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हम सब एक ही है ! – डॉ. मोहन जी भागवत

हम सब एक ही है ! – डॉ. मोहन जी भागवत

by रमेश पतंगे
in अगस्त-२०२१, विशेष, सामाजिक
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डॉ. मोहन जी ने कहा, हिंदू- मुस्लिम एक हैं इसका कारण हमारी मातृभूमि एक है। पूजा- पद्धति अलग होने के कारण हमें अलग नहीं किया जा सकता। सभी भारतीयों का डीएनए एक है। भाषा, प्रदेश और अन्य विषमताओं को छोड़कर सभी भारतीयों को एक होकर भारत को विश्व गुरु बनाने का समय आ गया है। भारत विश्व गुरु बनने के बाद विश्व सुरक्षित होगा।

मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने गाजियाबाद में डॉक्टर ख्वाजा इफ्तिखार अहमद द्वारा लिखित पुस्तक वैचारिक समन्वय- एक पहल के विमोचन का कार्यक्रम आयोजित किया था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत के करकमलों से 4 जुलाई को पुस्तक का विमोचन किया गया। पुस्तक के लेखक मुसलमान बंधु हैं तथा मंच मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का था। यह औचित्य साधकर माननीय मोहन जी ने मुसलमानों की ओर देखने का दृष्टिकोण स्पष्ट किया।

हमारे देश में एक वर्ग ऐसा है जो संघ को 100% मुस्लिम विरोधी, मुसलमानों के जीवन के लिए संकट, यदि सत्ता प्राप्त  होती है तो मुसलमानों का कत्लेआम करने की क्षमता वाला (इसे अंग्रेजी में ’प्रोग्रेम’ कहते हैं) मानता है। डॉ. मोहन जी के वक्तव्य से इन सबको 25000 वोल्ट का शॉक लगा होगा। ऐसा कैसे संभव है? डॉ. मोहन जी ऐसा कैसे बोल सकते हैं? संघ में क्या 180 अंश का बदल हो रहा है? इस प्रकार के जोरदार  तर्क चल रहे हैं। इसलिए सर्वप्रथम यह देखें कि डॉ. मोहन जी ने ऐसा कहा क्या है? डॉ. मोहन जी ने कहा, हिंदू- मुस्लिम एक हैं इसका कारण हमारी मातृभूमि एक है। पूजा- पद्धति अलग होने के कारण हमें अलग नहीं किया जा सकता। सभी भारतीयों का डीएनए एक है। भाषा, प्रदेश और अन्य विषमताओं को छोड़कर सभी भारतीयों को एक होकर भारत को विश्व गुरु बनाने का समय आ गया है। भारत विश्व गुरु बनने के बाद विश्व सुरक्षित होगा। एक भी मुसलमान देश में ना रहे ऐसा यदि कोई हिंदू कहता है वह हिंदू नहीं है। गाय को हिंदू धर्म में सबसे पवित्र माना जाता है परंतु जो दूसरे लोग इसका वध करते हैं वह हिंदुत्व विरोधी हैं, उन पर कानून के अनुसार कार्यवाही होना चाहिए।

बेकार की बकवास करने के अलावा जिन्हें राजनीति में कोई काम नहीं है ऐसे दिग्विजय सिंह कहते हैं, क्या सरसंघचालक अपने यह विचार विहिप, बजरंग दल और भाजपा शासित राज्य के मुख्यमंत्रियों को देंगे? वैसे ही क्या अपने शिष्यों, प्रचारकों, मोदी और शाह को देंगे? मोहन जी भागवत यदि अपने विचारों का पालन करने के लिए अपने शिष्यों को बाध्य करेंगे तो मैं भी उनका प्रशंसक हो जाऊंगा। आपने हिंदू और मुसलमानों में इतनी घृणा निर्माण की है कि उसे दूर करना सरल नहीं है। दिग्विजय सिंह का यह वक्तव्य कोई विश्व को जीतने वाला है ऐसा नहीं वरन उन्होंने तो यह साबित कर दिया कि विश्वव्यापी संगठन के प्रमुख के विचार समझने की बुद्धि ही उनमें नहीं है।

