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सौगात

सौगात

by pallavi anwekar
in जुलाई -२०१३, मनोरंजन, सामाजिक, साहित्य
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चिलचिलाती धूप के बाद पड़ने वाली बारिश की रिमझिम बूंदें तन के साथ मन को भी शीतल कर देती हैं॥ धरती की तपन और प्यास को तो यह बारिश बुझाती ही है, उदासीनता और अकर्मण्यता को भी दूर कर देती है॥ सच ही कहा गया है कि जल ही जीवन है। गर्मी के कारण जहां पेड़‡पौधे तक मुरझा जाते हैं और अपने पत्ते गिरा देते हैं, वहीं बारिश की ठण्डी फुहारोंमें नहाकर उनमें भी नयी जान आ जाती है। पेड़ की हर शाख पल्लवित हो जाती है, मानों वह भी पुनः श्रंगार कर मेघों का अभिनन्दन कर रही हो। मिट्टी की सोंधी खुशबू उठते ही मन सारे बन्धन तोड़कर खुली हवा में सांस लेने के लिए लालायित हो जाता है। अब तक गर्मी की वजह से स्वयं को अप्राकृतिक ठण्ड के हवाले करने के लिए मजबूर तन‡मन बारिश की नैसर्गिक शीतलता के प्रति बरबस ही आकर्षित होने लगता है।

वर्षा प्राकृतिक सौन्दर्य का दूसरा रूप है। पहाड़ों के ऊपर से उड़ते हुए बादल धुंए की चादर के समान सारे नजारों को अपने आगोश में समेट लेते हैं। जो नजारे कुछ समय पहले दिखायी पड़ रहे थे, कुछ ही पलों में वे धुंध में खो जाते हैं और जब यह धुंध छंटती है तो वे नजारे पहले से भी अधिक साफ और मनोरम दिखने लगते हैं। ऐसा लगता है जैसे किसी ने हमारी आंखों से पर्दा हटा दिया हो।

है ये कुदरत का करिश्मा या आंखों का वहम है ।
जो नजारे थे पहले से ही खूबसूरत, वे अब और भी मनोरम है।

इन पहाड़ों पर अगर हमारा भी जाना मुमकिन हो तो फिर क्या बात है! जिन दृश्यों को देखकर मन इतनाप्रफुल्लित हो उठता है उन्हें स्वयं अनुभव करना तो और भी सुखद होता है। बादलों के बीच से ऊपर चढ़ते‡चढ़ते जब हम शिखर तक पहुंच जाते हैं तब तो वह रास्ता भी नहीं दिखता जहां से हम चढ़कर आये थे। दिखती है तो बस बादलों की घनी चादर और महसूस होता है तो बस नैसर्गिक आनन्द। बारिश का मजा केवल पहाड़ों तक ही सीमित नहीं है। गांवों, नगरों, महानगरों में भी इसका अपना मजा है। दरअसल व्यक्ति विशेष के अन्तर्मन में बारिश की अनुभूति स्थान से नहीं; भावनाओं से होती है।

बारिश हर उम्र के मन को आह्लादित करती है, फिर चाहे वह बच्चा हो या वयस्क। नाना‡नानी, दादा‡दादी द्वारा बच्चों को सुनायी गयी कहानियों और परी कथाओं में भी बारिश का जिक्र जरूर होता है और इन्हीं के आधार पर बच्चे अपनी कल्पनाओं को आकृति देने लगते हैं। उन्हें बादल कभी कपास के ढेर के जैसा दिखता है, तो कभी किसी जानवर के जैसा। मां की डांट को अनसुना करके बारिश मेंभीगना, बहते पानी में कागज की नाव चलाना, किसी ग़ड्ढे में जमा पानी में जानबूझ कर पैर मारना जिससे ‘छपाक’ की आवाज के साथ पानी के छींटें उछलें, बारिश में भीगने के लिए ‘छतरी नहीं खुली’ या ‘मेरी टोपी गिर गयी’ जैसे बहाने करना बच्चों के लिए आम बात है और उनकी माताओं के लिए इसे सुनना रोज की दिनचर्या।

भारत के पहाड़ी राज्यों को छोड़कर लगभग सभी राज्यों में विद्यालय खुलने और बारिश आने का समय लगभग एक सा ही होता है। अपने सभी दोस्तों से दो महीने बाद मिलने का उत्साह सभी बच्चों में होता है और उस पर यदि उनके साथ बारिश में भीगने का मौका मिले, तो क्या बात है! विद्यालय का प्रांगण तो होता ही इसीलिए है। फुटबाल, हॉकी, क्रिकेट जैसे मैदानी खेल खेलने के लिए बच्चों को यही मौसम सबसे अच्छा लगता है। उन्हें न बीमारी की चिन्ता होती है न कपड़े खराब होने की। वस्तुतः बचपन तो चिन्ता से मुक्त जीवन का ही नाम है। बारिश का पानी जिस तरह अपनी निष्कंटक राह बनाता हुआ वेगवान हो आगे बढ़ता है, उसी तरह बचपन भी बिना किसी चिन्ता के सारा आनन्दास्वादन करते हुए आगे बढ़ता जाता है।

यह मौसम प्रेमी-प्रेमिकाओं के लिए तो जैसे वरदान है। श्रंगार रस के किसी विद्वत कवि की काव्य-कल्पना में बारिश का उल्लेख न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। हर प्रेमी युगल बारिश में कहीं न कहीं अपना रंग ढूंढ़ ही लेता है। एक ही छतरी में एक -दूसरे की बांहों में बांहें डाले घूमना, एक-दूजे को तपिश देने वाली बारिश की बूंदों और समाज की नजरों से बचाने की कोशिश करना, आधे भीगे, आधे सूखे कपड़ों में समंदर किनारे बैठना, समंदर की लहरों को देखते हुए अपने मनोरम भविष्य की कल्पना करना, वास्तविक‡अवास्तविक सपने सजाना, इत्यादि सारे भाव इन प्रेमियों की भावनाओं में शुमार होते हैं।

