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जयंती विशेष: महात्मा गांधी जिनके दिल में बसते थे गांव

जयंती विशेष: महात्मा गांधी जिनके दिल में बसते थे गांव

by हिंदी विवेक
in अवांतर, ट्रेंडींग, राजनीति, व्यक्तित्व
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2 अक्टूबर 2021 को महात्मा गांधी की 152वीं जयंती मनाई जा रही है। आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को पूरे देश में याद किया जा रहा है। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सहित सभी लोगों ने राजघाट जाकर उन्हें श्रद्धांजली दी और उनके बलिदानों को याद किया। गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था उन्हें देश की आजादी की लड़ाई के लिए याद किया जाता है। गांधी 1915 से आजादी की लड़ाई में शामिल हुए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजघाट जाकर बापू को पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजली दी। पीएम मोदी ने ट्वीट कर लिखा कि, “पूज्य बापू और लाल बहादुर शास्त्री जी इन दोनों महान व्यक्तियों के हृदय में भारत के गांव ही बसे थे, मुझे खुशी है कि आज के दिन देशभर के लाखो गांवों के लोग ग्राम्य सभाओं के रुप में जल जीवन संवाद कर रहे हैं” 

पूज्य बापू और लाल बहादुर शास्त्री जी इन दोनों महान व्यक्तित्वों के हृदय में भारत के गांव ही बसे थे।

मुझे खुशी है कि आज के दिन देशभर के लाखों गांवों के लोग ‘ग्राम सभाओं’ के रूप में जल जीवन संवाद कर रहे हैं: PM @narendramodi

— PMO India (@PMOIndia) October 2, 2021

 

आजादी के बाद भारत के सामने बड़ी समस्या यह थी कि भारत किस दिशा में आगे बढ़ेगा क्योंकि उस समय अमेरिका जैसे देश पूंजी केंद्रित मॉडल पेश कर रहे थे जबकि रूस समाजवाद का मॉडल पेश कर रहा था ऐसे में महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ही देश के भावी विकास के लिए एक अलग ही रास्ते की परिकल्पना पेश की,  उनकी परिकल्पना में शासन और विकास का सूत्र गांवों से बंधा था इसलिए उन्होंने ग्राम स्वराज्य का लक्ष्य रखा, ग्राम-स्वराज्य मतलब आत्मनिर्भर और परस्पर सहयोगी विकास की व्यवस्था। भारत ने इन सभी मॉडलों को ध्यान में रखते हुए बीच का एक रास्ता निकाला, कल्याणकारी राज्य होने की अपनी भावना के अनुरूप उसने मिश्रित अर्थव्यवस्था को अंगीकार किया। जिसमें निर्विवाद रूप से ‘सबसे कमजोर आदमी की चिंता का ख्याल रखा गया था, दूसरी ओर दुनिया के अन्य देशों के साथ कदम मिलाकर प्रगति के पथ पर चलने की आकांक्षा भी निहित थी।  
 

 

देश की स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान भी गांधीजी ने लगातार रचनात्मक कार्यक्रमों का संचालन किया क्योंकि उनका मानना था कि सिर्फ राजनीतिक स्वतंत्रता ही असल स्वतंत्रता नहीं हो सकती इसके लिए लोगों को और समाज को आत्मनिर्भर होने के साथ-साथ दूसरे की सहायता करने में भी सक्षम होना चाहिए। महात्मा गांधी के समाज और शासन व्यवस्था तथा जीवन को लेकर जो विचार थे, जिनका प्रतिपादन दैनिक साधन के माध्यम से गुजरते हुए किया था, जिसमें व्यावहारिकता का पक्ष प्रबल दिखाई पड़ता है। गांधीजी के सामने आज़ादी के बाद के भारत की तस्वीर साफ थी, सुशासन का उनके लिए क्या मतलब हो सकता था, उसे उनकी इस बात से समझा जा सकता है। वे कहते हैं- ‘मैं ऐसे भारत के लिए कोशिश करूंगा, जिसमें गरीब से गरीब आदमी भी यह महसूस करे कि यह उनका देश है, जिसके निर्माण में उसकी आवाज का महत्व है। मैं ऐसे भारत के लिए कोशिश करूंगा, जिसमें ऊंच-नीच का कोई भेद न हो। जातियां मिलजुल कर रहती हों। ऐसे भारत में अस्पृश्यता व शराब तथा नशीली चीजों के अनिष्टों के लिए कोई स्थान न होगा। स्त्रियों को पुरूषों के समान अधिकार मिलेंगे, सारी दुनिया से हमारा संबंध शांति और भाईचारे का होगा। 

महात्मा गांधी ने अपने निधन के पूर्व देश को सलाह दी थी कि, ‘कांग्रेस का स्वतंत्रता प्राप्ति का लक्ष्य पूरा हुआ है, अतः उसे अब देश की जनता की सेवा में जुट जाना चाहिए और कांग्रेस का लोकसेवक संघ में विलय किया जाना चाहिए।’ कांग्रेस के बारे में गांधीजी का यह इच्छा-पत्र ही था, इसमें उन्होंने कहा था कि, कांग्रेस ने राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त की है। लेकिन देश की सामान्य जनता के लिए आर्थिक, सामाजिक व नैतिक स्वतंत्रता प्राप्त करने का कार्य अब भी बाकी है। गांधीजी चाहते थे कि इसके लिए लोकसेवक संघ की स्थापना की जाए और कांग्रेस का उसमें पूरी तरह विलय कर दिया जाए। देश के सभी धर्मियों की सेवा के लिए राजनीति से मुक्त संस्था होनी चाहिए और वह देश के ग्रामीण व देहाती इलाकों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कटिबद्ध हो। महात्मा गांधी की यह सलाह तत्कालीन राजनीतिक नेताओं को विचित्र लगी। इन राजनीतिक लोगों का कहना था कि यदि कांग्रेस का लोकसेवक संघ बन गया तो देश में आपात स्थिति उत्पन्न होगी। गांधीजी ने कांग्रेस को लोकसेवक संघ बनने की सलाह दी थी। इसके पीछे उनकी सोच यह थी कि लोकसेवक संघ बना तो राजनीति पर लोकसेवक संघ का प्रभाव रहेगा और राजनीति का स्थान दूसरे नम्बर पर होगा।

गांधीजी की यह सलाह कांग्रेस के लिए एक तरह से आशीर्वाद ही थी जिसके बल पर कांग्रेस अमरत्व की ओर अग्रसर होती लेकिन महात्मा गांधी की इस विशाल कल्पना को पचाने का उस समय के किसी भी कांग्रेस नेता में दम नहीं था। देश को स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद गांधीजी की सलाह न मानने से कांग्रेस एक राजनीतिक दल बन कर रह गई। स्वतंत्रता के पूर्व प्रचंड क्षमता रखने वाली कांग्रेस स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सिर्फ एक पार्टी बन कर रह गई। ‘पार्टी’ शब्द ‘पार्ट’ से बना है और पार्ट का मतलब है टुकड़े और आज शायद कांग्रेस टुकड़े में बिखरती नजर आ रही है। 

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