हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
बदलते साज

OLYMPUS DIGITAL CAMERA

बदलते साज

by श्रीकांत जोशी
in नवम्बर २०१४, संस्कृति, सामाजिक
0

इलेक्ट्रोनिक इस्ट्रूमेंट या आधुनिक तकनीक हमारे वाद्यों के लिए, हमारे संगीत समाज के लिए बहुत ही खतरनाक है। दस इस्ट्रूमेंट बजा कर जो काम होता था वो आज एक मशीन करती है। इस कारण संगीत के क्षेत्र में बेरोजगारी बढ़ी है। वादकों की संख्या कम हुई है। हमारे कई वाद्य तो लुप्त होने की कगार पर हैं।

गीत की उत्पत्ति शिव के डमरु से मानी जाती है। आदि वाद्यों मेंं डफ, डमरु, झांझ, मंजीरा, मृदंग, वीणा का जिक्र मिलता है। इन वाद्यों को हम आदि वाद्यकह सकते हैं। इनका उल्लेख कई शिलालेखों में, कई चित्रों, मंदिरों, पत्थरों की कलाकृतियों मेंं हमेंं मिलता है। हमें देवी सरस्वती के हाथों में वीणा, कृष्ण भगवान के हाथ मेंं बांसुरी तथा गणेश के हाथों में मृदंग दिखाई देता है। कई श् लोकों मेंं भी इसका वर्णन मिलता है।

कहा जाता है कि रावण बहुत बड़ा संगीतज्ञ था। शिवजी को प्रसन्न करने के लिए उसने तांडव नृत्य किया तथा पखावज भी बजाई। संगीत तीन शब्दों से बना है। स -से सूर, ग से गीत व त से ताल। इसमेंं से एक भी कम हो जाए तो सब अधूरा रह जायेगा। जैसे ताल के बिना गीत अधूरा है। सुर के बिना गीत अधूरा है तथा सुर और ताल भी एक दूसरे के बगैर अधूरे हैं। ताल कई प्रकार के होते हैं। जैसे चौताल, तीन ताल, कहवा, दादरा, तेवरा, घमार आदि। इन्हीं से एक धुन बनती है जिसे संगीत कहते हैं।

आज हमें डफ, डमरु, झांझ, मंजीरा, मृदंग, वीणा इत्यादि वाद्य लुप्त होते नजर आ रहे हैं। न कोई इन्हें बजाता है, न ही इन्हें सिखाने वाले गुरु हैं। किसी वक्त पखावज, रुद्रवीणा, दिलरुबा, घाघ, राजसभाओं की शोभा हुआ करती थी।

रुद्रवीणा बजानेवालों को आज हम उंगलियों पर गिन सकते हैं। कुछ वर्षों मेंं हम इनके केवल नाम तथा चित्र ही देख पाएंंगे। डफ, डमरु, झांझ, मंजीरा ये सिर्फ अब देवस्थानों मेंं ही मिलते हैं तथा सिर्फ मंदिरों की ही शोभा बढ़ाते हैं। हवेली संगीत मेंं आज भी कीर्तन के दौरान लोग पखावज और झांझ का उपयोग होता है।

जिन वाद्यों पर चमड़ा लगा होता है उन वाद्यों को चर्म वाद्य कहते हैं जैसे, तबला, पखावज, ढ़ोलक, ढ़ोलकी, डमरु, डफ आदि। तंतु वाद्य वे होते हैं जिनमेंं तार लगे होते हैं जैसे विणा, सितार, सरोद, सारंगी, संतूर, दिलबहार आदि। बांसुरी, शहनाई आदि वाद्यों को सुर वाद्य कहा जाता है।

हर वाद्य को बजाने की कला अलग है। बजाने के पूर्व की तैयारी अलग होती है। पखावज मेंं आटा लगया जाता है, मृदंगम मेंं रवा, ढ़ोलक मेंं मसाला लगाया जाता है। पखावज कथक नृत्य तथा ध्रुपद धमार मेंं भजनों के साथ संगत (बजाई ) जाती है। ढोलक लोक गीतों मेंं, भजनों में, नाटकों में इसका प्रयोग होता है। डोलकी, नाटकी तथा इसको कई प्रकार नृत्यों में भी बजाया जाता है।

