क्या मुख्य मंत्री चन्नी सिद्धू का मोहरा बनेंगे?

अगर कांग्रेस पार्टी चरणजीत सिंह चन्नी के रूप में एक दलित सिख को मुख्यमंत्री बनाकर सत्ता में वापसी का सुनहरा स्वप्न संजोए बैठी है तो उसे यह भी मालूम होना चाहिए कि जनता उसके खेल को अच्छी तरह समझ चुकी है। क्या राज्य की दलित सिख आबादी को कांग्रेस की यह चाल रास आएगी कि केवल दिखावे के लिए मुख्यमंत्री पद की बागडोर चरणजीत सिंह चन्नी के पास रहे और पर्दे के पीछे से नवजोत सिंह सिद्धू सरकार को दिशा निर्देश देते रहें।

पंजाब विधानसभा के गत चुनावों में कांग्रेस की शानदार जीत के बाद जब कैप्टन अमरिंदर सिंह मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन हुए थे तब उन्होंने यह कल्पना नहीं की होगी कि उन्हें अपना पांच वर्षीय कार्यकाल पूरा होने के 6 माह पूर्व ही कुर्सी छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। दरअसल कुछ माह पहले तक तो उनके अंदर का आत्मविश्वास यह गवाही दे रहा था कि अगले साल होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों में उन्हें दुबारा मुख्यमंत्री पद के लिए प्रोजेक्ट करने के अलावा पार्टी के सामने और कोई विकल्प नहीं होगा परन्तु मुख्यमंत्री के रूप में उनके पांचवें साल की शुरुआत होते होते उनकी राह में किसी विपक्षी दल ने नहीं बल्कि उनकी अपनी पार्टी के महत्वाकांक्षी नेताओं ने कांटे बिछाने की मुहिम शुरू कर दी और उधर कैप्टन अमरिंदर सिंह इस मुगालते में रहे आए कि उनके सामने ही जिस युवा पीढ़ी ने राजनीति का ककहरा सीखा है उसके नेताओं में उनकी कुर्सी हिलाने की क्षमता कभी नहीं आ सकती। कैप्टन जब तक संभलने की स्थिति में आ पाते तब तक बहुत देर हो चुकी थी और अपनी जी तोड़ कोशिश के बावजूद कैप्टन अपना जहाज डूबने से नहीं बचा पाए।

कैप्टन अमरिंदर सिंह की जगह पंजाब के दलित नेता चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब का नया मुख्यमंत्री बनाया गया है जिन्हें राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने अपनी सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में शामिल किया था। दरअसल कुछ माह पूर्व कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाने की मुहिम शुरू करने वाले पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू भी मुख्यमंत्री पद पाने की हसरत मन में पाले हुए थे परंतु जब कांग्रेस हाईकमान को यह अहसास हुआ कि कैप्टन अमरिंदर सिंह अपने उत्तराधिकारी के रूप में सिद्धू का चयन होने पर पार्टी के लिए मुश्किलें पैदा करने में कोई संकोच नहीं करेंगे तो चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपने का फैसला किया गया ।

