ईरानी होटल… बस एक याद

मुंबई कभी सोती नहीं। समय, काम और गति को मुंबई मात करने वाला महानगर है। धन, नाम और शोहरत कमाने मुंबई आने वाले देश‡विदेश के लोगों ने श्ह महानगर बसाया है। देख्ते‡देखते उनका अस्तित्व मुंबई महानगर के सांस्कृतिक जीवन का अंग बन गया। मुंबई की यह सांस्कृतिक विरासत मनोरंजक तथा मन को लुभाने वाली है। उसकी अनेक यादें मन पर अंकित हैं, लेकिन आधुनिकता के नाम पर होने वाले नए‡नए परिवर्तनों का आकर्षण हम सभी को है। फिर भी, पुरानी यादें, पुरानी जीवनशैली, पुराना जायका, पुरानी इमारतें आज भी मन में समाई हुई है।

मुंबई की इस तरह की अनेक विशेषताओं में एक हैं ईरानी होटल। मुंबई के ईरानी होटल यानि केवल खाद्य संस्कृति नहीं है, बल्कि वह मुंबई के कुल साहित्य, राजनीति, नाटक, प्रेमी युगल, कामगार संगठनों और बेरोजगारों को भी अपने में समेटे हुए है। ईरानियों ने साबित कर दिया कि ये अनोखे होटल किस तरह हमारी संस्कृति के अंग बन गए।

मुंबई लगातार बदलती रही है। इस आधुनिक मुंबई में ईरानी होटल अब उंगलियों पर ही गिने जा सकते हैं। पहले ईरानी होटल ‘पानी कम चाय’ के साथ वैचारिक, सामाजिक, साहित्यिक व प्रेम को इजहार करने का एक महत्वपूर्ण स्थान हुआ करता था।
मुंबई के महत्वपूर्ण मोड़ पर अर्धगोलाकार ये होटल हुआ करते थे। उसे दो दरवाजे होते थे, अंदर बीच में संगमरमर के गोल टेबल, उससे मेल खाती लकड़े की कुर्सियां होती थीं। ग्राहक को ‘पानी कम चाय’ के साथ इस तामझाम का भी आकर्षण हुआ करता था। होटल के दरवाजे के करीब संगमरमरी सतह वाला टेबल, उसके पीछे लाल‡गुलाबी रंग का ऊंचा और तीखे नाकनख्शवाला ईरानी सफेद कपड़ों में हुआ करता और जिसका दबदबा पूरी होटल में अनुभव होता। काऊंटर के पीछे ईरानी की तीन पीढ़ियों को उजागर करती बड़ी‡बड़ी तसविरें हुआ करती थीं। काऊंटर पर कांच की बड़ी‡बड़ी बरनियों में केक, बल पड़े खारी वेफर्स, चिवड़ा आदि सभी कुछ हुआ करता था।

पाव.बिस्कुट, मस्का पाव, बन मस्का पाव, खिमा, पैटिस, मटन समोसा, डबल आमलेट व पानी कम चाय ईरानी होटलों का खास मेन्यू हुआ करता था। यहां मेन्यू कार्ड नहीं होता था, होटल में आने वालों को पक्का पता होता था कि उन्हें क्या चाहिए। इन होटलों में सब से बड़ी बात थी वहां प्राप्त होने वाली शांति। काफी समय तक रुकने की छूट और साथ में पंखा, पेपर, माचिस और पानी मुफत में! मुंबई में समय का काफी महत्व है, परंतु शांति तो केवल ईरानी होटल में ही मिलेगी। पानी कम चाय, मस्का पाव या डबल आमलेट की आर्डर दी कि मन का संकोच छोड़कर चाहे जितना समय ईरानी होटल में आप बिता सकते हैं। होटल का मालिक भी आपको नहीं टोकेगा। इसी कारण इन होटलों में दोस्तों की गपशप के दौर तो चलते ही थे, कामगार आंदोलन की बैठकें भी हुआ करती थीं। हिंदी‡मराठी कवियों की प्रेरणा का स्थान भी ये ही होटल हुआ करते थे। चित्रकार, प्रेमी युगल से लेकर बेरोजगार जैसे सृजनशील लोग भी यहीं आया करते। अनावश्यक सूचनाएं देकर ग्राहकों को हैरान करने वाले बोर्ड यहां नहीं होते थे। ‘स्नो स्मोकिंग’ का बोर्ड तो कल परसों तक वहां नहीं होते थे। तनहाई का पूरा अनुभव करने का माहौल यहां हुआ करता था। इसी कारण ’दिल हारे’ लोग एकांत में पानी कम चाय के साथ सिगरेट, मस्का पाव को अपनी तनहाई का सहारा बनाते थे।