समय बदलता गया और देश में नए वाद्यों का निर्माण हुआ। जैसे पखवाज को दो भागों में बांट कर तबला बना दिया। उसे छोटा कर ढोलक का रूप बन गया। हलके तथा छोटे होने से इन वाद्यों को सरलता से बजाया जा सकता है। इसलिए ये वाद्य जल्दी ही प्रसिद्ध हो गए। उनका उपयोग नौटंकी में, खेलों में, नृत्य में, गानों में सभी जगह होने लगा।

अमीर खुसरो ने तबले का निर्माण किया जो कि हलका था तथा इसे आसानी से बजाया जा सकता था। पखावज को गंभीर वाद्य माना जाता है तथा तबला बहुत ही चंचल वाद्य है। वह किसी के भी साथ बजाया जा सकता है चाहे वो संगीत हो, नृत्य हो, नौटंकी हो, नाटक हो, भजन हो इसलिए इसकी लोकप्रियता आज भी कायम है। ढोलक का प्रयोग भजन गीतों में तथा लाइट म्यूजिक की संगत में इसका बहुत प्रयोग होता है।

ढोलकी का प्रयोग नोटंकी में, नाटकों में बहुत होता है। महाराष्ट्र में लावणी में बहुत बड़ा महत्व है।

तंतु वाद्यों की अगर हमें बात करे तो वीणा बहुत ही गंभीर साज है। इसे बजाने वाले बहुत ही कम हैं। यह एक लुप्त होता हुआ साज है। इसकी जगह सितार ने तथा सरोद ने ले ली है। सरोद अफगानिस्तान का वाद्य माना जाता है।

आजकल लोगों का रुझान पश् चिमी संगीत की ओर बढ़ता जा रहा है जिस कारण हम हमारे संगीत से दूर होते जा रहे हैं। नया युग, नए लोग, नया दौर आ रहा है। पश् चिमी संगीत और भारतीय संगीत दोनों को मिला कर जो संगीत बनता है उसे फ्यूजन संगीत कहा जाता है। इसका प्रचलन बहुन बढ़ रहा है। किसी ने कहा है की हमारा संगीत दिलों पर राज करता है। दिल से सुना जाता है और उसमें समा जाता है। शास्त्रीय संगीत के श्रोताओं की कमी का कारण है पश् चिमी संगीत की तरफ भागते हुए लोग तथा पश् चिमी सभ्यता का लोगों पर पड़ता हुआ असर। हम पश् चिमी संस्कृति में अपने संगीत को भूलते जा रहे हैं। पश् चिमी संगीत सिर्फहमारे पैरों को ही थिरकाता है मगर हमारा संगीत सारे रोम -रोम पर राज करता है।

हमारे लोकगीत, लोक संगीत लुप्त होते जा रहे हैं। इसका सब से बडा कारण लोगों का उसे न अपनाना, उसे ना सुनना, उसमें रुचि ना लेना। भारत में संगीत कई प्रकार का मिलता है मगर यह अब एक धरोहर के रूप में हमारे पास है। अगर उसे आगे न बढ़ाया गया तो हमें उस संगीत को, वाद्यों को, गीतों को भूल जाना होगा। वर्तमान स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। इसका कारण है वाद्यों में नई पीढ़ी की रुचि न होना। हमें अगर परिवर्तन लाना है तो बच्चों में संगीत के प्रति रुचि उत्पन्न करनी होगी।

इलेक्ट्रॉनिक इस्ट्रूमेंट के कारण हमारे संगीत में बहुत से परिवर्तन आए हैं। सिंथेसाइजर और ओक्टोपेड ऐसा इलेक्ट्रोनिक वाद्य है, जिसमें से सभी प्रकार के वाद्यों की आवाज निकलती है।