डॉ. मोहन जी भागवत के भाषण का निम्नलिखित वाक्य अत्यंत महत्वपूर्ण है-

हिंदू- मुस्लिम एकता यह शब्द ही भ्रम निर्माण करने वाला है। हिंदू-मुस्लिम ये अलग नहीं हैं, वे सदा से एक हैं। जब लोग दोनों को अलग समझते हैं  तभी संकट निर्माण होता है।

उपरोक्त वाक्य क्रांतिकारक वाक्य है ऐसा यदि मैं कहता हूं तो यह संघ की भाषा नहीं होगी। परंतु दूसरा शब्द न सूझने के कारण यह क्रांतिकारक वाक्य है ऐसा ही कहना पड़ेगा। इसलिए हिंदू- मुस्लिम एकता के संबंध में इसके पूर्व के क्या विचार हैं, यह समझना होगा।

स्वतंत्रता आंदोलन में अनेकों ने मुस्लिम धर्म तत्वज्ञान और इतिहास का अभ्यास किया। इनमें लाला लाजपत राय, डॉ बाबासाहेब आंबेडकर, स्वातंत्र्यवीर सावरकर, डॉ राजेंद्र प्रसाद सरीखे प्रथम श्रेणी के लोगों का समावेश करना पड़ेगा। कुछ थोड़े बहुत अंतर से इन सभी का कहना था कि हिंदू और मुसलमान में एकता करने वाली समान बातें कुछ भी नहीं है। इस्लाम, मुसलमान पुरातन संस्कृति का स्वीकार नहीं करते। उनका मानना है कि मुसलमानों का उससे कोई संबंध नहीं है। वे मानते हैं कि इस्लाम के जन्म से ही मानव जाति का इतिहास प्रारंभ होता है। अनेक विद्वानों और ऊपर वर्णित राजनेताओं ने ग्रंथों में अपनी लेखनी के माध्यम से इसे लिखा है। महात्मा गांधी जी का मार्ग इससे कुछ अलग था। मुसलमान हमारे छोटे भाई हैं, उन्हें हममें समाहित करना चाहिए, यह उनकी भूमिका थी। इन सब भूमिकाओं से अलग भूमिका डॉ. मोहन जी भागवत ने रखी है।

’हिंदू -मुस्लिम एकता’ से यह ध्वनि निकलती है कि हिंदू अलग है, मुसलमान अलग है। दोनों ने अपनी विशिष्टता (अलगाव) का जतन करते हुए एकता करनी है। दो अलग-अलग प्रवृत्तियों की एकता यह तात्विक भ्रम है। दो प्रवृत्तियों को पहले अलग मानना, फिर वे अलग कैसी हैं यह लोगों को समझाने के लिए तर्क देना और फिर दोनों को साथ लाने हेतु प्रयत्न करना। पानी और तेल का कभी मिश्रण नहीं हो सकता। तेल हमेशा पानी पर तैरता रहता है इसका वैज्ञानिक कारण है। परंतु पानी में पानी मिल जाता है। यदि हम मुंबई के पानी की बात करें तो तानसा का पानी कौन सा, भातसा का पानी कौन सा, विहार का पानी कौन सा इसमें भेद नहीं किया जा सकता। डॉ. मोहन जी यह कहना चाहते हैं कि हिंदू -मुस्लिम इस प्रकार का अलग-अलग विचार न करते हुए उनका एकात्मिक विचार करना चाहिए। भारत के मुसलमान यह पहले के हिंदू हैं। मुंबई हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश श्री एम.सी छागला ने यह बात स्पष्ट रूप से रखी थी। भारत के सर्वाधिक चहेते राष्ट्रपति ए.पी.जे अब्दुल कलाम नमाजी मुसलमान होते हुए श्रेष्ठ मुस्लिम हिंदू थे। उनके द्वारा भारत माता की गई सेवा बेजोड़ है।