गरीब से गरीब आदमी को भी ईरानी होटलों के प्रति पूरा विश्वास था। कोई बिल न देकर गायब हो जाएगा यह आशंका भी ईरानियों के मन में नहीं होती थी। इसी कारण शहर की मौके की मोड़ पर स्थित अर्धगोलाकर इन होटलों में दो भव्य दरवाजे हुआ करते थे। ईरानियों के अधिकांश स्थान ‘वास्त’ के अनुसार ‘अशुभ’ ही थे। बिल्कुल कोने की अर्धगोलाकार जगह पर। लेकिन निजाम हैरान हो इस तरह का वैभव वहां बसता था। खाकर तृप्त ग्राहक का वजन नापने का काटा भी वहां होता ही था। रफी‡लता के दर्दभरे गीतों से गजलों तक लोकप्रिय गाने सुनाने वाला ‘म्यूजिक बॉक्स’ ईरानी होटलों वैभव ही था। मुंबई के उपनगरों में करीब 400‡500 ईरानी होटल चौराहे‡चौराहे पर थीं। इस तरह के ईरानी होटल देश के अन्य नगरों के भाग्य में नहीं थे।

बदलती मुंबई में मिल कामगार खत्म होता गया। वर्गफुट के भाव से जमीनें बिकने लगीं। विकास की इस धमाचौकड़ी में दो जुन की रोटी कमाने वाला कामगार मुंबई के बाहर ढकेला गया और उसीके साथ ईरानी भी लुप्त होने लगा। अब तो वह नाममात्र के लिए बचा है। मुंबई को शांघाय बनाने में जुटे राजनीतिज्ञों को ‘पानी कम चाय’ से कुछ लेनादेना नहीं है। यह भी सच है कि परिवर्तन सृष्टि का नियम है। मुंबई भी इसकी अपवाद नहीं है। इन परिवर्तनों के साथ मुंबई की जीवनशैली भी बदल गई है। खाद्य संस्कृति भी बदली, आदतें भी बदलीं। मुंबई फलने‡फूलने भी लगी।

फिर भी सौ साल पहले मुंबई वालों को ईरानियों के होटलों की चाय और बनमस्का का चस्का आज भी कायम है। ईरानी होटलों की जगहों पर अब ‘कॉफी शॉप’ दिखाई देने लगे हैं। गल्ले पर बैठा सफेद कपड़ों वाला ईरानी जाकर अब जीन्स‡टी शर्ट वाला ईरानी युवा दिखाई देने लगा है। मेन्यू लगभग वैसा ही है। आज भी ‘पानी कम चाय’ व बनमस्का पाव ग्राहकों को परोसा जाता है। हां, पुराने जमाने का ईरानी फर्नीचर अब बदल गया है। उसका स्थान नए चमचमाते फर्नीचर ने ले लिया है। नई पीढ़ी के व्यवहारों से ऐसा लगता है कि अगले कुछ वर्षों में ‘पानी कम चाय’ या बनमस्का पाव भी विदा हो जाएगा। ईरानी होटल भी अब अपवाद स्वरूप ही रह गए हैं।

युवा ईरानियों का कहना है कि ‘काफी शॉप’ के रूप में बदलाव के कारण उनके व्यवसाय पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है। होटल के माहौल में मिलने वाला एकांत और गपशप के बीच व्यंजनों का ‘लाइट मेन्यू’ आज भी लोगों को लुभा रहा है।

आज भी इन घंटों गपशप चल सकती है। समय के साथ खाने की आदतें बदलीं लेकिन ईरानी ‘पानी कम चाय’, मावा केक, मस्का पाव, डबल आमलेट का सालों पुराना जायका आज भी इन कैफे शॉप्स में मिलता है। कुछ मात्रा में आज की पीढ़ी को प्रिय चायनीज मेन्यू भी अब मिलने लगा है। आगामी वर्षों में क्या और बदलाव होंगे? इस सवाल पर युवा ईरानियों का कहना है कि समय के साथ बदलाव करने ही होंगे।

पिछले कुछ वर्षों में मुंबई के आधुनिकीकरण में मध्यमवर्गियों की आय भी बढ़ी है। इस बढ़ती आय के साथ जीवन का आनंद उठाने की आदतें भी बदली हैं। हाईप्रोफाइल जीवनशैली मुंबईकरों पर हावी हो रही है। स्वाभाविक रूप से भोजनालय से होटल, टपरी से ईरानी होटल से आरंभ अपना चस्का अब मॉल के फुडकोर्ट व थिम रेस्तरां तक विस्तारित हुआ है। मुंबई की खाद्य संस्कृति बदलती जीवनशैली के साथ बदलती गई।

ईरानी होटल के मेन्यू का जिन्होंने स्वाद चखा है उनके मन के भीतर झांकने पर लगता है कि मुंबई को शांघाय बनाने के पीछे पड़े राजनीतिज्ञ जानें कि ‘विरासत’ के रूप में कुछ जतन करने की भी अपनी परम्परा है। मुंबई की सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक के रूप में ईरानियों का एक कोना बचाए रखे यह कहने वाले बहुत मुंबईकर हैं।
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