सिनेमा और वायु सेना की साझी उड़ान

हम देखते हैं कि रजतपट के रंगीन होने के बाद सिनेमा ने भारतीय वायु सेना को भी अपने बहुविध विषयों की माला के मनके के रूप में शामिल किया है। सिनेमा और वायु सेना के साझे सफर की यह उड़ान आगे चलकर कहां तक पहुंचेगी, यह देखना दिलचस्प होगा।

देशभक्ति हमारे हिंदी सिनेमा का प्रमुख विषय रहा है। प्रायः इसका इस्तेमाल एक फार्मूले के रूप में और कभी-कभी सार्थक सिनेमा में हस्तक्षेप के रूप में होता रहा है। हालांकि सिनेमा का इतिहास सौ साल से भी ज्यादा पुराना है लेकिन युद्ध और सेना के दृश्य हमारे सिनेमा में बहुत बाद में आए क्योंकि एक तो तकनीक इतनी विकसित नहीं थी, दूसरे युद्ध के दृश्य फिल्माना बहुत महंगा होता था और तीसरी व प्रमुख बात यह थी कि सैन्य ठिकानों पर शूटिंग की अनुमति बिलकुल नहीं थी। पाठकों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि चेतन आनंद की महत्वपूर्ण युद्ध फिल्म ‘हकीकत’ का निर्माण कुछ वर्ष तक महज इसलिए स्थगित रहा क्योंकि निर्माता को सीमा पर शूटिंग की अनुमति नहीं दी गई थी। ऐसे में वायु सेना पर आधारित फिल्में बनाना तो बहुत मुश्किल था लेकिन साठ के दशक में जब सिनेमा रंगीन हुआ तो वायु सेना पर भी फिल्में बनने लगी।

आराधना के बोल अब भी जुंबा पर

साठ के दशक की लोकप्रिय फिल्म ‘आराधना’(1969)  राजेश खन्ना के करियर की महत्वपूर्ण फिल्म थी। इसमें नायक अरुण (राजेश खन्ना) फ्लाइट लेफ्टिनेंट हैं, जिसकी हवाई दुर्घटना में मौत हो जाती है। उसके निधन के बाद बेटा सूरज (दोहरी भूमिका में राजेश खन्ना) भी यही पेशा अपनाकर पिता के सपने पूरे कर मां (शर्मिला टैगोर) की ‘आराधना’ को सफल करता है। यह फिल्म राजेश खन्ना के चेहरे, शर्मिला टैगोर के भावपूर्ण अभिनय और सचिन देव बर्मन के अद्भुत संगीत (मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू/ कोरा कागज था ये मन मेरा) के कारण आज तक सुस्मृत है।

ललकार आज भी यादों में है ताजा

सत्तर के दशक में युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी रामानंद सागर की चर्चित फिल्म ‘ललकार’(1972) दो भाइयों विंग कमांडर राजन कपूर (राजेन्द्र कुमार) और मेजर राम कपूर (धर्मेन्द्र) के परस्पर नेह और देश के प्रति त्याग की कहानी है। दुश्मन राजन के हवाई जहाज का अपहरण कर उसे कैद कर लेते हैं। राम अपने साथियों की मदद से भाई को छुड़ा कर दुश्मन के अड्डे को नेस्त-नाबूत करते हुए शहीद हो जाता है।

मन्ना डे के गानों ने लिखा अफसाना

उसी दौर में चेतन आनंद ने भारत-पाक युद्ध और वायु सेना को केंद्र में रखकर ‘ऑपेरेशन केक्टस लिली’ पर बड़ी खूबसूरत फिल्म ‘हिंदुस्तान की कसम’(1974) बनाई थी। फिल्म की शुरुआत भारतीय वायु सेना के एक ठिकाने पर पाकिस्तानी वायु सेना के हमले से होती है, जिसमें एक क्रू मेम्बर मारा जाता है। उसके शव के पास खड़े होकर पायलट राज कुमार शपथ लेता है, ‘जवाब देने आऊंगा, इस जवान की कसम, हिंदुस्तान की कसम’ मदन मोहन के संगीत और कैफी आज़मी के गीत से सुसज्ज इस फिल्म में मन्ना डे का गाया गीत ‘हर तरफ अब यही अफसाने हैं’ बहुत चला था।

मिग 21 विमान का हुआ था प्रयोग

अस्सी के दशक में वायु सेना की पृष्ठ भूमि पर शशि कपूर ने एक महत्वपूर्ण फिल्म ‘विजेता’ निर्मित की थी। अपने मां-बाप (रेखा और शशि कपूर) के बीच निरंतर लड़ाई-झगड़े का बालक अंगद (कुणाल कपूर) पर बुरा असर पड़ता है और वह अपना भविष्य तय ही नहीं कर पाता। अंत में वह फाइटर पायलट बनना पसंद करता है। खुद को निखारने की इस प्रक्रिया में वह आंतरिक और बाह्य दोनों नजरियों से ‘विजेता’ बनकर उभरता है। फिल्म का छायांकन कमाल का था और फिल्म में मिग 21 जैसा उस दौर का चर्चित विमान दर्शाया गया था।

