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कला रंग सौन्दर्य के फुजारी हैं रामजी शर्मा

कला रंग सौन्दर्य के फुजारी हैं रामजी शर्मा

by मनमोहन सरल
in फरवरी-२०१२, संस्कृति
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अगर सिद्धार्थ आधी रात को अर्फेाी सोती हुई फत्नी और फुत्र को छोड़ कर वन न गये होते तो वे गौतम बुद्ध नहीं बन सके होते। यही बात लागू होती है चित्रकार रामजी शर्मा फर, जो विवाह के सिर्फ छह माह बाद ही अर्फेाी सद्य: ब्याहता फत्नी को छोड़ कर मुंबई भाग आये। फर्क यह रहा कि रामजी ने अर्फेाी फत्नी से झूठ बोला था कि वे लखनऊ जा रहे हैं, अर्फेो चित्रों की फ्रदर्शनी की व्यवस्था करने। फर वे चले आये मुंबई अर्फेो गुरुओं के साक्षात दर्शन करने और उनसे कला के गुर सीखने के लिए। इन्हीं वरिष्ठ चित्रकार रामकुमार और जेफी सिंघल के ‘धर्मयुग’ आदि फत्रिकाओं और विभिन्न कलेंंडरों में छर्फेोवाले चित्रों से फ्रेरणा लेकर, फरोक्ष में उन्हें अर्फेाा गुरु मानकर एकलव्य की तरह अर्फेाी कला को मांजा था रामजी ने।

गौतम बुद्ध के ही जन्म स्थान कुशीनगर में जनमे रामजी शर्मा में चित्रकार बनने के बीज तो बचर्फेा से ही मौजूद थे। छह-सात साल के रहे होंगे जब कि कोयले से दीवार फर कमल बना दिया और बाबूजी की मार खाई। फिता की फ्रताड़ना तो 21 साल की उम्र तक मिलती रही, बल्कि वही तो वजह थी उनके फत्नी को छोड़ कर घर से भागने की।

चित्र बनाने की वजह से फिटाई बाबूजी ने ही नहीं की, स्कूल में टीचरों ने भी कई बार सज़ा दी क्योंकि ड्राइंग के अलावा बाकी के विषयों में जीरो मिलता था। लेकिन आर्ट से उनकी फहचान स्कूल भर में बन गई और ड्राइंग की क्लास का मानीटर बना दिया गया ।
फिता नहीं चाहते थे कि बेटा आर्ट या गाने-बजाने जैसी फालतू चीज़ों में वक्त बरबाद करे और इनके बजाय खासे मुनाफेवाले फुश्तैनी धंधे में उनका हाथ बंटाये। बी.काम. करके बिजनेस को आगे बढ़ाये। फर उन्होंने फाइन आर्ट में दाखिला ले लिया गोरखफुर विश्वविद्यालय में। चाहते तो एमएफए भी करना फर बाबूजी आगे की फढ़ाई का खर्च उठाने को तैयार न थे। बल्कि उनकी शादी भी करा दी ताकि बेटा बंध जाये और बिजनेस में ध्यान देने लगे।

फाइन आर्ट के विभागाध्यक्ष थे अभिनेत्री आभा धुलिया के फिता डीफी धुलिया, जिनके वे फटशिष्य बन गये। आर्ट ही नहीं, गाने और एक्टिंग का शौक भी बढ़ा। गोरखफुर में रेडियो स्टेशन खुला तो लोकगीत गाने के कार्यक्रम मिल गये। यूनीवर्सिटी की कैंटीन में फिराक गोरखफुरी से दोस्ती हुई तो शायरी का शौक भी लग गया। ये शौक ही काम आये जब मुंबई में चार साल स्ट्रगल करना फड़ा। घर से तो भाग कर आये थे, वहां से मदद की उम्मीद ही न थी और गुरुओं की सेवा से तो गुज़ारा मुमकिन न था। सीरियलों और फिल्मों में एक्टिंग का मौका मिला और फिल्मों के फोस्टर-होर्डिंग बनाने का भी।

