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हिन्दू पंचांग : ‘रक्षा-सूत्र’ का त्यौहार

हिन्दू पंचांग : ‘रक्षा-सूत्र’ का त्यौहार

by डॉ. मेघा भारती 'मेघल'
in अगस्त-२०२१, विशेष, संस्कृति, सामाजिक
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आख़िर  ‘रक्षा-सूत्र’  प्रेम, शक्ति और सौहार्द्र का प्रतीक है। दुर्लभ समय में आपके प्रियजन की रक्षा और सुरक्षा के लिए यह सूत्र बांधा जाता है तो फिर ये केवल भाईयों की कलाई पर ही क्यों सजे! हर उस कलाई पर होना चाहिए जिसके सुख, समृद्धि, लंबी उम्र और सुरक्षा की कामना की जाती है।

त्यौहारों की बौछार जहाँ निरंतर होती है और हर त्यौहार जहाँ पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है – ऐसा देश है भारत।

भारत की यही प्रेम और खुशियों भरी विशेषता, उसे अन्य देशों से भिन्न बनाती है। और ये सारी खुशियाँ त्यौहारों को साथ मनाते रिश्तों को और भी प्रगाढ़ बना जाती हैं।

यूँ तो होली, दीपावली, ईद, और क्रिसमस, ऐसे असंख्य त्यौहार यहाँ मनाए जाते हैं जो रिश्तों में परस्पर घनिष्ठता  बढ़ाते हैं – लेकिन वर्ष में एक त्यौहार ऐसा भी आता है जो इन सभी त्यौहारों में कुछ शक्तिशाली सा बन त्यौहार-शिखर पर सज-धज बैठा  नज़र आता है। और हो भी क्यों ना ! आख़िर ’रक्षा-सूत्र’ में ऐसी अद्भुत शक्ति होती है जिसने केवल साधारण मनुष्यों को ही नहीं बल्कि विश्व-विजयी योद्धाओं और देवी-देवताओं को भी सदा बल दिया है।

हिन्दू पंचांग के अनुसार श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र के लिए  व्रत रखती हैं, उन्हें तिलक लगाती हैं और उनकी रक्षा के लिए उनके दाहिने हाथ की कलाई पर धागा यानी  ’रक्षा-सूत्र’ बाँधती हैं। भाई इस  ’रक्षा-सूत्र’ को बँधवाकर अपनी बहन के मान-सम्मान की रक्षा करने का प्रण लेते हैं।

यही है पारम्परिक तरह से मनाया जाता आ रहा रक्षा-बंधन का त्यौहार।

लेकिन बदलते परिवेश के साथ कुछ बातों में कुछ बदलाव भी आया है – उदाहरण स्वरूप आज कई बहनें केवल अपने भाईयों को ही राखी नहीं बाँधती बल्कि अपनी बहनों को भी राखी बाँधती हैं।   और इसमें कुछ अनुचित भी नहीं – आख़िर  ’रक्षा-सूत्र’  प्रेम, शक्ति और सौहार्द्र का प्रतीक है। दुर्लभ समय में आपके प्रियजन की रक्षा और सुरक्षा के लिए यह सूत्र बाँधा जाता है तो फिर ये केवल भाईयों की कलाई पर ही क्यों सजे! हर उस कलाई पर होना चाहिए जिसके सुख, समृद्धि, लंबी उम्र और सुरक्षा की कामना की जाती है।

इसका सटीक उदाहण हमारे पुराणों में मिलता है,

जब असुरों और देवताओं के बीच चल रहे युद्ध में इन्द्र देव को असुर राज बलि पर विजय प्राप्त करने के लिए उनकी पत्नी शचि ने उनकी कलाई पर एक ’रक्षा-सूत्र’  बाँधा था और असुरों से हारते हुई देवताओं को इसके बाद युद्ध में विजय प्राप्त हुई थी।

कहते हैं कि  ’रक्षा-सूत्र’  की ये प्रथा तभी से हिन्दू धर्म में प्रारंभ हुई। इंद्राणी के इस रक्षा-सूत्र के जैसे ही, युद्ध पर जाते योद्धाओं को उनकी पत्नियों द्वारा रक्षा सूत्र बाँधे जाने की परम्परा यहीं से प्रारम्भ हुई।

रक्षा बंधन के इस त्यौहार की परम्परा भारत में कैसे प्रारम्भ हुई इस विषय पर इंद्राणी के इस ’रक्षा-सूत्र’ की ये पौराणिक कथा ही सर्वाधिक मान्य है। इस पवित्र सूत्र की शक्ति और महत्व को बताती और भी अनेक कथाएँ प्रचलित हैं- जैसे माता लक्ष्मी और राजा बलि की कथा, यम और यमुना की कथा, संतोषी माता की कथा और भी कई।

लेकिन, कुछ लोकप्रिय कहानियों में से एक है श्री कृष्ण और द्रौपदी की ये कहानी।  महाभारत में उल्लेख है कि जब युद्ध के दौरान श्री कृष्ण की उंगली पर चोट लगी तो द्रौपदी ने उनकी उंगली से बहते रक्त को रोकने के लिए अपनी साड़ी फाड़कर उनके हाथ में बाँधी थी। द्रौपदी द्वारा बांधी गई इस साड़ी की पट्टी का ऋण श्री कृष्ण ने द्रौपदी के चीरहरण के समय उनकी साड़ी को निरन्तर बढ़ाते रहकर चुकाया। द्रौपदी की गरिमा और सम्मान के लिए श्री कृष्ण ने उन्हीं की साड़ी को उनके रक्षा-सूत्र में परिवर्तित कर दिया।