चरणजीत सिंह चन्नी को पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने बधाई और शुभकामनाएं देकर यह संकेत दिए हैं कि वे नए मुख्यमंत्री के साथ पूरा सहयोग करेंगे यद्यपि चरणजीत सिंह चन्नी जब उनकी सरकार में मंत्री थे तब भी उनके मुख्यमंत्री के साथ मधुर संबंध नहीं थे। यहां यह भी स्मरणीय है कि पंजाब प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष पद हासिल करने के बाद जब सिद्धू ने मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के खिलाफ बगावत का बिगुल बजाया था तब चन्नी ने उनका पूरा साथ दिया था इसलिए मुख्यमंत्री के रूप में चरणजीत सिंह चन्नी के चयन पर नवजोत सिंह सिद्धू ने भी कोई आपत्ति नहीं जताई। दरअसल पंजाब में चन्नी को सत्ता की बागडोर सौंपने का फैसला करने के पहले कांग्रेस हाईकमान ने पहले अंबिका सोनी और उनके इंकार करने के बाद सुखजिंदर रंधावा का नाम तय कर लिया था परंतु रंधावा के नाम पर सिद्धू राजी नहीं हुए और आखिर में सिद्धू की सहमति से ही चन्नी को मुख्यमंत्री पद की कुर्सी सौंपने का फैसला किया गया। तीन विधानसभा चुनाव जीत चुके चन्नी 2015-16 में पंजाब में अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार के दौरान चन्नी राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता पद की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं। उन्हें कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का विश्वास पात्र माना जाता है। अब ऐसा माना जा रहा है कि राज्य विधानसभा के अगले साल होने वाले चुनावों में कांग्रेस पार्टी नवजोत सिंह सिद्धू का चेहरा आगे कर सकती है। अगर पार्टी हाईकमान ने सचमुच में उन्हें ऐसा कोई आश्वासन दिया है तो चरणजीत सिंह चन्नी मात्र 6 माह तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन रहने का सौभाग्य अर्जित कर पाएंगे। इस अवधि में भी नवजोत सिंह सिद्धू यही कोशिश करते रहेंगे कि चन्नी सरकार अपने सारे महत्वपूर्ण ़फैसलों में उनकी राय को अहमियत प्रदान करे। दरअसल कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाने की उनकी मुहिम सफल होने के बाद अब सिद्धू यह मान चुके हैं कि वे पंजाब में कांग्रेस पार्टी के भाग्य विधाता बन गए हैं और उनकी मर्जी के बिना राज्य में कांग्रेस पार्टी का पत्ता भी नहीं खड़क सकता। यह तो माना जा सकता है कि नवजोत सिंह सिद्धू पंजाब में कांग्रेस पार्टी का एक लोकप्रिय चेहरा हैं परंतु यह मान लेना ग़लत होगा कि पंजाब में कांग्रेस पार्टी पूरी तरह उन्हीं पर निर्भर है। कांग्रेस पार्टी के अनेक वरिष्ठ राष्ट्रीय नेता इस पक्ष में नहीं थे कि राज्य में सिद्धू की लोकप्रियता को पार्टी हाईकमान इतनी तरजीह दे कि उनके दबाव में पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसे धीर गंभीर वरिष्ठ राजनेता को अपमानित कर मुख्यमंत्री निवास से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाए। सिद्धू को इस हकीकत का भी अहसास हो जाना चाहिए कि अगर उन्होंने पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह से जनता की नाराजी का हवाला देकर उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया है तो वह नाराजी मात्र 6 महीनों में दूर कर पाना चन्नी सरकार के लिए संभव नहीं होगा। इतना तो तय है जनता की नाराजी दूर करने के लिए कांग्रेस के पास अब काफी कम समय है और उसे इतने कम समय में न केवल जनता की नाराजगी दूर करना है बल्कि पार्टी के अंदर व्याप्त गुटबाजी को भी नियंत्रित करना है। सवाल यह उठता है कि अगले साल के पूर्वार्द्ध में जब पंजाब विधानसभा के चुनाव संपन्न कराए जाएंगे तब तक क्या मुख्यमंत्री चन्नी राज्य में कांग्रेस की अलोकप्रिय छवि में इतना सुधार कर पाएंगे कि जनता उसे एक बार फिर राज्य की सत्ता सौंपने की भूल करने के लिए तैयार हो जाए। दरअसल कांग्रेस पार्टी को भी यह चिंता सता रही है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह के मुख्यमंत्री रहते राज्य की जनता का पार्टी से जो मोहभंग हुआ है उसका खामियाजा उसे राज्य विधानसभा के आगामी चुनावों में भुगतना पड़ सकता है इसलिए उसनेे चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा कर दलित कार्ड खेला है ।

उसने अब यह मुगालता पाल लिया है कि अगले विधानसभा चुनावों में राज्य के सारे दलित मतदाताओं के वोट उसकी झोली में ही गिरेंगे जो कुल मतदाताओं के तीस प्रतिशत से भी अधिक हैं लेकिन हकीकत इससे अलग भी हो सकती है। अगर कांग्रेस पार्टी चरणजीत सिंह चन्नी के रूप में एक दलित सिख को मुख्यमंत्री बनाकर सत्ता में वापसी का सुनहरा स्वप्न संजोए बैठी है तो उसे यह भी मालूम होना चाहिए कि जनता उसके खेल को अच्छी तरह समझ चुकी है। क्या राज्य की दलित सिख आबादी को कांग्रेस की यह चाल रास आएगी कि केवल दिखावे के लिए मुख्यमंत्री पद की बागडोर चरणजीत सिंह चन्नी के पास रहे और पर्दे के पीछे से नवजोत सिंह सिद्धू सरकार को दिशा निर्देश देते रहें। सिद्धू जिस तरह एकाधिकार वाद की राजनीति कर रहे हैं उसके कारण आगे चलकर मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और उनके बीच दूरियां भी पैदा हो सकती हैं और मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी भी यह कतई पसंद नहीं करेंगे कि भविष्य में सिद्धू की महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए उन्हें 6 माह तक मोहरे के रूप में इस्तेमाल किया जाए।

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