हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
आत्मनिर्भरता में मनोरंजन क्षेत्र की भूमिका

आत्मनिर्भरता में मनोरंजन क्षेत्र की भूमिका

by अतुल गंगवार
in आत्मनिर्भर भारत विशेषांक २०२०, मनोरंजन, युवा
1

आज भारत को आत्मनिर्भर बनाने की बात हो रही है। उसी स्वर्णिम गौरव शाली वैभव को वापस पाने की बात की जा रही है जब हमारे देश को सोने की चिड़िया कहा जाता था। इस स्वप्न को साकार करने में मनोरंजन जगत की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका है।

बात बहुत पुरानी नहीं है। अपने बचपन की है। ना टीवी होता था। ना कंप्यूटर। ना ही मोबाइल। जब ये सब नहीं था तो पब जी या वॉर गेम्स ये सब तो भविष्य की कल्पनाओं में भी नहीं दिखाई देते थे। लेकिन एक बात बहुत ईमानदारी से कहता हूं जीवन में अकेलापन नहीं था। दोस्त थे। कंचे खेलते थे। गुल्ली डंडा पर भी हाथ साफ किया करते थे। मौसम में पतंगबाजी भी कर लिया करते थे। संडे क्रिकेट। इन सबके साथ के लिए ना जाने कितनी बार पिता जी मार भी खाई। पर मजाल है आनंद में कभी कोई कमी आई हो। इसके साथ रामलीला में अभिनय करना वर्ष के सबसे अच्छे दिन होते थे। आज जैसे गली गली में मल्टीप्लेक्स नहीं हुआ करते थे। इसलिए साल में एक-आधा सिनेमा ही देखने को मिलता था। सिनेमा देखने जाना एक उत्सव ही हुआ करता था। घर में पिता जी का आग्रह सिर्फ पढ़ाई के लिए होता था। हमारे ज़माने में कहावत होती थी, खेलोगे कूदोगे तो होंगे खराब, पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब। तो सारा जोर नवाब बनने में लग जाता था। ये बात ओर है ना खेलने से खराब हुए ना ही पढ़ लिखकर नवाब बने। काश पिता जी भविष्य को देख पाते तो हम भी गावस्कर, विश्वनाथ, कपिल, राजेश खन्ना, अमिताभ बन जाते ( इन्हें आप आजकल के सचिन, धोनी, विराट, ऋतिक, अक्षय कुमार समझ सकते हैं।) तो बस जीवन में जाने कब किशोर हुए, कब जवान और कब हमारे बच्चे किशोर हो गए, पता ही नहीं चला। बस समय पंख लगा कर यूं ही उड़ गया। समय बदला, उसके साथ सारी मान्यताएं बदल गईं। जिन बातों को करने के लिए हम पिटा करते थे, आज की पीढ़ी उन बातों को ना करने के लिए डांट खाती है।

किसी भी देश की ताकत उसकी सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, कलात्मक पहचान ही होती है। लेकिन अतीत में हमारे वैभव को लूटने के लिए आए मुग़ल आक्रांताओं ने हमारी धन संपदा को तो लूटा ही, महिलाओं की अस्मिता पर बुरी दृष्टि डाली। लेकिन एक काम जो उन्होंने किया वह था हमारी आस्थाओं पर चोट पहुंचाने का, हमारे गौरवशाली शिक्षण संस्थानों, हमारी कला, संस्कृति को खत्म करने का। अंग्रेज शासकों ने रही सही कसर पूरी करते हुए समाज में वैमनस्य फैलाने का काम किया। उनकी फूट डालो राज करो की नीति ने ना केवल धार्मिक वैमनस्य पैदा किया, बल्कि हिंदू समाज को हर तरह से प्रताड़ित किया। लेकिन वह हमारी ताकत को खत्म नहीं कर पाए। इसका सबसे बड़ा कारण था हमारी हज़ारों वर्ष पुरानी संस्कृति जिसकी जड़ें वेदों, पुराणों में थीं। हमारे आराध्य श्री राम, श्री कृष्ण थे, जो जन्म से लेकर मरण तक हमारे दैनंदिन जीवन का हिस्सा थे। अगर वर्षों के अत्याचारों के बाद भी ये सब हमारे जीवन का हिस्सा बने रहे, उसका श्रेय हमारी लोक कलाओं को जाता है। वाल्मिकी जी की रामायण को तुलसीदास जी ने लिखकर और रामलीला के रुप में मंचित करवा कर उसे जन-जन तक पहुंचा दिया। श्री कृष्ण की लीलाएं अनेक मंचों का हिस्सा बनीं। हमारे सिनेमा की प्रारम्भिक कहानियां इन्हीं आदर्श पुरुषों से प्रेरित थीं। सच पूछा जाए तो हमारे पूर्वजों ने अपने धर्म को, ऐतिहासिक गौरव को मनोरंजन के माध्यम से पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाया। हमारे वीर योद्धाओं की गाथाओं ने लोक गीतों में अपना स्थान बनाकर उन्हें अमर बना दिया। देश को स्वतंत्र कराने के लिए सिनेमा, गीतों, नाटकों के माध्यम से लोगों में जागृति लाई।