महाभारत में ही रक्षा बंधन का एक और उल्लेख मिलता है। युद्ध के दौरान जब एक बार युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण से पूछा कि वे कैसे रणभूमि में अपनी सेना पर आ रही विपत्तियों को दूर करें तो श्री कृष्ण ने उनसे कहा कि समस्त सेना को एक दूसरे को रक्षा-सूत्र बाँधना चाहिए  जिससे एक दूसरे के प्रति सौहार्द्र और एकजुटता का संदेश सभी में  फैलेगा और सबका मनोबल भी बढ़ेगा। इस दौरान सभी सैनिकों का एक दूसरे को रक्षा-सूत्र बाँधने का और कुन्ती द्वारा अपने पौत्र अभिमन्यु को रक्षा-सूत्र बाँधने का भी उल्लेख महाभारत में मिलता है।

अन्य बहुत सी कथाओं में भी रक्षा-सूत्र बाँधे जाने के वर्णन किये गए हैं। प्राचीन काल में गुरु अपने शिष्यों को ये रक्षा-सूत्र बाँधा करते थे और ब्राह्मणों द्वारा भी अपने यजमानों को ये सूत्र बाँधा जाता था।

देखा जाए तो, ये रक्षा-सूत्र एक प्रकार से बाँधने वाले और बँधवाने वाले, दोनों ही व्यक्तियों की एक दूसरे के प्रति सौहार्द्र की सशक्त भावनाओं का प्रतीक है।

धर्म और देश की सीमाओं से परे ये त्यौहार सचमुच एक चुम्बकीय शक्ति रखता है।  हिन्दू धर्म के साथ-साथ सिख धर्म में भी इसका विशेष महत्व है। सिख इसे ’रखड़ी’ कहते हैं।

सामयिक परिवेश में जहाँ रक्षा बंधन का त्यौहार सर्वाधिक भाई-बहन के विशेष त्यौहार के नाम से ही जाना जाता है, भाई बहन की ऐसी बहुत सी जोड़ियां हैं जिन्होंने इस दिन को वास्तविकता में अपने रिश्ते की चमक से कांतिमय किया है। एक दूसरे की प्रेरणा और सहयोग स्तंभ बन समाज में अपनी एक अलग जगह बनाई है।

जैसे कि , उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के मिश्रा परिवार के चारों भाई-बहन आए.ए.एस  एवं  आए.पी.एस अधिकारी हैं।  ये इस  क्षेत्र का अब तक का सबसे विषम उदाहरण है जहाँ एक ही घर से दो बहनों और दो भाईयों ने एक साथ परीक्षा की तैयारी की और परीक्षा उत्तीर्ण भी की। एक दूसरे के लिए एक प्रेणास्रोत ये भाई-बहन, योगेश, माधवी, लोकेश और क्षमा मिश्रा सभी के लिए प्रेरणा हैं।

ऐसे ही, दौसा जिले के भाई-बहन की एक जोड़ी भी अपनी उपलब्धि के कारण  चर्चा में रही है। पूजा मीणा और नरेंद्र कुमार मीणा का एक साथ न्यायिक सेवा में चयन हुआ।  चयन होने पर उन्होंने बताया कि दोनों ने एक दूसरे को हमेशा प्रेरित किया और साथ में परीक्षा की तैयारी की। वे एक दूसरे से विभिन्न प्रश्नों को लेकर चर्चा करते थे और इस तरह एक साथ सफ़ल भी हुए।

रक्षा-बंधन का ये  त्यौहार सम्बन्धों, सन्मान, आदर और सम्मान का कितना विस्तृत दायरा लेकर चलता है इसका अनुमान लगाना लगभग असंभव है। पौराणिक कथाओं से लेकर ऐतिहासिक घटनाओं तक, आध्यात्मिक मनन से लेकर सामाजिक चिंतन तक, इसकी ऊर्जा ने ना जाने कितनों को  सम्बल दिया है, ना जाने कितनों को सशक्त किया है।

रक्षा का ये सूत्र एक सूती धागे से लेकर रेशमी डोर और सोने-चाँदी तक का भी होता है लेकिन इसे बाँधने और बँधवाने के पीछे कामना तो सभी की एक ही होती है – प्रेम और सौहार्द्र की।

भारत से उपजे ’रक्षा-सूत्र’ की इस त्यौहार सुरभि ने सम्पूर्ण विश्व को कुछ इस प्रकार से सुगन्धित किया है, कि भारत के साथ-साथ नेपाल और मॉरिशस में भी रक्षा बंधन बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। नेपाल में इसे ’जनै पूर्णिमा’ कहा जाता है।

अपने प्रियजनों के सुख, समृद्धि और सुरक्षा की कामना की मंशा के साथ वर्षों  से मनाए जा रहे इस त्यौहार की प्रतीक्षा सभी को बेचैनी से रहती है। आख़िर जुलाई-अगस्त में  आने वाले इस त्यौहार में दुआओं और राखी के साथ उपहारों और मिठाइयों की भी तो बरसात होती है।

आशा है, इस वर्ष, आमय ग्रसित इस दौर में हमारी कलाईयों पर बाँधा गया और हमारे द्वारा हमारे प्रियजनों की कलाईयों पर बाँधा गया ये ’रक्षा-सूत्र’ हमें हर दुर्लभ परिस्थिति से जीतने की शक्ति और साहस प्रदान करेगा।

 

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