आंखें भर देता है बॉर्डर का गाना

जे पी दत्ता की अपने समय की महत्वपूर्ण फिल्म ‘बॉर्डर’(1997) में जैकी श्रॉफ ने एयर फोर्स कमांडर का रोल किया था। जब देश के दुश्मन हमारी थल सेना को दबाने में आंशिक सफलता प्राप्त करने वाले ही होते हैं कि भारतीय वायु सेना की ओर से जबरदस्त हवाई हमला होता है और सारे दुश्मन ढेर हो जाते हैं। अपने प्रदर्शन के 24 वर्ष बाद आज भी इस फिल्म को ‘संदेसे आते हैं’ जैसे भावपूर्ण गीत, बेहतरीन छायांकन और भारी भरकम स्टार कास्ट के संतुलित उपयोग के लिए याद किया जाता है।

वीर-जारा की धुनों से मादकता गायब

यश चोपड़ा की ‘वीर-जारा’(2004) एक प्रेम कहानी थी। फिल्म का नायक वीर प्रताप सिंह भारतीय वायु सेना में अधिकारी है और पाकिस्तानी मंत्री की बेटी ज़ारा खान (प्रीति जिंटा) से प्रेम करता है। उनके प्रेम में सबसे बड़ी बाधा सरहद है। फिल्म की खास बात महान संगीतकार मदन मोहन के निधन के 29 वर्ष बाद उनकी धुनों का अनुप्रयोग था। इन धुनों पर जावेद से गीत लिखवाकर उत्तम सिंह से अरेंज करवाया गया था। हालांकि उस वक्त ये गीत (तेरे लिए/ ऐसा देस है मेरा/ मैं यहां हूं यहां) बहुत चले।

एयरफोर्स ने रची है कई प्रेम कहानियां

पंकज कपूर निर्देशित मौसम (2011) यूं तो रोमानी फिल्म थी लेकिन फिल्म में आतंकवाद, सांप्रदायिक दंगे, युद्ध जैसे कई मसालों की भरमार थी। फिल्म का नायक हैरी (शाहिद कपूर) एयर फोर्स में काम करता है। एक बम विरोधी अभियान के तहत हैरी घायल हो जाता है और उसकी एक बांह लकवाग्रस्त हो जाती है। ऐसी स्थिति में भी वह संघर्ष कर अपने प्यार (सोनम कपूर) को पाने में कामयाब होता है। एयर फोर्स का कहानी के एक हिस्से में प्रयोग करने के मुकाबले मौजूदा दौर के परिपक्व होते सिनेमा में यथार्थपरक उपयोग किया गया है। इस संबंध में ‘एयरलिफ्ट’(2016)  फिल्म का जिक्र करना अप्रासंगिक न होगा, जो कुवैत के बाशिंदे मैथ्यूज के जीवन की सत्य घटना पर आधारित थी। फिल्म की कहानी उस दौर की है जब कुवैत पर इराक ने कब्जा कर लिया था और वहाँ हजारों लोगों की जान संकट में आ गई थी। ऐसे में व्यापारी रंजीत कात्याल (अक्षय कुमार) कुछ मित्रों की सहायता से सारे शरणार्थियों को बचाता है और लगभग 1 लाख 70 हजार लोगों को भारत के लिए एयरलिफ्ट करवाता है। इसी प्रकार सत्य घटना पर ‘गुंजन सक्सेना: द कारगिल गर्ल’ (2020)  एक महत्वाकांक्षी युवती गुंजन (जाह्नवी कपूर) के जीवन पर आधारित है, जिसका सपना पायलट बनने का है। वह कठोर संघर्ष के बाद न सिर्फ पायलट बनने में कामयाब होती है बल्कि कारगिल युद्ध के समय देश की सेवा भी करती है। हाल ही में प्रदर्शित ‘भुज द प्राइड ऑफ इंडिया’(2021)  वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध पर आधारित थी। फिल्म स्क्वाड्रन लीडर विजय कर्णिक (अजय देवगन) की कहानी है, जिन्होंने भुज एयरफोर्स के प्रभारी के रूप में क्षतिग्रस्त हवाई पट्टी को 300 स्थानीय महिलाओं की मदद से दुरुस्त करवा दिया था।  इस प्रकार हम देखते हैं कि रजतपट के रंगीन होने के बाद सिनेमा ने भारतीय वायु सेना को भी अपने बहुविध विषयों की माला के मनके के रूप में शामिल किया है। सिनेमा और वायु सेना के साझे सफर की यह उड़ान आगे चलकर कहां तक पहुंचेगी, यह देखना दिलचस्प होगा।

 

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