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भारतीय पारंपरिक खानपान का खजाना

भारतीय पारंपरिक खानपान का खजाना

by रुपाली करजगीर
in महिला, विशेष, संस्कृति, स्वास्थ्य
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हमारी भारतीय परंपरा विश्व भर मे इसकी सभ्यता, तथा खानपान के लिए जानी जाती है। जिस तरह भारत मे अपने आप मे बहुत विविधताएँ है, जेसे रहन सहन, पहनावा, वातावरण, उसी तरह उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम के खान पान मे भी विविधताएँ देखने को मिलती है। जो वहाँ के वातावरण,मौसम, मिट्टी इत्यादि बातों पर निर्भर करता है। पारंपरिक खान पान का विशेष प्रभाव वहाँ के मौसम के हिसाब से होता है। जेसे यदि हम ठंडे स्थानों की बात करें, तो वहाँ पर चावल का उपयोग ज्यादा मात्रा मे होता है। इसके साथ ही केसर, कवहा, लौंग, अदरक इत्यादि का प्रयोग ज्यादा किया जाता है। जो शरीर को गरम रखने मे मददगार होते है। यही दक्षिण मे देखे तो वहाँ भी चावल का उपयोग ज्यादा होता है, परंतु वहाँ पर खमीरीकरन की प्रक्रिया तथा इसके साथ का उपयोग ज्यादा किया जाता है, जिससे खाने मे विटामिन बी 12 तथा अन्य पोशक तत्व बढ़ जाते है, जो हमारी पाचन क्रिया को गरम वातावरण मे भी ठीक रखते है। इन गरम प्रान्तों मे नारियल का उपयोग भी ज्यादा होता है। जिसे हम एक प्रकार से सम्पूर्ण फल या भोजन भी कह सकते है।

भारतीय पारंपरिक सभ्यता की बात करे, तो इसमे बर्तनों का भी एक विशेष स्थान है। पारंपरिक पदार्थ बनाने की भी एक खास पद्धत तथा उन्हे बनाने का बर्तनों का चयन होता है। खाना बनाने के लिए पहले मुख्यतः मिट्टी के, लोहे के, पीतल के बर्तनों का ही उपयोग किया जाता था। तथा खाना परोसने के लिए चाँदी, काँस,पीतल का उपयोग होता था। जिससे खाना बनाने की इस पद्धत से शरीर मे उपयोगी चाँदी, तांबा व लोह तत्व कुछ मात्रा मे शरीर के अंदर जाते थे, जो शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अच्छे है। परंतु पिछले 2-3 शतकों पुरानी बात करें तो इस दोरान अल्युमीनियम का परिचय हमारी खानपान सभ्यता से हुआ। जो शरीर के लिए अत्यंत हानिकारक है।

अब इस दौर के बाद से पाश्चयत सभ्यता हम पर हावी होने लगी (जो आज तक चल रही है) तथा नॉन स्टिक का चलन घरो मे ज्यादा होने लगा। जहां हमारे पारंपरिक बर्तन खाने को और पोष्टिक बना रहे है,वही ये नॉन स्टिक, अल्युमीनियम के अछे दिखने वाले बर्तन शरीर को विष दे रहे है। इनमे रोज़ खाना बनाया जाए तो खाने के साथ अल्युमीनियम की कुछ मात्रा भी शरीर मे जाती है। जो शरीर पर विषेला प्रभाव डालती है। हमारे भारतीय सम्पूर्ण भोजन को देखे तो उसमे चटनी, सब्जी, दाल, कढी, चावल, रोटी आदि होता है। जो सभी पोशाक तत्वों का एक खजाना सा है। जिसमे एक ही थाली मे खनिज पदार्थ,विटामिन्स, प्रोटीन, ऊर्जा, आवश्यक वसीय अम्ल शरीर को मिल जाते है।

south indian thali food

अनाज हमारी भारतीय सभ्यता का मुख्य भोज्य पदार्थ है। चाहे कोईभी प्रांत हो परंतु वहाँ के खाने मे अनाज या मोटा अनाज मुख्य रूप से देखने को मिलते है। ये ऊर्जा का मुख्यस्त्रोत तो है ही, पर मोटे अनाज मे खनिज पदार्थ भी अच्छी मात्रा मे मिलते है।पारंपरिक पदार्थों को खाने का भी एक तरीका होता है, जिससे उनमे उपस्थित पोशक तत्व ज्यादा मात्रा मे शरीर को मिल सके, तथा शरीर स्वस्थ रह सके। पोहा एक भारतीय पदार्थ है, जो मुख्य रूप से मध्य प्रदेश तथा

महाराष्ट् मे खाया जाता है। पारंपरिक तरीके से हमेशा पोहा खाते समय उसपर नींबू निचोड़ा जाता है। पोहा मे लोह तत्व पाया जाता है,तथा नींबू मे विटामिन सी अच्छी मात्रा मे होता है। हमेशा लोहतत्व शरीर मे विटामिन सी की ही उपस्थिति मे अवशोषित होता है। यदि खर मे किसी की तबीयत खराब है तो पारंपरिक तरीके से बीमार व्यक्ति को खिचड़ी दी जाती है। खिचड़ी मे अनाज व दाल की मात्रा होती है। जिनकी उपस्थिती से सभी आवश्यक अमीनो असीड शरीर को मिलते है। जो पचने मे हल्के व शरीर को ठीक करने मे मददगार होते है ।

भारत मे मसालों का भीअपना एक विशेष स्थान है। खड़ी मेथी, हिंग, सौफ, अजवाइन का उपयोग जहां वात को ठीक करता है। वहीअदरक, लौंग, दालचीनी इत्यादि कफ प्रकृति को ठीक करने मे सहायक होते है।हमारा पारंपरिक भारतीय खाना तथा इसे बनाने का तरीका एक तरह से हमारे पूर्वजों ने हमे दिया हुआ एक स्वस्थ्यवर्धक आशीर्वाद ही है, जिसका उपयोग रोज़ के डेनिक जीवेन मे अछि तरह से कर हम स्वस्थ तो रह ही सकते है,परन्तु भयानक से भयानक बीमारी से लड़ने के लिए शरीर को तैयार भी कर सकते है।

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Tags: environmentheritagehimachal pradeshindian cultureindian foodindian traditionnorth indian thalisouth indian fooduttarakhand

रुपाली करजगीर

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