शरणार्थी संकट या षड्यंत्र?

कुछ वर्षों के अन्तराल में अचानक कभी भी इस्लामिक देशों में युद्ध और आतंरिक गृहयुद्ध शुरू हो जाता हैं, फिर शरणार्थी संकट दुनिया के सामने आकर खड़ा हो जाता है। यह सिलसिला लगातार चलता ही जा रहा है। दुनिया सकते में है कि इस संकट का मुकाबला कैसे करें? लेकिन क्या सच में यह शरणार्थी संकट है या फिर एक गहरा षड्यंत्र? कुछ वर्षो बाद फिर किसी अन्य इस्लामिक देश में ऐसा ही कुछ घटनाक्रम हो, तो आश्चर्य मत कीजिएगा क्योंकि ऐसा ही होगा।

अफगानिस्तान में तालिबानी शासन होने के बाद बड़ी संख्या में वहां के नागरिक पलायन कर रहे हैं। सीरिया, ईराक और लीबिया में गृहयुद्ध के बाद अब अफगानिस्तान में भी संघर्ष तेज हो गया है। कुछ वर्षों के अन्तराल में अचानक कभी भी इस्लामिक देशों में युद्ध और आंतरिक गृहयुद्ध शुरू हो जाता है फिर शरणार्थी संकट दुनिया के सामने आकर खड़ा हो जाता है।

यह सिलसिला लगातार चलता ही जा रहा है। दुनिया सकते में है कि इस संकट का मुकाबला कैसे करे लेकिन क्या सच में यह शरणार्थी संकट है या गहरा षड्यंत्र? कुछ वर्षो बाद फिर किसी अन्य इस्लामिक देश में ऐसा ही कुछ घटनाक्रम हो, तो आश्चर्य मत कीजिएगा क्योंकि ऐसा ही होगा। अत: सावधान यदि मानवता की आड़ में इन्हें यूं ही शरण देने का सिलसिला चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब शरण देने वाले देश ही इनके समक्ष शरण मांगते नजर आएंगे।

इस्लामिक राष्ट्र क्यों नहीं देते मुसलमानों को शरण?

आपने कभी सोचा है कि दुनिया के 50 से अधिक इस्लामिक राष्ट्र होने के बावजूद वे इन्हें अपने देश में बड़ी संख्या में शरण क्यों नहीं देते? दुनिया के लगभग 85 प्रतिशत मुस्लिम शरणार्थी गैरमुस्लिम देशों में क्यों शरण मांगते हैं? इस विषय पर दक्षिण पंथी लोगों का कहना है कि गैरमुस्लिम देशों में मुसलमानों की जनसंख्या बढ़ाकर उसे दारुल ए हरब से दारुल ए इस्लाम अर्थात इस्लामिक राष्ट्र बनाने के लिए शरणार्थी-शरणार्थी खेल खेला जा रहा है। इस्लाम, कुरान व मोहम्मद के नाम की दुहाई देनेवाले और मुस्लिम एकता की डींगे हांकने वाले इस्लामिक राष्ट्र शरणार्थियों के संबंध में इतनी आसानी से पल्ला कैसे झाड़ लेते हैं, जबकि इस्लामिक राष्ट्र की नींव ही इस उद्देश्य से रखी जाती है कि दुनिया में इस्लाम का झंडा बुलंद करना है। जिस दिन इन प्रश्नों के उत्तर खोज लेंगे उसी दिन शरणार्थी संकट का समाधान मिल जाएगा। हालांकि अपवाद स्वरूप कुछ मुस्लिम देश कम अधिक मात्रा में उन्हें शरण देते भी हैं। उनमें प्रमुख नाम तुर्की का आता है।

शरणार्थी दे रहे आतंकवाद का नजराना

कल्पना कीजिए यदि कोई आपको अपने घर में शरण दे, भोजन दे, रहने की सुविधा दे और रोजगार की भी व्यवस्था कर दे तो आप उसके साथ कैसा व्यवहार करेंगे? निश्चित रूप से आप उसके जीवन भर एहसानमंद रहेंगे न कि उस पर हमला करेंगे। उसकी भाषा, भूषा, संस्कृति को अपना कर स्वयं को धन्य महसूस करेंगे। उस राष्ट्र के जीवन मूल्यों, कानून का पालन करेंगे और उसका सम्मान करेंगे लेकिन दुर्भाग्यवश मुस्लिम शरणार्थियों के मामले में ऐसा नहीं होता है। वे जिस किसी देश में शरण लेते हैं वहीं के नागरिकों की अर्थी उठा देते हैं। उनके नैतिक जीवन मूल्यों को छोड़िए, वहां के नियम कानून का भी पालन नहीं करते  हैं और शरण देने वालों का सम्मान करना तो बहुत दूर की बात है। उनके प्रति कृतज्ञ होना तो जैसे उन्हें आता ही नहीं क्योंकि मानवता का पाठ तो उन्होंने कभी पढ़ा ही नहीं। उन्होंने केवल और केवल अपनी मजहबी शिक्षा को ही सर्वोच्च माना है इसलिए वे जहां भी गए उन्हें आतंक का नजराना जरुर भेंट किया। दुनिया इस बात से परिचित है किन्तु अपने तुच्छ स्वार्थो के लिए दुनिया के कई शक्तिशाली देश मौन है। यही चुप्पी उनका मनोबल बढ़ा रही है।