केवल प्रेमियों के लिए ही क्यों नव-विवाहित दंपत्ती को भी यह मौसम सुहाना ही लगता है। परन्तु इसमें कहीं न कहीं विरह की टीस भी उठती है, क्योंकि सावन में अक्सर नव वधुएं अपने पीहर जाती हैं। जहां उनके लिए पेड़ों पर झूले डाले जाते हैं। ससुराल से अपने‡अपने पीहर आयी युवतियां इन झूलों पर झूलते हुए सावन के गीत गाती हैं। अगर यह सब न भी हो तो भी विरह की वेदना तो होती ही है। आज संचार के सारे माध्यम उपलब्ध होने के बावजूद भी एक-दूसरे का साथ नहीं होता और फिर जब इस विरह वेदना की अति हो जाती है तो नव वधु अपने पति से गुजारिश करती है कि ‘मोहे नैहर से अब बुलाय ले पिया।’

बारिश का आनन्द लूटने के लिए प्रेमी या प्रेमिका होना ही आवश्यक नहीं है। दोस्तों या सहेलियों का समूह भी बहुत सुखदायी होता है। बारिश की पिकनिक हो या यूं ही भटकने की कल्पना, रोमांच दोनों में होता है। घूमते‡घूमते किसी चाय की टपरी जाना, चाय की चुस्कियों के साथ गरमा‡गरम पकौड़े खाना, भुने हुए मक्के की बालियों को नींबू-नमक लगाकर खाना और इन चटपटी चीजों के साथ चटपटे गप्पे मारना। आज की युवा पीढ़ी भले ही क म्प्यूटर और मोबाइल की आदी हो चुकी है, फिर भी बारिश में घूमने का मजा इन दोनों से नहीं मिलता। शायद यही वो बात है जो प्राकृतिक और अप्राकृतिक का भेद समझाती है।

भारत में बारिश के लिए सबसे ज्यादा आतुर अगर कोई है तो वह है किसान। पहले वर्णन किये गए सभी किरदार कुछ समय के आनन्द के लिए बारिश की राह तकते हैं, परन्तु किसान का तो सारा जीवन इसी पर निर्भर होता है। हर बार आसमान में छाने वाले काले बादल उसे अपने घर का अन्धेरा दूर करने वाले प्रतीत होते हैं, क्योंकि ये बादल ही उसके खेतों को बारिश का वह पानी देते हैं, जिससे उसकी फसल लहलहाती है। हर साल बादलों के छाने के साथ ही वह कल्पना करने लगता है कि अपने खेत में अच्छी फसल होगी। बाजार में उसका अच्छा दाम मिलेगा, उन पैसों से वह अपने घर के छाजन ठीक कराएगा, जिससे पिछली बार की तरह उसकी छत न टपके। वो सोचता है अपने और अपने परिवार के लिए आने वाले त्योहार पर नये कपड़े तो जरूर खरीदेगा। एक अरसे से पल रही अपनी पत्नी की अन्तर्भावना को भी वह जेवर खरीद कर पूरा कर ही देगा। परन्तु उन सभी आशाओं पर पानी फिर जाता है… अगर उस पर मेघराज की करुणा नहींबरसी तो। इसलिए बारिश सबसे ज्यादा किसानों के लिए महत्वपूर्ण है।

ये सारे अनुभव जिस तरह हर उम्र को प्रसन्न करते हैं उसी तरह एक अनुभव और है जो सभी को प्रभावित करता है और वह है भय। बारिश जब अपनी सीमा लांघकर प्रकृति के प्रकोप के रूप में सामने आती है तो उसका रूप देखकर हर किसी के रोंगटे खडे हो जाते हैं। चाहे वह 26 जुलाई 2005 में मुंबई में आई बाढ़ हो या पिछले महीने उत्तराखंड में आया बारिश का कहर। बादल फटने के कारण हुई इन दोनों घटनाओं ने लागों के मन में बारिश के प्रति डर भी निर्माण कर दिया है।

मुंबई की बारिश ने हमेशा तेज रफ्तार में दौडने वाली मुंबई पर कुछ समय के लिये विराम लगा लिया था। मुंबई अपनी रफ्तार में वापिस तो आ गई थी परंतु बारिश के कहर ने लोगों के मन में डर की जो काली तस्वीरें अंकित की थीं उन्हें मिटाया नहीं जा सका। आज भी मुंबईवासी अधिक बारिश और लोकल ट्रेनों की अव्यवस्थित गति की खबरें सुनकर अस्वस्थ हो जाते हैं। उस बारिश ने कई लोगों के घर उजाड़ दिये थे और वे लोग आज तक उन्हें फिर से बसाने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं।

पुणे में हुई बेमौसम बरसात एक युवती और उसकी लगभग 17‡18 महीने की बेटी को बहाकर ले गई।
अब उत्तराखंड में फिर एक बार बारिश ने विनाशकारी रूप अपनाया है। केदारनाथ के सामने विराजमान नंदी को भी लील जानेवाली यह बारिश हजारों जानो की भक्षक बन गयी है।

जिस तरह पानी अपना आकार बदलता है उसी तरह बारिश की कल्पनाएं, उसके अनुभव भी व्यक्तियों के मन तथा स्वभावानुरूप बदलते हैं। परन्तु चाहे जो हो सब ओर छायी हरियाली और स्वच्छ हो चुके वातावरण के कारण उत्साह और उल्लास के पद्म तो कल्पना के सरोवर में पुष्पित ही होने लगते हैं।

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