फूटेगा। इस बार शायद ऐसा ही हुआ।
लोकतंत्र के आप सेनानी कहे जाते हैं। आपातकाल के दौरान भी आपने संघर्ष किया था। उस समय की कोई रोचक बात बताएं?
आपातकाल के दौरान जब मैं लोकतंत्र बचाने के लिए संघर्ष कर रहा था तब किसी ने मुझसे कहा था कि दुनिया के कई गरीब देशों से लोकतंत्र विदा हो गया है। फिर आप क्यों संघर्ष कर रहे हैं? फिर उसने कहा कि लोकतंत्र तो पढ़े लिखे लोगों के लिए है। उस समय जब चुनाव का परिणाम आया तो सर्वाधिक पढ़े-लिखे लोग दक्षिणी इलाके में थे। उन्होंने इंदिरा गांधी (कांग्रेस) को जीता दिया और जो सबसे कम पढ़े-लिखे लोग उत्तरी इलाके यानी उत्तर भारत में हैं, लेकिन उन्होंने इंदिरा गांधी और संजय गांधी समेत पूरी कांग्रेस को हरा दिया। 100% वोट कर जनता पार्टी को जीता दिया। तभी हम बहुमत से सरकार बनाने में सफल हुए थे। हमारी जो संस्कृति है वह गरीब अनपढ़ लोगों में ज्यादा रची बसी है। अंग्रेजी शिक्षा से हमारी संस्कृति का ह्रास हो रहा है। उनमें विदेशी संस्कृति का प्रभाव ज्यादा होता है जो लोग अंग्रेजी शिक्षा ग्रहण करते हैं। उन्हें लगता है कि करियर के लिए अंग्रेजी सीखना जरूरी है।

विदेशी ताकतें क्या दुनिया में हिंदू संस्कृति को उभरने नहीं देना चाहतीं?

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में मैं जीनियस माना जाता था। जब मैंने वहां पर हिंदुत्व की बात की तो वहां पर लोग मेरे खिलाफ हो गए। चार – पांच प्रोफेसर एकजुट होकर मेरे खिलाफ बोलने लगे। वह कहने लगे कि मैं हिंदूवादी हूं। फिर मैंने उन्हें जवाब दिया कि मैं हिंदूवादी हूं तो क्या हुआ? जैसे आप क्रिश्चियनवादी होते हैं वैसे ही मैं भी हिंदूवादी हूं। फिर उन्होंने मुझे पूछे बिना हार्वर्ड से निकालने का फैसला किया। मैंने उनसे कहा कि आप मुझे लिखित में दे दो। आईआईटी में भी मैंने कहा कि समाजवाद नहीं चल सकता है तो रूस के लोग मुझ पर गुस्सा हो गए। इंदिरा गांधी को कहकर मुझे निकलवा दिया गया। फिर मैं कोर्ट में गया और वहां पर जीत गया। मुझे 25 साल का मानदेय ब्याज सहित दिया गया। हमारी भारतीय संस्कृति फिर से दुनिया में उभरे ना इसके लिए विदेशी ताकतें काम कर रही हैं। जिस दिन हमारे देश में विराट हिंदू की भावना प्रबल हो जाएगी, उस दिन फिर दुनिया में हमें कोई नहीं रोक पाएगा। पहले भी नहीं रोक पाए थे अब भी नही रोक पाएंगे।

बॉलीवुड में माफियागिरी और दादागिरी को कैसे खत्म किया जा सकता है?

बॉलीवुड में माफियागिरी और दादागिरी करने वाले लोग बहुत जल्द ही मिट जाएंगे। उनके पास ताकत नहीं बची है। वे खोखले हैं, दिखावटी हैं। वे जानते हैं कि उन्होंने कई कुकर्म किए हैं। यदि सही रूप से उनकी जांच होगी तो वे पकड़े जाएंगे। अगर हम लोग इकट्ठे होकर उन्हें घेर लेंगे तो वह बहुत जल्द ही अपने हथियार डाल देंगे और हमारे सामने आत्मसमर्पण कर देंगे।

हिंदी फिल्मों और वेब सीरीज में जो अनैतिक विकृत एजेंडा चलाया जा रहा है उसे कैसे रोका जा सकता है?