मुस्लिम शरणार्थियों का पश्चिमी देशों पर बढ़ता हमला

सीरिया के 3 वर्षीय मासूम बालक आयलं कुर्दी का औंधे मुंह पड़ा जब शव समुद्र किनारे मिला था, जिसे देख कर सभी का दिल पसीज गया। इसके बाद यूरोपीय देशों खासकर जर्मनी ने मुस्लिम शरणार्थियों को बड़ी संख्या में अपने देश में शरण दी लेकिन इसके बदले में जर्मनी को आतंकवादी हमला मिला। हिंसक विचारधारा वाले इस्लामिक आतंकवादी हमलों की बानगी देखिए। म्यूनिख शहर में जर्मनी लोग अपनी परम्परा के अनुसार उत्सव मना रहे थे, तब शरणार्थियों की भीड़ अपने मजहबी नारे लगाते हुए वहां आ धमकी और उनका विरोध करते हुए उनके रंग में भंग डाल दिया। उनका कहना था कि इस्लाम में अश्लील नृत्य पर प्रतिबन्ध है इसलिए हम ऐसा नहीं होने देंगे। इस विवाद ने बाद में हिंसक रूप ले लिया। इसके बाद शरणार्थियों का हिंसक नाच शुरू हो गया। चर्च के बाहर उत्सव मना रहे लोगों पर हमला किया गया और महिलाओं के वस्त्र तक फाड़ दिए गए। महिलाओं से दुष्कर्म किया गया। वहीं जब एक लड़की शरणार्थी कैम्प के बगल से गुजर रही थी, तब शरणार्थियों ने सामूहिक रूप से बलात्कार किया। इसका खुलासा तब हुआ जब पीड़ित लड़की ने एक टीवी न्यूज चैनल में अपनी आप बीती बताई। इसके बाद शरणार्थियों के खिलाफ जर्मनी जनता भड़क उठी। इनके क्रोध को मिश्र की अल अजहर विश्वविद्यालय की एक महिला के बयान ने और भड़का दिया, जब उसने गैरमुस्लिम महिला से बलात्कार को जायज ठहराते हुए कहा कि इस्लाम में मुस्लिम पुरुषों को गैर मुस्लिम महिलाओं के साथ बलात्कार की इजाजत है। फ़्रांस के आतंकवादी घटनाओं से हम सभी परिचित है। आलम यह है कि शरणार्थी भेष बदलकर आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त है। शरणार्थी संकट से तंग आकर ब्रिटेन ने यूरोपीय यूनियन से अलग होना ही उचित समझा।

 

मुस्लिम शरणार्थी ईसाईयों को कर देंगे यूरोप से बेदखल

जब लाचार और भुखमरी की हालत में मुस्लिम शरणार्थी पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति का अनादर कर रहे हैं, तो जब ये यहां बहुसंख्यक एवं शक्ति संपन्न हो जाएंगे तो ईसाइयों को ही यूरोप से बेदखल करने लग जाएंगे।

 तात्जाना फेस्टरलिंग (दक्षिणपंथी नेता, जर्मनी)

 

बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठ से भारत को खतरा

शरणार्थी संकट से भारत भी अछुता नहीं है। साल 1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान बांग्लादेश अस्तित्व में आया। इसी मौके का फायदा उठा कर करोड़ों की संख्या में बांग्लादेशियों ने भारत के सीमावर्ती राज्यों में अवैध घुसपैठ कर ली। बर्मा में हुए आंतरिक गृह युद्ध के बाद वहां के रोहिंग्या मुसलमानों ने भी बड़ी संख्या में भारत में घुसपैठ की। जम्मू कश्मीर में भारतीय नागरिक जाकर नहीं बस सकता था। वहीं पर रोहिंग्या मुसलमान सबसे बड़ी संख्या में जाकर बस गए। इससे इनकी पहुंच कहां तक है इसका पता चल जाता है? इनका इकोसिस्टम कितना मजबूत होगा, इस बात का अंदाजा इससे ही लग जाता है कि भारत सरकार भी इन्हें अपने देश से अब तक पूर्णत: बाहर नहीं निकाल पाई है। रोहिंग्या शरणार्थियों की याचिका देश की सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच जाती है और इनका केस लड़ने के लिए महंगे वकील भी इन्हें आसानी से मिल जाते हैं। यह षड्यंत्र नहीं तो क्या है? यह सच है कि शरणार्थी समस्या मानवता से जुड़ा हुआ मामला है लेकिन साथ ही यह भी कटु सत्य है कि योजनाबद्ध सुनियोजित तरीके से गृहयुद्ध एवं जातीय संघर्ष उभार कर इसकी आड़ में दूसरे गैरमुस्लिम देशों में शरण लेने की प्रवृत्ति भी एक दीर्घकालिक षड्यंत्र की ओर संकेत कर रही है। सोशल मीडिया पर यह संदेश सबसे अधिक प्रसारित हो रहा है कि ‘शरणार्थी समस्या कोई मज़बूरी नहीं है बल्कि सोची समझी साजिश है।’

 

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  1. Anonymous

    मुस्लिम शरणार्थियों को इस्लामिक देशों में ही शरण लेना चाहिए |

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