भारत माता यह सब को जोड़ने वाली कड़ी है। हम भारत माता की संतान है, हम सब की संस्कृति एक है, यह हम नहीं भूल सकते। आज भी यदि सर्वसामान्य मुसलमानों के पारिवारिक संबंधों का, रीति रिवाजों का विचार किया तो उसमें और हिंदू परिवारों में जमीन आसमान का अंतर है ऐसा नहीं लगेगा। कोकण के हिंदू परिवार और देश के अन्य भागों के हिंदू परिवार उनके त्यौहारों- रीति-रिवाजों में थोड़ा अंतर होने के बावजूद हम यह नहीं कह सकते कि वे अलग हैं। इस एकता के सूत्र को श्री दलवाई ने एक अलग प्रकार से रखने का प्रयत्न किया। मुस्लिम सत्यशोधक आंदोलन के माध्यम से मुसलमानों का भारतीयत्व जागृत करने का उन्होंने प्रयत्न किया। यद्यपि उनका आंदोलन बहुसंख्यक मुसलमानों का नहीं हो सका फिर भी विचार कभी मरते नहीं हैं। सही समय आने पर उन विचारों का प्रचार शुरू होता है।

हिंदू- मुसलमान किस प्रकार अलग अलग हैं यह सिद्ध करने का वर्तमान समय नहीं है। उनमें आपस में भावनात्मक रिश्ते किस प्रकार निर्माण हो यह देखने का है। आपातकाल के बाद स्व. बालासाहेब देवरस ने यह विषय प्रारंभ किया था। जमात-ए-इस्लामी के अनेक कार्यकर्ता आपातकाल में मीसा के अंतर्गत निरुद्ध थे। कारागारों में बहु संख्या संघ स्वयंसेवकों की थी। तब इन जमात-ए-इस्लामी के कार्यकर्ताओं में डर पैदा हो गया कि अब हमारा क्या होगा? परंतु 1 माह में ही उन्हें अनुभव हो गया कि संघ की प्रतिमा जो उनके मन में निर्माण की गई है उसमें और प्रत्यक्ष संघ में जमीन -आसमान का अंतर है। किसी प्रकार झगड़ा ना होकर सारे कार्यकर्ता एक साथ रहे। यह अनुभव बताते हुए बाला साहब कहते थे, हमें एक दूसरे के तीज -त्योहारों में शामिल होना चाहिए, एक दूसरे के घरों में जाना चाहिए, आपस की दूरी घटाते हुए निकटता स्थापित करनी चाहिए।

केवल मुस्लिमानो के पक्षधर यह विचार स्वीकार नहीं कर सकते और हिंदू तथा मुसलमानों का डीएनए एक है यह भी स्वीकार नहीं कर सकते। ऐसे ही एक व्यक्ति से चर्चा करते हुए मैंने कहा, आप विश्लेषण विशेषज्ञ हैं और हम समस्या निवारण में विशेषज्ञ हैं। डॉ हेडगेवार ने स्पष्ट कहा है कि, ’अज्ञानी चर्चा करते हैं, ज्ञानी व्यवहार करते हैं।’ मुसलमान कभी भी भारतभक्त नहीं हो सकता और हिंदुओं से शत्रुता भी नहीं छोड़ सकता, इसे यदि एक बार स्वीकार कर लिया तो दो ही विकल्प बचते हैं- मुसलमान को मुसलमान के रूप में ही नहीं रहने देना और दूसरा यानी हमारी सनातन संस्कृति सर्वसमावेशक है यह कहना बंद कर देना। ये दोनों बातें हम नहीं कर सकते। हम अगस्ती ऋषि के पुत्र हैं जिसने अपनी एक अंजुलि में समुद्र का प्राशन कर लिया तथा वातापी नामक राक्षस को अपने पेट में पचा लिया। सभी हमारे हैं और सब को अपने निकट लाना है इसके लिए जिस पाचन शक्ति की आवश्यकता है उसका निर्माण करने का कार्य डॉ हेडगेवार के संघ ने किया है। और इसीलिए पूरे आत्मविश्वास के साथ डॉ. मोहन जी भागवत यह कहते हैं कि, हम सब का डीएनए एक है। हम सभी एक मातृभूमि के पुत्र हैं। इसलिए हम सबने मिलकर भारत माता की जय जय कार करना है। यह इस देश के एकता की राह है। जिन्हें इस राह का पथिक बनना है, उनका स्वागत है और जिन्हें दूर रहना है उनके प्रति मन में कोई किलमिश नहीं, क्योंकि डॉक्टर जी बता गए हैं कि, हमारा कार्य सब पर प्रेम करने का ही है।

 

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