समाज में विकृति लाने वाले ऐसे एजेंडों को रोकने का पहला कर्तव्य सरकार का है। मैं मानता हूं कि यह मेरी सरकार है, मेरी पार्टी की सरकार है। सरकार को जो इच्छाशक्ति दिखानी चाहिए, वह उन्होंने नहीं दिखाई। उनको तो कुछ कहना या करना नहीं है। केवल सांप की तरफ फुफकारने मात्र से सिनेमा वाले सही रास्ते पर आ जाएंगे। इन्हें काटने और मारने की भी जरूरत नहीं है। उसीसे वे ठीक हो जाएंगे। इस मामले में हम थोड़ा ढीला रहे हैं, थोड़ी सख्ती लाने की जरूरत है। नियम कानून बना देने मात्र से सुधर जाएंगे। मर्यादा में रहेंगे तो फिल्म को सेंसर बोर्ड से प्रमाणपत्र मिलना चाहिए और यदि मर्यादा तोड़ेंगे तो उन्हें प्रमाणपत्र नहीं देना चाहिए।

सेंसर बोर्ड में कैसे लोग शामिल होने चाहिए?

जो लोग भारतीय इतिहास जानते हैं, जो भारतीय संस्कृति सभ्यता को ऊंचा उठाने के लिए उल्लेखनीय काम किए हुए हैं, जो निस्वार्थी हैं और राष्ट्रभक्त हैं, जो अपने पद पर रहते हुए किसी लोभ लालच का शिकार नहीं हुए हैं। इसके अलावा 50% महिलाओं की भागीदारी सेंसर बोर्ड में होनी चाहिए। वर्तमान समय में भी भारतीय महिलाएं अपने परंपरा, संस्कृति, सभ्यता और मर्यादाओं का पालन करती हैं। सरस्वती शिक्षा के साथ, लक्ष्मी फाइनेंस के साथ और प्रतिरक्षा दुर्गा के साथ दर्शाया गया है। हमारी देवताओं में भी देवियों को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। उसी तरह सेंसर बोर्ड में भी नारी शक्ति का स्थान सुनिश्चित होना चाहिए। हम जानते हैं कि सीता माता कितनी अडिग थी। जब हनुमान जी ने कहा कि मेरी पीठ पर बैठकर चलो। तब सीता माता ने कहा कि मैं नहीं चलूंगी। राम जी को यहां आकर रावण सहित राक्षसों का समूल नाश करना होगा। सारी महिलाएं जो यहां आतंक से भयभीत हैं, उन सभी को मुक्त करना होगा। द्रौपदी ने तो सम्मान, स्वाभिमान पर आंच आई तो महाभारत का युद्ध करवा दिया था। हमारी परंपरा ही इतनी जागृत है कि किसी भी चुनौती या समस्या से वह लड़कर विजय प्राप्त कर सकती है?

कोरोना वैश्विक महामारी ने अर्थव्यवस्था को पटरी से नीचे ला दिया है। अब देश की अर्थव्यवस्था को फिर से सुचारू रूप से चलाने के लिए क्या करना चाहिए?