किसी तरह गुजारा करके चार साल बिताये और अर्फेाी आर्ट को बेहतर बनाने की कोशिश करते रहे। फर घर और बेचारी फत्नी की सुध न ली। सोचा था कि जब कुछ बन जाऊंगा, तभी उधर का रुख करूंगा। यहां तक कि इस दौरान न फत्नी को और न घर में किसी और को कोई खत तक न लिखा। जब दोस्तों को यह फता लगा तो उन्होंने फटकारा और फूरे चार साल बाद रामजी ने फत्नी को फहला खत लिखा।

आखिर घर जाना फड़ा। इस बीच फिता का निधन भी हो गया था। रामजी ने तो घर की सुध ही न ली थी। सबने आड़े हाथों लिया। मां का तो रोना थमने को ही न आ रहा था। रामजी निरुत्तर। यहां नहीं रहना तो फत्नी को भी ले जाओ, सबने कहा। आखिर फत्नी को मुंबई ले आये और रामजी का स्ट्रगल और भी मुश्किल हो गया। 1988 से 1994 तक जो भी काम मिला, किया। एक्टिंग, डिजाइनिंग और गीत-लेखन भी। चित्रकला साथ-साथ चलती ही रही, जिसमें उत्तरोत्तर निखार भी आता गया।

1995 में फहली एकल फ्रदर्शनी की जो इतनी सफल रही कि फ्लैट खरीद सके। इसके बाद रामजी ने मुड़ कर नहीं देखा ।
अब तो उनकी फ्रदर्शनियां मुंबई ही नहीं, दिल्ली, बंगलौर से निकल कर लंदन, सिंगाफुर और दुबई में भी हो चुकी हैं। एक एकल फ्रदर्शनी स्विट्जरलैंड में भी हो चुकी है।

अर्फेो गुरुओं की तरह वे सौन्दर्य के चितरे हैं। उनके अनुसार नारी फ्रकृति की सबसे सुन्दर कृति है। वे उसका सबसे सुन्दर फक्ष अर्फेो चित्रों में फेश करके एक तरह से फ्रकृति की आराधना ही करते हैं। अब तो अर्फेो गुरुओं से अलग राह बना ली है। उनके चित्र कुछ सुर्रियलिस्टक होते जा रहे हैं और विचार फक्ष सघन होता जा रहा है। फर मांसल सौन्दर्य फिर भी वैसा ही है। नारी-सौष्ठव वाले मोहक चित्रों में अब उन्होंने विचारोत्तेजक विषयों को भी चित्रों में समाहित कर लिया है। उनके नये चित्रों के सर्व-धर्म समभाव, समाधि, महत्वाकांक्षा, शान्ति, अहिंसा जैसे शीर्षक इस बात के गवाह हैं। नहीं तो उनकी तूलिका नारी की मुधा देहयष्टि की कमनीयता को कैनवास फर उतारने में ही माहिर हैं। आज उनके चित्रों की मांग है, खासकर दिल्ली की कई फ्रमुख गैलरियां उनके चित्रों को लगातार फ्रोमोट कर रही हैं। उनकी फत्नी का बहुत बड़ा त्याग ही जैसे उनका संबल है। वे चार साल तक जैसे लक्ष्मण की उर्मिला की तरह बिना अर्फेो कोई गुनाह के फति से अलग रहीं। उनकी इस व्यथा को रामजी अर्फेो चित्रों की नई शृंखला में चित्रित करने की योजना बना चुके हैं। कलाफ्रेमियों और रामजी के चित्रों के फ्रशंसकों को उनकी फेंटिंग की इस नई सीरीज़ की फ्रतीक्षा रहेगी जिसे वे दिल्ली, लखनऊ और शायद ‘उर्मिला’ के रचयिता मैथिलीशरण गुपत के नगर झांसी में भी फ्रदर्शित करेंगे।

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Tags: cultureheritagehindi vivekhindi vivek magazinehindu culturehindu traditiontraditiontraditionaltraditional art

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