सिंथसाइजर में आप को हारमोनियम, बांसुरी, सितार, शहनाई, वॉयलिन, बीन आदि की अवाज को निकाल सकते हैं। ओक्टोपेड से भी आप तबला, ढोलक, पखावज, झांझ, मंजीरा, ड्रम, आदि की आवाज आती है।

आज कल इन्हीं वाद्यों की वजह से दूसरे वाद्यों की जरूरत कम होती जा रही है। जिस कारण उनके बजानेवाले बहुत ही कम होते जा रहे हैं। जब हम ७० और ८० के दशक का संगीत सुनते हैं तो उसमें हमें हर वाद्य के प्रयोग का पता चलता है। ढोलक, ढोलकी, बीन, शहनाई, पखावज, मंजीरा, झांझ लोगों द्वारा बजाए जाते थे। मगर आज वही काम एक मशीन से हो जाता है। पैसों की बचत भी हो जाती है। लाइव परफॉर्मेंस में भी इसका प्रयोग बढ़ते जा रहे हैं। नए इलेक्ट्रोनिक इस्ट्रूमेंट बाजार में आ रहे हैं और इसका सीधा असर वाद्य बजानेवालों पर पड़ रहा है। जिस कारण लोगों की रुचि उन वाद्यों में कम होती जा रही है। जैसे जलतरंग लुप्त होने की कगार पर है इसके बजाने वाले बहुत कम रह गए हैं। कम प्रयोग के कारण इसे कम लोग सीखते हैं। कुछ वर्षों बाद इसे हम शायद सिर्फ किताबों में ही पाएंगे। एक खतरा है जो हमारे संगीत के क्षेत्र को समेटता जा रहा है।

इलेक्ट्रोनिक इस्ट्रूमेंट या आधुनिक तकनीक हमारे वाद्यों के लिए, हमारे संगीत समाज के लिए बहुत ही खतरनाक है। लोगों को जो दस इस्ट्रूमेंट बजा कर काम होता था वो आज एक मशीन करती है। इस कारण संगीत के क्षेत्र में बेरोजगारी बढ़ी है। वादकों की संख्या कम हुई है।

फिल्मों में भी संगीत का उपयोग होता है मगर शास्त्रीय संगीत का उपयोग कम होता है। जिस कारण उन वाद्यों का उपयोग होता ही नहीं। बस एक या दो मशीनोंे के प्रयोग से सारे गाने को बना दिया जाता है। गानों को बनाने में किसी वाद्य का उपयोग भी ज्यादा नहीं किया जाता। इलेक्ट्रॉनिक इंस्ट्रूमेंट्स के कुछ फायदे भी हैं। जैसे काम कम समय में हो जाता है। एक बार जो वाद्य बज गया तो दुबारा बजाने की जरूरत नहीं होती। वह रेकॉर्ड हो जाता है।

आज अगर हम लाइव शो देखें तो हमें आधुनिक वाद्यों की भरमार मिलती है। आज कल शो में सितार, शहनाई, सारंगी, हारमोनियम जैसे वाद्य नही मिलते।

आधुनिकता की होड़ में हमें अपने पारंपरिक वाद्यों को नहीं भूलना चाहिए। इन वाद्यों को संजोने के लिए आवश्यक है कि हम अपनी नई पीढ़ी को इन वाद्यों को सीखने के लिये प्रवृत्त करें।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: cultureheritagehindi vivekhindi vivek magazinehindu culturehindu traditiontraditiontraditionaltraditional art

श्रीकांत जोशी

Next Post
अनेक भाषाएं, सुरसमन्वय और जिंगल्स

अनेक भाषाएं, सुरसमन्वय और जिंगल्स

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

- Select Visibility -

    No Result
    View All Result
    • परिचय
    • संपादकीय
    • पूर्वांक
    • ग्रंथ
    • पुस्तक
    • संघ
    • देश-विदेश
    • पर्यावरण
    • संपर्क
    • पंजीकरण

    © 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

    0