हमारी अर्थव्यवस्था आज से नहीं पहले से ही बीमार चल रही थी। यह बात मैं आज नहीं कह रहा हूं। पहले से ही कहता आया हूं। मैंने 2015 को ही प्रधानमंत्री जी को इस संदर्भ में पत्र लिखा था और मामले से अवगत कराया था। वहां से मुझे कोई प्रतिसाद नहीं मिला। फिर अर्थव्यवस्था के ऊपर मैंने लिखना प्रारंभ किया। हर साल मैं एक लेख लिखता हूं। आप देखेंगे कि उसके बाद हर साल राष्ट्रीय विकास दर नीचे गिरती गई। जहां 2015 में राष्ट्र विकास दर 8% के ऊपर थी। वह कोरोना के आने के पूर्व ही 3% के करीब आ गई थी। इस साल के वित्तीय वर्ष में हम माइनस में चले गए हैं। इससे ऊपर उठने के लिए पहले बीमारी को समझना चाहिए। केवल पूंजी बढ़ाने से देश की समस्या नहीं सुलझेगी। मेरी दृष्टि में मांग में कमी सबसे बड़ी परेशानी है। कोरोना और लॉकडाउन के चलते बड़ी संख्या में लोगों की नौकरियां चली गई हैं। उद्योग-धंधे बंद हो गए हैं। लोगों के पास पैसे नहीं है। उन सबके हाथों में पैसा पहुंचाया जाना चाहिए। हमारे देश में लोग बचत करना पसंद करते हैं।

कुल मिलाकर राष्ट्रीय बचत 85% घरों से आती है। इसके मुकाबले में अमेरिका में 2% भी नहीं है। अमेरिका में लोग सब कर्ज लेकर घर चलाते हैं, खर्च करते हैं। भारत के विकास में योगदान देने वाले लोगों के खातों में सीधा पैसा भेजना चाहिए। हमारे देश में आपूर्ति की कोई कमी नहीं है बल्कि मांग की कमी है। आप कार के शोरूम में जाएंगे तो कार तो बड़ी संख्या में खड़ी है लेकिन उसे खरीदने वाला कोई नहीं है। अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए नोट छपवाना चाहिए। पता नहीं क्यों नोट छापने से सरकार डरती है? नोट छापने से सरकार को कोई नहीं रोक रहा है। पहले ऐसा होता था कि जितना रिजर्व बैंक के पास सोना रहता था उसके अनुपात में नोट छापे जाते थे। अब जितना छापना है, आप छाप सकते हैं। हां, यदि मांग नहीं होगी और आप नोट छापते रहोगे तो मुद्रास्फीति होगी। लेकिन यहां तो माल पड़ा हुआ है। पैसे के अभाव में खरीदने के लिए लोग दुकान नहीं जा पा रहे हैं। आज सारे बाजार बंद पड़ गए हैं। मैं बोलते – बोलते अब थक गया हूं। वित्त मंत्रालय में किसी को अर्थव्यवस्था समझ में नहीं आती है। रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन को विदेश से पकड़ कर लाए थे। वे केवल