मनोरंजन के साधन कोई भी हो, सिनेमा, नाटक, गीत, संगीत, रोमानी, आध्यात्मिक, कथा साहित्य, राष्ट्र निर्माण में इनके योगदान को कमतर करके नहीं आंका जा सकता है। प्रसिद्ध अभिनेता-निर्देशक राजकपूर ने एक बार कहा था भारतीय सिनेमा की तमाम कहानियां रामायण से प्रेरित हैं। आप ऐसी किसी भी फिल्म की कल्पना नहीं कर सकते जिसका संदर्भ रामायण से ना जोड़ा जा सकता हो। लेकिन कालांतर में आयातित वामपंथी विचारधारा से प्रेरित कुछ लोगों ने सिनेमा का दुरुपयोग यथार्थवादी सिनेमा की आड़ में वर्ग संघर्ष को बढ़ावा देने के लिए किया। किसी क्षेत्र विशेष की कुरीतियों को पूरे समाज के साथ जोड़कर समाज को तोड़ने का काम भी किया। हमारे गौरव से हमें दूर करने के लिए हमारे ही समाज के कुछ लोगों का चित्रण ऐसे किया गया जिससे हम ही उनके विरूद्ध खड़े हो जाए। हमारे नाटकों में से स्थानीय पात्र बाहर निकल गए। प्रगतिशीलता के नाम पर चेखव, गोर्की जैसे आयातित लेखकों की कृतियां मंचों की शोभा बढ़ाने लगीं। हमारे पूरे इतिहास को वामपंथियों ने विकृत कर दिया। देश को आजादी मिलने के बाद भी समाज में बहुसंख्यक वर्ग को बड़े भाई का झुंझना पकड़ा कर अल्पसंख्यक के संरक्षण के नाम पर अपना वोट बैंक बनाने का काम किया गया। स्वतंत्र भारत की इससे बड़ी विडबंना क्या होगी कि स्वतंत्रता के इतने वर्षों के बाद भी देश की राजधानी में अकबर, शाहजहां, तुगलक औरंगजेब रोड (इसका नाम अब कलाम साहब के नाम पर कर दिया गया है) हों। इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि जिन प्रभु राम के नाम के साथ जन्म होता हो और जिनके नाम के साथ मोक्ष मिलता हो, 500 वर्ष लगे उन प्रभु राम को उनका जन्मस्थान दिलाने में। जिसमें से 70 वर्ष अपने देश में, जिसका विभाजन धर्म के नाम पर हुआ था उसमें मुकदमा लड़ना पड़ा हिंदू समाज को।

समय एक बार फिर बदला है। जिस गौरवशाली अतीत की कहानियां हम सुना करते थे, आज उसे साकार होते हुए देख रहे हैं। 500 साल के संघर्ष और लाखों लोगों के त्याग के फलस्वरूप हम अपने जीवन में राम मंदिर का निर्माण होते हुए देख रहें हैं। एक बार फिर हम अपने सम्मान की रक्षा कर पाएं हैं। आज भारत को आत्मनिर्भर बनाने की बात हो रही है। उसी स्वर्णिम गौरव शाली वैभव को वापस पाने की बात की जा रही है जब हमारे देश को सोने की चिड़िया कहा जाता था। इस स्वप्न को साकार करने में मनोरंजन जगत की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका है।

आज मनोरंजन के साधन ना केवल आज की युवा पीढ़ी के लिए आजीविका का साधन हैं वहीं दूसरी ओर एक सशक्त आत्मनिर्भर भारत के निर्माण का आधार है। सबसे पहले हमें मनोरंजन के माध्यमों का सहारा लेकर वामपंथियों द्वारा विकृत किए गए इतिहास, कला, संस्कृति को उन्हीं माध्यमों की सहायता से स्थापित करना है। जो हम थे, जो हमें होना है उसका चित्रण करना है। हमारा समृद्ध साहित्य है, लोक कलाएं हैं, परंपराएं हैं, उन्हें अपने नाटकों का, कहानियों का, सिनेमा का हिस्सा बनाकर भावी पीढ़ी के चरित्र का निर्माण का कार्य करना है। डोरोमॉन से उन्हें छुटकारा दिलाकर हमारे समृद्ध पंचतंत्र के साहित्य से उन्हें परिचित कराने का।

दुर्भाग्य है कि अभी भी अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर हमारी मान्यताओं पर चोट की जाती है। हमारे आत्मसम्मान को, हमारे स्वाभिमान को ठेस पहुंचाई जाती है, लेकिन अब एक नए राष्ट्र का निर्माण हो रहा है। कभी श्री राम के अस्तित्व को नकारने वाले आज प्रभु राम के गुण गा रहे हैं। लॉकडॉउन के समय में हमने देखा दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाली रामायण ने लोकप्रियता के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए। ये बदलता भारत है। अब वक्त है अपने को अभिव्यक्त करने का, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कुछ भी स्वीकार करने की बजाए उसका विरोध करने का। स्मरण रहे सशक्त आत्मनिर्भर भारत का निर्माण तभी संभव है जब उसकी बागडोर ऐसे युवाओं के हाथ में दी जाए जिन्हें अपने देश पर गर्व हो, अपनी संस्कृति, कला पर गर्व हो और मुझे पूरा विश्वास है इस काम के लिए मनोरंजन जगत की बहुत ही सार्थक भूमिका रहने वाली है।
————

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: bollywoodentertainerentertainmenthindi vivekhindi vivek magazinemusiconlinepodcastshortvideosstageshowsupdates

अतुल गंगवार

Next Post
स्वास्थ्य का मूलाधिकार आत्मनिर्भरता की बुनियाद

स्वास्थ्य का मूलाधिकार आत्मनिर्भरता की बुनियाद

Comments 1

  1. Anonymous says:
    4 years ago

    Very well said…. Hope you will continue writing such articles. All the best

    Reply

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0