गंगा तेरा पानी अमृत

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गंगा को भारत में एक पवित्र स्थान प्राप्त है। वह केवल निरंतर प्रवाहित रहनेवाली नदी ही नहीं है वरन उससे सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक लगाव भी है। इन सारी बातों को जोड़ने, अपने में समाहित करने वाली गंगा शायद दुनिया की इकलौती नदी होगी।

 फिल्मों की अनोखी बारिश

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हिंदी फिल्मों और बारिश का बहुत गहरा संबंध है। फिल्मों में आने के मौके इस ॠतु को गर्मी और ठंड की तुलना में कुछ ज्यादा ही मिले हैं।

फालके अवार्ड विजेता शशि कपूर

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कपूर खानदान के कलाकार कभी भी ‘कैमेरा कॉन्शियस’नहीं होते। सच पूछिए तो कैमेरा ही उनकी सुंदरता ‘कवर’ करता है। यह बात कपूर खानदान की तीन पीढियों- पृथ्वीराज कपूर से लेकर करीना कपूर तक- सभी पर लागू होती है। परंतु

महिला निर्देशिकाएं

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अगर कोई महिला किसी फिल्म का निर्देशन करती है तोक्या फिल्म की कथा में कोई अंतर होता है? इस प्रश्न का उत्तर हां ही होना चाहिये। परंतु हर महिला निर्देशिका को यह करना संभव नहीं हो सका। महिलाओं का किसी विषय की ओर देखने का दृष्टि

उत्तम अभिनेता उत्कृष्ट व्यक्ति-सदाशिव अमरापुरकर

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उम्र के 64 वे वर्ष में सदाशिव अमरापुरकर का दुखद निधन अत्यंत धक्कादायक था। वे केवल अभिनेता नहीं थे। अपने आसपास होनेवाली सामाजिक घटनाओं के प्रति भी वे काफी सजग थे। सामाजिक कृतज्ञता, पुस्तक वाचन, समाज में घडनेवाली घटनाओं पर स्पष्ट वक्तव्य उनके व्यक्तित्व की खास विशेषताएं थी।

फिल्मों में संगीत काबढ़ता शोर

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उस समय एक फिल्म में एक गीतकार और एक संगीतकार होता था। अब ऐसा नहीं होता। अब फिल्म में गानों की संख्या कम होती है और गीतकार संगीतकारों की संख्या अधिक होती है। लगता है जैसे कोई प्रतियोगिता चल रही हो।  आठ साल पहले आशा भोंसले के प

हीरो की सामाजिक बुद्धि

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“...जब फिल्मी सितारे किसी सामाजिक समस्या पर अपनी राय व्यक्त करते हैं, किसी के अनशन आदि का समर्थन करते हैं; तब भी उन्हें कोई गंभीरता से नहीं लेता। इन सितारों की चमकती छवि उनके सामाजिक कर्तव्यों के आड़े आ जाती है।

फिल्मों में भी नाम कमाया सिंधियों ने

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अनेक भाषाओं में फिल्म का निर्माण और अनेक धर्म, भाषा, पंथ और जातियों का हिंदी फिल्मों में सहभाग यही हमारे फिल्म उद्योग की खासियत है। हमारे फिल्म उद्योग की सौ सालों की यात्रा में मराठी, बंगाली, कन्नड़, तमिल, तेलगु, मलयालम, भोजपुरी, अंग्रेजी, पंजाबी, गुजराती जैसी प्रमुख भाषाओं के साथ ही तुलु, कोंकणी, सिंधी जैसी बोली भाषाओं में भी फिल्मों का निर्माण हो रहा है।

नई सरकार और फिल्म जगत की समस्याएं

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कुछ फिल्मी कलाकार भारी मतों से जीतते हैं, तो कुछ हार जाते हैं। भारतीय लोकतंत्र को अब इसकी आदत हो गई है। जनता के प्रेम से जीते फिल्मी कलाकारों का हार्दिक अभिनंदन; और जो नहीं जीत सके वे अपने क्षेत्र के मतदाताओं के सतत संपर्क में रहकर अगले लोकसभा चुनावों की तैयारी करें।

फिल्मी पुरस्कार बन गए मनोरंजन के उत्सव

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फिल्मी दुनिया में इस समय इस तरह का उत्साही और हिसाबी वातावरण है कि हम ‘अपनी भूमिका’ जैसे हो करते रहे, फिर भी कोई न कोई फिल्मी पुरस्कार अवश्य मिल ही जाएगा।

अभिनेता से ‘नेता’ बने कलाकार

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क्या उन्हें ग्राम पंचायत, महापालिका, विधान सभा, विधान परिषद, लोकसभा या राज्यसभा का चुनाव लड़ना चाहिए? क्या वे जनप्रतिनिधि बने?

रंग बरसे

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फिराक, गैंग्स ऑफ वासेपुर, भाग मिल्खा भाग, मद्रास कैफे, स्पेशल छब्बीस जैसी फिल्मों के द्वारा हिंदी सिनेमा कितने भी अलग मोड़ ले लें, परंतु वह अपनी परम्परागत विशेषताएं छोड़ देगा ऐसा नहीं लगता है।

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