स्वामी विवेकानंद औऱ वामपंथी बौद्धिक जगत की खोखली दलीलें

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रामकृष्ण परमहंस के चिंतन से उलट उनके संबोधन में 'हिन्दू' शब्द पर आपत्ति करने वाले लेखक यह भूल जाते है कि विवेकानंद का फलक वैश्विक था और वे अपने अनुयायियों को मठ में नही विदेशों में संबोधित करते है।जाहिर है भारत से बाहर वे वेदांत या उपनिषदों की बात करते है तो इसके लिए उन्हें हिन्दू धर्म ही बोलना होगा क्योंकि यह इसी विराट चिंतन और जीवन पद्धति का हिस्सा है।

आत्मनिर्भर भारत संकल्प सिद्धि का मूलमंत्र

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बेशक आज स्थानीयता का आधार चीन के प्रति नफरत का मनोवैज्ञानिक वातावरण है, लेकिन दीर्धकालिक नजरिये से यह लोकचेतना भारत के आत्मनिर्भर लक्ष्य को सिद्ध करने वाली साबित होगी। भारतीय हुनर के मामले में किसी से कमतर नहीं है।

शूल की तरह चुभते अर्णब

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रिपब्लिक भारत के मालिक संपादक अर्णव गोस्वामी की पत्रकारिता से असहमत होने का अधिकार किसी को भी हो सकता है लेकिन असहमति का तत्व सत्ता के बल पर दमन की इजाजत नही देता है।जिस तरीके से अर्नब को मुंबई पुलिस ने निशाने पर लिया है वह महाराष्ट्र सरकार के उसी…

सामंती सोच से विस्मृत एक महान शख्सियत

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लाल बहादुर शास्त्री के बहाने हमें उस सामंती सोच का विश्लेषण करने की भी आवश्यकता है जिसने कांग्रेस जैसी ऐतिहासिक पार्टी को एक परिवार का बंधक बनाकर भारतीय लोकतंत्र का भी गहरा नुकसान किया है। क्या आज कांग्रेस में उस कांग्रेस का अक्स हमें भूल से भी नजर आता है जो औपनिवेशिक मुक्ति का सबसे सशक्त मंच था?

स्वास्थ्य का मूलाधिकार आत्मनिर्भरता की बुनियाद

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मोदी सरकार ने जिस राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति को 2017 में लागू किया है उसके मूल प्रारूप में ’जनस्वास्थ्य’ को शिक्षा और खाद्य की तरह बुनियादी अधिकार बनाने का प्रस्ताव था; लेकिन राज्यों के कतिपय विरोध के चलते इसे विलोपित कर दिया गया। कोरोना महामारी के अनुभव ने हमें अब पुनः इस पर नए सिरे से सोचने पर मजबूर किया है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में हम तभी आत्मनिर्भर बन सकते हैं, जब स्वास्थ्य को हम नागरिकों का बुनियादी अधिकार मानें।

क्यों महाराष्ट्र सीबीआई जांच से कतरा रहा है?

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 महाराष्ट्र पुलिस के रवैये से सुशांत सिंह कथित आत्महत्या मामला और उलझता जा रहा है। महाराष्ट्र ने बिहार पुलिस को इस मामले में प्राथमिकी दर्ज होने पर भी जांच में न सहयोग किया और न जांच होने दी, न सीबीआई जांच को राजी है। आखिर इसका राज क्या है?

राजनीति में हिंदुत्व का अधिष्ठान भी मंदिर निर्माण

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असल में कांग्रेस औऱ दूसरे सेक्यूलर दलों ने जिस दबी जुबान में मंदिर निर्माण का स्वागत किया है उसे संसदीय सियासत के करवट लेते हुए घटनाक्रम के रूप में भी देखे जाने की जरूरत है। ...कल तक जो राजनीति हिंदुओं के सांस्कृतिक मानमर्दन पर फलती फूलती रही है उसका चेहरा औऱ कोण दोनों बदलने वाले हैं।

भारत के सामयिक उत्कर्ष की ओर उड़ान

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शिक्षा के ढांचे से प्रशासनिक उलझाव खत्म कर एकीकृत स्वरूप देने का प्रावधान बहुत लंबे समय से प्रतीक्षित था। वह शिक्षा के जरिए भारत को महाशक्ति बनाने की प्रबल इच्छा को उद्घाटित करती है। इसका देश भर में स्वागत हो रहा है; जबकि कांग्रेस व वामपंथियों का निरर्थक रुदाली रुदन जारी है, जो समय के साथ अपने आप ठंड़ा पड़ने ही वाला है।

पूंजी औऱ सियासी खेल को समझने की दरकार

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बाबा रामदेव की कोरोनिल दवा के विवाद को लेकर दो आयाम समझने की जरूरत है। एक- बाबा ने अतिशय उत्साह दिखाया, जिससे यह दुनिया के बहुराष्ट्रीय दवा कारोबार के लिए एक जलजला है। दूसरा- वे तथाकथित लिबरल वामपंथी गिरोह हैं, जो वेद, योग व आयुर्वेद के सहसम्बंध को स्वीकार नहीं करने की सियासत करते रहे हैं।

क्या वैश्वीकरण का तिलस्म टूटेगा?

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2021 से दुनियाभर में मौजूदा अवधारणाएं ध्वस्त होंगी और एक नई आर्थिकी, सामाजिकी का जन्म होगा। तकनीकी और लोकजीवन के नए आयाम भारतीय मूल्यों से सराबोर होकर सुस्थापित होंगे।

प्रयोगशालाओं से उठती उम्मीद की किरणें

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न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया में इस चीनी वायरस पर विजय पाने की जमीनी लड़ाई प्रयोगशालाओं में लड़ी जा रही है। दुआओं के समुच्चय में दवा का सृजन शीघ्र ही मानवता को इस चीनी हमले से निजात दिलाएगा ऐसी आशा है।

संकल्प से सिद्धि तक

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ऐसे बीसियों उदाहरण है  जिनसे यह प्रमाणित होता है कि  हमारी चेतना में राष्ट्रीय दायित्व बोध आज भी स्थायी भाव नहीं बना सका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस टीम इंडिया औऱ एक भारत श्रेष्ठ भारत की बात पर जोर देते है उसकी बुनियादी सोच 125 करोड़ भारतीयों में नागरिकबोध के प्रादुर्भाव का ध्येय ही है।

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