ब्याज की दर को बढ़ाते गए। मैंने कहा कि यह क्या पागलपन कर रहे हो? उसने कहा कि हमारे देश में मुद्रास्फीति बहुत है इसलिए उसे कम करना है। मैंने कहा कि यदि आप ऐसे ही ब्याज दर बढ़ाते जाएंगे तो हमारे एमएसएमई के खर्च बहुत बढ़ जाएंगे। उन्हें अपना धंधा बंद करना पड़ेगा और उन्हें बाद में बंद करना भी पड़ा। बहुत समझाने के बाद प्रधानमंत्री ने उनको हटाया। तब रघुराम राजन के समर्थन में दुनिया भर के लोग खड़े हो गए। यहां तक कि फिल्म स्टार भी उनके समर्थन में आकर होहल्ला मचाने लगे। बावजूद इसके उनको हटाया गया लेकिन इसके बाद भी नीतियां वही चल रही हैं, ब्याज दर बढ़ाते जा रहे हैं। अमेरिका में ब्याज दर सबसे कम है। वहां पर मात्र 2% में आपको कर्ज मिल जाएगा। हमारे देश में 12% से अधिक ब्याज दर है, कम क्यों नहीं हो सकती? सिस्टम में आमूलचूल बदलाव लाकर हम सुधार कर सकते हैं। हम आसानी से 10% की विकास दर से देश को आगे ले जा सकते हैं। जब मैं जनसंघ में आया तो मैंने कहा था कि जब तक देश में सोवियत संघ का समाजवादी मॉडल है तब तक देश की विकास दर 3% से आगे नहीं बढ़ सकती। उस समय इंदिरा गांधी मुझसे नाराज होकर आईआईटी से मुझे बाहर निकलवा दिया। उसके बाद चंद्रशेखर आए तो मैं थोड़ा काम कर पाया। इसके बाद नरसिंह राव आए तब भी मैं मंत्री था। उस समय मैंने पूरा मार्केट खोल दिया। उसके बाद हम सीधा 8 % पर चले गए। जिसे आज आर्थिक सुधार कहते हैं। जितना आप लोगों को प्रोत्साहित करोगे उतनी तेजी से हमारी अर्थव्यवस्था आगे बढ़ेगी। आयकर की हमारे देश में कोई जरूरत नहीं है। उसे पूरी तरह से रद्द कर देना चाहिए। लोग खुश होकर सड़क पर नाचेंगे। आयकर वालों से लोग कितने परेशान होते हैं। प्रधानमंत्री किसे वित्तमंत्री चुनते हैं यह उनकी मर्जी है। मैं कभी नहीं कहूंगा कि मुझे बनाओ क्योंकि यह बहुत ही मुश्किल काम है। चंद्रशेखर थे उन्होंने कहा ले लो। इसके बाद नरसिंह राव ने मुझे यह दायित्व दिया था। उन्होंने तो यहां तक कह दिया था कि आप जो कहोगे मैं कर दूंगा। किसी पर भी हस्ताक्षर करने के लिए मैं तैयार हूं। उनको मुझ पर इतना विश्वास था। हमारे प्रधानमंत्री तो ऐसे नहीं हैं। वे सब चीजों का बारीकी से ध्यान रखते हैं। उसमें मेरे जैसे आदमी फिट नहीं होते। इसलिए वे भी समझते हैं कि ये आएगा तो गड़बड़ होगा।

अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए आज के समय में क्या करना चाहिए?

मांग बढ़ाओ, आयकर हटाओ, कर्ज की ब्याज दर बहुत कम करो। देशभर में 8 – 8 लेन के सड़कों का निर्माण करो। नितिन गडकरी जी इस काम को करने में सक्षम हैं। यदि हमने सुधार प्रक्रिया को आगे बढ़ाया तो हम 10% की विकास दर प्राप्त कर सकते हैं और अगले 10 साल में हम चीन से भी आगे निकल जाएंगे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने आत्मनिर्भर भारत बनाने की बात कही है। इसमें कौन सी प्रमुख बातों का समावेश होना आवश्यक है?

1970 में जब मैं जनसंघ में आया था तब संघ के गुरुजी, दत्तोपंत ठेंगड़ी, नानाजी देशमुख, माधवराव मुले जी के कहने पर मैंने एक योजना पेश की थी। उस समय उन्होंने मुझसे कहा था कि हमारे पास अर्थव्यवस्था से संबंधित कोई योजना नहीं है। अब आप ही कोई योजना बनाइये। तब मैंने स्वदेशी के आधार पर योजना बनाई थी। इसी बात पर इंदिरा गांधी चिढ़ गई थी। स्वावलम्बी भारत की बात हमारी पुरानी है। इसे क्रियान्वित कैसे करोगे? यह बताओ। हमें आत्मनिर्भर होना चाहिए, दुनिया की महाशक्ति बनना है तो हमें हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनना होगा। हमें आयातक नहीं निर्यातक होना होगा। हमारे पास अनेक तरह के विकल्प मौजूद हैं जिससे हम आत्मनिर्भर बन सकते हैं। जैसे हमारे वाहन बिना पेट्रोल डीजल के भी चल सकते हैं। आजकल वाहन ऐसे बन रहे हैं कि रात भर चार्जिंग करो और अगले दिन 350 किलोमीटर दूर तक चलाओ। इसी तरह पानी की कमी है तो समुद्र से नमक हटाकर पानी की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है। सऊदी अरब, दुबई और इजरायल जैसे देश अपनी जरूरतों को ऐसे ही पूरा कर रहे हैं। हमारे देश में दुनिया का 60% थोरियम मौजूद है। यदि उसे यूरेनियम में कन्वर्ट कर दिया जाए तो भारत में इतनी बिजली पैदा होगी कि आप को मुफ्त में देनी पड़ेगी। जैसे कतर में गैस मुफ्त में देते हैं। हम अपने पड़ोसी देशों को भी मुफ्त में बिजली दे सकते हैं, इतनी क्षमता हमारे पास मौजूद है। हमारे देश में किसी भी चीज की कमी नहीं है। सबकुछ हमारे पास उपलब्ध है। कृषि से प्रचुर मात्रा में हमें अनाज मिलता है। उसका निर्यात करो, पूरी दुनिया में पहुंचाओ। लाल बहादुर शास्त्री ने केवल 10% लोगों को ही कृषि क्रांति के लिए पैकेज दिया था। उसी से हमारे देश में हरित क्रांति हो गई थी। हमारे देश में प्रति हेक्टेयर जो उत्पादन है उसकी तुलना एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट से करके देखिए। वैज्ञानिक तरीके से इसी मिट्टी में आम किसानों से 8 गुणा अधिक पैदावार की जाती है। हमारे देश में 12 महीने कृषि की जा सकती है। अमेरिका में 5 महीने बर्फ गिरने के कारण वह कृषि नहीं कर पाते हैं। यूरोप, चीन के भी बहुत बड़े हिस्से में कृषि नहीं कर सकते। लेकिन हमारे देश में आप हर समय कृषि कर सकते हैं। भगवान ने भारत को सुजलाम् सुफलाम् बनाया है। भारत में हर तरह के मौसम हैं। जमीन भी अधिक मात्रा में है, बावजूद इसके हमारा उत्पादन बहुत कम है।

भारत एक विकसित देश कैसे बन सकता है?

भारत विकसित देश अगले 20 साल में बन सकता है। 10 साल में हम चीन से आगे जा सकते हैं। हम 8% ग्रोथ रेट तक पहुंच गए थे, सिर्फ 2% और आगे जाना है। 10% में ही हम 10 साल में चीन को पीछे छोड़ देंगे। बीच में अमेरिका चीन को ध्वस्त कर दे तो वह अलग बात है। अमेरिका की यह विशेषता है कि वह नवीन यंत्रों को बनाती है। जिसे इनोवेशन कहते हैं। पहले ट्रेन, फिर हवाई जहाज और अब रॉकेट बनाया। पहले बिजली अब इंटरनेट से दुनिया को बदल दिया। हम भारतीयों के पास इतनी बुद्धि विवेक प्रतिभा भरी पड़ी है। हमारे ही लोग अमेरिका में जाकर चमकते हैं, लेकिन हमारे ही देश में उनकी कद्र नहीं होती। सभी लोग उन्हें नजरअंदाज कर देते हैं, टांग खींचते हैं। अनेक प्रकार की रुकावटें डालकर रिसर्च को आगे बढ़ने नहीं दिया जाता। इसलिए इंजीनियर में टॉप करने वाले सुशांत सिंह जैसे लोग भी अपना कार्यक्षेत्र छोड़कर अन्य क्षेत्र में अपना करियर तलाशते हैं। सबको यह डर सताता है कि इसको आगे बढ़ने का मौका दिया जाएगा तो वह मेरी कुर्सी पर बैठ जाएगा। राजनीति में भी कुछ इसी तरह की बीमारी है।
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